"मनु शर्मा": अवतरणों में अंतर
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'''मनु शर्मा''' ([[अंग्रेजी]]; Manu Sharma, जन्म: [[1928]] अकबरपुर, [[फैजाबाद]]) आधुनिक [[हिन्दी साहित्य]] के प्रमुख लेखक है। ‘आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो बरसों बाद मैं डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़ा जाऊँगा।’ इसी विश्वास के साथ मनु शर्मा की रचना-यात्रा खुद की बनाई पगडंडी पर जारी है। [[हिंदी]] की खेमेबंदी से दूर मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://pustak.org/books/authorbooks/Manu%20Sharma|title= मनु शर्मा|accessmonthday= 22 जुलाई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=pustak.org|language=हिन्दी}}</ref> | |||
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===जीवन परिचय=== | ===जीवन परिचय=== | ||
मनु शर्मा का जन्म [[1928]] अकबरपुर, [[फैजाबाद]] में हुआ था। मनु शर्मा बेहद अभावों में पले-बढे हैं। घर चलाने के लिए फेरी लगाकर कपड़ा और मूंगफली तक बेचा। [[बनारस]] के डीएवी कॉलेज में उन्हें चपरासी की नौकरी मिली, लेकिन उनके गुरु कृष्णदेव प्रसाद गौड़ उर्फ 'बेढ़ब बनारसी' ने उनसे काम लिया पुस्तकालय में। पुस्तकालय में पुस्तक उठाते-उठाते उनमें पढ़ने की ऐसी रुचि जगी कि पूरा पुस्तकालय ही चाट गए। उन्होंने अपनी कलम से पौराणिक उपन्यासों को आधुनिक संदर्भ दिया है। 70 के दशक में मनु शर्मा बनारस से निकलने वाले 'जनवार्ता' में प्रतिदिन एक 'कार्टून कविता' लिखते थे। यह इतनी मारक होती थी कि आपातकाल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। [[जयप्रकाश नारायण]] कहा करते थे, यदि संपूर्ण क्रांति को ठीक ढंग से समझना हो तो 'जनवार्ता' अखबार पढ़ा करो। मनु शर्मा ने अपनी 'कार्टून कविता' के जरिए हर घर-हर दिल पर उस दौरान दस्तक दी थी। | मनु शर्मा का जन्म [[1928]] अकबरपुर, [[फैजाबाद]] में हुआ था। मनु शर्मा बेहद अभावों में पले-बढे हैं। घर चलाने के लिए फेरी लगाकर कपड़ा और मूंगफली तक बेचा। [[बनारस]] के डीएवी कॉलेज में उन्हें चपरासी की नौकरी मिली, लेकिन उनके गुरु कृष्णदेव प्रसाद गौड़ उर्फ 'बेढ़ब बनारसी' ने उनसे काम लिया पुस्तकालय में। पुस्तकालय में पुस्तक उठाते-उठाते उनमें पढ़ने की ऐसी रुचि जगी कि पूरा पुस्तकालय ही चाट गए। उन्होंने अपनी कलम से पौराणिक उपन्यासों को आधुनिक संदर्भ दिया है। 70 के दशक में मनु शर्मा बनारस से निकलने वाले 'जनवार्ता' में प्रतिदिन एक 'कार्टून कविता' लिखते थे। यह इतनी मारक होती थी कि आपातकाल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। [[जयप्रकाश नारायण]] कहा करते थे, यदि संपूर्ण क्रांति को ठीक ढंग से समझना हो तो 'जनवार्ता' अखबार पढ़ा करो। मनु शर्मा ने अपनी 'कार्टून कविता' के जरिए हर घर-हर दिल पर उस दौरान दस्तक दी थी।<ref name="bb">{{cite web |url=http://aadhiabadi.in/career-point/famous-personalities/1157-padma-shri-2015-manu-sharma-ram-bahadur-rai|title= मनु शर्मा व रामबहादुर राय, जिनके गले से लगकर सम्मानित हुआ 'पद्मश्री'|accessmonthday= 22 जुलाई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=aadhiabadi.in|language=हिन्दी}}</ref> | ||
