"इण्डियन एसोसिएशन": अवतरणों में अंतर

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*'''इण्डियन एसोसिएशन''' की स्थापना [[जुलाई]] [[1876]] ई. में [[कलकत्ता]] में हुई थी।
*'''इण्डियन एसोसिएशन''' की स्थापना [[जुलाई]], [[1876]] ई. में [[कलकत्ता]] में हुई थी। इस एसोसिएशन की स्थापना [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] ने की थी, जो उस समय उग्रवादी नेता समझे जाते थे।<br />
*इस एसोसिएशन की स्थापना [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] ने की थी, जो उस समय उग्रवादी नेता समझे जाते थे।
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*इसका उद्देश्य [[भारत]] में शक्तिशाली जनमत का निर्माण करना तथा समान राजनीतिक हितों और महत्त्वाकांक्षाओं के आधार पर विविध भारतीय जातियों तथा वर्गों का एकीकरण करना था।
*इस एसोसिएशन का उद्देश्य [[भारत]] में शक्तिशाली जनमत का निर्माण करना तथा समान राजनीतिक हितों और महत्त्वाकांक्षाओं के आधार पर विविध भारतीय जातियों तथा वर्गों का एकीकरण करना था।
*अपने जन्मकाल से ही इस एसोसिएशन ने देश के सामने उपस्थित राजनीतिक प्रश्नों पर भारतीय जनमत को संगठित करने तथा अभिव्यक्त करने का प्रयास किया।
*अपने जन्मकाल से ही इस एसोसिएशन ने देश के सामने उपस्थित राजनीतिक प्रश्नों पर भारतीय जनमत को संगठित करने तथा अभिव्यक्त करने का प्रयास किया, परन्तु यह एसोसिएशन वास्तव में [[नरम दल]] वालों का संगठन बनी रही और आज भी इसका यही रूप है।
*परन्तु यह एसोसिएशन वास्तव में [[नरम दल]] वालों का संगठन बनी रहा और आज भी इसका यही रूप है।
*यद्यपि इण्डियन एसोसिएशन के संस्थापक उस समय की भारतीय राजनीति में उग्र विचारों के व्यक्ति माने जाते थे, परंतु एसोसिएशन में सदा नम्र विचारधारा की ही प्रधानता रही।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश|लेखक= लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजपाल एण्ड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=113|url=|ISBN=}}</ref>
 


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  • इस एसोसिएशन का उद्देश्य भारत में शक्तिशाली जनमत का निर्माण करना तथा समान राजनीतिक हितों और महत्त्वाकांक्षाओं के आधार पर विविध भारतीय जातियों तथा वर्गों का एकीकरण करना था।
  • अपने जन्मकाल से ही इस एसोसिएशन ने देश के सामने उपस्थित राजनीतिक प्रश्नों पर भारतीय जनमत को संगठित करने तथा अभिव्यक्त करने का प्रयास किया, परन्तु यह एसोसिएशन वास्तव में नरम दल वालों का संगठन बनी रही और आज भी इसका यही रूप है।
  • यद्यपि इण्डियन एसोसिएशन के संस्थापक उस समय की भारतीय राजनीति में उग्र विचारों के व्यक्ति माने जाते थे, परंतु एसोसिएशन में सदा नम्र विचारधारा की ही प्रधानता रही।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एण्ड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 113 |

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