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'''लोकराम नयनराम शर्मा''' (जन्म: [[1890]] [[हैदराबाद]]; मृत्यु: [[29 मई]] [[1933]]) [[भारत]] के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्त्ता थे। जब ये [[वाराणसी]] में रह रहे थे तभी इनका परिचय बंग-भंग विरोधी और स्वेदेशी आंदोलनकारियों से हुआ। इनके प्रयत्नों से ही  [[1931]] में [[कराची]] में [[कांग्रेस]] का अधिवेशन हो पाया था। लोकराम नयनराम शर्मा ने [[नमक सत्याग्रह]] में भी भाग लिया था।
'''वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री'''(जन्म: [[22 सितम्बर]], [[1869]] [[मद्रास]] (वर्तमान [[चेन्नई]]); मृत्यु: [[17 अप्रैल]] [[1969]]) उदारवादी राजनीतिज्ञ और इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन के संस्थापक, जिन्होंने [[भारत]] में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान देश-विदेश में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किये।
==जन्म एवं शिक्षा==
==जीवन परिचय==
सिंध प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संगठनकर्त्ता लोकराम नयनराम शर्मा का जन्म [[1890 ]] में,  [[हैदराबाद]] ([[सिंध]]) के एक [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में हुआ था। पारिवारिक प्रभाव से लोकराम नयनराम शर्मा ने छोटी उम्र में ही प्राचीन [[भारतीय साहित्य]] का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। [[संस्कृत]] भाषा के प्रति इनकी विशेष रुचि थी। इसी रुची के कारण ये 15 वर्ष की उम्र में अपने मित्र गुरुदास के साथ संस्कृत का अध्ययन करने के लिए वाराणसी गये। [[1905]] से [[1907]] तक ये वाराणसी में रहे।
श्रीनिवास शास्त्री का पूरा नाम वालांगीमन शंकरनारायण श्रीनिवास शास्त्री है। इनका जन्म 22 सितम्बर, 1869 मद्रास (वर्तमान [[चेन्नई]], एक ग़रीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी जीवनवृत्ति स्कूल शिक्षक के रूप में आरंभ की, लेकिन सार्वजनिक मुद्दों में गहरी रुचि और अपनी वाकपटुता के कारण जल्द ही वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए।
== राष्ट्रीयता की भावना==
==राजनीतिक जीवन==
लोकराम नयनराम शर्मा जब [[वाराणसी]] में रह रहे थे तभी इनका परिचय बंग-भंग विरोधी और स्वेदेशी आंदोलनकारियों से हुआ। [[1907]] में वापस सिंध पहुंचने तक ये राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थे। लोकराम की लेखनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं का जोरदार समर्थन करती थी। इसलिए कई बार सरकार ने इनके पत्रों पर लोक लगाई, प्रेस को जब्त किया और इन्हें जेल की सजाएं भी भोगनी पड़ी। इनके प्रयत्नों से बने वातावरण में ही [[1931]] में [[कराची]] में [[कांग्रेस]] का अधिवेशन हो पाया था। इन्होने [[नमक सत्याग्रह]] में भी भाग लिया था।
श्रीनिवास शास्त्री की शुरु से ही जीवन की सामाजिक समस्याओं में अभिरुचि थी, इसी कारण [[गोपालकृष्ण गोखले]] द्वारा संस्थापित 'सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी' नामक संस्था के वह [[1907]] में सदस्य बना दिय गए। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति में उनकी लगन देखकर गोपालकृष्ण गोखले ने इस संस्था की अध्यक्षता के लिए अपने बाद इन्हीं को चुना। [[1915]] में इस संस्था के अध्यक्ष बने. श्रीनिवास मद्रास [[विधान परिषद]] के सदस्य थे तथा [[1916]] में उन्हें केंद्रीय विधायिका के लिए चुना गया। उन्होंने [[1919]] के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट का स्वागत किया, जिसके द्वारा पहली बार भारतीय मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी प्रांतीय सरकारों पर भारतीय मंत्री कुछ हद तक नियंत्रण कर सकते थे। सुधार के तहत स्थापित राज्य की नई परिषद में निर्वाचित होने के बाद उन्होंनें पाया कि वह दिनोदिन सदन में छाई राष्ट्रवादी [[कांग्रेस]] पार्टी से असहमत होते जा रहे हैं। कांग्रेस सुधारो में सहयोग करने से इनकार करती थी और सविनय अवज्ञा के तरीक़ो को तरजीह देती थी। इसलिये श्रीनिवास शास्त्री ने [[1922]] में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर 'इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन' की स्थापना की, जिसके वह अध्यक्ष बने।
==समाचार पत्र का प्रकाशन ==
==समाज सुधारक==
लोकराम नयनराम शर्मा ने अपने विचारों के प्रचार के लिए पहले कुछ प्रपत्र प्रकाशित किए और 'रास मंडली' नामक सांस्कृतिक संस्था बनाई। फिर सिंध में राष्ट्रीय पत्र की कमी दूर करने के लिए 'सिंध भास्कर' पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र को इन्होने अरबी लिपि के स्थान पर [[देवनागरी लिपि]] में निकाला था। कुछ समय बाद इसका नाम बदल कर 'हिंन्दू' कर दिया गया। इसी समय लोकराम नयनराम शर्मा [[सिंध]] के प्रमुख नेता चोइथराम गिडवानी, जयराम दास दौलतराम आदि के संपर्क में आए। बाद में जब 'हिंदू' का 'वंदेमातरम' नाम से [[अंग्रेज़ी]] संस्करण निकला तो कुछ समय तक जयराम दास दौलतराम ने उसका संपादन किया था।
श्रीनिवास शास्त्री समाज सुधारक भी थे। इसलिये सरकार ने उन्हें [[1922]] में [[ऑस्ट्रेलिया]], न्यूज़ीलैंड और कनाडा की यात्रा पर भेजा, जो उन देशों में रहने वाले भारतीयों की दशा को सुधारने का एक प्रयास था। [[1926]] में उन्हें इसी कार्य के लिए दक्षिण अफ़्रीका भेजा गया और [[1927]] में उन्हें वहां का एजेंट-जनरल नियुक्त किया गया। भारतीय सरकार ने उन्हें मलाया में भारतीय मज़दूरों की दशा पर रिपोर्ट देने के लिए भी नियुक्त किया। [[1930]]-[[1931]] के दौरान उन्होंने भारत में संवैधानिक सुधारों के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए लंदन में आयोजित गोलमेज़ सम्मेलनों में सक्रिय भागेदारी की। [[1935]] -[[1940]] के दौरान वह मद्रास में अन्नामलाई विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर भी रहे।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
लोकराम नयनराम शर्मा कई बार जेल गये जिस कारण इनका स्वास्थ्य खराब हो गया, और इस प्रकार [[29 मई]], [[1933]] को इनका देहांत हो गया।
वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री की मृत्यु [[17 अप्रैल]] [[1969]] भारत में हो गयी।
 
