"हेमन्त ऋतु": अवतरणों में अंतर

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'''हेमन्त ऋतु''' [[भारत]] की 6 [[ऋतुएँ|ऋतुओं]] में से एक ऋतु है। [[विक्रमी संवत]] के अनुसार हेमंत ऋतु में [[कार्तिक]], [[अगहन]] और [[पौष]] मास पड़ते हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। [[शीत ऋतु]] दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को [[शिशिर ऋतु|शिशिर]]। दोनों ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है।
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'''हेमन्त ऋतु''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Hemant Season'') [[भारत]] की 6 [[ऋतुएँ|ऋतुओं]] में से एक ऋतु है। [[विक्रमी संवत]] के अनुसार हेमंत ऋतु में [[कार्तिक]], [[अगहन]] और [[पौष]] मास पड़ते हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। [[शीत ऋतु]] दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को [[शिशिर ऋतु|शिशिर]]। दोनों ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है।
==मौसम==
इस ऋतु में मौसम मध्यम शीतल होता है क्योंकि पृथ्वी की सूर्य से दूरी अधिक हो जाने की वजह से तापमान प्रति वर्ष ,कुछ महीनों के लिए कम हो जाता है। यह ऋतु अपने सुहावने एवं लुभावने मध्यम ठंडे मौसम के लिए जानी जाती है। इस कारण से यह ऋतु ‌‌‌सैलानियों को बहुत पसंद होती है। स्वास्थय की दृष्टि से भी यह ऋतु बहुत लाभदायक होती है। इस ऋतु मे गर्म कपड़े पहनना एवं आग के सामने बैठना आदि अच्छा होता है ताकि शरीर को गर्म रखा जा सके। इस ऋतु के कुछ दुष्प्रभाव भी है जैसे- कुछ लोग ठंड सहन न करने के कारण बीमार हो जाते है। [[दीवाली]], [[बिहू]] आदि इस ऋतु मे मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार है। हेमंत ऋतु प्रकृति मे एक आनंद एवं उत्साह भर देती है और चारों और हरियाली ही हरियाली दिखाई देने लगती है। [[आयुर्वेद]] में हेमंत ऋतु को सेहत बनाने की ऋतु कहा गया है। हेमंत में शरीर के दोष शांत स्थिति में होते हैं। अग्नि उच्च होती है इसलिए वर्ष का यह सबसे स्वास्थ्यप्रद मौसम होता है, जिसमें भरपूर ऊर्जा, शरीर की उच्च प्रतिरक्षा शक्ति तथा अग्नि चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज देती है। इस ऋतु में शरीर की तेल मालिश और गर्म जल से स्नान की आवश्यकता महसूस होती है। कसरत और अच्छी मात्रा में खठ्ठा-मीठा और नमकीन खाद्य शरीर की अग्नि को बढ़ाते हैं। हेमंत ऋतु में शीत वायु के लगने से अग्नि ‌‌‌वृद्धि होती है।
==साहित्यिक उल्लेख==
==साहित्यिक उल्लेख==
[[ऋतुसंहार|ऋतुसंहारम्‌]] में महाकवि [[कालिदास]] ने हेमंत ऋतु का वर्णन कुछ यूँ किया है-<br />
[[ऋतुसंहार|ऋतुसंहारम्‌]] में महाकवि [[कालिदास]] ने हेमंत ऋतु का वर्णन कुछ यूँ किया है-<br />
'''नवप्रवालोद्रमसस्यरम्यः प्रफुल्लोध्रः परिपक्वशालिः।'''<br />
'''नवप्रवालोद्रमसस्यरम्यः प्रफुल्लोध्रः परिपक्वशालिः।'''<br />
'''विलीनपद्म प्रपतत्तुषारोः हेमंतकालः समुपागता-यम्‌॥''' <br />
'''विलीनपद्म प्रपतत्तुषारोः हेमंतकालः समुपागता-यम्‌॥''' <br />
अर्थात बीज अंकुरित हो जाते हैं, लोध्र पर फूल आ चुके हैं, [[धान]] पक गया और कटने को तैयार है, लेकिन [[कमल]] नहीं दिखाई देते हैं और स्त्रियों को श्रृंगार के लिए अन्य पुष्पों का उपयोग करना पड़ता है। ओस की बूँदें गिरने लगी हैं और यह समय पूर्व शीतकाल है। महिलाएँ [[चंदन]] का उबटन और सुगंध उपयोग करती हैं। खेत और सरोवर देख लोगों के दिल हर्षित हो जाते हैं।
अर्थात बीज अंकुरित हो जाते हैं, लोध्र पर फूल आ चुके हैं, [[धान]] पक गया और कटने को तैयार है, लेकिन [[कमल]] नहीं दिखाई देते हैं और स्त्रियों को श्रृंगार के लिए अन्य पुष्पों का उपयोग करना पड़ता है। ओस की बूँदें गिरने लगी हैं और यह समय पूर्व शीतकाल है। महिलाएँ [[चंदन]] का उबटन और सुगंध उपयोग करती हैं। खेत और सरोवर देख लोगों के दिल हर्षित हो जाते हैं। [[राजस्थान]] में तो लोक मानस जाड़े की अनेक मधुर कल्पनाओं से सुरूचित साहित्य रचता रहा है। [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] में शीतकाल को सियाला कहते हैं। नायिका सियाले में अकेले नहीं रहना चाहती। वह नायक को परदेश जाने से रोकती है "अकेले मत छोड़ोजी सियाला में।" रचनाकार [[मलिक मुहम्मद जायसी]] ने षट् ऋतु वर्णन खंड में कुछ यूँ कहा है-  
