"कॉर्नवॉलिस कोड": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''कॉर्नवॉलिस कोड''' का निर्माण लॉर्ड कॉर्नवॉलिस (1786-1793...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब") |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
*बाद में इसी के आधार पर [[बंगाल]] और सम्पूर्ण [[भारत]] में सिविल सेवा की स्थापना हुई। | *बाद में इसी के आधार पर [[बंगाल]] और सम्पूर्ण [[भारत]] में सिविल सेवा की स्थापना हुई। | ||
*इस कोड का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसके अंतर्गत [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की सभी उच्च सेवाओं व उच्च पदों से भारतियों को पूर्णत: वंचित कर दिया गया। | *इस कोड का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसके अंतर्गत [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की सभी उच्च सेवाओं व उच्च पदों से भारतियों को पूर्णत: वंचित कर दिया गया। | ||
*ये सेवाएँ पूर्णरूप से यूरोपीयों के लिए सुरक्षित कर दिये जाने से भारत जैसे | *ये सेवाएँ पूर्णरूप से यूरोपीयों के लिए सुरक्षित कर दिये जाने से भारत जैसे ग़रीब देश के लिए बहुत ख़र्चीली साबित हुई। | ||
*यही नहीं, भारत जैसे विशाल देश के लिए अधिकारियों की संख्या भी अत्यन्त न्यून रखी गई। | *यही नहीं, भारत जैसे विशाल देश के लिए अधिकारियों की संख्या भी अत्यन्त न्यून रखी गई। | ||
09:17, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
कॉर्नवॉलिस कोड का निर्माण लॉर्ड कॉर्नवॉलिस (1786-1793 ई.) ने मई, 1793 ई. में करवाया था। यह कोड ‘शक्तियों के पृथकीकरण’ सिद्धान्त पर आधारित था। लॉर्ड कॉर्नवॉलिस के समय यह कोड सर जॉर्ज बार्लो (1805-1807 ई.) द्वारा तैयार किया गया, जो बाद में कॉर्नवॉलिस की मृत्यु के बाद कार्यकारी गवर्नर-जनरल बना।
- कॉर्नवॉलिस कोड उन सभी प्रशासकीय सुधारों पर आधारित था, जो लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने अपने शासन काल के दौरान किये थे।
- बाद में इसी के आधार पर बंगाल और सम्पूर्ण भारत में सिविल सेवा की स्थापना हुई।
- इस कोड का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसके अंतर्गत ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सभी उच्च सेवाओं व उच्च पदों से भारतियों को पूर्णत: वंचित कर दिया गया।
- ये सेवाएँ पूर्णरूप से यूरोपीयों के लिए सुरक्षित कर दिये जाने से भारत जैसे ग़रीब देश के लिए बहुत ख़र्चीली साबित हुई।
- यही नहीं, भारत जैसे विशाल देश के लिए अधिकारियों की संख्या भी अत्यन्त न्यून रखी गई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 90 |
संबंधित लेख