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'''कमला दास''' (अंग्रेज़ी: ''Kamala Das''; जन्म-[[31 मार्च]], [[1934]]; मृत्यु- [[31 मई]], [[2009]] | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
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'''कमला दास''' (अंग्रेज़ी: ''Kamala Das''; जन्म- [[31 मार्च]], [[1934]], [[केरल]]; मृत्यु- [[31 मई]], [[2009]]) [[अंग्रेज़ी]] और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। इन्हें कमला साहित्य अकादमी, एशियन पोएट्री अवार्ड तथा कई अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। कमला दास ने वर्ष [[1984]] में [[साहित्य]] के [[नोबेल पुरस्कार]] के दावेदारों की सूची में भी जगह बनाई। ये कमला सुरय्या के नाम से भी जानी जाती हैं। | |||
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माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने | माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने रचनाएँ की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी [[1984]] में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं। | ||
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कमला दास 15 साल की उम्र से कवितायें लिखने लगी थीं। उनकी माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया। | कमला दास 15 साल की उम्र से कवितायें लिखने लगी थीं। उनकी माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया। | ||
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कमला दास का शुमार [[भारत]] के समकालीन सर्वश्रेष्ठ [[लेखक|लेखकों]] में होता रहा है। माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने बेधड़क रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। [[1976]] में प्रकाशित इस किताब में समाज और व्यक्ति की मानसिकताओं की पड़ताल करते हुए कमला दास ने स्त्री पुरूष संबधों, [[विवाह]] की संस्था और इसके दायरे से बाहर के रिश्तों की वस्तुपरकता की मानवीय छानबीन की है। ये किताब इतनी लोकप्रिय हुई की दुनिया की करीब 15 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। | कमला दास का शुमार [[भारत]] के समकालीन सर्वश्रेष्ठ [[लेखक|लेखकों]] में होता रहा है। माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने बेधड़क रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। [[1976]] में प्रकाशित इस किताब में समाज और व्यक्ति की मानसिकताओं की पड़ताल करते हुए कमला दास ने स्त्री पुरूष संबधों, [[विवाह]] की संस्था और इसके दायरे से बाहर के रिश्तों की वस्तुपरकता की मानवीय छानबीन की है। ये किताब इतनी लोकप्रिय हुई की दुनिया की करीब 15 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। | ||
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कमला दास की अंग्रेज़ी में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’, ‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी हाउस एंड अदर पोएम्स ’, ‘अल्फाेबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि अन्ना‘मलाई पोएम्सल’ और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’, ‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’, ‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। | कमला दास की अंग्रेज़ी में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’, ‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी हाउस एंड अदर पोएम्स ’, ‘अल्फाेबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि अन्ना‘मलाई पोएम्सल’ और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’, ‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’, ‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। | ||