राजकुमार हिरानी ने मनु शर्मा की पुस्तक 'गांधी लौटे' के विचार की चोरी कर इस फिल्म का निर्माण किया था। और बेशर्मी देखिए कि उसने उनका आभार तक व्यक्त करना उचित नहीं समझा था। 'लगे रहो मुन्ना भाई' [[2006]] में आई थी और 'गांधी लौटे' एक श्रृंखला के रूप में [[बनारस]] के 'आज' अखबार में 1992-94 में लिखा गया था, राजकुमार हिरानी की फिल्म से करीब 12 साल पहले। 'गांधी लौटे' बहुत सारे डायलॉग भी मनु शर्मा जी की पुस्तक से चुराए गए थे। मनु शर्मा जी को जब यह बताया तो उन्होंने कहा, 'किसी के भी जरिए हो, समाज में विचार पहुंच तो रहे हैं न।' क्या आज का एक भी साहित्यकार या पत्रकार इस सोच के स्तर को कभी छू सकता है। | राजकुमार हिरानी ने मनु शर्मा की पुस्तक 'गांधी लौटे' के विचार की चोरी कर इस फिल्म का निर्माण किया था। और बेशर्मी देखिए कि उसने उनका आभार तक व्यक्त करना उचित नहीं समझा था। 'लगे रहो मुन्ना भाई' [[2006]] में आई थी और 'गांधी लौटे' एक श्रृंखला के रूप में [[बनारस]] के 'आज' अखबार में 1992-94 में लिखा गया था, राजकुमार हिरानी की फिल्म से करीब 12 साल पहले। 'गांधी लौटे' बहुत सारे डायलॉग भी मनु शर्मा जी की पुस्तक से चुराए गए थे। मनु शर्मा जी को जब यह बताया तो उन्होंने कहा, 'किसी के भी जरिए हो, समाज में विचार पहुंच तो रहे हैं न।' क्या आज का एक भी साहित्यकार या पत्रकार इस सोच के स्तर को कभी छू सकता है।<ref name="bb"/> | ||
===सम्मान-अलंकरण=== | ===सम्मान-अलंकरण=== | ||
#गोरखपुर वि.वि. से डी.लीट. की मानद उपाधि, | #गोरखपुर वि.वि. से डी.लीट. की मानद उपाधि, | ||
#उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, | #उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘लोहिया साहित्य सम्मान’, | ||
#केंद्रीय हिंदी संस्थान के ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’ | #केंद्रीय हिंदी संस्थान के ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’ | ||
#उ.प्र. सरकार के प्रतिष्ठित ‘यश भारती सम्मान’ से सम्मानित। | #उ.प्र. सरकार के प्रतिष्ठित ‘यश भारती सम्मान’ से सम्मानित।<ref name="aa"/> | ||
===वाजपेयी द्वारा प्रशंसा=== | ===वाजपेयी द्वारा प्रशंसा=== | ||
भारतीय भाषाओं में सबसे बड़ी कृति 'कृष्ण की आत्मकथा' लिखने की उपलब्धि मनु शर्मा के नाम ही है। 8 खंडों और 3000 पृष्ठ वाले 'कृष्ण की आत्मकथा' को पढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ''इस रचना को पढ़ने में मैं इतना खो गया कि कई जरूरी काम तक भूल गया था। पहली बार कृष्ण कथा को इतना व्यापक आयाम दिया गया है।'' | भारतीय भाषाओं में सबसे बड़ी कृति 'कृष्ण की आत्मकथा' लिखने की उपलब्धि मनु शर्मा के नाम ही है। 8 खंडों और 3000 पृष्ठ वाले 'कृष्ण की आत्मकथा' को पढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री [[अटल बिहारी वाजपेयी]] ने कहा था, ''इस रचना को पढ़ने में मैं इतना खो गया कि कई जरूरी काम तक भूल गया था। पहली बार कृष्ण कथा को इतना व्यापक आयाम दिया गया है।'' | ||
