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[[चित्र:Indian-Army.jpg|thumb|भारतीय वायु सेना]]
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भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फरवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।  
भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फरवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।  
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भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।  
भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।  
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रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- (1) रक्षा विभाग, (2) रक्षा उत्पादन विभाग, (3) रक्षा आपूर्ति विभाग और (4) रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं - स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है। इस मंत्रालय की कुछ अन्य जिम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना। ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियां होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।  
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- (1) रक्षा विभाग, (2) रक्षा उत्पादन विभाग, (3) रक्षा आपूर्ति विभाग और (4) रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं - स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है। इस मंत्रालय की कुछ अन्य जिम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना। ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियां होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।  

14:04, 31 अगस्त 2010 का अवतरण

भारतीय सेना

भारतीय वायु सेना

भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फरवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।

भारत के प्रक्षेपास्त्र
क्रम प्रक्षेपास्त्र प्रकार मारक क्षमता आयुध वजन क्षमता प्रथम परीक्षण लागत विकास स्थिति
1 अग्नि-1 सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र) 1200 से 1500 कि.मी. 1000 कि.ग्रा. 22 मई, 1989 8 करोड़ रुपये विकसित एवं तैनात
2 अग्नि-2 सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र) 1500 से 2000 कि.मी. 1000 कि.ग्रा. (परम्परागत एवं परमाण्विक) 11अप्रॅल, 1999 8 करोड़ रुपये विकसित एवं प्रदर्शित
3 अग्नि-3 इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र 3000 कि.मी. 1500 कि.ग्रा. 9 जुलाई, 2006 (असफल), 12 अप्रॅल, 2007 (प्रथम सफल परीक्षण) निर्माणाधीन
4 पृथ्वी सतह से सतह पर मारक अल्प दूरी के टैक्टिकल बैटल फील्ड प्रक्षेपास्त्र 150 से 250 कि.मी. 500 कि.ग्रा. 25 फ़रवरी, 1989 3 करोड़ रुपये विकसित एवं तैनात
5 त्रिशूल सतह से वायु में मारक लो लेवेल क्लीन रिएक्शन अल्प दूरी के प्रक्षेपास्त्र 500 मी. से 9 कि.मी. 15 कि.ग्रा. 5 जून, 1989 45 लाख रुपये विकसित एवं तैनात
6 नाग सतह से सतह पर मारक टैंक भेदी प्रक्षेपास्त्र 4 कि.मी. 10 कि.ग्रा. 29 नवम्बर, 1991 25 लाख रुपये विकसित एवं तैनात
7 आकाश सतह से वायु में मारक बहुलक्षक प्रक्षेपास्त्र 25 से 30 कि.मी. 55 कि.ग्रा. 15 अगस्त, 1990 1 करोड़ रुपये विकसित एवं तैनात
8 अस्त्र वायु से वायु में मारक प्रक्षेपास्त्र 25 से 40 कि.मी. 300 कि.ग्रा. 9 मई, 2003 निर्माणाधीन
9 ब्रह्मोस पोतभेदी सुपर सोनिक क्रूज़ प्रक्षेपास्त्र 290 कि.मी. 300 कि.ग्रा. 12 जून, 2001 विकसित एवं तैनात
10 शौर्य सतह से सतह पर मारक बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र 750 कि.मी. 1000 कि.ग्रा. 12 नवम्बर, 2008 विकसित एवं तैनात

भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।

भारतीय नौसेना का प्रतीक
भारतीय वायुसेना का प्रतीक
सीमा सुरक्षा बल का प्रतीक
भारतीय नौसेना

रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- (1) रक्षा विभाग, (2) रक्षा उत्पादन विभाग, (3) रक्षा आपूर्ति विभाग और (4) रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं - स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है। इस मंत्रालय की कुछ अन्य जिम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना। ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियां होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।

आज भारत की थल सेना विश्व की सबसे बड़ी स्थल सेनाओं में चौथे स्थान पर, वायु सेना पांचवें स्थान पर और नौ सेना सातवें स्थान पर मानी जाती है। सेना के प्रमुख सहायक संगठन हैं- (1)प्रादेशिक सेना (2) तट रक्षक, (3) सहायक वायु सेना और (4) एन. सी. सी. जिसमें स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना तीनों पार्श्व होते हैं।

भारतीय थल सेना

भारतीय थलसेना
भारत का मिसाइल भंडार
क्रम नाम स्थिति रेंज
(कि.मी.)
पैलोड
(कि.ग्रा.)
मूल विशेष
1 पृथ्वी 150 सक्रिय 150 1000 भारत-रूस रभारत पृष्ठ रक्षायन एसए-2 से
2 पृथ्वी 250 सक्रिय 250 500-750 भारत-रूस रशियन एसए-2 से
3 धनुष विकास/परीक्षण 250 1000 भारत पृथ्वी से
4 सागरिका विकास/परीक्षण 250-350 500 भारत पृथ्वी से
5 पृथ्वी 350 विकास 600-750 500-1000 भारत-रूस रशियन एसए-2 से
6 अग्नि-1 सक्रिय 700-800 1000 भारत-फ्रांस-अमेरिका आख़िरी परीक्षण-09.01.2003
7 अग्नि-2 सक्रिय 1500-2000 1000 भारत-फ्रांस-अमेरिका आख़िरी परीक्षण-29.08.2004
8 अग्नि-3 विकास 3000 1500 भारत परीक्षण सफल-12.04.2007
9 शौर्य विकास/परीक्षण 600 भारत प्रथम परीक्षण- 12.11.2008

सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है। थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफसर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल आफ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं। थल सेना 6 कमानों में संगठित है- (1) पश्चिमी कमान (मुख्यालय: शिमला) (2) पूर्वी कमान (कोलकाता) (3) उत्तरी कमान (उधमपुर) (4) दक्षिणी कमान (पुणे) (5) मध्य कमान (लखनऊ) एवं (6) दक्षिणी-पश्चिमी कमान (जयपुर)। दक्षिण-पश्चिम कमान का गठन 15 अप्रैल, 2005 को किया गया । इसका मुख्यालय जयपुर में स्थापित किया गया है। यह थल सेना की सबसे बड़ी कमान है। भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-

  • 1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।
  • 1979 में भारत ने पहली बार उपग्रह प्रक्षेपण यान 'एसएलवी-3' अंतरिक्ष बूस्टर का प्रक्षेपण किया।
  • 1980 में 35 किलो भार वाले रोहिणी-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  • 1983 में भारत के 'रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान' (डी आर डी ओ) ने एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें पाँच प्रक्षेपास्त्र विकसित किए जाने थे-
तीनों सेनाओं के समकक्ष राजादिष्ट पद (कमीशंड रैंक)
थल सेना नौ सेना वायु सेना
फील्ड मार्शल एडमिरल ऑफ़ फ्लीट मार्शल ऑफ़ दी एयर फोर्स
जनरल एडमिरल एयर चीफ़ मार्शल
लेफ्टिनेंट जनरल वाइस एडमिरल एयर मार्शल
मेजर जनरल रियर एडमिरल एयर वाइस मार्शल
ब्रिगेडियर कोमोडोर एयर कोमोडोर
कर्नल कैप्टन ग्रुप कैप्टन
लेफ्टिनेंट कर्नल कमांडर विंग कमांडर
मेजर लेफ्टिनेंट कमांडर स्क्वाड्रन लीडर
कैप्टन लेफ्टिनेंट फ्लाइड लेफ्टिनेंट
लेफ्टिनेंट सब-लेफ्टिनेंट फ्लाइंग ऑफिसर
  1. पृथ्वी जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है (तरल ईंधन वाला बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)।
    1. पृथ्वी-1 जिसकी मारक क्षमता डेढ़ सौ किलोमीटर, एक हज़ार किलोग्राम की क्षमता है। यह सेना के लिए है।
    2. पृथ्वी-2 जिसकी मारक क्षमता ढाई सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह वायु सेना के लिए है।
    3. पृथ्वी-3 जिसकी मारक क्षमता साढ़े तीन सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह नौसेना के लिए है।
  2. अग्नि जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है और जिसकी क्षमता डेढ़ हज़ार किलोमीटर है। यह एक हज़ार किलोग्राम भार वाला अस्त्र ले जा सकता है। इस प्रक्षेपास्त्र का पहला चरण एसएलवी-3 के ठोस ईंधन वाले मोटर का और दूसरा चरण तरल ईंधन वाले पृथ्वी का प्रयोग करता है।
भारतीय नौसेना
  1. आकाश जो सतह से सतह पर मार करने वाला लंबी दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। यह 55 किलोग्राम वजन का अस्त्र ले जा सकता है और अधिकतम 25 किलोमीटर की दूरी तक यह एक साथ पाँच विमानों को निशाना बना सकता है।
  2. त्रिशूल जो सतह से सतह पर या सतह से हवा में मार करने वाला कम दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक दूरी 50 किलोमीटर है और यह रडार के निर्देशों से कार्य करता है।
  3. नाग जो टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। यह लगभग चार किलोमीटर की क्षमता वाला प्रक्षेपास्त्र है और निर्देशों के लिए संवेदी प्रौद्योगिकी पर बना है।
  • 1987 में भारत ने आधुनिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का परीक्षण प्रारम्भ किया। चार हज़ार किलोमीटर की क्षमता वाले इस प्रक्षेपण की क्षमता डेढ़ सौ किलोग्राम है। इसमें तीन उपग्रह प्रक्षेपण यान रहते हैं।
  • 1988 में भारत ने 'पृथ्वी' की परीक्षण उड़ान का परीक्षण किया। भारत ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) के निर्माण की घोषणा की जिसकी क्षमता लगभग आठ हज़ार किलोमीटर थी। एक हज़ार किलो वजन की क्षमता के इस यान से एक टन का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया सकता था। यदि इस यान को हथियार प्रणाली की भाँति किया जाए तो यह परमाणु अस्त्र को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले जाने में सक्षम है।
भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान
  • 1989 में भारत ने अग्नि का परीक्षण किया और नवंबर में नाग का परीक्षण किया।
  • 1994 के मध्य तक पृथ्वी-1 का प्रारम्भिक उत्पादन प्रारम्भ हो गया था। भारतीय सेना ने 100 पृथ्वी-1 प्रक्षेपास्त्र लेने का आदेश दिया जिसे उसकी 333 प्रक्षेपास्त्र ग्रुप के साथ तैनात किया जाना था।
  • 1996 में भारत ने कहा कि वह 'भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान' विकसित कर रहा है। भारत की योजना जनवरी माह में रूस की जी एस एल वी के लिए सात क्रायोजेनिक इंजन देने की योजना थी।
  • 1998 में भारत में 'भारतीय जनता पार्टी' ने 'पृथ्वी प्रक्षेपास्त्रों' का उत्पादन अधिक करने की योजना के साथ ही मध्यम दूरी के 'अग्नि प्रक्षेपास्त्र' विकसित करने का भी फ़ैसला लिया।
  • क्लिंटन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरीका में कहा कि भारत के पास 'सागरिका' नाम का समुद्र से जुड़ा प्रक्षेपास्त्र है। सागरिका की क्षमता 200 मील की है और वह परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है।
  • 11मई भारत ने त्रिशूल का सफल परीक्षण किया है। यह सतह से सतह और सतह से हवा में मारने वाला प्रक्षेपास्त्र है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