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'''वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री''' (जन्म: [[22 सितम्बर]], [[1869]], [[तंजौर]], [[कर्नाटक]]; मृत्यु: [[17 अप्रैल]], [[1946]], [[मद्रास]]<ref>{{cite web |url=http://www.vskgujarat.com/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D/ |title=श्री निवास शास्त्री |accessmonthday=17 नवम्बर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=vskgujarat.com |language= हिन्दी}}</ref>) उदारवादी राजनीतिज्ञ और इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन के संस्थापक थे, जिन्होंने [[भारत]] में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान देश-विदेश में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किये।
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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
श्रीनिवास शास्त्री का पूरा नाम 'वालांगीमन शंकरनारायण श्रीनिवास शास्त्री' था। इनका जन्म ग्राम वालंगइमान (जिला तंजौर, कर्नाटक) में 22 सितम्बर, 1869, एक ग़रीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह ग्राम प्रसिद्ध तीर्थस्थल कुम्भकोणम के पास है, जहाँ हर 12 वर्ष बाद विशाल रथयात्रा निकाली जाती है। इनके पिता एक मन्दिर में पुजारी थे। और इनकी माता जी भी अति धर्मनिष्ठ थीं। अतः इनका बचपन धार्मिक कथाएं एवं भजन सुनते हुए बीता। इसका इनके मन पर गहरा प्रभाव हुआ और इन संस्कारों का उनके भावी जीवन में बहुत उपयोग हुआ।
श्रीनिवास शास्त्री का पूरा नाम 'वालांगीमन शंकरनारायण श्रीनिवास शास्त्री' था। इनका जन्म ग्राम वालंगइमान (जिला तंजौर, कर्नाटक) में 22 सितम्बर, 1869, एक ग़रीब [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में हुआ था। यह ग्राम प्रसिद्ध तीर्थस्थल [[कुम्भकोणम]] के पास है, जहाँ हर 12 वर्ष बाद विशाल रथयात्रा निकाली जाती है। इनके पिता एक मन्दिर में पुजारी थे और इनकी माता जी भी अति धर्मनिष्ठ थीं। अतः इनका बचपन धार्मिक कथाएं एवं भजन सुनते हुए बीता। इसका इनके मन पर गहरा प्रभाव हुआ और इन संस्कारों का उनके भावी जीवन में बहुत उपयोग हुआ।
==शिक्षा==
;शिक्षा
श्रीनिवास शास्त्री शिक्षा के प्रति अत्यधिक अनुराग होने के कारण वे कुम्भकोणम् के ‘नेटिव हाईस्कूल’ में पढ़ने के लिए पैदल ही जाते थे। [[1884]] में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने मद्रास प्रेसिडेन्सी से एफ.ए किया और फिर मायावरम् नगर पालिका विद्यालय में पढ़ाने लगे। इस दौरान छात्रों में लोकप्रियता और अनूठी शिक्षण शैली के कारण इनकी उन्नति होती गयी और ये सलेम म्यूनिसिपल कॉलेज में उपप्राचार्य हो गये। इसके बाद श्रीनिवास शास्त्री मद्रास के पचइप्पा कॉलेज में भी रहे। इन्होंने अपनी जीवनवृत्ति स्कूल शिक्षक के रूप में आरंभ की, लेकिन सार्वजनिक मुद्दों में गहरी रुचि और अपनी वाकपटुता के कारण जल्द ही वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए।
श्रीनिवास शास्त्री शिक्षा के प्रति अत्यधिक अनुराग होने के कारण वे कुम्भकोणम के ‘नेटिव हाईस्कूल’ में पढ़ने के लिए पैदल ही जाते थे। [[1884]] में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने मद्रास प्रेसिडेन्सी से एफ.ए किया और फिर मायावरम् नगर पालिका विद्यालय में पढ़ाने लगे। इस दौरान छात्रों में लोकप्रियता और अनूठी शिक्षण शैली के कारण इनकी उन्नति होती गयी और ये सलेम म्यूनिसिपल कॉलेज में उपप्राचार्य हो गये। इसके बाद श्रीनिवास शास्त्री मद्रास के पचइप्पा कॉलेज में भी रहे। इन्होंने अपनी जीवनवृत्ति स्कूल शिक्षक के रूप में आरंभ की, लेकिन सार्वजनिक मुद्दों में गहरी रुचि और अपनी वाकपटुता के कारण जल्द ही वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए।
==राजनीतिक क्षेत्र==
==राजनीतिक क्षेत्र==