वाजपेयी जी ने सही कहा है। कृष्ण पर संपूर्णता से आज तक किसी ने कलम नहीं चलाई है, स्वयं वेद व्यास जी ने भी नहीं। व्यास जी ने 'महाभारत' में द्वारकाधीश और युद्ध के नायक के रूप में कृष्ण का चित्रण किया, लेकिन जब युद्ध समाप्त हो गया तो उन्हें लगा कि कृष्ण के इस चरित्र में शुष्कता है तो फिर उन्होंने श्रीमदभागवत पुराण की रचना की। उसमें कृष्ण के अन्य स्वरूपों को समेटा, लेकिन उसमें युद्ध के पक्ष को छोड़ दिया, जो पहले ही महाभारत में लिखा जा चुका था। इसी तरह सूरदास जी ने कृष्ण के बाल स्वरूप को अपनी काव्य का विषय बनाया तो जयदेव जी ने अपने 'गीत गोविंद' में रसिक और प्रेमी कृष्ण का चित्र उकेरा है। कृष्ण को एक जगह पूरी समग्रता से केवल और केवल मनु शर्मा ने समेटा है, जिसके कारण 'कृष्ण की आत्मकथा' उनकी एक कालजयी कृति बन गई है। | वाजपेयी जी ने सही कहा है। कृष्ण पर संपूर्णता से आज तक किसी ने कलम नहीं चलाई है, स्वयं वेद व्यास जी ने भी नहीं। व्यास जी ने 'महाभारत' में द्वारकाधीश और युद्ध के नायक के रूप में कृष्ण का चित्रण किया, लेकिन जब युद्ध समाप्त हो गया तो उन्हें लगा कि कृष्ण के इस चरित्र में शुष्कता है तो फिर उन्होंने श्रीमदभागवत पुराण की रचना की। उसमें कृष्ण के अन्य स्वरूपों को समेटा, लेकिन उसमें युद्ध के पक्ष को छोड़ दिया, जो पहले ही [[महाभारत]] में लिखा जा चुका था। इसी तरह [[सूरदास|सूरदास जी]] ने [[कृष्ण |कृष्ण]] के बाल स्वरूप को अपनी काव्य का विषय बनाया तो जयदेव जी ने अपने 'गीत गोविंद' में रसिक और प्रेमी कृष्ण का चित्र उकेरा है। कृष्ण को एक जगह पूरी समग्रता से केवल और केवल मनु शर्मा ने समेटा है, जिसके कारण 'कृष्ण की आत्मकथा' उनकी एक कालजयी कृति बन गई है। | ||
महाभारत के एक-एक पात्र- द्रौपदी, कर्ण, द्रोण, गांधारी- को उन्होंने विस्तृत फलक दिया और आत्मकथात्मक शैली में इनके व्यक्तित्व की सम्रगता को पाठकों के समक्ष रखा है। राणा सांगा, बप्पा रावल, शिवाजी-जैसे महानायकों को औपन्यासिक शैली के जरिए घर-घर पहुंचाया है। अपने जीवन में उन्होंने करीब 18 उपन्यास, 7 हजार से अधिक कविताएं और 200 से अधिक कहानियां लिखी हैं। | महाभारत के एक-एक पात्र- [[द्रौपदी]], [[कर्ण]], [[द्रोण]], [[गांधारी]]- को उन्होंने विस्तृत फलक दिया और आत्मकथात्मक शैली में इनके व्यक्तित्व की सम्रगता को पाठकों के समक्ष रखा है। [[राणा सांगा]], बप्पा रावल, शिवाजी-जैसे महानायकों को औपन्यासिक शैली के जरिए घर-घर पहुंचाया है। अपने जीवन में उन्होंने करीब 18 उपन्यास, 7 हजार से अधिक कविताएं और 200 से अधिक कहानियां लिखी हैं।<ref name="bb"/> | ||
===विशेषता=== | ===विशेषता=== | ||
