"शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा": अवतरणों में अंतर
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असली मजार तहखाने (भूमिगत) में है। तहखाने तक पहुँचने के लिए दक्षिण दिशा में चबूतरे की सीढ़ियों के पास से एक रास्ता है। भीतर पक्के चबूतरे पर दो मजारें बनी हुई हैं। चबूतरे के पूर्व और पश्चिम दिशा में रोशनदान बने हुए हैं, जिससे तहखाने में प्रकाश आता है। बाहरी भाग के बरामदे में पत्थर के दोहरे स्तंभ बने हैं। इनकी कुर्सियों पर सुंदर बेल-बूटे और फूल पत्थर में कुरेदे गए हैं। बरामदें से मिले चार कमरे और भी हैं। इन कमरों में प्रकाश, हवा की व्यवस्था हेतु पत्थरों की शानदार जालियाँ काटकर बनाई गई हैं। गुन्बद के चारों तरफ़ दोहरी मेहराबें हैं, जिससे इसके सौंदर्य में वृद्धि हुई है। मक़बरे के चारों और 211 फ़ुट की ऊँची मुंढेरें हैं, जिसके आगे 3 फ़ुट का छज्जा है। चारों कोनों पर चार सुंदर बुर्जियाँ बनी हुई हैं। ये मक़बरे के सौंदर्य को बढाती हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में ऊपर जाने के लिए चक्करदार लगभग 24 सीढ़ियों का जीना है। बुर्जियाँ बरामदे से प्रायः 14 फ़ुट ऊँची हैं। उपर पहुँचने के पश्चात आस-पास के [[हरा रंग|हरे]]-भरे खेत और दूर-दूर तक सुंदर दृश्य लुभावना लगता है। ऊपरी भाग में एक बहुत बड़ा गुम्बद है, जो लोधी निर्माण शैली का प्रतीक होता है। यह भूमि से लगभग 60 फ़ुट की ऊँचाई पर है। गुम्बद के चारों ओर छोटी-छोटी सुंदर मीनारे हैं। गुम्बद में चारों दिशाओं में रोशनदान बनाये गये हैं। | असली मजार तहखाने (भूमिगत) में है। तहखाने तक पहुँचने के लिए दक्षिण दिशा में चबूतरे की सीढ़ियों के पास से एक रास्ता है। भीतर पक्के चबूतरे पर दो मजारें बनी हुई हैं। चबूतरे के पूर्व और पश्चिम दिशा में रोशनदान बने हुए हैं, जिससे तहखाने में प्रकाश आता है। बाहरी भाग के बरामदे में पत्थर के दोहरे स्तंभ बने हैं। इनकी कुर्सियों पर सुंदर बेल-बूटे और फूल पत्थर में कुरेदे गए हैं। बरामदें से मिले चार कमरे और भी हैं। इन कमरों में प्रकाश, हवा की व्यवस्था हेतु पत्थरों की शानदार जालियाँ काटकर बनाई गई हैं। गुन्बद के चारों तरफ़ दोहरी मेहराबें हैं, जिससे इसके सौंदर्य में वृद्धि हुई है। मक़बरे के चारों और 211 फ़ुट की ऊँची मुंढेरें हैं, जिसके आगे 3 फ़ुट का छज्जा है। चारों कोनों पर चार सुंदर बुर्जियाँ बनी हुई हैं। ये मक़बरे के सौंदर्य को बढाती हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में ऊपर जाने के लिए चक्करदार लगभग 24 सीढ़ियों का जीना है। बुर्जियाँ बरामदे से प्रायः 14 फ़ुट ऊँची हैं। उपर पहुँचने के पश्चात आस-पास के [[हरा रंग|हरे]]-भरे खेत और दूर-दूर तक सुंदर दृश्य लुभावना लगता है। ऊपरी भाग में एक बहुत बड़ा गुम्बद है, जो लोधी निर्माण शैली का प्रतीक होता है। यह भूमि से लगभग 60 फ़ुट की ऊँचाई पर है। गुम्बद के चारों ओर छोटी-छोटी सुंदर मीनारे हैं। गुम्बद में चारों दिशाओं में रोशनदान बनाये गये हैं। | ||
==मक़बरे का रख-रखाव== | ==मक़बरे का रख-रखाव== | ||
