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'''पिंगलि वेंकय्या''' अथवा पिंगली वेंकैय्या ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pingali Venkayya'', जन्म: [[2 अगस्त]] [[1878]] – मृत्यु: [[4 जुलाई]] [[1963]]) [[भारत]] के राष्ट्रीय ध्वज '[[तिरंगा]]' के अभिकल्पक हैं। वे भारत के सच्चे देशभक्त, महान स्वतंत्रता सेनानी एवं कृषि वैज्ञानिक भी थे।  
'''पिंगलि वेंकय्या''' अथवा पिंगली वेंकैय्या ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pingali Venkayya'', जन्म: [[2 अगस्त]] [[1878]] – मृत्यु: [[4 जुलाई]] [[1963]]) [[भारत]] के राष्ट्रीय ध्वज '[[तिरंगा]]' के अभिकल्पक हैं। वे भारत के सच्चे देशभक्त, महान् स्वतंत्रता सेनानी एवं कृषि वैज्ञानिक भी थे।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
[[भारत]] के [[तिरंगा|राष्‍ट्रीय ध्वज]] की रूपरेखा तैयार करने वाले पिंगली वेंकैय्या का जन्म [[आन्ध्र प्रदेश]] के [[कृष्णा ज़िला|कृष्णा ज़िले]] के "दीवी" तहसील के "भटाला पेनमरू" नामक गाँव में 2 अगस्त 1878 को हुआ था। उनके पिता का नाम पिंगली हनमंत रायडू एवं माता का नाम वेंकटरत्‍न्‍म्‍मा था। पिंगली वेंकैय्या ने प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू एवं [[मछलीपट्टनम]] से प्राप्त करने के बाद 19 वर्ष की उम्र में [[मुंबई]] चले गए। वहां जाने के बाद उन्‍होंने [[भारतीय सेना|सेना]] में नौकरी कर ली, जहां से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया।
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11:08, 1 अगस्त 2017 का अवतरण

पिंगलि वेंकय्या
पिंगलि वेंकय्या
पिंगलि वेंकय्या
पूरा नाम पिंगलि वेंकय्या
अन्य नाम वेंकय्या कपास
जन्म 2 अगस्त 1878
जन्म भूमि गाँव- भटाला पेनमरू, कृष्णा ज़िला आन्ध्र प्रदेश
मृत्यु 4 जुलाई 1963
अभिभावक पिंगली हनमंत रायडू एवं वेंकटरत्‍न्‍म्‍मा
कर्म-क्षेत्र स्वतंत्रता सेनानी एवं कृषि वैज्ञानिक
भाषा संस्कृत, उर्दू एवं हिंदी
विशेष योगदान भारत के राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' के अभिकल्पक हैं।
नागरिकता भारतीय

पिंगलि वेंकय्या अथवा पिंगली वेंकैय्या (अंग्रेज़ी: Pingali Venkayya, जन्म: 2 अगस्त 1878 – मृत्यु: 4 जुलाई 1963) भारत के राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' के अभिकल्पक हैं। वे भारत के सच्चे देशभक्त, महान् स्वतंत्रता सेनानी एवं कृषि वैज्ञानिक भी थे।

जीवन परिचय

भारत के राष्‍ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने वाले पिंगली वेंकैय्या का जन्म आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले के "दीवी" तहसील के "भटाला पेनमरू" नामक गाँव में 2 अगस्त 1878 को हुआ था। उनके पिता का नाम पिंगली हनमंत रायडू एवं माता का नाम वेंकटरत्‍न्‍म्‍मा था। पिंगली वेंकैय्या ने प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू एवं मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद 19 वर्ष की उम्र में मुंबई चले गए। वहां जाने के बाद उन्‍होंने सेना में नौकरी कर ली, जहां से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया।

गाँधीजी से भेंट

सन 1899 से 1902 के बीच दक्षिण अफ्रीका के "बायर" युद्ध में उन्होंने भाग लिया। इसी बीच वहां पर वेंकैय्या साहब की मुलाकात महात्मा गांधी से हो गई, वे उनके विचारों से काफ़ी प्रभावित हुए, स्वदेश वापस लौटने पर बम्बई ( अब मुंबई) में रेलवे में गार्ड की नौकरी में लग गए। इसी बीच मद्रास (अब चेन्नई) में प्लेग नामक महामारी के चलते कई लोगों की मौत हो गई, जिससे उनका मन व्यथित हो उठा और उन्‍होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। वहां से मद्रास में प्लेग रोग निर्मूलन इंस्‍पेक्‍टर के पद पर तैनात हो गए।

वेंकय्या कपास

पिंगलि वेंकय्या की संस्कृत, उर्दू एवं हिंदी आदि भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। इसके साथ ही वे भू-विज्ञान एवं कृषि के अच्छे जानकर भी थे। सन 1904 में जब जापान ने रूस को हरा दिया था। इस समाचार से वे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत जापानी भाषा सीख ली। उधर महात्मा गांधी जी का स्वदेशी आन्दोलन चल ही रहा था, इस आन्दोलन ने भी पिंगली वेंकैय्या के मन को बदल दिया। उस समय उन्‍होंने अमेरिका से कम्बोडिया नामक कपास की बीज का आयात और इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया। उनके इस शोध कार्य के लिये बाद में इन्हें 'वेंकय्या कपास' के नाम से जाना जाने लगा।[1]

राष्ट्रीय ध्वज की रचना

सन 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बाँध दे। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया। वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधने का संकेत बने। पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन् 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है। फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दू, मुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त करता है। काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन् 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को क्या रूप दिया जाए इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की। 15 अगस्त 1947 को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।[2]

पिंगली वेंकैया की प्रतिमा, मछलीपटनम

निधन

राष्ट्रीय ध्वज बनाने के बाद पिंगली वेंकैय्या का झंडा "झंडा वेंकैय्या" के नाम से लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया। 4 जुलाई, 1963 को पिंगली वेंकैय्या का निधन हो गया।

सम्मान

भारत के राष्ट्रीय ध्‍वज तिरंगे का डिज़ाइन बनाने वाले पिंगली वेंकैया के सम्मान में भारत सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया। वेकैंया पिंगली के 132वें जन्म दिवस के अवसर पर जारी इस डाक टिकट में उनके बनाए गए तिरंगे के साथ उनकी तस्वीर भी है। डाक टिकट का मूल्य पांच रूपए है। प्रथम दिवस आवरण और सूचना सामग्री की क़ीमत दो-दो रुपए है। देश के चार जगहों विशाखापत्तनम, हैदराबाद, कुरनूल, विजयवाड़ा के जेनरल पोस्‍ट ऑफिस (जीपीओ) पर यह उपलब्ध है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीवास्तव, प्रदीप। राष्ट्रीय ध्वज के निर्माता पिंगली वेंकैया को भूले देशवासी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) स्टार न्यूज़ ऐजेंसी। अभिगमन तिथि: 4 अप्रॅल, 2013।
  2. तिरंगा (हिंदी) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 4 अप्रॅल, 2013।
  3. तिरंगे का शुरुआती डिजाइन तैयार करने वाले पिंगली के नाम पर डाक टिकट (हिंदी) मेरी ख़बर डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 4 अप्रॅल, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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