[[राजस्थान]] में तो लोक मानस जाड़े की अनेक मधुर कल्पनाओं से सुरूचित साहित्य रचता रहा है। [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] में शीतकाल को सियाला कहते हैं। नायिका सियाले में अकेले नहीं रहना चाहती। वह नायक को परदेश जाने से रोकती है "अकेले मत छोड़ोजी सियाला में।" रचनाकार [[मलिक मुहम्मद जायसी]] ने षट् ऋतु वर्णन खंड में कुछ यूँ कहा है-  
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ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला।  
ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला।  
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पक्ता भवति..."<br />
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शरद के बाद इस ऋतु में मौसम सुहावना होता है। [[जलवायु]] अच्छी होती है। तेज धूप से कीड़े-मकोड़ों का संहार हो जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उत्तम समय होता है। छः-छः मास के दो [[अयन]] होते हैं। [[दक्षिणायन]] में पावस, शरद और हेमंत ऋतु तथा शिशिर, बसंत तथा ग्रीष्म [[उत्तरायन]] की ऋतुएँ हैं।<ref>{{cite web |url=http://anushactivity.blogspot.in/2015/05/blog-post.html |title=भारत की ऋतुएं |accessmonthday=23 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अनुष एक्टीविटी (ब्लॉग)|language=हिंदी }}</ref>
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==सेहत बनाने की ऋतु==
‌‌‌;पथ्य आहार
इसलिए हेमन्त ऋतु में स्निग्ध घी, तैल आदि से युक्त, अम्ल तथा लवण रस युक्त भोज्य प्रदार्थों का एवं दूध से बने पदार्थों का निरन्तर सेवन करना चाहिए। हेमन्त ऋतु में [[दूध]] तथा उससे बनने वाले पदार्थ, ईंख से बनने वाले पदार्थ गुड़, खाण्ड आदि, ‌‌‌तेल, घृत, नये चावलों का भात, उड़द की दाल एवं उष्ण जल का सेवन करने वाले मनुष्यों की आयु क्षीण नहीं होती अर्थात्‌ वे दीर्घायु तथा स्वस्थ रहते हैं।
;‌‌‌अपथ्य आहार
इस ऋतु में लघु (‌‌‌शीघ्र पचने वाले) तथा वातवर्धक अन्नपान का सेवन नहीं करना चाहिये।
;‌‌‌पथ्य विहार
इस ऋतु में प्रत्येक दिन प्रातः काल तेल की मालिश करें एवं स्निग्ध पदार्थों से पूरे शरीर पर उबटन लगायें। शिर में तेल लगाना चाहिये। कभी-कभी पूरे शरीर से पसीना निकल जाये, इस प्रकार से स्वेदन करना चाहिए। धूप का सेवन करें। गरम मकान या तहखाने में ही निवास करना चाहिए, ताकि शीत न लगे। शीतकाल में वाहन, शयन कक्ष, बैठक कक्ष अथवा भोजन कक्ष चारों ओर से घिरा या ढका हुआ होना चाहिये। शय्या आदि पर ओढ़ने के कम्बल, रजाई होंतथा गरम वस्त्रों को धारण करना चाहिए। यह समय आनन्द प्राप्त करने का है। अतः सभी प्रकार के सुख भोगों की पूर्ति, मात्रा और नियम के अनुसार इस हेमन्त ऋतु में की जा सकती है। लेकिन यह चर्या केवल स्वस्थों के लिए ही है।
;‌‌‌अपथ्य विहार
हवा के तेज झौंके के सामने न रहें, भूखे न रहें अथवा थोड़ा भोजन ना करें। शीतल जल में चीनी मिलाकर घोले हुए सत्तू का सेवन नहीं करें।<ref>{{cite web |url=http://allpaedia.com/%E2%80%8C%E2%80%8C%E2%80%8C%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9/%E2%80%8C%E2%80%8C%E2%80%8C%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6-%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3/11189-%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%8B%E0%A4%A4%E0%A5%81%2C-pre-winter.html |title=हेमन्त ऋतु, Pre-winter |accessmonthday=27 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आलपीडिया|language=हिंदी }}</ref>
==धार्मिक महत्त्व==
==धार्मिक महत्त्व==
हेमंत ऋतु अर्थात् मार्गशीष और पौष मास में वृश्चिक और धनु राशियाँ संक्रमण करती हैं। [[बसंत ऋतु|बसंत]], [[ग्रीष्म ऋतु|ग्रीष्म]] और [[वर्षा ऋतु|वर्षा]] देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। कार्तिक मास में [[करवा चौथ]], [[धनतेरस]], [[रूप चतुर्दशी]], [[दीपावली]], [[गोवर्धन पूजा]], [[भाई दूज]] आदि तीज-त्योहार आते हैं, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होता है।
हेमंत ऋतु अर्थात् मार्गशीष और पौष मास में वृश्चिक और धनु राशियाँ संक्रमण करती हैं। [[बसंत ऋतु|बसंत]], [[ग्रीष्म ऋतु|ग्रीष्म]] और [[वर्षा ऋतु|वर्षा]] देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। कार्तिक मास में [[करवा चौथ]], [[धनतेरस]], [[रूप चतुर्दशी]], [[दीपावली]], [[गोवर्धन पूजा]], [[भाई दूज]] आदि तीज-त्योहार आते हैं, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होता है।