मनु शर्मा के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता जीवन और समाज पर उनकी पैनी दृष्टि है। यह दृष्टि जहाँ पड़ती है, चरित्र, परिस्थितियों और माहौल का एक हूबहू एक्स-रे सा खिंच जाता है। उनकी कहानियाँ जीवन के कटु यथार्थ की जमीन पर रोपी हुई हैं। इनमें न दुःखांत का आग्रह है, न सुखांत का दुराग्रह। कहानी खुद तय करती है कि उसकी शक्ल क्या होगी। इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि मानो पाठक एक यात्रा पर निकला हो और उसके अनुभव जीवन के तमाम द्वीपों से गुजरते हुए समाज और काल में फैल गए हों। पाठक इसका गवाह बनता है। इस वृत्तांत का सम्मोहन इतना कि पाठक को पहले शब्द से लेकर अंतिम विराम तक एक अजीब किस्म के चुंबकत्व का बोध होता है। यही मनु शर्मा की कहानियों का यथार्थ है। उन्हें आलोचक भले न मिले हों, पर पाठक भरपूर मिले। आलोचना के क्षेत्र में पराजित एक लेखक की ये अपराजित कहानियाँ हैं। | मनु शर्मा के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता जीवन और समाज पर उनकी पैनी दृष्टि है। यह दृष्टि जहाँ पड़ती है, चरित्र, परिस्थितियों और माहौल का एक हूबहू एक्स-रे सा खिंच जाता है। उनकी कहानियाँ जीवन के कटु यथार्थ की जमीन पर रोपी हुई हैं। इनमें न दुःखांत का आग्रह है, न सुखांत का दुराग्रह। कहानी खुद तय करती है कि उसकी शक्ल क्या होगी। इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि मानो पाठक एक यात्रा पर निकला हो और उसके अनुभव जीवन के तमाम द्वीपों से गुजरते हुए समाज और काल में फैल गए हों। पाठक इसका गवाह बनता है। इस वृत्तांत का सम्मोहन इतना कि पाठक को पहले शब्द से लेकर अंतिम विराम तक एक अजीब किस्म के चुंबकत्व का बोध होता है। यही मनु शर्मा की कहानियों का यथार्थ है। उन्हें आलोचक भले न मिले हों, पर पाठक भरपूर मिले। आलोचना के क्षेत्र में पराजित एक लेखक की ये अपराजित कहानियाँ हैं। | ||
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12:25, 22 जुलाई 2017 का अवतरण
मनु शर्मा
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पूरा नाम | मनु शर्मा |
जन्म | 1928 |
जन्म भूमि | अकबरपुर, फैजाबाद |
कर्म भूमि | बनारस, उत्तर प्रदेश |
कर्म-क्षेत्र | लेखक, कवि, नाटककार |
मुख्य रचनाएँ | 'गुनाहों का देवता', 'सूरज का सातवाँ घोड़ा', 'अंधायुग' आदि |
विषय | गद्य, पद्य, नाटक तथा उपन्यास |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम. ए. (हिन्दी), पी.एच.डी. |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री, हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार, व्यास सम्मान, साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
विशेष योगदान | धर्मवीर भारती साप्ताहिक पत्रिका 'धर्मयुग' के प्रधान संपादक रहे। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | उनका उपन्यास 'गुनाहों का देवता' हिन्दी साहित्य के इतिहास में सदाबहार माना जाता है। |
अद्यतन | 17:55, 22 जुलाई 2017 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