राजनीतिक क्षेत्र में श्रीनिवास शास्त्री ने [[गोपालकृष्ण गोखले]] को अपना गुरू माना था। उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा को इन्होंने अनेक लेखों तथा ‘माई मास्टर गोखले’ नामक पुस्तक में व्यक्त किया है। इनकी शुरु से ही जीवन की सामाजिक समस्याओं में अभिरुचि थी, इसी कारण गोपालकृष्ण गोखले द्वारा संस्थापित 'सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी' नामक संस्था के वह [[1907]] में सदस्य बना दिय गए। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति में श्रीनिवास शास्त्री की लगन देखकर गोपालकृष्ण गोखले ने इस संस्था की अध्यक्षता के लिए अपने बाद इन्हीं को चुना। [[1915]] में इस संस्था के अध्यक्ष बने. श्रीनिवास मद्रास [[विधान परिषद]] के सदस्य थे तथा [[1916]] में उन्हें केंद्रीय विधायिका के लिए चुना गया।
राजनीतिक क्षेत्र में श्रीनिवास शास्त्री ने [[गोपालकृष्ण गोखले]] को अपना गुरू माना था। उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा को इन्होंने अनेक लेखों तथा ‘माई मास्टर गोखले’ नामक पुस्तक में व्यक्त किया है। इनकी शुरु से ही जीवन की सामाजिक समस्याओं में अभिरुचि थी, इसी कारण गोपालकृष्ण गोखले द्वारा संस्थापित 'सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी' नामक संस्था के वह [[1907]] में सदस्य बना दिय गए। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति में श्रीनिवास शास्त्री की लगन देखकर गोपालकृष्ण गोखले ने इस संस्था की अध्यक्षता के लिए अपने बाद इन्हीं को चुना। [[1915]] में इस संस्था के अध्यक्ष बने. श्रीनिवास मद्रास [[विधान परिषद]] के सदस्य थे तथा [[1916]] में उन्हें केंद्रीय विधायिका के लिए चुना गया।
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श्रीनिवास शास्त्री समाज सुधारक थे। इसलिये सरकार ने उन्हें [[1922]] में [[ऑस्ट्रेलिया]], न्यूज़ीलैंड और कनाडा की यात्रा पर भेजा, जो उन देशों में रहने वाले भारतीयों की दशा को सुधारने का एक प्रयास था। [[1926]] में उन्हें इसी कार्य के लिए [[दक्षिण अफ़्रीका]] भेजा गया और [[1927]] में उन्हें वहां का एजेंट-जनरल नियुक्त किया गया। भारतीय सरकार ने उन्हें मलाया में भारतीय मज़दूरों की दशा पर रिपोर्ट देने के लिए भी नियुक्त किया। [[1930]]-[[1931]] के दौरान उन्होंने [[भारत]] में संवैधानिक सुधारों के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए [[लंदन]] में आयोजित [[गोलमेज़ सम्मेलन|गोलमेज़ सम्मेलनों]] में सक्रिय भागेदारी की। [[1935]] -[[1940]] के दौरान वह [[मद्रास]] में [[अन्नामलाई विश्वविद्यालय]] के कुलपति पद पर भी रहे।
श्रीनिवास शास्त्री समाज सुधारक थे। इसलिये सरकार ने उन्हें [[1922]] में [[ऑस्ट्रेलिया]], न्यूज़ीलैंड और कनाडा की यात्रा पर भेजा, जो उन देशों में रहने वाले भारतीयों की दशा को सुधारने का एक प्रयास था। [[1926]] में उन्हें इसी कार्य के लिए [[दक्षिण अफ़्रीका]] भेजा गया और [[1927]] में उन्हें वहां का एजेंट-जनरल नियुक्त किया गया। भारतीय सरकार ने उन्हें मलाया में भारतीय मज़दूरों की दशा पर रिपोर्ट देने के लिए भी नियुक्त किया। [[1930]]-[[1931]] के दौरान उन्होंने [[भारत]] में संवैधानिक सुधारों के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए [[लंदन]] में आयोजित [[गोलमेज़ सम्मेलन|गोलमेज़ सम्मेलनों]] में सक्रिय भागेदारी की। [[1935]] -[[1940]] के दौरान वह [[मद्रास]] में [[अन्नामलाई विश्वविद्यालय]] के कुलपति पद पर भी रहे।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
देश एवं विदेश में बसे भारतीयों की सेवा को समर्पित श्रीनिवास शास्त्री का 76 वर्ष की आयु में 17 अप्रैल, 1946 को मद्रास में देहांत हुआ।
देश एवं विदेश में बसे भारतीयों की सेवा को समर्पित श्रीनिवास शास्त्री का 76 वर्ष की आयु में [[17 अप्रैल]], [[1946]] को [[मद्रास]] में देहांत हुआ।