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कमला दास ने [[1999]] में अचानक धर्मातरण कर उन्होंने [[इस्लाम]] स्वीकार कर लिया तो सुरैया नाम भी उनसे जुड़ गया। बाद को पर्दाप्रथा के विरोध तथा अभिव्यक्त की आज़ादी की मॉग को लेकर कट्टर मुसल्मानों से भी ठनी। ऐसे तमाम लंबे और टकराव से भरे दौरों से गुजराती कमला ने लगातार तीन दशकों तक कविता, कहानी, उपन्यास और आत्मवृत्त लिखे। | कमला दास ने [[1999]] में अचानक धर्मातरण कर उन्होंने [[इस्लाम]] स्वीकार कर लिया तो सुरैया नाम भी उनसे जुड़ गया। बाद को पर्दाप्रथा के विरोध तथा अभिव्यक्त की आज़ादी की मॉग को लेकर कट्टर मुसल्मानों से भी ठनी। ऐसे तमाम लंबे और टकराव से भरे दौरों से गुजराती कमला ने लगातार तीन दशकों तक कविता, कहानी, उपन्यास और आत्मवृत्त लिखे। | ||
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12:23, 18 जून 2017 का अवतरण
दीपिका3
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पूरा नाम | कमला दास |
अन्य नाम | कमला सुरय्या |
जन्म | 31 मार्च, 1934 |
जन्म भूमि | केरल |
मृत्यु | 31 मई, 2009 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | माधव दास |
संतान | माधव दास नालापत, चिन्नेन दास, जयसूर्या दास |
मुख्य रचनाएँ | दि साइरंस, समर इन कलकत्ता, दि डेस्केंडेंट्स, दि ओल्ड प्लेहाउस एंड अदर पोएम्स, कॉलेकटेड पोएम्स वाल्यूम एक। |
भाषा | अँग्रेज़ी, मलयालम |
विशेष योगदान | अवार्ड ऑफ एशियन पेन एंथोलोजी, नोबेल पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, केन्ट पुरस्कार आदि। |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 05:18, 4 जून 2017 (IST) |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
कमला दास (अंग्रेज़ी: Kamala Das; जन्म- 31 मार्च, 1934, केरल; मृत्यु- 31 मई, 2009) अंग्रेज़ी और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। इन्हें कमला साहित्य अकादमी, एशियन पोएट्री अवार्ड तथा कई अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। कमला दास ने वर्ष 1984 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार के दावेदारों की सूची में भी जगह बनाई। ये कमला सुरय्या के नाम से भी जानी जाती हैं।
जीवन परिचय
कमला दास का जन्म 31 मार्च, 1934 को केरल के त्रिचूर ज़िले में हुआ था। यह उच्च ब्राह्मण नायर परिवार से थी। मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में ही इनका विवाह कलकत्ता के माधव दास से हो गया। वे बचपन से ही कवितायें लिखती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें तब तक जागना पड़ता था जब तक पूरा परिवार न सो जाए। उनकी विवादास्पद आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ इतनी पढ़ी गई कि भारत की हर भाषा सहित इस पुस्तक का पंद्रह विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ था। इस्लाम धर्म क़बूल करने के बाद इन्हें कमला सुरैया के नाम से जाना गया।
साहित्यिक जीवन
माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने रचनाएँ की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी 1984 में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं।
पुरस्कार
- वर्ष 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।
- अवार्ड ऑफ एशियन पेन एंथोलोजी (1964)
- केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार 1969 ('कोल्ड' के लिए)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985)
- एशियन पोएट्री पुरस्कार(1998)
- केन्ट पुरस्कार (1999)
- एशियन वर्ल्डस पुरस्कार (2000)
- वयलॉर पुरस्कार (2001)
- डी. लिट' की मानद उपाधि कालीकट विश्वविद्यालय द्वारा (2006)
- मुट्टाथु वरक़े अवार्ड (2006)
- एज्हुथाचन पुरस्कार (2009)
निधन
कमला दास का निधन 31 मई, 2009 को पुणे, महाराष्ट्र मे हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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कमला दास 15 साल की उम्र से कवितायें लिखने लगी थीं। उनकी माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया।
रचनाएँ
कमला दास का शुमार भारत के समकालीन सर्वश्रेष्ठ लेखकों में होता रहा है। माधवी कुट्टी नाम से मशहूर कमला दास ने बेधड़क रचनाएं की। उनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद रचना उनकी आत्मकथा है जिसका नाम है माई स्टोरी। 1976 में प्रकाशित इस किताब में समाज और व्यक्ति की मानसिकताओं की पड़ताल करते हुए कमला दास ने स्त्री पुरूष संबधों, विवाह की संस्था और इसके दायरे से बाहर के रिश्तों की वस्तुपरकता की मानवीय छानबीन की है। ये किताब इतनी लोकप्रिय हुई की दुनिया की करीब 15 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ।