मनु शर्मा (अंग्रेजी; Manu Sharma, जन्म: 1928 अकबरपुर, फैजाबाद) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक है। ‘आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो बरसों बाद मैं डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़ा जाऊँगा।’ इसी विश्वास के साथ मनु शर्मा की रचना-यात्रा खुद की बनाई पगडंडी पर जारी है। हिंदी की खेमेबंदी से दूर मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।[1]
जीवन परिचय
मनु शर्मा का जन्म 1928 अकबरपुर, फैजाबाद में हुआ था। मनु शर्मा बेहद अभावों में पले-बढे हैं। घर चलाने के लिए फेरी लगाकर कपड़ा और मूंगफली तक बेचा। बनारस के डीएवी कॉलेज में उन्हें चपरासी की नौकरी मिली, लेकिन उनके गुरु कृष्णदेव प्रसाद गौड़ उर्फ 'बेढ़ब बनारसी' ने उनसे काम लिया पुस्तकालय में। पुस्तकालय में पुस्तक उठाते-उठाते उनमें पढ़ने की ऐसी रुचि जगी कि पूरा पुस्तकालय ही चाट गए। उन्होंने अपनी कलम से पौराणिक उपन्यासों को आधुनिक संदर्भ दिया है। 70 के दशक में मनु शर्मा बनारस से निकलने वाले 'जनवार्ता' में प्रतिदिन एक 'कार्टून कविता' लिखते थे। यह इतनी मारक होती थी कि आपातकाल के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जयप्रकाश नारायण कहा करते थे, यदि संपूर्ण क्रांति को ठीक ढंग से समझना हो तो 'जनवार्ता' अखबार पढ़ा करो। मनु शर्मा ने अपनी 'कार्टून कविता' के जरिए हर घर-हर दिल पर उस दौरान दस्तक दी थी।[2]
राजकुमार हिरानी ने मनु शर्मा की पुस्तक 'गांधी लौटे' के विचार की चोरी कर इस फिल्म का निर्माण किया था। और बेशर्मी देखिए कि उसने उनका आभार तक व्यक्त करना उचित नहीं समझा था। 'लगे रहो मुन्ना भाई' 2006 में आई थी और 'गांधी लौटे' एक श्रृंखला के रूप में बनारस के 'आज' अखबार में 1992-94 में लिखा गया था, राजकुमार हिरानी की फिल्म से करीब 12 साल पहले। 'गांधी लौटे' बहुत सारे डायलॉग भी मनु शर्मा जी की पुस्तक से चुराए गए थे। मनु शर्मा जी को जब यह बताया तो उन्होंने कहा, 'किसी के भी जरिए हो, समाज में विचार पहुंच तो रहे हैं न।' क्या आज का एक भी साहित्यकार या पत्रकार इस सोच के स्तर को कभी छू सकता है।[2]
सम्मान-अलंकरण
- गोरखपुर वि.वि. से डी.लीट. की मानद उपाधि,
- उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘लोहिया साहित्य सम्मान’,
- केंद्रीय हिंदी संस्थान के ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’
- उ.प्र. सरकार के प्रतिष्ठित ‘यश भारती सम्मान’ से सम्मानित।[1]
वाजपेयी द्वारा प्रशंसा
भारतीय भाषाओं में सबसे बड़ी कृति 'कृष्ण की आत्मकथा' लिखने की उपलब्धि मनु शर्मा के नाम ही है। 