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'''पंच केदार''' भगवान [[शिव]] से सम्बन्धित पाँच प्रसिद्ध मन्दिरों को कहा जाता है। इन मन्दिरों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की [[पूजा]] की जाती है। [[उत्तराखंड]] के [[गढ़वाल मण्डल|गढ़वाल]] में प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में छिपाए [[हिमालय]] की पर्वत शृंखलाओं के मध्य सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले और अडिग विश्वास के प्रतीक [[केदारनाथ]] और अन्य चार पीठों को 'पंच केदार' के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन पाकर अपने मनोरथ को सिद्ध करते हैं।
'''पंच केदार''' भगवान [[शिव]] से सम्बन्धित पाँच प्रसिद्ध मन्दिरों को कहा जाता है। इन मन्दिरों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की [[पूजा]] की जाती है। [[उत्तराखंड]] के [[गढ़वाल मण्डल|गढ़वाल]] में प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में छिपाए [[हिमालय]] की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले और अडिग विश्वास के प्रतीक [[केदारनाथ]] और अन्य चार पीठों को 'पंच केदार' के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन पाकर अपने मनोरथ को सिद्ध करते हैं।
==पाँच केदार==
==पाँच केदार==
हिन्दुओं में निम्नलिखित पाँच केदार माने गये हैं-
हिन्दुओं में निम्नलिखित पाँच केदार माने गये हैं-

10:35, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

पंच केदार भगवान शिव से सम्बन्धित पाँच प्रसिद्ध मन्दिरों को कहा जाता है। इन मन्दिरों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। उत्तराखंड के गढ़वाल में प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में छिपाए हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले और अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों को 'पंच केदार' के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन पाकर अपने मनोरथ को सिद्ध करते हैं।

पाँच केदार

हिन्दुओं में निम्नलिखित पाँच केदार माने गये हैं-

केदारनाथ धाम

केदारनाथ

गिरिराज हिमालय की 'केदार' नामक चोटी पर अवस्थित है, देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि समुद्र तल से 11746 फीट की ऊंचाई पर केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग है। मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है। इस मन्दिर के निर्माण में भूरे रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि यह भव्य मन्दिर प्राचीन काल में यान्त्रिक साधनों के अभाव में ऐसे दुर्गम स्थल पर उन विशाल पत्थरों को लाकर कैसे स्थापित किया गया होगा? यह भव्य मन्दिर पाण्डवों की शिव भक्ति, उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा उनके बाहुबल का जीता जागता प्रमाण है। मन्दिर में उत्तम प्रकार की कारीगरी की गई है। मन्दिर के ऊपर स्तम्भों में सहारे लकड़ी की छतरी निर्मित है, जिसके ऊपर ताँबा मढ़ा गया है। मन्दिर का शिखर (कलश) भी ताँबे का ही है, किन्तु उसके ऊपर सोने की पॉलिश की गयी है। मन्दिर के गर्भ गृह में केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है।

तुंगनाथ

तुंगनाथ मन्दिर

तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव की भुजा के रूप में पूजा-अर्चना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है। मन्दिर स्वयं में कई कथाओं को अपने में समेटे हुए है। कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के हाथों काफ़ी बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ, तो इससे भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गये। भगवान शिव को मनाने व प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया। इस मन्दिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। यहाँ भगवान शिव के 'पंचकेदार' रूप में से एक की पूजा की जाती है। ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित इस भव्य मन्दिर को देखने के लिए प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में हज़ारों तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ आते हैं।

रुद्रनाथ

यह मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफ़ा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा होती है। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है। लेकिन बेहद दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहाँ पहुँचने में दो दिन लग जाते हैं, इसलिए वे गोपेश्वर के निकट सगर गांव होकर ही यहाँ जाना पसंद करते हैं।

मद्महेश्वर

चौखंभा शिखर की तलहटी में 3289 मीटर की ऊंचाई स्थित मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता के अनुसार यहाँ का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं।

कल्पेश्वर

कल्पेश्वर मन्दिर

यहाँ भगवान शिव की जटा की पूजी जाती हैं। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान 'कल्पेश्वर' या 'कल्पनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त अन्य कथानुसार देवताओं ने असुरों के अत्याचारों से त्रस्त होकर कल्पस्थल में नारायणस्तुति की और भगवान शिव के दर्शन कर अभय का वरदान प्राप्त किया था। श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 कि.मी. की पैदल दूरी तय कर उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुँचते हैं। गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफ़ा से होकर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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