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राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥ | राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥ | ||
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥ | रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥ | ||
सहित दोष | सहित दोष दु:ख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥ | ||
भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥ | भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥ | ||
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14:05, 2 जून 2017 का अवतरण
राम एक तापस तिय तारी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥ |
- भावार्थ-
राम ने एक तपस्वी की स्त्री (अहिल्या) को ही तारा, परंतु नाम ने करोड़ों दुष्टों की बिगड़ी बुद्धि को सुधार दिया। राम ने ऋषि विश्वामित्र के हित के लिए एक सुकेतु यक्ष की कन्या ताड़का की सेना और पुत्र (सुबाहु) सहित समाप्ति की; परंतु नाम अपने भक्तों के दोष, दुःख और दुराशाओं का इस तरह नाश कर देता है जैसे सूर्य रात्रि का। राम ने तो स्वयं शिव के धनुष को तोड़ा, परंतु नाम का प्रताप ही संसार के सब भयों का नाश करनेवाला है।
राम एक तापस तिय तारी |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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