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एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत | एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दु:ख अहई॥ | ||
जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि | जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दु:ख होई॥ | ||
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14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दु:ख अहई॥ |
- भावार्थ-
इसी तरह यह संसार भगवान के आश्रित रहता है। यद्यपि यह असत्य है, तो भी दुःख तो देता ही है, जिस तरह स्वप्न में कोई सिर काट ले तो बिना जागे वह दुःख दूर नहीं होता।
एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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