"शालभंजिका": अवतरणों में अंतर

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'''शालभंजिका''' पत्थर से बनी एक महिला की दुर्लभ व विशिष्ट मूर्ति है, जो त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि ग्यारसपुर में पाई गई यह मूर्ति 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच की है। इस उत्कृष्ट मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह जंगल की देवी की है। यह प्रतिमा [[ग्वालियर]] के 'गूजरी महल संग्रहालय' में रखी हुई है। 'ग्यारसपुर लेडी' के नाम से मशहूर इस बेशकीमती प्रतिमा को कड़ी सुरक्षा में रखना पड़ता है, क्योंकि इस पर कई अंतरराष्ट्रीय तस्करों की निगाहें लंबे समय से लगी हुई हैं। शालभंजिका प्रतिमा की तीन ऐसी विशेषताएं हैं, जिनके कारण दुनिया भर में उसकी ख्याति है और उसकी कीमत अनमोल है।
'''शालभंजिका''' पत्थर से बनी एक महिला की दुर्लभ व विशिष्ट मूर्ति है, जो त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि ग्यारसपुर में पाई गई यह मूर्ति 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच की है। इस उत्कृष्ट मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह जंगल की देवी की है। यह प्रतिमा [[ग्वालियर]] के 'गूजरी महल संग्रहालय' में रखी हुई है। 'ग्यारसपुर लेडी' के नाम से मशहूर इस बेशकीमती प्रतिमा को कड़ी सुरक्षा में रखना पड़ता है, क्योंकि इस पर कई अंतरराष्ट्रीय तस्करों की निगाहें लंबे समय से लगी हुई हैं। शालभंजिका प्रतिमा की तीन ऐसी विशेषताएं हैं, जिनके कारण दुनिया भर में उसकी ख्याति है और उसकी कीमत अनमोल है।
==कौन थी शालभंजिका==
==कौन थी शालभंजिका==

09:51, 20 जुलाई 2018 का अवतरण

शालभंजिका
शालभंजिका
शालभंजिका
विवरण 'शालभंजिका' त्रिभंग मुद्रा में खड़ी एक महिला की दुर्लभ और अद्वितीय पत्थर की मूर्ति है। जिसे ग्वालियर के 'गूजरी संग्रहालय' में कड़ी सुरक्षा में रखा गया है।
राज्य मध्य प्रदेश
वर्तमान स्थान गूजरी संग्रहालय, ग्वालियर
निर्माण काल 10वीं और 11वीं शताब्दी
प्राप्ति स्थान ग्यारसपुर गांव, विदिशा
संबंधित लेख गुप्त काल, विदिशा, मध्य प्रदेश का इतिहास, मध्य प्रदेश की संस्कृति
अन्य जानकारी 1989 में शालभंजिका की प्रतिमा न्यूयॉर्क में एक प्रदर्शनी में रखी गई थी। उस वक्त इसका एक करोड़ रुपए का बीमा करवाया गया था।

शालभंजिका पत्थर से बनी एक महिला की दुर्लभ व विशिष्ट मूर्ति है, जो त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि ग्यारसपुर में पाई गई यह मूर्ति 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच की है। इस उत्कृष्ट मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह जंगल की देवी की है। यह प्रतिमा ग्वालियर के 'गूजरी महल संग्रहालय' में रखी हुई है। 'ग्यारसपुर लेडी' के नाम से मशहूर इस बेशकीमती प्रतिमा को कड़ी सुरक्षा में रखना पड़ता है, क्योंकि इस पर कई अंतरराष्ट्रीय तस्करों की निगाहें लंबे समय से लगी हुई हैं। शालभंजिका प्रतिमा की तीन ऐसी विशेषताएं हैं, जिनके कारण दुनिया भर में उसकी ख्याति है और उसकी कीमत अनमोल है।

कौन थी शालभंजिका

  • गुप्त काल में एक प्रथा थी कि गांव की सुंदर लड़की अधोवस्त्र पहनकर शाल के पेड़ को पैर से छूती थी। उस समय पूरा गांव एक उत्सव मनाता था।
  • उसी समय गांव की सुंदर लड़कियाँ जीरो फिगर रखकर इस उत्सव में आती थीं और इनके रूप का नाम शालभंजिका पड़ गया।
  • जीरो फिगर वाली इसी युवती को किसी कलाकार ने पत्थर की प्रतिमा में ढाल दिया और तब से यह रूप अस्तित्व में है।

विशेषताएँ

शालभंजिका
  1. शालभंजिका की सबसे पहली विशेषता तो यह है कि वह पत्थर की मूर्ति है, फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट का भाव स्पष्ट दिखाई देता है।
  2. दूसरा यह कि 10वीं और 11वीं शताब्दी की इस प्रतिमा में भी वह ऐसे अधोवस्त्र पहने दिखाई देती है कि आज के आधुनिक समाज में भी वह संभव नहीं लगता।
  3. इसके अलावा उसका शरीर सौष्ठव ऐसा है कि देखने वाला उसे देखता ही रह जाता है। इस प्रकार की जीरो फिगर 1200 साल पहले लड़कियां रखती थीं।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • 1989 में शालभंजिका की प्रतिमा न्यूयॉर्क में एक प्रदर्शनी में रखी गई थी। उस वक्त इसका एक करोड़ रुपए का बीमा करवाया गया था। ये मूर्ति मध्य प्रदेश की धरोहर है।
  • ग्यारसपुर की शालभंजिका एक महिला की प्रतिमा है, जो अपने शारीरिक सौंदर्य और मोहक मुस्कान की वजह से कई देशों में सराही जा चुकी है।
  • इसके चेहरे पर अद्वितीय मुस्कान के कारण इसे इंडियन मोनालिसा भी कहा गया है।
  • इसकी कीमत को देखते हुए ग्वालियर के ही एक गैंगस्टर शरमन शिवहरे ने यह धमकी दी थी कि वह इसे महल से चुरा लेगा। तब तक ये प्रतिमा बाहर खुले में ही रखी रहती थी। गैंगस्टर की धमकी के बाद इसे 7 तालों में बंद करके रखा गया।
  • गूजरी महल म्यूजिम में प्रतिमा को कड़ी सुरक्षा में रखा गया है। इस प्रतिमा पर हमेशा पहरा रहता है और चारों ओर से सलाखों वाले केज में सुरक्षित रखा गया है।
  • भारी सुरक्षा की वजह से इसे देखना भी काफी मुश्किल है। इस बारे में पुरातत्त्व विभाग के उप निदेशक कहते हैं कि बेशकीमती और 1000 वर्ष से ज्यादा पुरानी इस प्रतिमा को सुरक्षित रखने के कई जतन करने होते हैं।
  • यह प्रतिमा विदिशा ज़िले के ग्यारसपुर गांव में कई टुकड़ों में खंडित अवस्था में मिली थी।
  • सबसे पहले इस प्रतिमा को 1985 में फ़्राँस की प्रदर्शनी में रखा गया था। उस वक्त इसकी कीमत 60 लाख रुपए आंकी गई थी। इसके बाद कई और देशों में इसे प्रदर्शित किया गया और अब इसकी कीमत करोड़ों में हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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