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गुरमुख सिंह मुसाफिर (अंग्रेजी Giani Gurmukh Singh Musafir; जन्म - 15 जनवरी, 1899, मृत्यु - 18 जनवरी, 1976) पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं।
संक्षिप्त परिचय
कांग्रेस और अकालीदल के प्रमुख नेता ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर का जन्म 15 जनवरी 1899 ई. को ज़िला कैम्पबैलपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 4 वर्ष तक शिक्षक का काम किया, तभी से 'ज्ञानी' कहलाने लगे थे। 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड का उन पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वे ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधी बन गए। उन्हीं दिनों गुरुद्वारों का प्रबंध सिक्ख समुदाय को सौंपने और उसमें सुधार के लिए पंजाब में व्यापक आंदोलन चला था। गुरमुख सिंह ने अपनी पंजाबी भाषा की कविताओं से उसमें और जान डाल दी। उन्होंने इसके लिए अध्यापन-कार्य भी छोड़ दिया। सरकार ने उन्हें गिरप्तार कर लिया।
अब वे गुरुद्बारा आंदोलन के प्रमुख नेता थे। 1930 में वे अकालतख्त के जत्थेदार और बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मंत्री बने। उनका जवाहरलाल नेहरू से निकट का परिचय था और उन्होंने स्वतंत्रत-संग्राम में कई बार जेल-यात्राएँ कीं। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में वे जिस समय जेल में बंद थे, उनके पिता की, एक पुत्र की और एक पुत्री की मृत्यु हो गई। निजी संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने 'पैरोल' पर जेल से बाहर आना स्वीकार नहीं किया।
स्वतंत्रता के बाद गुरमुख सिंह कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गए। वे संविधान सभा के सदस्य थे और 1952 में लोकसभा के सदस्य चुने गए। बाद में वे पंजाब की विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए और पंजाब के मुख्यमंत्री बने। ज्ञानी जी के मुख्यमंत्रित्व-काल में पंजाब की चतुर्दिक उन्नति हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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