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12:26, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण
देवोत्थान एकादशी / देवउठान एकादशी
- दीपावली के पश्चात आने वाली इस एकादशी को 'देव उठनी' या 'प्रबोधिनी एकादशी' भी कहा जाता है।
- आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है।
- कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णुजी के शयन काल के चार मासों में विवाहादि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना निषेध है। हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।
- कुछ धार्मिक व्यक्ति इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है।
- शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।
- इस दिन सारे घर को लीप-पोतकर साफ करना चाहिए तथा स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु के चरणों को चित्रित करना चाहिए।
- एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, पकवान, मिष्ठान, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर परात अथवा डलिया से ढक दिया जाता है तथा एक दीपक भी जला दिया जाता है।
- रात्रि को परिवार के सभी वयस्क सदस्य देवताओं का भगवान विष्णु सहित सहित विधिवत पूजन करने के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर जगाते हैं तथा इस प्रकार कहते हैं-
- 'उठो देवा, बैठो देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा।'
- इसके बाद पूजा करके कथा सुनी जाती है।
देवोत्थान एकादशी की कथा
एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मीजी ने कहा-'हे नाथ! अब आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक को सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। अत: आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।' लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराए और बोले-'देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों को और ख़ास कर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों को परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्पादन के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूगां।
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