वर्तमान में यह मक़बरा पुरातत्त्व विभाग के अधीनस्थ है, और स्थायी तौर से एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है। साफ-सफाई, मरम्मत यथा समय होती रहती है। विभाग की ओर से मक़बरे की सुरक्षा के लिये उत्तर दिशा में नदी के किनारे एक मज़बूत दीवार सीमेंट, ईंट और चूने से निर्मित की गई है। मक़बरे के चारों तरफ़ तार फेंसिंग भी की गई है। मक़बरे के पूर्व में एक भव्य इमारत पानदान के आकार की है, जिसकी निर्माण शैली सुंदर व अनूठी है। अब इसका काफ़ी हिस्सा गिर चुका है। इसके मध्य भाग में शाह नवाज़ ख़ाँ के परिवार की किसी | वर्तमान में यह मक़बरा पुरातत्त्व विभाग के अधीनस्थ है, और स्थायी तौर से एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है। साफ-सफाई, मरम्मत यथा समय होती रहती है। विभाग की ओर से मक़बरे की सुरक्षा के लिये उत्तर दिशा में नदी के किनारे एक मज़बूत दीवार सीमेंट, ईंट और चूने से निर्मित की गई है। मक़बरे के चारों तरफ़ तार फेंसिंग भी की गई है। मक़बरे के पूर्व में एक भव्य इमारत पानदान के आकार की है, जिसकी निर्माण शैली सुंदर व अनूठी है। अब इसका काफ़ी हिस्सा गिर चुका है। इसके मध्य भाग में शाह नवाज़ ख़ाँ के परिवार की किसी महान् हस्ती की मजार है।<ref name="mcc"/> | ||
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11:02, 1 अगस्त 2017 का अवतरण
शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, बुरहानपुर के उत्तर में 2 किमी. के फासले पर उतावली नदी के किनारे काले पत्थर से निर्मित मुग़ल शासन काल का एक दर्शनीय भव्य मक़बरा है। बुरहानपुर में मुग़ल काल में निर्मित अन्य इमारतों में से इस इमारत का अपना विशेष स्थान है। शाह नवाज़ ख़ाँ का असली नाम 'इरज' था। इसका जन्म अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ था। यह बुरहानपुर के सूबेदार अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना का ज्येष्ठ पुत्र था। यह मक़बरा इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात भी अच्छी स्थिति में है। यह स्थान शहरवासियों के लिए सर्वोत्तम पर्यटन स्थल माना जाता है।[1]
शराब की लत व मृत्यु
इसी वीर योद्धा और कुशल सेना नायक की वीरता और युद्ध कौशल से जहाँगीर को दक्षिण की लड़ाइरयों में विजयी मिली थीं। जहाँगीर ने सन् 1021 हिजरी में इनहें 'शाह नवाज़' की उपाधि से अलंकृत किया था। साथ ही उसे पाँच हज़ारी मनसबदारों का गोरवशाली पद प्रदान किया था। सेना में यह पद महतवपूर्ण माना जाता था। शाह नवाज़ की बहिन सम्राट अकबर के पुत्र शहज़ादा दानियाल को ब्याही गई थी। शाह नवाज़ ख़ाँ को शराब पीने की बुरी लत थी, जिससे उसका स्वास्थ्य ख़राब होने लगा था। जहाँगीरने अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना को पाबंद किया था, कि वे शाह नवाज़ को इस बुरी लत से दूर रखें, किंतु सारी कोशिशें विफल रहीं और सन् 1028 हिजरी को युवा अवस्था मे ही शाह नवाज़ ख़ाँ का देहावसान हो गया। उस समय वे 44 वर्ष के थे। उनके देहांत से जहाँगीर को गहरा आघात पहुँचा। उसने रहीम ख़ानख़ाना को भी सांत्वना दी।[1]
मक़बरे की स्थिति
शाह नवाज़ ख़ाँ के देहांत के पश्चात उनका पद उनके छोटे भाई 'दाराब ख़ाँ को प्रदान किया गया था। साथ ही शाह नवाज़ ख़ाँ के दोनों पुत्रों को क्रमशः 'मिर्ज़ा मनूचहर' की दो हज़ारी और 'मिर्ज़ा तुग़लक़' को एक हज़ारी का मनसब दिया गया था। शाह नवाज़ ख़ाँ का भव्य मक़बरा उतावली नदी से 34 फ़ुट की ऊँचाई पर स्थित है। पहले मक़बरे के चारों और पक्की दीवारें थीं, जो अब गिर गई हैं। मक़बरे की दक्षिण दिशा में एक शानदार प्रवेश द्वार है, जो आज भी अच्छी हालत में है। यह इमारत एक चौकोर चबूतरे पर खड़ी है, जो ज़मीन से 5 फ़ुट ऊँचा है। चबूतरे की लंबाई 105 फ़ुट और चौडाइ भी लगभग 105 फ़ुट है। इमारत का नाप 70x70 फ़ुट है। इसकी कुर्सी 3-1/2 ऊँची है।
