"खंडवा": अवतरणों में अंतर
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सर्दियों में [[केदारनाथ]] के पट बंद हो जाने पर पांच केदारों की गद्दियां की स्थापना ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है। गर्मियों में केदारनाथ के पट खुलने पर भी उनके स्वरूपों को यहाँ पूजा जाता है। शिव जी और [[पार्वती देवी|पार्वती]] का चौसर प्रेम कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। ओंकारेश्वर मंदिर में शिव और पार्वती के लिए नियमित चौसर की बिसात लगायी जाती है। मान्यता है कि वे ओंकारेश्वर में नियमित रूप से आकर चौसर खेलते हैं। यहाँ रोज़ शयन आरती के | सर्दियों में [[केदारनाथ]] के पट बंद हो जाने पर पांच केदारों की गद्दियां की स्थापना ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है। गर्मियों में केदारनाथ के पट खुलने पर भी उनके स्वरूपों को यहाँ पूजा जाता है। शिव जी और [[पार्वती देवी|पार्वती]] का चौसर प्रेम कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। ओंकारेश्वर मंदिर में शिव और पार्वती के लिए नियमित चौसर की बिसात लगायी जाती है। मान्यता है कि वे ओंकारेश्वर में नियमित रूप से आकर चौसर खेलते हैं। यहाँ रोज़ शयन आरती के पश्चात् चौसर बिछाकर कपाट बन्द कर देते हैं। मंदिर में दो चौसर बिछायी जाती हैं, एक ज़मीन पर और दूसरी झूले पर। ज़मीन पर चौसर के दोनों तरफ तकिया लगाये जाते हैं, झूला भी आरामदायक बनाया जाता है। शयन आरती के बाद चौसर बिछाने की यह परंपरा बहुत वर्षों से चली आ रही है। | ||
'''संभवनाथ मंदिर''' | '''संभवनाथ मंदिर''' |
07:42, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
खंडवा मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य के दक्षिण–पश्चिमी में स्थित नगर है। इसे दक्षिण का 'प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। खंडवा नर्मदा और ताप्ती नदियों की घाटी के मध्य में बसा हुआ है। उत्तरी भारत से दक्षिण क्षेत्र तक जाने वाले प्रमुख सड़क मार्गों पर स्थित नगर की पहचान यूनानी भूगोल शास्त्री टॉलमी के 'कोंगनबंदा' शहर से की जाती है। पारंपरिक रूप से कहा जाता है कि यह नगर महाभारत में वर्णित खांडव वन से घिरा है।
ऐतिहासिक तथ्य
12वीं शताब्दी में खंडवा नगर जैन मत का महत्त्वपूर्ण स्थान था। यह नगर पुरातन नगर है, यहाँ पाये जाने वाले अवशेषों से यह सिद्ध होता है, इसके चारों ओर चार विशाल तालाब, नक़्क़ाशीदार स्तंभ और जैन मंदिरों के छज्जे स्थित हैं।
आधुनिक नगर
1864 से यह नगर मध्य प्रदेश के नवगठित निमाड़ ज़िले का मुख्यालय रहा। 1867 में इसे नगरपालिका बना दिया गया। भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित खंडवा का विस्तार 6200 वर्ग किलोमीटर है। खंडवा की सीमा बेतूल, होशंगाबाद, बुरहानपुर, खरगोन और देवास से मिली हुई हैं। ओंकारेश्वर यहाँ का बहुत ही लोकप्रिय प्रसिद्ध और पवित्र धार्मिक स्थल है। ओंकारेश्वर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
परिवहन
खंडवा का निकटतम एयरपोर्ट इंदौर है, जो खंडवा से लगभग 113 किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर एयरपोर्ट से देश के महत्त्वपूर्ण नगरों के लिए नियमित उड़ानें है। खंडवा रेलवे स्टेशन दिल्ली-मुंबई मार्ग का प्रमुख रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे स्टेशन देश के अनेक शहरों से जुड़ा है। खंडवा सड़क मार्ग द्वारा राज्य और पड़ोसी राज्यों के अधिकांश नगरों के लिए यहाँ से नियमित बसों की व्यवस्था है।
व्यापार
प्रमुख सड़क पर बसे और मध्य रेलवे के रेल जंक्शन खंडवा नगर में कपास, इमारती लकड़ी और अनाज का व्यापार किया जाता है। कपास की ओटाई, तिलहन व आरा मिलें और अन्य लघु उद्योग यहाँ के महत्त्वपूर्ण उद्योग हैं। यहाँ पर प्रायोगिक रेशम उत्पादन फ़ार्म, सरकारी पालीटेक्निक और सागर स्थित डॉक्टर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से संबद्ध अनेक महाविद्यालय हैं।
जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 1,71,976 है। यह नगर निगम क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
पर्यटन
गौरी कुंज ऑडिटोरियम
