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कविता बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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+असमाधेय वर्ग संघर्ष | +असमाधेय वर्ग संघर्ष | ||
-पूंजीवाद | -पूंजीवाद | ||
||[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार, [[राज्य]] की उत्पत्ति का कारण वर्ग संघर्ष की असमाधेय स्थिति है। एंजेल्स ने अपनी प्रशंसनीय पुस्तक ' | ||[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार, [[राज्य]] की उत्पत्ति का कारण वर्ग संघर्ष की असमाधेय स्थिति है। एंजेल्स ने अपनी प्रशंसनीय पुस्तक 'ऑरिजिन ऑफ फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एण्ड द स्टेट' में राज्य की उत्पत्ति और स्वरूप के विषय में लिखा है कि 'यह समाज के विकास के एक निश्चित चरण की उपज है। यह इस बात की स्वीकृति है कि समाज ऐसे वर्ग अंतर्विरोध (संघर्ष) का शिकार है जिसका कोई हल नहीं है। ये वर्ग संघर्ष समाज और वर्गों को भस्म न कर दे इसलिए प्रकट रूप से राज्य की आवश्यकता हुई जो इस संघर्ष पर नियंत्रण कर सके और व्यवस्था के अंतर्गत सीमित रख सके। इस संदर्भ में लेकिन का भी यही निष्कर्ष है कि 'राज्य वर्ग संघर्षों' की, जिनमें कोई समझौता सम्भव नहीं है, उपज और अभिव्यक्ति है। | ||
{"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है" किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-1 | {"राष्ट्रीयता सभ्यता के लिए एक खतरा है" किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-64 प्रश्न-1 | ||
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-मित्र एवं बल | -मित्र एवं बल | ||
-मित्र एवं कोष | -मित्र एवं कोष | ||
||[[प्राचीन भारत]] के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक [[कौटिल्य]] ने राज्य के अंगों की चर्चा करते हुए [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]] के | ||[[प्राचीन भारत]] के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक [[कौटिल्य]] ने राज्य के अंगों की चर्चा करते हुए [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]] के छठे अधिकरण में सप्तांग की चर्चा की। राज्य के सप्तांग अर्थात सात अंगों का उल्लेख इस प्रकार है- 1.राजा या स्वामी, 2.अमात्य अथवा मंत्री, 3.जनपद या प्रादेशिक क्षेत्र, 4 दुर्ग या क़िला, 5.राजकोष, 6.दण्ड या सेना, 7.मित्र। अत: सामंत एवं गुरुकुल का उल्लेख इसमें नहीं है। | ||
{'अंतर्रष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति तब तक संभव नहीं हैं जब तक नार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-103 | {'अंतर्रष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन में उन्नति तब तक संभव नहीं हैं जब तक नार्गेंथाऊ का यथार्थवादी सिद्धांत प्रभावशाली है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-80 प्रश्न-103 | ||
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{हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-3 | {हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मानवीय जीवन- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-17 प्रश्न-3 | ||
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+एकाकी, निर्धन, निंदनीय अल्पकालिक | +एकाकी, निर्धन, निंदनीय अल्पकालिक था | ||
-एकाकी किंतु शांतिपूर्ण | -एकाकी किंतु शांतिपूर्ण था | ||
-सामाजिक और सहयोगात्मक किंतु दरिद्र | -सामाजिक और सहयोगात्मक किंतु दरिद्र था | ||
-उपर्युक्त में से कोई | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य का जीवन एकाकी, दीन, अपवित्र, निंदनीय, पाशविक तथा अल्पकालिक होता था। इस प्रकार राज्य की अनुपस्थिति में अराजकता थी। *'''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. हॉब्स बुद्धिवादी हैं, इनका मानना है कि मृत्यु के भय एवं पाशविक प्रतियोगिता के कारण प्राकृतिक अवस्था के मनुष्यों ने आपस में समझौता किया और कहा" मैं इस व्यक्ति अथवा सभा को अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण करता हूं जिससे कि वह हम पर शासन करे परंतु इसी शर्त पर कि आप भी अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण इसे इसी रूप में करें और इसकी आज्ञाओं को मानें।" परिणामस्वरूप जनसमुदाय आपस में संयुक्त होकर राज्य या लेटिन में सिविटास का रूप धारण कर लिया। इस प्रकार हॉब्स ने राज्य के उत्पत्ति का सामाजिक समझौता प्रतिपादित किया। 