"मुकुन्द रामाराव जयकर": अवतरणों में अंतर
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'''मुकुन्द रामाराव जयकर''' | '''मुकुन्द रामाराव जयकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mukund Ramrao Jayakar'', जन्म- [[13 नवम्बर]], [[1873]], [[नासिक]]; मृत्यु- [[10 मार्च]], [[1959]], [[मुम्बई]]) प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, समाजसेवक, न्यायाधीश, विधि विशारद तथा संविधानशास्त्रज्ञ थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही व्यापक था। मुकुन्द रामाराव जयकर के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी कार्यों का मूल्यांकन किए बिना [[आधुनिक भारत का इतिहास|भारत का आधुनिक इतिहास]] अधूरा रहेगा। इस दृष्टि से उन के भाषणों, पत्रों तथा लेखों का अध्ययन आवश्यक है। सन [[1917]] के बाद से भारत का ऐसा कोई आंदोलन नहीं था, जिससे मुकुन्द रामाराव जयकर का सम्बंध किसी-न-किसी रूप में न रहा हो। | ||
==परिचय== | |||
मुकुन्द रामाराव जयकर का जन्म [[नासिक]], [[मध्य प्रदेश]] में हुआ था। उनकी शिक्षा बंबई (वर्तमान [[मुम्बई]]) के एलफिंस्टन हाईस्कूल और कॉलेज तथा सरकारी लॉ स्कूल में हुई थी। [[1905]] में उन्होंने उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। [[1937]] में फेडरल कोर्ट ऑफ़ इंडिया में न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। प्रीवी काउन्सिल की ज्युडीशियल कमिटी के भी मुकुन्द रामाराव जयकर सदस्य थे, पर [[1942]] में उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। कॉन्सिटट्युएंट एसेंबली के लिए सदस्य के रूप में भी उनका निर्वाचन हुआ था, लेकिन [[1947]] में इस पद से भी उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। | |||
====आत्म स्वाभिमानी==== | |||
सन [[1907]] से [[1912]] तक लॉ स्कूल में मुकुन्द रामाराव जयकर क़ानून के प्राध्यापक थे। उनके आत्म-सम्मान की भावना का इसी समय साक्षात्कार होता है, जब अपने से निम्न स्तर के एक यूरोपीय अध्यापक की उनसे उच्च पद पर नियुक्ति कर दी गई तो मुकुन्द जी ने त्यागपत्र दे दिया। | |||
==शिक्षा-सुधार योजना== | |||
फ़र्ग्युसन कॉलेज में 'प्लेज ऑफ़ इंग्लिश लिटरेचर' पर उनका भाषण शिक्षा संबंधी उनके गंभीर अध्ययन का परिचायक है। मुंबई विश्वविद्यालय की रिफॉर्म कमेटी के वे [[1924]]-[[1925]] में सदस्य थे। मुकुन्द रामाराव जयकर ने शिक्षा सुधार की योजना इसी समय प्रस्तुत की थी। सरकार की डेक्कन कॉलेज को बंद करने की नीति के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया, जो मुम्बई विश्वविद्यालय के इतिहास में चिरस्मरणीय है। सन [[1941]] में महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी के संबंध में उनकी अध्यक्षता में एक कमिटी कायम हुई थी। शिक्षा और [[साहित्य]] के साथ [[संगीत]] और कला में भी मुकुन्द रामाराव जयकर की रुचि थी। इनके उत्थान के लिए भी वे चिंतित थे। | |||
==राजनीतिक गतिविधियाँ== | |||
मुकुन्द रामाराव जयकर शिक्षाशास्त्री के रूप में सर्वत्र विख्यात थे। [[नागपुर]], [[लखनऊ]], [[पटना]] आदि अनेक विश्वविद्यालयों में हुए उनके दीक्षांत भाषण अमर हैं। सन [[1917]], [[1918]], [[1920]] तथा [[1925]] के [[कांग्रेस]] के अधिवेशनों में स्वराज्य तथा दूसरे राजनीतिक विषयों पर उनके भाषण और प्रस्ताव बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं। [[बंबई]] की स्वराज पार्टी लेजिस्लेटिव काउंसिल में वे विरोध पक्ष के नेता रहे। [[1926]] में इंडियन लेजिस्लेटिव एसेंबली के लिए सदस्य के रूप में वे निर्वाचित किए गए थे। यहाँ पर मुकुन्द रामाराव जयकर नेशनलिस्ट पार्टी के उपनेता के रूप में कार्य करते रहे। [[गोलमेज सम्मेलन]] में प्रतिनिधि के रूप में वे उपस्थित थे। 'फ़ेडरल सट्रक्चर कमेटी' के भी आप सदस्य रहे। 'गाँधी-इर्विन समझौता' के लिए सर सप्रू के साथ शांतिदूत के रूप में उन्होंने कार्य किया। पूना पैक्ट के लिए भी वे प्रयत्नशील रहे। | |||
मुकुन्द रामाराव जयकर पर सभी का समान रूप से विश्वास होने के कारण मध्यस्थ के रूप में उनकी योग्यता सराहनीय थी। सरकार ने उनको के.सी.एस.आई. बनाना चाहा, पर आप मिस्टर जयकर ही बने रहे। [[1919]] में [[जलियांवाला बाग़|जलियांवाला हत्याकांड]] से संबंधित उनकी रिपोर्ट [[इतिहास]] में अमर है। [[1940]] में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने मुकुन्द रामाराव जयकर को डी.सी.एल. पदवी से विभूषित किया था। | |||