यह ऑडिटोरियम संगीत के लिए आधुनिक सांस्कृतिक हॉल है। यह खंडवा रेलवे स्टेशन से लगभग 1 किलोमीटर पर है। यह ऑडिटोरियम भारत के प्रसिद्ध गायक श्री किशोर कुमार गांगुली की याद में बनवाया था। नगर के लगभग सभी प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन यहीं किया जाता है। देवी नवचंडी और तुरजा भवानी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है।
नगचुन बांध
नगचुन गांव का बांध एक प्रसिद्ध पिकनिक स्थल है। नगचुन बांध खंडवा से 7 किलोमीटर की दूरी पर है। इस बांध से खंडवा की सिचाईं मुख्य रूप से की जाती है। यहाँ की हरियाली बांध को बहुत ही आकर्षक बना देती है।
ओंकारेश्वर गुरुद्वारा
यह गुरुद्वारा नानक जी के ओंकारेश्वर आने के सम्मान स्वरूप बनाया गया था। यहाँ सिक्ख और हिन्दू धर्म के अनुयायी सदैव रहते हैं। ओंकारेश्वर रेलवे स्टेशन यहाँ आने के लिए सबसे पास का रेलवे स्टेशन है।
मांधाता पहाड़ी
इंदौर नगर से लगभग 77 किलोमीटर दूर, खंडवा ज़िले का यह स्थान नर्मदा की धाराओं में बँट जाने से बने बीच में बने टापू पर है, इसे मान्धाता पहाड़ी भी कहते हैं। इसका धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण स्थल है। ओंकारेश्वर भारत में स्थित 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में एक है। यहाँ पर ओंकारेश्वर और ममलेश्वर प्रमुख मंदिर हैं। मंदिर की पहाड़ी के पास बहती हुई नर्मदा से ऊँ का आकार का बनता है। मान्धाता-पर्वत को भगवान शिव का रूप माना जाता है। भक्त भक्तिपूर्वक इसकी परिक्रमा करते हैं। ओंकारेश्वर मन्दिर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के दोनों तरफ आमने सामने हैं। मध्यप्रदेश में 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग हैं। उज्जैन में महाकाल और दूसरा खंडवा में ओंकारेश्वर के रूप में विद्यमान हैं।
शिव पुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तृत वर्णन है। इस मंदिर के अंदर जाने के लिए दो कोठरियों से होकर जाते हैं। अँधेरा होने से यहाँ हमेशा प्रकाश करना पड़ता है। ओंकारेश्वर लिंग का निर्माण प्रकृति ने किया है। इसके चारों तरफ सदैव जल रहता है, कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। यहाँ भक्त शिव जी पर चने की दाल का चढ़ावा चढ़ाते हैं और रात को शिव आरती बहुत ही भव्य रूप से होती है।
सर्दियों में केदारनाथ के पट बंद हो जाने पर पांच केदारों की गद्दियां की स्थापना ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है। गर्मियों में केदारनाथ के पट खुलने पर भी उनके स्वरूपों को यहाँ पूजा जाता है। शिव जी और पार्वती का चौसर प्रेम कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। ओंकारेश्वर मंदिर में शिव और पार्वती के लिए नियमित चौसर की बिसात लगायी जाती है। मान्यता है कि वे ओंकारेश्वर में नियमित रूप से आकर चौसर खेलते हैं। यहाँ रोज़ शयन आरती के पश्चात् चौसर बिछाकर कपाट बन्द कर देते हैं। मंदिर में दो चौसर बिछायी जाती हैं, एक ज़मीन पर और दूसरी झूले पर। ज़मीन पर चौसर के दोनों तरफ तकिया लगाये जाते हैं, झूला भी आरामदायक बनाया जाता है। शयन आरती के बाद चौसर बिछाने की यह परंपरा बहुत वर्षों से चली आ रही है।
संभवनाथ मंदिर
यह मंदिर 'बारा मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर ने यह मंदिर भूमि में से निकाला था। इस मंदिर के अतिरिक्त चार अन्य मंदिर भी हैं जिसमें भगवान चन्द्रप्रभु, अजितनाथ, तीर्थंकर पार्श्वनाथ और संभवनाथ की मूर्ति स्थापित हैं।
घंटाघर
मुंबई-दिल्ली मध्य रेलवे मार्ग पर स्थित घंटाघर एक मान्य धार्मिक स्थल है। सूरजकुंड, पद्मकुंड, भीमाकुंड और रामेश्वर ये चार पवित्र कुंड हैं। दादा धुनी वाले की समाधि, तुरजा भवानी मंदिर और नवचंडी देवी धाम यहाँ के मान्य पवित्रस्थल हैं।
वीरखाला मंदिर
ओंकारेश्वर की पहाड़ी की पूर्व दिशा में वीरखाला नाम का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि यहाँ शिव जी के अवतार भैरव को खुश करने के लिए बलि दी जाती थी जिसे ब्रिटिश शासन में बंद कर दिया था। इस पहाड़ी के पास में ही कुंती का मंदिर भी है।
काजल गुफा
ओंकारेश्वर से 9 किलोमीटर की दूरी पर यह एक ख़ूबसूरत स्थल है। काजल गुफा के पास 'सतमंत्रिका गुफा' भी है। जुलाई माह से मार्च माह के मध्य का समय यहाँ आने के लिए सबसे अच्छा है।
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