कमला दास का लेखन अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में भी ध्यान खींचता रहा। नोबेल की दावेदारी के लिए भी 1984 में नामांकित किया गया था। उन्हें कुछ जानकार सिमोन द बोउवार जैसी लेखिका के समकक्ष मानते हैं। साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित कमला दास की कविताओ की एक लोकप्रिय किताब का नाम है, सिर्फ आत्मा ही जानती है संगीत, ओनली सोल नोज़ हाऊ टू सिंग।
कमला दास का एक उपन्यास अल्फाबेट ऑफ लस्ट यानी वासना की वर्णमाला भी है। माना जाता है कि कमला दास ने जिस बेबाकी से स्त्री की यौन इच्छाओ और आकांक्षाओं को रचनाधर्मिता का विषय बनाया वैसा उनके और बाद के दौर के लेखन में कम ही हुआ है। हालांकि उर्दू में कुरर्तुलएन हैदर, इस्मत चुगताई और एक अलग स्तर पर हिंदी में अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती के लेखन में स्त्री की निजता के संसार का एक गहरा आलोक देखने को मिलता है। कविताओं के साथ कमला दास ने कहानियों में भी पाठकों की भारी प्रशंसा हासिल की. दुनिया के कई हिस्सो में उन्होंने कविताओं का पाठ किया है।
प्रकाशित पुस्तकें
कमला दास की अंग्रेज़ी में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’, ‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी हाउस एंड अदर पोएम्स ’, ‘अल्फाेबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि अन्ना‘मलाई पोएम्सल’ और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’, ‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’, ‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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कमला दास अंग्रेज़ी और मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका थी। कमला दास का जन्म 31 मार्च 1934 को केरल के त्रिचूर ज़िले के एक उच्च ब्राह्मण नायर परिवार में हुआ था। ये बचपन से ही कवितायें लिखती थीं। कमला दास की माँ बालमणि अम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने कविताएँ लिखना शुरू किया।
विवाह
कमला दास का मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में ही उनका विवाह कलकत्ता के माधव दास से हो गया। वे बचपन से ही कवितायें लिखती थीं लेकिन शादी के बाद उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक पूरा परिवार न सो जाए। कभी कभी वे रसोई में देर तक लिखती रहतीं थी। कमला दास के पिता कलकत्ता में ऊॅचे ओहदे पर थे। वहॉ उनका बचपन उस वक्त के दूसरे संभ्रांत सम्पन्न परिवारों की बच्चियों की ही तरह लिखने-पढ़ने-खाने-पीने की सुविधाओं के बावजूद घर की चहारदीवारियों सिमटा रहा। उन्हें घर में ही पढ़ाया-लिखाया गया। 15 वर्ष की कोमल आयु में अपनी उम्र से 15 वर्ष बड़े रिजर्व बैंक के एक आला अफसर से ब्याह दिया गया। सोलह वर्ष की उम्र में मानसिक परिपक्वता पाने से पहले ही कमला मॉ बन चुकी थीं। बाद को उन्होंने बेबाकी से लिखा कि सचमुच में मॉ बनना क्या होता है, यह तो उन्होंने वर्षो बाद अपने तीसरे बेटे के जन्म के साथ ही समझ पाया। माधवी कुट्टी उनकी नानी का नाम था, जिससे वे मलयालम में लिखती थीं। अंग्रेज़ी में उन्होंने कमला दास के नाम से लिखा। लेखन और पेंटिंग से भी जीवन का सूनापन न भर पाईं।
राजनीतिक जीवन
कमला दास ने 1984 में एक राजनैतिक पार्टी बना कर चुनाव भी लड़ा, पर जमानत जब्त हो गई। इसके बाद वे राजनीति से हट गईं, और क्रमश: सार्वजनिक जीवन से भी।
धर्म परिवर्तन
कमला दास ने 1999 में अचानक धर्मातरण कर उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया तो सुरैया नाम भी उनसे जुड़ गया। बाद को पर्दाप्रथा के विरोध तथा अभिव्यक्त की आज़ादी की मॉग को लेकर कट्टर मुसल्मानों से भी ठनी। ऐसे तमाम लंबे और टकराव से भरे दौरों से गुजराती कमला ने लगातार तीन दशकों तक कविता, कहानी, उपन्यास और आत्मवृत्त लिखे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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