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07:43, 11 अप्रैल 2017 का अवतरण
मुकुन्द रामाराव जयकर (अंग्रेज़ी: Mukund Ramrao Jayakar, जन्म- 13 नवम्बर, 1873, नासिक; मृत्यु- 10 मार्च, 1959, मुम्बई) प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, समाजसेवक, न्यायाधीश, विधि विशारद तथा संविधानशास्त्रज्ञ थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही व्यापक था। मुकुन्द रामाराव जयकर के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी कार्यों का मूल्यांकन किए बिना भारत का आधुनिक इतिहास अधूरा रहेगा। इस दृष्टि से उन के भाषणों, पत्रों तथा लेखों का अध्ययन आवश्यक है। सन 1917 के बाद से भारत का ऐसा कोई आंदोलन नहीं था, जिससे मुकुन्द रामाराव जयकर का सम्बंध किसी-न-किसी रूप में न रहा हो।
परिचय
मुकुन्द रामाराव जयकर का जन्म नासिक, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनकी शिक्षा बंबई (वर्तमान मुम्बई) के एलफिंस्टन हाईस्कूल और कॉलेज तथा सरकारी लॉ स्कूल में हुई थी। 1905 में उन्होंने उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। 1937 में फेडरल कोर्ट ऑफ़ इंडिया में न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। प्रीवी काउन्सिल की ज्युडीशियल कमिटी के भी मुकुन्द रामाराव जयकर सदस्य थे, पर 1942 में उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। कॉन्सिटट्युएंट एसेंबली के लिए सदस्य के रूप में भी उनका निर्वाचन हुआ था, लेकिन 1947 में इस पद से भी उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
आत्म स्वाभिमानी
सन 1907 से 1912 तक लॉ स्कूल में मुकुन्द रामाराव जयकर क़ानून के प्राध्यापक थे। उनके आत्म-सम्मान की भावना का इसी समय साक्षात्कार होता है, जब अपने से निम्न स्तर के एक यूरोपीय अध्यापक की उनसे उच्च पद पर नियुक्ति कर दी गई तो मुकुन्द जी ने त्यागपत्र दे दिया।
शिक्षा-सुधार योजना
फ़र्ग्युसन कॉलेज में 'प्लेज ऑफ़ इंग्लिश लिटरेचर' पर उनका भाषण शिक्षा संबंधी उनके गंभीर अध्ययन का परिचायक है। मुंबई विश्वविद्यालय की रिफॉर्म कमेटी के वे 1924-1925 में सदस्य थे। मुकुन्द रामाराव जयकर ने शिक्षा सुधार की योजना इसी समय प्रस्तुत की थी। सरकार की डेक्कन कॉलेज को बंद करने की नीति के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया, जो मुम्बई विश्वविद्यालय के इतिहास में चिरस्मरणीय है। सन 1941 में महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी के संबंध में उनकी अध्यक्षता में एक कमिटी कायम हुई थी। शिक्षा और साहित्य के साथ संगीत और कला में भी मुकुन्द रामाराव जयकर की रुचि थी। इनके उत्थान के लिए भी वे चिंतित थे।
राजनीतिक गतिविधियाँ
मुकुन्द रामाराव जयकर शिक्षाशास्त्री के रूप में सर्वत्र विख्यात थे। नागपुर, लखनऊ, पटना आदि अनेक विश्वविद्यालयों में हुए उनके दीक्षांत भाषण अमर हैं। सन 1917, 1918, 1920 तथा 1925 के कांग्रेस के अधिवेशनों में स्वराज्य तथा दूसरे राजनीतिक विषयों पर उनके भाषण और प्रस्ताव बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं। बंबई की स्वराज पार्टी लेजिस्लेटिव काउंसिल में वे विरोध पक्ष के नेता रहे। 1926 में इंडियन लेजिस्लेटिव एसेंबली के लिए सदस्य के रूप में वे निर्वाचित किए गए थे। यहाँ पर मुकुन्द रामाराव जयकर नेशनलिस्ट पार्टी के उपनेता के रूप में कार्य करते रहे। गोलमेज सम्मेलन में प्रतिनिधि के रूप में वे उपस्थित थे। 'फ़ेडरल सट्रक्चर कमेटी' के भी आप सदस्य रहे। 'गाँधी-इर्विन समझौता' के लिए सर सप्रू के साथ शांतिदूत के रूप में उन्होंने कार्य किया। पूना पैक्ट के लिए भी वे प्रयत्नशील रहे।
मुकुन्द रामाराव जयकर पर सभी का समान रूप से विश्वास होने के कारण मध्यस्थ के रूप में उनकी योग्यता सराहनीय थी। सरकार ने उनको के.सी.एस.आई. बनाना चाहा, पर आप मिस्टर जयकर ही बने रहे। 1919 में जलियांवाला हत्याकांड से संबंधित उनकी रिपोर्ट इतिहास में अमर है। 1940 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने मुकुन्द रामाराव जयकर को डी.सी.एल. पदवी से विभूषित किया था।
मृत्यु
10 मार्च, 1959 ई. में मुकुन्द रामाराव जयकर की 86 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।
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