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अपने 16 साल के फ़िल्मी कॅरियर में अमजद ख़ान ने लगभग 130 फ़िल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फ़िल्में 'आखिरी गोली', 'हम किसी से कम नहीं', 'चक्कर पे चक्कर', 'लावारिस', 'गंगा की सौगंध', 'बेसर्म', 'अपना खून', 'देश परदेश', 'कसमे वादे', 'क़ानून की पुकार', 'मुक्कद्दर का सिकंदर', 'राम कसम', 'सरकारी मेहमान', 'आत्माराम', 'दो शिकारी', 'सुहाग', 'द ग्रेट गैम्बलर', 'इंकार', 'यारी दुश्मनी', 'बरसात की एक रात', 'खून का रिश्ता', 'जीवा', 'हिम्मतवाला', 'सरदार', 'उत्सव' आदि है, जिसमें उन्होंने शानदार अभिनय किया। अमजद जी अपने काम के प्रति बेहद गम्भीर व ईमानदार थे। परदे पर वे जितने खूंखार और खतरनाक इंसानों के पात्र निभाते थे, उतने ही वे वास्तविक जीवन और निजी जीवन में एक भले हँसने-हँसाने और कोमल दिल वाले इंसान थे।
अपने 16 साल के फ़िल्मी कॅरियर में अमजद ख़ान ने लगभग 130 फ़िल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फ़िल्में 'आखिरी गोली', 'हम किसी से कम नहीं', 'चक्कर पे चक्कर', 'लावारिस', 'गंगा की सौगंध', 'बेसर्म', 'अपना खून', 'देश परदेश', 'कसमे वादे', 'क़ानून की पुकार', 'मुक्कद्दर का सिकंदर', 'राम कसम', 'सरकारी मेहमान', 'आत्माराम', 'दो शिकारी', 'सुहाग', 'द ग्रेट गैम्बलर', 'इंकार', 'यारी दुश्मनी', 'बरसात की एक रात', 'खून का रिश्ता', 'जीवा', 'हिम्मतवाला', 'सरदार', 'उत्सव' आदि है, जिसमें उन्होंने शानदार अभिनय किया। अमजद जी अपने काम के प्रति बेहद गम्भीर व ईमानदार थे। परदे पर वे जितने खूंखार और खतरनाक इंसानों के पात्र निभाते थे, उतने ही वे वास्तविक जीवन और निजी जीवन में एक भले हँसने-हँसाने और कोमल दिल वाले इंसान थे।
फ़िल्म 'शोले' की सफलता के बाद अमजद ख़ान ने बहुत-सी हिंदी फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका की। 70 से 80 और फिर 90 के दशक में उनकी लोकप्रियता बरक़रार रही। उन्होंने डाकू के अलावा अपराधियों के आका, चोरों के सरदार और हत्यारों के पात्र निभाए। उनकी ज्यादातर फ़िल्मों में अमिताभ ने हीरो की भूमिका निभाई। बॉलीवुड में [[अमिताभ बच्चन]], अमजद और [[कादर ख़ान]] तीनों की दोस्ती मशहूर थी। उन्होंने फ़िल्म 'याराना' में अमिताभ के दोस्त और फ़िल्म 'लावारिस' में पिता की भूमिका की थी। उन्होंने कुछ हास्य किरदार भी निभाए, जिसमें फ़िल्म 'कुर्बानी', 'लव स्टोरी' और 'चमेली की शादी' में उनके कॉमिक रोल को खूब पसंद किया गया। 80 के दशक में उन्होंने दो फ़िल्में बनायीं थी। सन [[1983]] में 'चोर पुलिस' जो कि सफल रही और [[1985]] में 'अमीर आदमी गरीब आदमी' जो की बॉक्स ऑफिस पर फेल हो गयी।
फ़िल्म 'शोले' की सफलता के बाद अमजद ख़ान ने बहुत-सी हिंदी फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका की। 70 से 80 और फिर 90 के दशक में उनकी लोकप्रियता बरक़रार रही। उन्होंने डाकू के अलावा अपराधियों के आका, चोरों के सरदार और हत्यारों के पात्र निभाए।
====फ़िल्म निर्माण====
अमजद ख़ान के बारे में माना जाता है कि वे राजनीति से दूर एक सच्चे और सीधे इंसान थे। अपने साथी कलाकारों में उनकी लोकप्रियता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वे दूसरी बार 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के अध्यक्ष चुने गए थे। अमजद को निजी जिंदगी में जिस तरह 'शोले' ने उठाया, उसी तरह 'द ग्रेट गैम्बलर' ने नीचे भी ला दिया। फ़िल्म 'द ग्रेट गैम्बलर' की शूटिंग के दौरान [[गोवा]] से [[बंबई]] आते समय एक कार दुर्घटना में उनके शरीर की हड्डियां टूट गईं। किसी तरह वे बच गए, लेकिन दवाइयों के असर ने उन्हें भारी भरकम बना दिया, जिस कारण वे कैमरे के लैंस में मिस फिट होने लगे। उन्हें काम भी कम मिलने लगा था। खासकर मोटे किरदार में उन्हें लिया जाता था। जब अमजद ख़ान के पास फ़िल्में कम हो गईं तो अपने को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने फ़िल्म निर्माण का काम शुरू किया। पहली फ़िल्म 'चोर पुलिस' बनाई, लेकिन वह सेंसर में ऐसी फंसी कि जब निकली, तो टुकड़े-टुकड़े होकर और वह कुछ खास न कर सकी। दूसरी फ़िल्म 'अमीर आदमी गरीब आदमी' थी, जो कामगारों के शोषण पर आधारित थी। तीसरी फ़िल्म उन्होंने [[अमिताभ बच्चन]] के साथ बनानी चाही, जिसका नाम था 'लम्बाई-चौड़ाई', लेकिन यह फ़िल्म सेट पर नहीं गई।
====चरित्र और हास्य भूमिकाएँ====
[[चित्र:Gabbar-Singh.jpg|thumb|[[शोले (फ़िल्म)|शोले]] के एक दृश्य में गब्बर सिंह (अमजद ख़ान)]]
[[चित्र:Gabbar-Singh.jpg|thumb|[[शोले (फ़िल्म)|शोले]] के एक दृश्य में गब्बर सिंह (अमजद ख़ान)]]
अमजद ख़ान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। [[अमिताभ बच्चन]], [[धर्मेन्द्र]] जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फ़िल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फ़िल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फ़िल्म निर्देशित नहीं की। अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे।
==प्रेम प्रसंग==
==प्रेम प्रसंग==
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12:45, 4 अक्टूबर 2017 का अवतरण

