"मातु पितहि जनि सोचबस": अवतरणों में अंतर
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अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश | अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करने वाला है॥ 272॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिहसि लखनु बोले मृदु बानी}} | {{लेख क्रम4| पिछला=भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिहसि लखनु बोले मृदु बानी}} |
13:52, 6 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
मातु पितहि जनि सोचबस
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। |
- भावार्थ-
अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करने वाला है॥ 272॥
मातु पितहि जनि सोचबस |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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