"मंगलौर की सन्धि": अवतरणों में अंतर
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*अंग्रेज़ों ने [[टीपू सुल्तान|टीपू]] को आश्वासन दिया कि वे | *अंग्रेज़ों ने [[टीपू सुल्तान|टीपू]] को आश्वासन दिया कि वे मैसूर के साथ मित्रता बनाये रखेंगे तथा किसी भी संकटकालीन परिस्थिति में उसकी सहायता करेंगे। | ||
*टीपू सुल्तान द्वारा कई युद्धों में हारने के बाद [[मराठा|मराठों]] एवं निज़ाम ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से संधि कर ली थी। ऐसी स्थिति में टीपू ने भी अंग्रेज़ों से संधि का प्रस्ताव किया और चूंकि अंग्रेज़ों को भी टीपू की शक्ति का अहसास हो चुका था, इसलिए छिपे मन से वे भी संधि चाहते थे। दोनों पक्षों में वार्ता मार्च, 1784 में हुई थी और इसी के फलस्वरूप 'मंगलौर की संधि' सम्पन्न हुई। | |||
06:01, 6 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
मंगलौर की सन्धि मार्च, 1784 ई. में अंग्रेज़ों और टीपू सुल्तान के मध्य हुई थी।
संधि की शर्तें
- दोनों ने एक-दूसरे के जीते हुए प्रदेश लौटाने का वचन दिया।
- दोनों पक्ष युद्धबंदियों को रिहा करेंगे।
- टीपू ने मैसूर राज्य में अंग्रेज़ों के व्यापारिक अधिकार को माना।
- अंग्रेज़ों ने टीपू को आश्वासन दिया कि वे मैसूर के साथ मित्रता बनाये रखेंगे तथा किसी भी संकटकालीन परिस्थिति में उसकी सहायता करेंगे।
- टीपू सुल्तान द्वारा कई युद्धों में हारने के बाद मराठों एवं निज़ाम ने अंग्रेज़ों से संधि कर ली थी। ऐसी स्थिति में टीपू ने भी अंग्रेज़ों से संधि का प्रस्ताव किया और चूंकि अंग्रेज़ों को भी टीपू की शक्ति का अहसास हो चुका था, इसलिए छिपे मन से वे भी संधि चाहते थे। दोनों पक्षों में वार्ता मार्च, 1784 में हुई थी और इसी के फलस्वरूप 'मंगलौर की संधि' सम्पन्न हुई।
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