अमजद ख़ान
अमजद ख़ान
अमजद ख़ान
पूरा नाम अमजद ख़ान
जन्म 12 नवंबर, 1940
जन्म भूमि पेशावर, भारत (आज़ादी से पूर्व)
मृत्यु 27 जुलाई, 1992
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
संतान पुत्र- शादाब ख़ान, सीमाब ख़ान, पुत्री- एहलम ख़ान
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक
मुख्य फ़िल्में शोले, 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला', 'कालिया' आदि।
प्रसिद्धि गब्बर सिंह का किरदार
विशेष योगदान अमजद ख़ान ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की भूमिका के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अमजद ख़ान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' से की थी। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी थी।

अमजद ख़ान (अंग्रेज़ी: Amjad Khan जन्म: 12 नवंबर, 1940; मृत्यु: 27 जुलाई, 1992, मुम्बई) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनके द्वारा 'शोले' फ़िल्म में अभिनीत किरदार 'गब्बर सिंह' भारतीय सिनेमा के यादगार खलनायकों में से एक है। अपने कॅरियर में अमजद ख़ान ने 'शोले', 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला' और 'कालिया' जैसी करीब 130 फ़िल्मों में काम किया। पर्दे पर एक-से-एक ख़तरनाक और अत्याचारी भूमिकाएँ निभाने वाले अमजद ख़ान वास्तविक जीवन में एक सभ्य, सुसंस्कृत एवं गरीबों की सहायता करने वाले नेकदिल इंसान थे। 'शोले' के गब्बर सिंह की भूमिका उनसे पहले अभिनेता डैनी को दी गयी थी, परन्तु समयाभाव के कारण जब उन्होंने इनकार कर दिया तो यह भूमिका अमजद ख़ान को मिल गयी। अमजद ख़ान ने डाकू गब्बर सिंह के चरित्र को फ़िल्मी पर्दे पर इस प्रकार जीवन्त कर दिया कि उसे अमर ही बना दिया।

