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बार- बार स्वामी ([[शिव]]) के चरणकमलों को पकड़कर और अपने कमल के समान हाथों को जोड़कर [[पार्वती]] मानो प्रेमरस में सानकर सुंदर वचन बोलीं॥ 119॥
बार- बार स्वामी ([[शिव]]) के चरणकमलों को पकड़कर और अपने कमल के समान हाथों को जोड़कर [[पार्वती]] मानो प्रेमरस में सानकर सुंदर वचन बोलीं॥ 119॥


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{{लेख क्रम4| पिछला=सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी}}


'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।  
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।  

05:56, 2 जून 2016 के समय का अवतरण

पुनि पुनि प्रभु पद कमल
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि।
बोलीं गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि॥ 119॥

भावार्थ-

बार- बार स्वामी (शिव) के चरणकमलों को पकड़कर और अपने कमल के समान हाथों को जोड़कर पार्वती मानो प्रेमरस में सानकर सुंदर वचन बोलीं॥ 119॥


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दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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