8 खंडों और 3000 पृष्ठ वाले 'कृष्ण की आत्मकथा' को पढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, इस रचना को पढ़ने में मैं इतना खो गया कि कई जरूरी काम तक भूल गया था। पहली बार कृष्ण कथा को इतना व्यापक आयाम दिया गया है। वाजपेयी जी ने सही कहा है। कृष्ण पर संपूर्णता से आज तक किसी ने कलम नहीं चलाई है, स्वयं वेद व्यास जी ने भी नहीं। व्यास जी ने 'महाभारत' में द्वारकाधीश और युद्ध के नायक के रूप में कृष्ण का चित्रण किया, लेकिन जब युद्ध समाप्त हो गया तो उन्हें लगा कि कृष्ण के इस चरित्र में शुष्कता है तो फिर उन्होंने श्रीमदभागवत पुराण की रचना की। उसमें कृष्ण के अन्य स्वरूपों को समेटा, लेकिन उसमें युद्ध के पक्ष को छोड़ दिया, जो पहले ही महाभारत में लिखा जा चुका था। इसी तरह सूरदास जी ने कृष्ण के बाल स्वरूप को अपनी काव्य का विषय बनाया तो जयदेव जी ने अपने 'गीत गोविंद' में रसिक और प्रेमी कृष्ण का चित्र उकेरा है। कृष्ण को एक जगह पूरी समग्रता से केवल और केवल मनु शर्मा ने समेटा है, जिसके कारण 'कृष्ण की आत्मकथा' उनकी एक कालजयी कृति बन गई है। महाभारत के एक-एक पात्र- द्रौपदी, कर्ण, द्रोण, गांधारी- को उन्होंने विस्तृत फलक दिया और आत्मकथात्मक शैली में इनके व्यक्तित्व की सम्रगता को पाठकों के समक्ष रखा है। राणा सांगा, बप्पा रावल, शिवाजी-जैसे महानायकों को औपन्यासिक शैली के जरिए घर-घर पहुंचाया है। अपने जीवन में उन्होंने करीब 18 उपन्यास, 7 हजार से अधिक कविताएं और 200 से अधिक कहानियां लिखी हैं।[2]
विशेषता
मनु शर्मा के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता जीवन और समाज पर उनकी पैनी दृष्टि है। यह दृष्टि जहाँ पड़ती है, चरित्र, परिस्थितियों और माहौल का एक हूबहू एक्स-रे सा खिंच जाता है। उनकी कहानियाँ जीवन के कटु यथार्थ की जमीन पर रोपी हुई हैं। इनमें न दुःखांत का आग्रह है, न सुखांत का दुराग्रह। कहानी खुद तय करती है कि उसकी शक्ल क्या होगी। इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि मानो पाठक एक यात्रा पर निकला हो और उसके अनुभव जीवन के तमाम द्वीपों से गुजरते हुए समाज और काल में फैल गए हों। पाठक इसका गवाह बनता है। इस वृत्तांत का सम्मोहन इतना कि पाठक को पहले शब्द से लेकर अंतिम विराम तक एक अजीब किस्म के चुंबकत्व का बोध होता है। यही मनु शर्मा की कहानियों का यथार्थ है। उन्हें आलोचक भले न मिले हों, पर पाठक भरपूर मिले। आलोचना के क्षेत्र में पराजित एक लेखक की ये अपराजित कहानियाँ हैं।
कृतियाँ
- उपन्यास : छत्रपति, तीन प्रश्न, राणा साँगा, शिवानी का आशीर्वाद, एकलिंग का दीवान, मरीचिका, गांधी लौटे, विवशता, लक्ष्मणरेखा, द्रौपदी की आत्मकथा, द्रोण की आत्मकथा, कर्ण का आत्मकथा, कृष्ण की आत्मकथा-1 (नारद की भविष्यवाणी), कृष्ण की आत्मकथा-2 (दुरभिसंधि), गांधारी का आत्मकथा, अभिशप्त कथा।
- कहानी-संग्रह : पोस्टर उखड़ गया, मुंशी नवनीत लाल, महात्मा : (लँगड़ा हाजी, पत्ता टूटा डाल से, अंततः सलीब, महात्मा, ‘पक्का’ नं. 13, गुमशुदा, बंधन-मुक्ति, स्पर्श रोमांस, रोशनी कहाँ गई?, बर्फ नाम सत्य है।), दीक्षा : (दीक्षा, एक माँ मरी है, लक्ष्मण रेखा, अश्रव्य चीखें।)।
- कविता-संग्रह : खूँटी पर टँगा वसंत।
- निबंध-संग्रह : उस पार का सूरज।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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