परिचय

अमजद ख़ान का जन्म 12 नवम्बर, सन 1940 को फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता जिक्रिया ख़ान के पठानी परिवार में आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में हुआ था। अमजद ख़ान को अभिनय की कला विरासत में मिली। उनके पिता जयंत फ़िल्म इंडस्ट्री में खलनायक रह चुके थे। अमजद ख़ान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' से की थी। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी। वर्ष 1965 में अपनी होम प्रोडक्शन में बनने वाली फ़िल्म 'पत्थर के सनम' के जरिये अमजद ख़ान बतौर अभिनेता अपने कॅरियर की शुरुआत करने वाले थे, लेकिन किसी कारण से फ़िल्म का निर्माण नहीं हो सका। सत्तर के दशक में अमजद ख़ान ने मुंबई से अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बतौर अभिनेता काम करने के लिये फ़िल्म इंडस्ट्री का रुख किया।

गब्बर सिंह की भूमिका

बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 'शोले' के किरदार गब्बर सिंह ने अमजद ख़ान को फ़िल्म इंडस्ट्री में सशक्त पहचान दिलायी, लेकिन फ़िल्म के निर्माण के समय गब्बर सिंह की भूमिका के लिये पहले डैनी का नाम प्रस्तावित था। फ़िल्म शोले के निर्माण के समय गब्बर सिंह वाली भूमिका डैनी को दी गयी थी, लेकिन उन्होंने उस समय फ़िल्म 'धर्मात्मा' में काम करने की वजह से शोले में काम करने से इन्कार कर दिया। 'शोले' के कहानीकार सलीम ख़ान की सिफारिश पर रमेश सिप्पी ने अमजद ख़ान को गब्बर सिंह का किरदार निभाने का अवसर दिया। जब सलीम ख़ान ने अमजद ख़ान से फ़िल्म 'शोले' में गब्बर सिंह का किरदार निभाने को कहा तो पहले तो अमजद ख़ान घबरा से गये, लेकिन बाद में उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और चंबल के डाकुओं पर बनी किताब 'अभिशप्त चंबल' का बारीकी से अध्ययन करना शुरू किया। बाद में जब फ़िल्म 'शोले' प्रदर्शित हुई तो अमजद ख़ान का निभाया किरदार गब्बर सिंह दर्शकों में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे-बगाहे उनकी आवाज़ और चालढाल की नकल करने लगे।[1]

कॅरियर

अपने 16 साल के फ़िल्मी कॅरियर में अमजद ख़ान ने लगभग 130 फ़िल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फ़िल्में 'आखिरी गोली', 'हम किसी से कम नहीं', 'चक्कर पे चक्कर', 'लावारिस', 'गंगा की सौगंध', 'बेसर्म', 'अपना खून', 'देश परदेश', 'कसमे वादे', 'क़ानून की पुकार', 'मुक्कद्दर का सिकंदर', 'राम कसम', 'सरकारी मेहमान', 'आत्माराम', 'दो शिकारी', 'सुहाग', 'द ग्रेट गैम्बलर', 'इंकार', 'यारी दुश्मनी', 'बरसात की एक रात', 'खून का रिश्ता', 'जीवा', 'हिम्मतवाला', 'सरदार', 'उत्सव' आदि है, जिसमें उन्होंने शानदार अभिनय किया। अमजद जी अपने काम के प्रति बेहद गम्भीर व ईमानदार थे। परदे पर वे जितने खूंखार और खतरनाक इंसानों के पात्र निभाते थे, उतने ही वे वास्तविक जीवन और निजी जीवन में एक भले हँसने-हँसाने और कोमल दिल वाले इंसान थे। फ़िल्म 'शोले' की सफलता के बाद अमजद ख़ान ने बहुत-सी हिंदी फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका की। 70 से 80 और फिर 90 के दशक में उनकी लोकप्रियता बरक़रार रही। उन्होंने डाकू के अलावा अपराधियों के आका, चोरों के सरदार और हत्यारों के पात्र निभाए।

शोले के एक दृश्य में गब्बर सिंह (अमजद ख़ान)