2. हॉब्स के द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ हैं डी सिवे (De Cive), डी कारपोरे (De Corpore), लेवियाथन (Leviathan) और एलीमेंट्स ऑफ़ ला (Elements of Law)। | ||हॉब्स के अनुसार, प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य का जीवन एकाकी, दीन, अपवित्र, निंदनीय, पाशविक तथा अल्पकालिक होता था। इस प्रकार राज्य की अनुपस्थिति में अराजकता थी। *'''अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. हॉब्स बुद्धिवादी हैं, इनका मानना है कि मृत्यु के भय एवं पाशविक प्रतियोगिता के कारण प्राकृतिक अवस्था के मनुष्यों ने आपस में समझौता किया और कहा" मैं इस व्यक्ति अथवा सभा को अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण करता हूं जिससे कि वह हम पर शासन करे परंतु इसी शर्त पर कि आप भी अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण इसे इसी रूप में करें और इसकी आज्ञाओं को मानें।" परिणामस्वरूप जनसमुदाय आपस में संयुक्त होकर राज्य या लेटिन में सिविटास का रूप धारण कर लिया। इस प्रकार हॉब्स ने राज्य के उत्पत्ति का सामाजिक समझौता प्रतिपादित किया। 2. हॉब्स के द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ हैं डी सिवे (De Cive), डी कारपोरे (De Corpore), लेवियाथन (Leviathan) और एलीमेंट्स ऑफ़ ला (Elements of Law)। | ||
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||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हेयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{ | {नाज़ीवाद का जनक कौन था? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-3 | ||
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-मुसोलिनी | -मुसोलिनी | ||
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-लेनिन | -लेनिन | ||
-इनमें से कोई नहीं। | -इनमें से कोई नहीं। | ||
||[[जर्मनी]] के नेता एडोल्फ हिटलर ने अपने साम्राज्यवादी, प्रजातिवादी और लोकतंत्र विरोधी कार्यक्रम के पक्ष में जो तर्क प्रस्तुत किए उन्हें ' | ||[[जर्मनी]] के नेता एडोल्फ हिटलर ने अपने साम्राज्यवादी, प्रजातिवादी और लोकतंत्र विरोधी कार्यक्रम के पक्ष में जो तर्क प्रस्तुत किए उन्हें 'नाज़ीवाद' की संज्ञा दी गई। नाज़ीवाद को '''फॉसीवाद''' का ही एक प्रसार माना जाता हैं। | ||
{[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों की कुल संख्या है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-3 | {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों की कुल संख्या है- (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-119 प्रश्न-3 | ||
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||[[गांधी जी]] की शिक्षाओं को अक्सर 'गांधीवाद' के नाम से संबोधित किया गया परंतु इस शब्द से उन्हें स्वयं आपत्ति थी, महात्मा गांधी का कहना था कि गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है और मैं अपने बाद कोई संप्रदाय छोड़ना नहीं चाहता। मैं कभी इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने कोई नया सिद्धान्त चलाया..... आप लोग इसे गांधीवाद न कहें, इसमें वाद जैसा कुछ भी नहीं है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. गांधी-इर्विन समझौते के बाद एक सार्वजनिक सभा में गांधी जी ने अपने वक्तव्य में कहा था- "गांधी मर सकता है परंतु गांधीवाद सदा जीवित रहेगा।" 2. गांधी जी ने अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन मुख्य रूप से अपनी दो पुस्तकों 'हिंद स्वराज' तथा अपनी आत्मकथा 'मेरे सत्य के प्रयोग' में किया। 3. गांधी जी की रचनाएं- शांति और युद्ध में अहिंसा, नैतिक धर्म, सत्याग्रह, सत्य ही ईश्वर है. सर्वोदय आदि हैं। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने [[दक्षिण अफ़्रीका]] में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र तथा [[भारत]] में यंग इंडिया, हरिजन सेवक, हतिजन बंधु आदि पत्रों का संपादन किया। | ||[[गांधी जी]] की शिक्षाओं को अक्सर 'गांधीवाद' के नाम से संबोधित किया गया परंतु इस शब्द से उन्हें स्वयं आपत्ति थी, महात्मा गांधी का कहना था कि गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है और मैं अपने बाद कोई संप्रदाय छोड़ना नहीं चाहता। मैं कभी इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने कोई नया सिद्धान्त चलाया..... आप लोग इसे गांधीवाद न कहें, इसमें वाद जैसा कुछ भी नहीं है। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. गांधी-इर्विन समझौते के बाद एक सार्वजनिक सभा में गांधी जी ने अपने वक्तव्य में कहा था- "गांधी मर सकता है परंतु गांधीवाद सदा जीवित रहेगा।" 2. गांधी जी ने अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन मुख्य रूप से अपनी दो पुस्तकों 'हिंद स्वराज' तथा अपनी आत्मकथा 'मेरे सत्य के प्रयोग' में किया। 3. गांधी जी की रचनाएं- शांति और युद्ध में अहिंसा, नैतिक धर्म, सत्याग्रह, सत्य ही ईश्वर है. सर्वोदय आदि हैं। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने [[दक्षिण अफ़्रीका]] में इंडियन ओपिनियन नामक साप्ताहिक पत्र तथा [[भारत]] में यंग इंडिया, हरिजन सेवक, हतिजन बंधु आदि पत्रों का संपादन किया। | ||
{"एक व्यवस्थापिका जो मंत्रिपरिषद के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो [[राष्ट्रपति]] के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-105 | {"एक व्यवस्थापिका जो [[मंत्रिपरिषद]] के समक्ष निर्बल है तथा एक मंत्रिपरिषद जो [[राष्ट्रपति]] के समक्ष निर्बल है" किस देश की शासन व्यवस्था की विशेषता दर्शाता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-105 | ||
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+[[फ़्राँस]] | +[[फ़्राँस]] | ||
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-सर हेनरी मेन | -सर हेनरी मेन | ||
-एम.पी. फोलेट | -एम.पी. फोलेट | ||
+ | +हॉबहाउस | ||
||रुसो के सामान्य इच्छा को अस्पष्ट एवं अव्यावहरिक बताते हुए एल.टी. हाबहाउस ने टिप्पणी की है कि "सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं है और जहां तक यह इच्छा है, यह सामान्य नहीं है।" अर्थात यह या तो सामान्य है या इच्छा, यह दोनों नहीं हो सकती। वाहन ने भी रुसो पर अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि "रुसो ने अपनी समष्टिवादी विचारधारा व्यक्ति को शून्य बना दिया है।" | ||रुसो के सामान्य इच्छा को अस्पष्ट एवं अव्यावहरिक बताते हुए एल.टी. हाबहाउस ने टिप्पणी की है कि "सामान्य इच्छा के प्रति वास्तविक आपत्ति यह है कि जहां तक यह सामान्य है, यह इच्छा नहीं है और जहां तक यह इच्छा है, यह सामान्य नहीं है।" अर्थात यह या तो सामान्य है या इच्छा, यह दोनों नहीं हो सकती। वाहन ने भी रुसो पर अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाते हुए कहा है कि "रुसो ने अपनी समष्टिवादी विचारधारा व्यक्ति को शून्य बना दिया है।" | ||
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-अर्थहीन | -अर्थहीन | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], | ||व्यक्तिवादी सिद्धांत 'राज्य को आवश्यक बुराई मानता है'। आवश्यक इसलिए कि केवल राज्य ही लोगों के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है। तथा बुराई इसलिए कि राज्य के प्रत्येक कार्य का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करना। व्यक्तिवाद व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अपने चिंतन में केद्रीय स्थान देता है। [[एडम स्मिथ]], हॅयक, [[हर्बर्ट स्पेंसर|स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। '''*अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य'''- 1. अराजकतावादी राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं। 2. सर्वाधिकारवादी राज्य को गौरवांवित तथा महिमामंडित करते हैं। | ||
{निम्नलिखित में से कौन फॉसीवाद की विशेषता नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-5 | {निम्नलिखित में से कौन फॉसीवाद की विशेषता नहीं है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-40 प्रश्न-5 | ||
