"चले सकल बन खोजत": अवतरणों में अंतर
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रामचरितमानस चतुर्थ सोपान (किष्किंधा काण्ड) : सीताजी की खोज के लिये बंदरों का प्रस्थान
चले सकल बन खोजत
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह। |
- भावार्थ
सब वानर वन, नदी, तालाब, पर्वत और पर्वतों की कन्दराओं में खोजते हुए चले जा रहे हैं। मन श्री राम जी के कार्य में लवलीन है। शरीर तक का प्रेम (ममत्व) भूल गया है॥23॥
चले सकल बन खोजत |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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