प्रेम प्रसंग

यह बात कम लोगों को पता है कि अमजद ख़ान उस कल्पना अय्यर को प्यार करते थे, जिसने तमाम फ़िल्मों में बेबस-बेगुनाह नायिकाओं पर बेपनाह जुल्म ढाए। भारी डील-डौल वाले गोरे-चिट्टे अमजद और दुबली-पतली इकहरे बदन की सांवली कल्पना अय्यर में देखने-सुनने में खासा अंतर था, लेकिन दोनों में एक गुण समान था। दरअसल, दोनों रुपहले पर्दे पर भोले-भाले निर्दोष पात्रों पर बड़े जुल्म ढाते थे। ये दोनों लोगों की वाहवाही नहीं, हमेशा उनकी हाय बटोरते थे। अमजद ख़ान की प्रेमिका कल्पना मॉडल थीं और एक मॉडल की मंजिल फ़िल्में ही होती हैं। इसलिए कल्पना ने मशहूर कॉमेडियन आई.एस. जौहर की फ़िल्म 'द किस' में काम करके अपनी अभिनय-यात्रा आरंभ की।[2]

दरियादिल इंसान

पर्दे पर खलनायकी के तेवर दिख़ाने वाले अमजद निजी जीवन में बेहद दरियादिल और शांति प्रिय इंसान थे। अमिताभ बच्चन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि अमजद बहुत दयालु इंसान थे। हमेशा दूसरों की मदद को तैयार रहते थे। यदि फ़िल्म निर्माता के पास पैसे की कमी देखते, तो उसकी मदद कर देते या फिर अपना पारिश्रमिक नहीं लेते थे। उन्हें नए-नए चुटकुले बनाकर सुनाने का बेहद शौक था। अमिताभ को वे अक्सर फोन कर लतीफे सुनाया करते थे।

मृत्यु

एक कार दुर्घटना में अमजद बुरी तरह घायल हो गए। एक फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में लोकेशन पर जा रहे थे। ऐसे समय में अमिताभ बच्चन ने उनकी बहुत मदद की। अमजद ख़ान तेजी से ठीक होने लगे। लेकिन डॉक्टरों की बताई दवा के सेवन से उनका वजन और मोटापा इतनी तेजी से बढ़ा कि वे चलने-फिरने और अभिनय करने में कठिनाई महसूस करने लगे। वैसे अमजद मोटापे की वजह खुद को मानते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि- "फ़िल्म ‘शोले’ की रिलीज के पहले उन्होंने अल्लाह से कहा था कि यदि फ़िल्म सु‍परहिट होती है तो वे फ़िल्मों में काम करना छोड़ देंगे।" फ़िल्म सुपरहिट हुई, लेकिन अमजद ने अपना वादा नहीं निभाते हुए काम करना जारी रखा। ऊपर वाले ने मोटापे के रूप में उन्हें सजा दे दी। इसके अलावा वे चाय के भी शौकीन थे। एक घंटे में दस कप तक वे पी जाते थे। इससे भी वे बीमारियों का शिकार बने। मोटापे के कारण उनके हाथ से कई फ़िल्में फिसलती गई। 27 जुलाई, 1992 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और दहाड़ता गब्बर हमेशा के लिए सो गया। अमजद ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की इमेज के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।[3]

डिम्पल कपाड़िया और राखी अभिनीत फ़िल्म 'रुदाली' अमजद ख़ान की आखिरी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उन्होंने एक मरने की हालात में पहुंचे एक ठाकुर की भूमिका निभाई थी, जिसकी जान निकलते-निकलते नहीं निकलती। ठाकुर यह जानता है कि उसकी मौत पर उसके परिवार के लोग नहीं रोएंगे। इसलिए वह मातम मनाने और रोने के लिए रुपये लेकर रोने वाली रुदाली को बुलाता है। यह अलग बात है कि रुदाली के ठाकुर की मौत पर रोने वाला कोई नहीं था, लेकिन जब अमजद ख़ान की मौत हुई, तो मात्र फ़िल्म इंडस्ट्री ही नहीं, समूचा संसार रोया था, क्योंकि उनकी चर्चित फ़िल्म 'शोले' देश ही नहीं, विदेश में भी सराही गई थी। जिस तरह आज हॉलीवुड की फ़िल्मों की नकल हिंदी फ़िल्मों में हो रही है, 'शोले' के इस गब्बर की नकल तब हॉलीवुड की कई बड़ी फ़िल्मों में देखी गई। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि गब्बर रूपी अमजद ख़ान जरूर मर गया, मगर अमजद रूपी गब्बर न तो मरा है और न ही वह कभी मरेगा। वह तो एक किंवदंती की तरह अमर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जानें कैसे अमजद ख़ान बने गब्बर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जन संदेश। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2016
  2. अमजद की प्रेम कहानी का अंत (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2017।
  3. अमजद ख़ान : धधकते शोलों से उपजा अमजद (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2016

बाहरी कड़ियाँ

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