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||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं- 1.[[रूस]], 2.[[संयुक्त राज्य अमेरिका]], 3.[[यूनाइटेड किंगडम]], 4.[[फ़्राँस]], और 5, [[चीन]]। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं, जिनका निर्वाचन होता है। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। अस्थायी सदस्यों का क्षेत्रीय आधार पर दो वर्षों के लिए निर्वाचन होता है। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता इसके सदस्यों द्वारा मासिक आधार पर चक्रानुक्रम में की जाती है। | ||
{'POSDCORB' | {'POSDCORB' दृष्टिकोण की आलोचना निम्न में से किसने की है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-6 | ||
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-हेनरी फियोल | -हेनरी फियोल | ||
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-सर्वोदय-अंत्योदय | -सर्वोदय-अंत्योदय | ||
-भूदान-जीवनदान | -भूदान-जीवनदान | ||
||[[जयप्रकाश नारायण]] भारतीय समाजवाद के अग्रणी प्रवक्ता थे। इन्होंने अपना विचार अपनी पुस्तक, 'Why Socialism' ( | ||[[जयप्रकाश नारायण]] भारतीय समाजवाद के अग्रणी प्रवक्ता थे। इन्होंने अपना विचार अपनी पुस्तक, 'Why Socialism' (व्हाई सोशलिज्म) तथा 'टूवार्ड्स स्ट्रगल' में व्यक्त किया है। इनके अनुसार सोवियत संघ में भ्रष्ट समाजवाद ने सभी राजनीतिक तथा आर्थिक शक्ति एक ही जगह केंद्रित कर दी है। वहां समाजवाद के नाम पर सर्वाधिकारवाद पनप गया है। इसलिए इन्होंने [[भारत]] में लोकतांत्रिक समाजवाद को सार्थक बनाने के लिए आर्थिक शक्ति के समय के समय में इन्होंने 'समग्र क्रांति' आंदोलन चलाया। जिससे भयभीत होकर सरकार को [[आपात काल]] लागू करना पड़ा। | ||
{जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-106 | {जैरीमेंडरिंग की प्रथा किस देश में प्रचलित है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-81 प्रश्न-106 | ||
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+जी.डी.एच. कोल | +जी.डी.एच. कोल | ||
-मिल | -मिल | ||
||लॉक, बेंथम, [[एडम स्मिथ]], [[हर्बर्ट स्पेंसर]], ग्राहम वालास, एफ.ए. | ||लॉक, बेंथम, [[एडम स्मिथ]], [[हर्बर्ट स्पेंसर]], ग्राहम वालास, एफ.ए.हॅयक, आइजिया बर्लिन, रॉबर्ट नाजिक, मिल्टन फ्रीडमैन, नार्मन एंजल, मिस फालेट इत्यादि व्यक्तिवादी विचारक हैं जबकि जी.डी.एच. कोल श्रेणी समाजवादी विचारक हैं। ए.जे.पेंटी, ए.आर. ऑरेज, एस.जी. हाब्सन अन्य श्रेणी समाजवादी विचारक हैं। | ||
{फॉसीवाद निम्नलिखित में से किसको महिमामंडित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-6 | {फॉसीवाद निम्नलिखित में से किसको महिमामंडित करता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-41 प्रश्न-6 | ||
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{लोक प्रशासन को अध्ययन विषय के रूप में प्रारंभ करने का श्रेय किसे प्राप्त है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-8 | {लोक प्रशासन को अध्ययन विषय के रूप में प्रारंभ करने का श्रेय किसे प्राप्त है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-130 प्रश्न-8 | ||
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-एल.डी. | -एल.डी. व्हाइट | ||
-विलोबी | -विलोबी | ||
-मेरी पार्कर फोले | -मेरी पार्कर फोले | ||
+वुडरो विल्सन | +वुडरो विल्सन | ||
||एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में सन् [[1887]] में हुआ। वुडरो विल्सन, जो उस समय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में | ||एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में सन् [[1887]] में हुआ। वुडरो विल्सन, जो उस समय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक थे, लोक प्रशासन के जनक माने जाते हैं। इन्होंने अपने लेख 'प्रशासन का अध्ययन' (The Study of Administration) [[1887]] में राजनीति व प्रशासन को अलग-अलग बताया। वुडरो विल्सन एक तो लोक प्रशासन के पृथक्करण में विश्वास रखते हैं। वुडरो विल्सन [[अमेरिका]] के पूर्व [[राष्ट्रपति]] भी रहे हैं। | ||
10:16, 21 जनवरी 2017 का अवतरण
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