 
 
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==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री(जन्म: 22 सितम्बर, 1869 मद्रास (वर्तमान चेन्नई); मृत्यु: 17 अप्रैल 1969) उदारवादी राजनीतिज्ञ और इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन के संस्थापक, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान देश-विदेश में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किये।

जीवन परिचय

श्रीनिवास शास्त्री का पूरा नाम वालांगीमन शंकरनारायण श्रीनिवास शास्त्री है। इनका जन्म 22 सितम्बर, 1869 मद्रास (वर्तमान चेन्नई, एक ग़रीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी जीवनवृत्ति स्कूल शिक्षक के रूप में आरंभ की, लेकिन सार्वजनिक मुद्दों में गहरी रुचि और अपनी वाकपटुता के कारण जल्द ही वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए।

राजनीतिक जीवन

श्रीनिवास शास्त्री की शुरु से ही जीवन की सामाजिक समस्याओं में अभिरुचि थी, इसी कारण गोपालकृष्ण गोखले द्वारा संस्थापित 'सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी' नामक संस्था के वह 1907 में सदस्य बना दिय गए। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति में उनकी लगन देखकर गोपालकृष्ण गोखले ने इस संस्था की अध्यक्षता के लिए अपने बाद इन्हीं को चुना। 1915 में इस संस्था के अध्यक्ष बने. श्रीनिवास मद्रास विधान परिषद के सदस्य थे तथा 1916 में उन्हें केंद्रीय विधायिका के लिए चुना गया। उन्होंने 1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट का स्वागत किया, जिसके द्वारा पहली बार भारतीय मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी प्रांतीय सरकारों पर भारतीय मंत्री कुछ हद तक नियंत्रण कर सकते थे। सुधार के तहत स्थापित राज्य की नई परिषद में निर्वाचित होने के बाद उन्होंनें पाया कि वह दिनोदिन सदन में छाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से असहमत होते जा रहे हैं। कांग्रेस सुधारो में सहयोग करने से इनकार करती थी और सविनय अवज्ञा के तरीक़ो को तरजीह देती थी। इसलिये श्रीनिवास शास्त्री ने 1922 में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर 'इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन' की स्थापना की, जिसके वह अध्यक्ष बने।

समाज सुधारक

श्रीनिवास शास्त्री समाज सुधारक भी थे। इसलिये सरकार ने उन्हें 1922 में ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा की यात्रा पर भेजा, जो उन देशों में रहने वाले भारतीयों की दशा को सुधारने का एक प्रयास था। 1926 में उन्हें इसी कार्य के लिए दक्षिण अफ़्रीका भेजा गया और 1927 में उन्हें वहां का एजेंट-जनरल नियुक्त किया गया। भारतीय सरकार ने उन्हें मलाया में भारतीय मज़दूरों की दशा पर रिपोर्ट देने के लिए भी नियुक्त किया। 1930-1931 के दौरान उन्होंने भारत में संवैधानिक सुधारों के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए लंदन में आयोजित गोलमेज़ सम्मेलनों में सक्रिय भागेदारी की। 1935 -1940 के दौरान वह मद्रास में अन्नामलाई विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर भी रहे।

मृत्यु

वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री की मृत्यु 17 अप्रैल 1969 भारत में हो गयी।