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

10:14, 17 नवम्बर 2016 का अवतरण

वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री(अंग्रेज़ी: V. S. Srinivasa Sastri) (जन्म: 22 सितम्बर, 1869, तंजौर, कर्नाटक; मृत्यु: 17 अप्रैल, 1946, मद्रास[1]) उदारवादी राजनीतिज्ञ और इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन के संस्थापक थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान देश-विदेश में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किये।

जीवन परिचय

श्रीनिवास शास्त्री का पूरा नाम 'वालांगीमन शंकरनारायण श्रीनिवास शास्त्री' था। इनका जन्म ग्राम वालंगइमान (जिला तंजौर, कर्नाटक) में 22 सितम्बर, 1869, एक ग़रीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह ग्राम प्रसिद्ध तीर्थस्थल कुम्भकोणम के पास है, जहाँ हर 12 वर्ष बाद विशाल रथयात्रा निकाली जाती है। इनके पिता एक मन्दिर में पुजारी थे और इनकी माता जी भी अति धर्मनिष्ठ थीं। अतः इनका बचपन धार्मिक कथाएं एवं भजन सुनते हुए बीता। इसका इनके मन पर गहरा प्रभाव हुआ और इन संस्कारों का उनके भावी जीवन में बहुत उपयोग हुआ।

शिक्षा

श्रीनिवास शास्त्री शिक्षा के प्रति अत्यधिक अनुराग होने के कारण वे कुम्भकोणम के ‘नेटिव हाईस्कूल’ में पढ़ने के लिए पैदल ही जाते थे। 1884 में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने मद्रास प्रेसिडेन्सी से एफ.ए किया और फिर मायावरम् नगर पालिका विद्यालय में पढ़ाने लगे। इस दौरान छात्रों में लोकप्रियता और अनूठी शिक्षण शैली के कारण इनकी उन्नति होती गयी और ये सलेम म्यूनिसिपल कॉलेज में उपप्राचार्य हो गये। इसके बाद श्रीनिवास शास्त्री मद्रास के पचइप्पा कॉलेज में भी रहे। इन्होंने अपनी जीवनवृत्ति स्कूल शिक्षक के रूप में आरंभ की, लेकिन सार्वजनिक मुद्दों में गहरी रुचि और अपनी वाकपटुता के कारण जल्द ही वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए।

राजनीतिक क्षेत्र

राजनीतिक क्षेत्र में श्रीनिवास शास्त्री ने गोपालकृष्ण गोखले को अपना गुरू माना था। उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा को इन्होंने अनेक लेखों तथा ‘माई मास्टर गोखले’ नामक पुस्तक में व्यक्त किया है। इनकी शुरु से ही जीवन की सामाजिक समस्याओं में अभिरुचि थी, इसी कारण गोपालकृष्ण गोखले द्वारा संस्थापित 'सर्वेट्स ऑव इंडिया सोसायटी' नामक संस्था के वह 1907 में सदस्य बना दिय गए। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति में श्रीनिवास शास्त्री की लगन देखकर गोपालकृष्ण गोखले ने इस संस्था की अध्यक्षता के लिए अपने बाद इन्हीं को चुना। 1915 में इस संस्था के अध्यक्ष बने. श्रीनिवास मद्रास विधान परिषद के सदस्य थे तथा 1916 में उन्हें केंद्रीय विधायिका के लिए चुना गया। श्रीनिवास शास्त्री ने 1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट का स्वागत किया, जिसके द्वारा पहली बार भारतीय मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी प्रांतीय सरकारों पर भारतीय मंत्री कुछ हद तक नियंत्रण कर सकते थे। सुधार के तहत स्थापित राज्य की नई परिषद में निर्वाचित होने के बाद उन्होंनें पाया कि वह दिनोदिन सदन में छाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से असहमत होते जा रहे हैं। कांग्रेस सुधारो में सहयोग करने से इनकार करती थी और सविनय अवज्ञा के तरीक़ो को तरजीह देती थी। इसलिये श्रीनिवास शास्त्री ने 1922 में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर 'इंडियन लिबरल फ़ेडरेशन' की स्थापना की, जिसके वह अध्यक्ष बने।

समाज सुधारक

श्रीनिवास शास्त्री समाज सुधारक थे। इसलिये सरकार ने उन्हें 1922 में ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा की यात्रा पर भेजा, जो उन देशों में रहने वाले भारतीयों की दशा को सुधारने का एक प्रयास था। 1926 में उन्हें इसी कार्य के लिए दक्षिण अफ़्रीका भेजा गया और 1927 में उन्हें वहां का एजेंट-जनरल नियुक्त किया गया। भारतीय सरकार ने उन्हें मलाया में भारतीय मज़दूरों की दशा पर रिपोर्ट देने के लिए भी नियुक्त किया। 1930-1931 के दौरान उन्होंने भारत में संवैधानिक सुधारों के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए लंदन में आयोजित गोलमेज़ सम्मेलनों में सक्रिय भागेदारी की। 1935 -1940 के दौरान वह मद्रास में अन्नामलाई विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर भी रहे।

मृत्यु

देश एवं विदेश में बसे भारतीयों की सेवा को समर्पित श्रीनिवास शास्त्री का 76 वर्ष की आयु में 17 अप्रैल, 1946 को मद्रास में देहांत हुआ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री निवास शास्त्री (हिन्दी) vskgujarat.com। अभिगमन तिथि: 17 नवम्बर, 2016।

संदर्भ