"अणुव्रत": अवतरणों में अंतर

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'''अणुव्रत''' का अर्थ है 'लघुव्रत'। [[जैन धर्म]] के अनुसार श्रावक अणुव्रतों का पालन करते हैं। महव्रत साधुओं के लिए बनाए जाते हैं। यही अणुव्रत और महव्रत में अंतर है, अन्यथा दोनों समान हैं।<ref>{{cite web |url= http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4|title= अणुव्रत|accessmonthday= 17 मार्च|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>
'''अणुव्रत''' का अर्थ है 'लघुव्रत'। [[जैन धर्म]] के अनुसार श्रावक अणुव्रतों का पालन करते हैं। महव्रत साधुओं के लिए बनाए जाते हैं। यही अणुव्रत और महव्रत में अंतर है, अन्यथा दोनों समान हैं।<ref>{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4|title= अणुव्रत|accessmonthday= 17 मार्च|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>


*अणुव्रत इसलिए कहे जाते हैं कि साधुओं के महव्रतों की अपेक्षा वे लघु होते हैं। महव्रतों में सर्वत्याग की अपेक्षा रखते हुए सूक्ष्मता के साथ व्रतों का पालन होता है, जबकि अणुव्रतों का स्थूलता से पालन किया जाता है। अणुव्रत पाँच होते हैं-
*अणुव्रत इसलिए कहे जाते हैं कि साधुओं के महव्रतों की अपेक्षा वे लघु होते हैं। महव्रतों में सर्वत्याग की अपेक्षा रखते हुए सूक्ष्मता के साथ व्रतों का पालन होता है, जबकि अणुव्रतों का स्थूलता से पालन किया जाता है। अणुव्रत पाँच होते हैं-

12:23, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

अणुव्रत का अर्थ है 'लघुव्रत'। जैन धर्म के अनुसार श्रावक अणुव्रतों का पालन करते हैं। महव्रत साधुओं के लिए बनाए जाते हैं। यही अणुव्रत और महव्रत में अंतर है, अन्यथा दोनों समान हैं।[1]

  • अणुव्रत इसलिए कहे जाते हैं कि साधुओं के महव्रतों की अपेक्षा वे लघु होते हैं। महव्रतों में सर्वत्याग की अपेक्षा रखते हुए सूक्ष्मता के साथ व्रतों का पालन होता है, जबकि अणुव्रतों का स्थूलता से पालन किया जाता है। अणुव्रत पाँच होते हैं-
  1. अहिंसा - जीवों की स्थल हिंसा के त्याग को अहिंसा कहते हैं।
  2. सत्य - राग-द्वेष-युक्त स्थूल असत्य भाषण के त्याग को सत्य कहते हैं।
  3. अस्तेय - बुरे इरादे से स्थूल रूप से दूसरे की वस्तु अपहरण करने के त्याग को अस्तेय कहते हैं।
  4. ब्रह्मचर्य - पर स्त्री का त्याग कर अपनी स्त्री में संतोषभाव रखने को 'ब्रह्मचर्य' कहते हैं।
  5. अपरिग्रह - धन, धान्य आदि वस्तुओं में इच्छा का परिमाण रखते हुए परिग्रह के त्याग को अपरिहार्य कहते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अणुव्रत (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2015।

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