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थोरियम ऑक्साइड अथवा थोरिया का अत्यधिक उपयोग उद्दीप्त [[गैस]] मैटलों में होता है। इसके अतिरिक्त यह उत्प्रेरक के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। थोरियम के कार्बनिक यौगिक चर्म रोगों की चिकित्सा में काम आए हैं। थोरियम में रेडियधर्मिता का गुण है। इसकी द्रव्यमान संख्या 232 वाला [[समस्थानिक]] न्युट्रॉन आक्रमण द्वारा यूरेनियम 233 में परिणत हो जाता है। यूरेनियम 233 का शिथिल न्यूट्रॉन आक्रमण द्वारा खंडन संभव है और यह परमाणु ऊर्जा संबंधी उपयोगों में काम आ सकता है। इस प्रकार थोरियम भी एक ऊर्जाशील [[पदार्थ]] है। भविष्य में, विशेषकर [[भारत]] में, परमाणु ऊर्जा के लिये इसका बहुत उपयोग संभव है।
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06:32, 16 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

थोरियम (अंग्रेज़ी:Thorium) आवर्त सारणी के 'ऐक्टिनाइड श्रेणी' का प्रथम तत्त्व है। पहले यह चतुर्थ अंतर्वर्ती समूह का अंतिम तत्त्व माना जाता था, परंतु अब यह ज्ञात है कि, जिस प्रकार लैंथेनम (La) तत्त्व के पश्चात्‌ 14 तत्त्वों की लेन्थेनाइड श्रृंखला प्रांरभ होती है, उसी प्रकार ऐक्टीनियम (Ac) के पश्चात्‌ 14 तत्त्वों की दूसरी श्रृंखला आरंभ होती है, जिसे 'एक्टिनाइड श्रृंखला' कहते हैं। थोरियम के अयस्क में केवल एक समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या-232) पाया जाता है, जो इसका सबसे स्थिर समस्थानिक है। परंतु यूरेनियम, रेडियम तथा ऐक्टिनियम अयस्कों में इसके कुछ समस्थानिक सदैव विद्यमान रहते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 227, 228, 230, 231 तथा 234 हैं। इनके अतिरिक्त 224, 225, 226, 229, एवं 233 द्रव्यमान वाले समस्थानिक कृत्रिम उपायों द्वारा निर्मित हुए हैं।

थोरियम के अन्तर्गत थोरियेनाइट, एलैनाइट तथा मोजानाइट खनिजो को शामिल किया जाता है। भारत में थोरियोनाइट का पूर्णतः अभाव है। जबकि अन्य दोनो खनिजों की प्राप्ति भी कम मात्रा में ही होती है।

थोरियम की खोज

थोरियम एक प्रमुख धातु है, जिसकी खोज 1828 ई. में बर्ज़ीलियस ने 'थोराइट' अयस्क से की थी। यद्यपि इसके अनेक अयस्क ज्ञात हैं, परंतु मोनेज़ाइट इसका सबसे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत हैं, जिसमें थोरियम तथा अन्य विरल मृदाओं के फ़ॉस्फ़ेट रहते हैं।

प्राप्ति स्थान

संसार में मोनेज़ाइट का सबसे बड़ा भांडार भारत के केरल राज्य में हैं। बिहार प्रदेश में भी थोरियम अयस्क की उपस्थिति ज्ञात हुई है। थोरियम की प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र है। तमिलनाडु में मदुरै ज़िले का मसूर तालुका क्षेत्र, आंध्र प्रदेश में करीमनगर, मेडक, तीमापुर तथा बसवापुरम क्षेत्र, झारखण्ड में हज़ारीबाग़ा ज़िले के पैटो, बराबार, परसवाद, धाबुआडीह तथा बंसोधरवा क्षेत्र तथा राजस्थान में पाली[1] एवं भीलवाड़ा[2]। इनके अतिरिक्त मोनेज़ाइट अमरीका, आस्ट्रलिया, ब्राज़िल और मलाया में भी प्राप्त है।

थोरियम धातु का निर्माण

मौनेज़ाइट को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की प्रक्रिया कर आंशिक क्षारीय विलयन मिलाने से थोरियम फ़ॉस्फ़ेट का अवक्षेप बनता है। इसको सल्फ्यूरिक या हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुलाकर फिर फ़ॉस्फ़ेट अवक्षिप्त करते हैं। इस क्रिया को दोहराने पर थोरियम का शुद्ध फॉस्फेट मिलता है। थोरियम क्लोराइड को सोडियम के साथ निर्वात में गरम करने से थोरियम धातु मिलती है। थोरियम आयोडाइड के वाष्प को गरम टंग्स्टन तंतु पर प्रवाहित करने से, या थोरियम ऑक्साइड (ThO2) पर कैल्शियम की प्रक्रिया द्वारा भी, थोरियम धातु प्राप्त हो सकती है।

उपयोग

थोरियम ऑक्साइड अथवा थोरिया का अत्यधिक उपयोग उद्दीप्त गैस मैटलों में होता है। इसके अतिरिक्त यह उत्प्रेरक के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। थोरियम के कार्बनिक यौगिक चर्म रोगों की चिकित्सा में काम आए हैं। थोरियम में रेडियधर्मिता का गुण है। इसकी द्रव्यमान संख्या 232 वाला समस्थानिक न्युट्रॉन आक्रमण द्वारा यूरेनियम 233 में परिणत हो जाता है। यूरेनियम 233 का शिथिल न्यूट्रॉन आक्रमण द्वारा खंडन संभव है और यह परमाणु ऊर्जा संबंधी उपयोगों में काम आ सकता है। इस प्रकार थोरियम भी एक ऊर्जाशील पदार्थ है। भविष्य में, विशेषकर भारत में, परमाणु ऊर्जा के लिये इसका बहुत उपयोग संभव है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भदावन तथा भीलवाड़ा क्षेत्र
  2. सरदारपुरा क्षेत्र

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