"चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
उन्होंने पहाड़ की चोटी पर चढ़कर चारों ओर देखा तो पृथ्वी के अंदर एक गुफा में उन्हें एक कौतुक (आश्चर्य) दिखाई दिया। उसके ऊपर चकवे, बगुले और हंस उड़ रहे हैं और बहुत से पक्षी उसमें प्रवेश कर रहे हैं॥3॥ | उन्होंने [[पर्वत|पहाड़]] की चोटी पर चढ़कर चारों ओर देखा तो [[पृथ्वी]] के अंदर एक गुफा में उन्हें एक कौतुक (आश्चर्य) दिखाई दिया। उसके ऊपर चकवे, [[बगुला|बगुले]] और [[हंस]] उड़ रहे हैं और बहुत से [[पक्षी]] उसमें प्रवेश कर रहे हैं॥3॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=लागि तृषा अतिसय अकुलाने |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=गिरि ते उतरि पवनसुत आवा}} | {{लेख क्रम4| पिछला=लागि तृषा अतिसय अकुलाने |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=गिरि ते उतरि पवनसुत आवा}} | ||
07:58, 26 मई 2016 के समय का अवतरण
चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा। भूमि बिबर एक कौतुक पेखा॥ |
- भावार्थ
उन्होंने पहाड़ की चोटी पर चढ़कर चारों ओर देखा तो पृथ्वी के अंदर एक गुफा में उन्हें एक कौतुक (आश्चर्य) दिखाई दिया। उसके ऊपर चकवे, बगुले और हंस उड़ रहे हैं और बहुत से पक्षी उसमें प्रवेश कर रहे हैं॥3॥
चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|