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05:17, 3 फ़रवरी 2020 का अवतरण
सारे जहाँ से अच्छा या तराना-ए-हिन्दी उर्दू भाषा में लिखी गई देश प्रेम की एक ग़ज़ल है। यह ग़ज़ल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश राज के विरोध का प्रतीक बनी, जिसे आज भी देश-भक्ति के गीत के रूप में भारत में गाया जाता है।
- इस ग़ज़ल को प्रसिद्ध शायर मोहम्मद इक़बाल ने 1905 में लिखा था।
- यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में लिखी गई है और अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों के बीच भाईचारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है।
- सन 1950 के दशक में सितारवादक पण्डित रविशंकर ने इसे सुरबद्ध किया था।
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा।।
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा।। सारे...
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का।
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा।। सारे...
गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ।
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा।। सारे....
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा।। सारे...
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा।। सारे...
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।। सारे...
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।। सारे...
'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा।। सारे...
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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