12:09, 27 जनवरी 2018 का अवतरण

हेमन्त ऋतु
हेमन्त ऋतु
हेमन्त ऋतु
विवरण हेमन्त ऋतु भारत की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। विक्रमी संवत के अनुसार हेमंत ऋतु में अगहन और पौष मास पड़ते हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
समय मार्गशीर्ष-पौष (दिसंबर - 15 जनवरी तक)
मौसम इस ऋतु में मौसम मध्यम शीतल होता है क्योंकि पृथ्वी की सूर्य से दूरी अधिक हो जाने की वजह से तापमान प्रति वर्ष, कुछ महीनों के लिए कम हो जाता है। यह ऋतु अपने सुहावने एवं लुभावने मध्यम ठंडे मौसम के लिए जानी जाती है।
विशेष शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर। दोनों ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है।
अन्य जानकारी आयुर्वेद में हेमंत ऋतु को सेहत बनाने की ऋतु कहा गया है। हेमंत में शरीर के दोष शांत स्थिति में होते हैं। अग्नि उच्च होती है इसलिए वर्ष का यह सबसे स्वास्थ्यप्रद मौसम होता है, जिसमें भरपूर ऊर्जा, शरीर की उच्च प्रतिरक्षा शक्ति तथा अग्नि चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज देती है।

हेमन्त ऋतु (अंग्रेज़ी:Hemant Season) भारत की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। विक्रमी संवत के अनुसार हेमंत ऋतु में कार्तिक, अगहन और पौष मास पड़ते हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर। दोनों ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है।

