"हिन्दी सामान्य ज्ञान 32": अवतरणों में अंतर

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{[[संविधान]] की [[आठवीं अनुसूची]] में शामिल की गई चार नई भाषाएँ हैं?
|type="()"}
-[[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] और [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]]
-[[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
-[[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
+[[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]],[[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
||'आठवीं अनुसूची' में [[संविधान]] द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएँ ([[असमिया भाषा|असमिया]], [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[हिन्दी]], [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[मलयालम भाषा|मलयालम]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]]) थीं। बाद में [[सिंधी भाषा|सिंधी]] को तत्पश्चात् [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] को शामिल किया गया, जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त [[बोडो भाषा|बोडो]], [[डोगरी भाषा|डोगरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[संथाली भाषा|संथाली]] को शामिल किया गया और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गईं। अनुच्छेद 347 के अनुसार यदि किसी राज्य का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाय तो राष्ट्रपति उस भाषा को अभिज्ञा दे सकता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आठवीं अनुसूची]], [[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]],[[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
{भारतीय [[भाषा|भाषाओं]] को कितने प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है?
|type="()"}
-3
+4
-6
-8
||[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। यहाँ विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि [[संविधान]] द्वारा 22 भाषाओं को '[[राजभाषा]]' की मान्यता प्रदान की गयी है। भारत में चार '[[भाषा-परिवार|भाषा परिवार]]' माने गये हैं- [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, ऑस्ट्रिक और चीनी-तिब्बती। देश में इन [[भाषा|भाषाओं]] को बोलने वालों का प्रतिशत क्रमश: 73, 25, 1.3 और 0.7 है। भारत में 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिज़ोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा है। कुल मिलाकर देश में 58 भाषाओं में स्कूली पढ़ायी की जाती है। [[संविधान]] की '[[आठवीं अनुसूची]]' में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें 'राजभाषा' की संज्ञा दी गई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारतीय भाषाएँ]], [[भाषा-परिवार]], [[आठवीं अनुसूची]]
{[[भारत]] में सबसे अधिक बोला जाने वाला भाषायी समूह है-
|type="()"}
+[[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]]
-द्रविड़
-ऑस्ट्रिक
-चीनी-तिब्बती
{ऑस्ट्रिक भाषा समूह की [[भाषा|भाषाओं]] को बोलने वालों को कहा जाता है?
|type="()"}
+[[किरात]]
-[[निषाद]]
-[[द्रविड़]]
-इनमें कोई नहीं
||'किरात' [[भारत]] की एक प्राचीन [[अनार्य|अनार्य जाति]] (संभवत: '[[मंगोल]]') थी, जिसका निवास-स्थान मुख्यत: [[हिमालय|पूर्वी हिमालय]] के पर्वतीय प्रदेश में था। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] में [[किरात|किरातों]] का संबंध पहाड़ों और गुफ़ाओं से जोड़ा गया है और उनकी मुख्य जीविका आखेट बताई गई है। [[यजुर्वेद]] तथा [[अथर्ववेद]] में किरातों को [[पर्वत]] और कन्दराओं का निवासी बताया गया है। 'वाजसनेयीसंहिता' और '[[तैत्तिरीय ब्राह्मण]]' में किरातों का संबंध गुहा से बताया गया है। ऐसा जान पड़ता है कि कालांतर में किरात लोग अपने मूल निवास [[हिमालय]] से अतिरिक्त [[भारत]] के अन्य भागों में भी फैल गए थे। [[साँची]] ([[मध्य प्रदेश]]) के [[स्तूप]] पर किसी किरात भिक्षु के दान का उल्लेख है और [[दक्षिण भारत]] में [[नागार्जुनीकोंड]] के एक [[अभिलेख]] में भी किरातों का वर्णन हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[किरात]]
{'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सारु। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस [[दोहा|दोहे]] के रचनाकार का नाम है?
|type="()"}
-[[स्वयंभूदेव|स्वयंभू]]
+[[देवसेन]]
-[[पुष्पदंत]]
-कनकामर
||'देवसेन' [[प्राकृत भाषा]] में '[[स्यादवाद]]' और 'नय' का प्ररूपण करने वाले दूसरे [[जैन]] आचार्य थे। इनका समय दसवीं शताब्दी माना जाता है। [[देवसेन]] नय मनीषी के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्होंने नयचक्र' की रचना की थी। संभव है कि इसी का उल्लेख [[विद्यानन्द|आचार्य विद्यानन्द]] ने अपने 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक' में किया हो और इससे ही नयों को विशेष जानने की सूचना की हो। देवसेन की न्यायविषयक एक अन्य रचना 'आलाप-पद्धति' है। इसकी रचना [[संस्कृत]] के गद्य में हुई है। जैन न्याय में सरलता से प्रवेश पाने के लिये यह छोटा-सा [[ग्रन्थ]] बहुत सहायक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवसेन]]


{[[डोगरी भाषा]] मुख्य रूप से कहाँ बोली जाती है?
{[[डोगरी भाषा]] मुख्य रूप से कहाँ बोली जाती है?

10:43, 8 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण

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इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा

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4 आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के उस इतिहास ग्रंथ का नाम बतलाइए जिसमें मात्र आदिकालीन हिन्दी साहित्य सम्बन्धी सामग्री संग्रहीत है?

'हिन्दी साहित्य की भूमिका'
'हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास'
'मध्यकालीन धर्मसाधना'
'हिन्दी साहित्य का आदिकाल'

5 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किन दो प्रमुख तथ्यों को ध्यान में रखकर 'हिन्दी साहित्य के इतिहास' के काल खण्डों का नामकरण किया है?

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