निर्माण शैली
मक़बरे का बाहरी हिस्सा काले-सफ़ेदी युक्त पत्थरों से और भीतरी भाग ईंट, चूने से बना है। भीतरी भाग सुंदर बेल-बूटों की चित्रकारी से सुसज्जित है। चित्रकारी की कुशल कारीगरी अवलोकनीय है। आज भी वह देखने वालों को आश्चर्यचकित करती है। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी उसकी चमक-दमक और रंगों में कोई अंतर नहीं आया है। गुम्बद के भीतर बोलने से आवाJ गूंजती है। गुम्बद में वायु और प्रकाश के लिए सुंदर रोशनदान बने हैं। गुम्बद के भीतर मध्य भाग में एक वर्गाकार संगमरमर का चबूतरा है। पत्थर पर सुंदर नक़्क़ाशी काटी गई हैं। तावीज भी संगमरमर का है और एक पत्थर से तराशा गया लगता है। तावीज के सिर पर र्क तरफ़ कमल पंखुड़ी वाला सुंदर फूल तराशा गया है। यही शाह नवाज़ ख़ाँ की मजार है। बाजू में एक छोटी मजार है। इसके संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।[1]
असली मजार तहखाने (भूमिगत) में है। तहखाने तक पहुँचने के लिए दक्षिण दिशा में चबूतरे की सीढ़ियों के पास से एक रास्ता है। भीतर पक्के चबूतरे पर दो मजारें बनी हुई हैं। चबूतरे के पूर्व और पश्चिम दिशा में रोशनदान बने हुए हैं, जिससे तहखाने में प्रकाश आता है। बाहरी भाग के बरामदे में पत्थर के दोहरे स्तंभ बने हैं। इनकी कुर्सियों पर सुंदर बेल-बूटे और फूल पत्थर में कुरेदे गए हैं। बरामदें से मिले चार कमरे और भी हैं। इन कमरों में प्रकाश, हवा की व्यवस्था हेतु पत्थरों की शानदार जालियाँ काटकर बनाई गई हैं। गुन्बद के चारों तरफ़ दोहरी मेहराबें हैं, जिससे इसके सौंदर्य में वृद्धि हुई है। मक़बरे के चारों और 211 फ़ुट की ऊँची मुंढेरें हैं, जिसके आगे 3 फ़ुट का छज्जा है। चारों कोनों पर चार सुंदर बुर्जियाँ बनी हुई हैं। ये मक़बरे के सौंदर्य को बढाती हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में ऊपर जाने के लिए चक्करदार लगभग 24 सीढ़ियों का जीना है। बुर्जियाँ बरामदे से प्रायः 14 फ़ुट ऊँची हैं। उपर पहुँचने के पश्चात आस-पास के हरे-भरे खेत और दूर-दूर तक सुंदर दृश्य लुभावना लगता है। ऊपरी भाग में एक बहुत बड़ा गुम्बद है, जो लोधी निर्माण शैली का प्रतीक होता है। यह भूमि से लगभग 60 फ़ुट की ऊँचाई पर है। गुम्बद के चारों ओर छोटी-छोटी सुंदर मीनारे हैं। गुम्बद में चारों दिशाओं में रोशनदान बनाये गये हैं।
मक़बरे का रख-रखाव
वर्तमान में यह मक़बरा पुरातत्त्व विभाग के अधीनस्थ है, और स्थायी तौर से एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है। साफ-सफाई, मरम्मत यथा समय होती रहती है। विभाग की ओर से मक़बरे की सुरक्षा के लिये उत्तर दिशा में नदी के किनारे एक मज़बूत दीवार सीमेंट, ईंट और चूने से निर्मित की गई है। मक़बरे के चारों तरफ़ तार फेंसिंग भी की गई है। मक़बरे के पूर्व में एक भव्य इमारत पानदान के आकार की है, जिसकी निर्माण शैली सुंदर व अनूठी है। अब इसका काफ़ी हिस्सा गिर चुका है। इसके मध्य भाग में शाह नवाज़ ख़ाँ के परिवार की किसी महान् हस्ती की मजार है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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