मौसम

इस ऋतु में मौसम मध्यम शीतल होता है क्योंकि पृथ्वी की सूर्य से दूरी अधिक हो जाने की वजह से तापमान प्रति वर्ष ,कुछ महीनों के लिए कम हो जाता है। यह ऋतु अपने सुहावने एवं लुभावने मध्यम ठंडे मौसम के लिए जानी जाती है। इस कारण से यह ऋतु ‌‌‌सैलानियों को बहुत पसंद होती है। स्वास्थय की दृष्टि से भी यह ऋतु बहुत लाभदायक होती है। इस ऋतु मे गर्म कपड़े पहनना एवं आग के सामने बैठना आदि अच्छा होता है ताकि शरीर को गर्म रखा जा सके। इस ऋतु के कुछ दुष्प्रभाव भी है जैसे- कुछ लोग ठंड सहन न करने के कारण बीमार हो जाते है। दीवाली, बिहू आदि इस ऋतु मे मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार है। हेमंत ऋतु प्रकृति मे एक आनंद एवं उत्साह भर देती है और चारों और हरियाली ही हरियाली दिखाई देने लगती है। आयुर्वेद में हेमंत ऋतु को सेहत बनाने की ऋतु कहा गया है। हेमंत में शरीर के दोष शांत स्थिति में होते हैं। अग्नि उच्च होती है इसलिए वर्ष का यह सबसे स्वास्थ्यप्रद मौसम होता है, जिसमें भरपूर ऊर्जा, शरीर की उच्च प्रतिरक्षा शक्ति तथा अग्नि चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज देती है। इस ऋतु में शरीर की तेल मालिश और गर्म जल से स्नान की आवश्यकता महसूस होती है। कसरत और अच्छी मात्रा में खठ्ठा-मीठा और नमकीन खाद्य शरीर की अग्नि को बढ़ाते हैं। हेमंत ऋतु में शीत वायु के लगने से अग्नि ‌‌‌वृद्धि होती है।

साहित्यिक उल्लेख

ऋतुसंहारम्‌ में महाकवि कालिदास ने हेमंत ऋतु का वर्णन कुछ यूँ किया है-
नवप्रवालोद्रमसस्यरम्यः प्रफुल्लोध्रः परिपक्वशालिः।
विलीनपद्म प्रपतत्तुषारोः हेमंतकालः समुपागता-यम्‌॥
अर्थात बीज अंकुरित हो जाते हैं, लोध्र पर फूल आ चुके हैं, धान पक गया और कटने को तैयार है, लेकिन कमल नहीं दिखाई देते हैं और स्त्रियों को श्रृंगार के लिए अन्य पुष्पों का उपयोग करना पड़ता है। ओस की बूँदें गिरने लगी हैं और यह समय पूर्व शीतकाल है। महिलाएँ चंदन का उबटन और सुगंध उपयोग करती हैं। खेत और सरोवर देख लोगों के दिल हर्षित हो जाते हैं। राजस्थान में तो लोक मानस जाड़े की अनेक मधुर कल्पनाओं से सुरूचित साहित्य रचता रहा है। राजस्थानी में शीतकाल को सियाला कहते हैं। नायिका सियाले में अकेले नहीं रहना चाहती। वह नायक को परदेश जाने से रोकती है "अकेले मत छोड़ोजी सियाला में।" रचनाकार मलिक मुहम्मद जायसी ने षट् ऋतु वर्णन खंड में कुछ यूँ कहा है-

ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला।
अगहन पूस सीत सुख-काला॥
धनि औ पिउ महँ सीउ सोहागा।
दुहुँन्ह अंग एकै मिलि लागा।

आयुर्वेद में हेमंत ऋतु को सेहत बनाने की ऋतु कहा गया है। हेमंत में शरीर के दोष शांत स्थिति में होते हैं। अग्नि उच्च होती है इसलिए वर्ष का यह सबसे स्वास्थ्यप्रद मौसम होता है, जिसमें भरपूर ऊर्जा, शरीर की उच्च प्रतिरक्षा शक्ति तथा अग्नि चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज देती है। इस ऋतु में शरीर की तेल मालिश और गर्म जल से स्नान की आवश्यकता महसूस होती है। कसरत और अच्छी मात्रा में खठ्ठा-मीठा और नमकीन खाद्य शरीर की अग्नि को बढ़ाते हैं। हेमंत ऋतु में शीत वायु के लगने से अग्नि वृद्घि होती है। चरक ने कहा है- "शीते शीतानिलस्पर्शसंरुद्घो बलिनां बलीः।
पक्ता भवति..."
शरद के बाद इस ऋतु में मौसम सुहावना होता है। जलवायु अच्छी होती है। तेज धूप से कीड़े-मकोड़ों का संहार हो जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उत्तम समय होता है। छः-छः मास के दो अयन होते हैं। दक्षिणायन में पावस, शरद और हेमंत ऋतु तथा शिशिर, बसंत तथा ग्रीष्म उत्तरायन की ऋतुएँ हैं।[1]

सेहत बनाने की ऋतु

‌‌‌;पथ्य आहार इसलिए हेमन्त ऋतु में स्निग्ध घी, तैल आदि से युक्त, अम्ल तथा लवण रस युक्त भोज्य प्रदार्थों का एवं दूध से बने पदार्थों का निरन्तर सेवन करना चाहिए। हेमन्त ऋतु में दूध तथा उससे बनने वाले पदार्थ, ईंख से बनने वाले पदार्थ गुड़, खाण्ड आदि, ‌‌‌तेल, घृत, नये चावलों का भात, उड़द की दाल एवं उष्ण जल का सेवन करने वाले मनुष्यों की आयु क्षीण नहीं होती अर्थात्‌ वे दीर्घायु तथा स्वस्थ रहते हैं।

‌‌‌अपथ्य आहार

इस ऋतु में लघु (‌‌‌शीघ्र पचने वाले) तथा वातवर्धक अन्नपान का सेवन नहीं करना चाहिये।

‌‌‌पथ्य विहार

इस ऋतु में प्रत्येक दिन प्रातः काल तेल की मालिश करें एवं स्निग्ध पदार्थों से पूरे शरीर पर उबटन लगायें। शिर में तेल लगाना चाहिये। कभी-कभी पूरे शरीर से पसीना निकल जाये, इस प्रकार से स्वेदन करना चाहिए। धूप का सेवन करें। गरम मकान या तहखाने में ही निवास करना चाहिए, ताकि शीत न लगे। शीतकाल में वाहन, शयन कक्ष, बैठक कक्ष अथवा भोजन कक्ष चारों ओर से घिरा या ढका हुआ होना चाहिये। शय्या आदि पर ओढ़ने के कम्बल, रजाई होंतथा गरम वस्त्रों को धारण करना चाहिए। यह समय आनन्द प्राप्त करने का है। अतः सभी प्रकार के सुख भोगों की पूर्ति, मात्रा और नियम के अनुसार इस हेमन्त ऋतु में की जा सकती है। लेकिन यह चर्या केवल स्वस्थों के लिए ही है।

‌‌‌अपथ्य विहार

हवा के तेज झौंके के सामने न रहें, भूखे न रहें अथवा थोड़ा भोजन ना करें। शीतल जल में चीनी मिलाकर घोले हुए सत्तू का सेवन नहीं करें।[2]

धार्मिक महत्त्व

हेमंत ऋतु अर्थात् मार्गशीष और पौष मास में वृश्चिक और धनु राशियाँ संक्रमण करती हैं। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। कार्तिक मास में करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार आते हैं, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होता है। इस माह में उज्जैन में महाकालेश्वर की दो सवारी कार्तिक और दो सवारी अगहन मास में निकलती हैं। कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह होता है और चातुर्मास की समाप्ति होती है, तो बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन भी इसी मास में हो जाता है। अगहन अर्थात् मार्गशीर्ष मास में गीता जयंती, सोमवती अमावस्या के अलावा काल भैरव तथा आताल-पाताल भैरव की सवारी भी निकलती है। पौष मास में हनुमान अष्टमी, पार्श्वनाथ जयंती आदि के अलावा रविवार को सूर्य उपासना का विशेष महत्व है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत की ऋतुएं (हिंदी) अनुष एक्टीविटी (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2018।
  2. हेमन्त ऋतु, Pre-winter (हिंदी) आलपीडिया। अभिगमन तिथि: 27 जनवरी, 2018।
  3. हेमंत की सुंदर ऋतु और धर्म (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख