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'''तुलसी मुण्डा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tulasi Munda'', जन्म- [[15 जुलाई]], [[1947]]) [[उड़ीसा]] की एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्हें [[पद्म श्री]] ([[2001]]) से सम्मानित किया गया है। तुलसी मुण्डा ने आदिवासी लोगों के बीच साक्षरता के प्रसार के लिए बहुत काम किया। उन्होंने उड़ीसा के खनन क्षेत्र में एक विद्यालय स्थापित करके भविष्य के सैकड़ों आदिवासी बच्चों को शोषित दैनिक श्रमिक बनने से बचाया है।  
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==परिचय==
==परिचय==
तुलसी मुण्डा एक अनपढ़ बुजुर्ग महिला हैं, पर गांव वालों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। बच्चे प्यार और सम्मान से 'दीदी' कहते हैं। गांव वाले उन पर भरोसा करते हैं। खदानों में काम करने वाले बच्चों और गांव वालों को उन्होंने नया जीवन दिया। उड़ीसा के छोटे से गांव सेरेना की तुलसी मुंडा का लोहा आज सरकार भी मानती है। तुलसी मुंडा अनपढ़ हैं पर उन्होंने 100 लोगों को पढ़ाकर एक नई रीति की बनाई है। अनपढ़ होकर भी गांव के बच्चों को शिक्षित कर वे गांव वालों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। सरकार भी उनकी इस प्रतिभा और साहस का लोहा मानती है। [[2011]] में समाज कल्याण के उत्कृष्ट कार्यों के लिए वे ‘उड़ीसा लिविंग लीजेंड अवार्ड' से सम्मानित की गईं।
तुलसी मुण्डा एक अनपढ़ बुजुर्ग महिला हैं, पर गांव वालों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। बच्चे प्यार और सम्मान से 'दीदी' कहते हैं। गांव वाले उन पर भरोसा करते हैं। खदानों में काम करने वाले बच्चों और गांव वालों को उन्होंने नया जीवन दिया। उड़ीसा के छोटे से गांव सेरेना की तुलसी मुंडा का लोहा आज सरकार भी मानती है। तुलसी मुंडा अनपढ़ हैं पर उन्होंने 100 लोगों को पढ़ाकर एक नई रीति की बनाई है। अनपढ़ होकर भी गांव के बच्चों को शिक्षित कर वे गांव वालों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। सरकार भी उनकी इस प्रतिभा और साहस का लोहा मानती है। [[2011]] में समाज कल्याण के उत्कृष्ट कार्यों के लिए वे ‘उड़ीसा लिविंग लीजेंड अवार्ड' से सम्मानित की गईं।
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तुलसी मुंडा ने पहले रात्रि पाली के स्कूल शुरू किए। धीरे-धीरे जब गांव वाले उन पर भरोसा करने लगे और बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे, तो उन्होंने दिन में स्कूल चलाया। इसके बाद तुलसी मुंडा की सबसे बड़ी समस्या थी पैसों की। उन्होंने इसे भी चुनौतीपूर्ण तरीके से हल किया। उन्होंने पैसों की समस्या हल करने के लिए मूढ़ी और सब्जियां बेचनी शुरू की। धीरे-धीरे गांव वाले भी उनकी मदद के लिए आगे आने लगे।
तुलसी मुंडा ने पहले रात्रि पाली के स्कूल शुरू किए। धीरे-धीरे जब गांव वाले उन पर भरोसा करने लगे और बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे, तो उन्होंने दिन में स्कूल चलाया। इसके बाद तुलसी मुंडा की सबसे बड़ी समस्या थी पैसों की। उन्होंने इसे भी चुनौतीपूर्ण तरीके से हल किया। उन्होंने पैसों की समस्या हल करने के लिए मूढ़ी और सब्जियां बेचनी शुरू की। धीरे-धीरे गांव वाले भी उनकी मदद के लिए आगे आने लगे।
==स्कूल की स्थापना==
==स्कूल की स्थापना==
तुलसी मुंडा ने स्कूल एक महुआ के पेड के नीचे शुरू किया था। पर बच्चों की संख्या बढ़ने पर उन्होंने स्कूल बनाने की योजना बनाई। इसके लिए भी एक बड़ी जरूरत पैसों की होती जो तुलसी मुंडा के पास नहीं थी। अत: उन्होंने गांव वालों को स्वयं ही पत्थर काटकर स्कूल बनाने की प्रेरणा दी। 6 महीने में स्कूल बनकर तैयार हो गया। दो-मंजिला इस स्कूल को ‘आदिवासी विकास समिति स्कूल’ का नाम दिया गया। आज 7 टीचर और 354 स्टूडेंट के साथ स्कूल में 81 बच्चों की क्षमता वाला हॉस्टल भी है। यह स्कूल सिर्फ सेरेना गांव के बच्चों को ही नहीं आसपास के कई अन्य गांवों के लिए प्राथमिक शिक्षा का केंद्र है।
तुलसी मुंडा ने स्कूल एक महुआ के पेड के नीचे शुरू किया था। पर बच्चों की संख्या बढ़ने पर उन्होंने स्कूल बनाने की योजना बनाई। इसके लिए भी एक बड़ी जरूरत पैसों की होती जो तुलसी मुंडा के पास नहीं थी। अत: उन्होंने गांव वालों को स्वयं ही पत्थर काटकर स्कूल बनाने की प्रेरणा दी। 6 महीने में स्कूल बनकर तैयार हो गया। दो-मंजिला इस स्कूल को ‘आदिवासी विकास समिति स्कूल’ का नाम दिया गया। आज 7 टीचर और 354 स्टूडेंट के साथ स्कूल में 81 बच्चों की क्षमता वाला हॉस्टल भी है। यह स्कूल सिर्फ सेरेना गांव के बच्चों को ही नहीं आसपास के कई अन्य गांवों के लिए प्राथमिक शिक्षा का केंद्र है।


तुलसी मुंडा  ने इस स्कूल को बनाने और [[उड़ीसा]] के ग्रामीण आदिवासी इलाके में शिक्षा का अलख जगाने के अपने संकल्प को पूरा किया। आज वे इससे रिटायर हो चुकी हैं पर इनका साहस और संकल्प हर महिला के लिए प्रेरणा है। इन्होंने साबित कर दिया कि महिला अक्षम नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प के साथ वह हर विकट परिस्थिति से लड़कर जीतने में सक्षम है। बस जरूरत है एक दृढ़ इच्छाशक्ति, दृढ़संकल्प की
तुलसी मुंडा  ने इस स्कूल को बनाने और [[उड़ीसा]] के ग्रामीण आदिवासी इलाके में शिक्षा का अलख जगाने के अपने संकल्प को पूरा किया। आज वे इससे रिटायर हो चुकी हैं पर इनका साहस और संकल्प हर महिला के लिए प्रेरणा है। इन्होंने साबित कर दिया कि महिला अक्षम नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प के साथ वह हर विकट परिस्थिति से लड़कर जीतने में सक्षम है। बस जरूरत है एक दृढ़ इच्छाशक्ति, दृढ़संकल्प की

11:14, 15 जनवरी 2022 के समय का अवतरण

तुलसी मुण्डा
तुलसी मुण्डा
तुलसी मुण्डा
पूरा नाम तुलसी मुण्डा
जन्म 15 जुलाई, 1947
जन्म भूमि उड़ीसा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाजसेवा
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2001
प्रसिद्धि सामाजिक कार्यकर्ता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी तुलसी मुंडा ने पहले रात्रि पाली के स्कूल शुरू किए। धीरे-धीरे जब गांव वाले उन पर भरोसा करने लगे और बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे, तो उन्होंने दिन में स्कूल चलाया।

तुलसी मुण्डा (अंग्रेज़ी: Tulasi Munda, जन्म- 15 जुलाई, 1947) उड़ीसा की एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्हें पद्म श्री (2001) से सम्मानित किया गया है। तुलसी मुण्डा ने आदिवासी लोगों के बीच साक्षरता के प्रसार के लिए बहुत काम किया। उन्होंने उड़ीसा के खनन क्षेत्र में एक विद्यालय स्थापित करके भविष्य के सैकड़ों आदिवासी बच्चों को शोषित दैनिक श्रमिक बनने से बचाया है।

परिचय

तुलसी मुण्डा एक अनपढ़ बुजुर्ग महिला हैं, पर गांव वालों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। बच्चे प्यार और सम्मान से 'दीदी' कहते हैं। गांव वाले उन पर भरोसा करते हैं। खदानों में काम करने वाले बच्चों और गांव वालों को उन्होंने नया जीवन दिया। उड़ीसा के छोटे से गांव सेरेना की तुलसी मुंडा का लोहा आज सरकार भी मानती है। तुलसी मुंडा अनपढ़ हैं पर उन्होंने 100 लोगों को पढ़ाकर एक नई रीति की बनाई है। अनपढ़ होकर भी गांव के बच्चों को शिक्षित कर वे गांव वालों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। सरकार भी उनकी इस प्रतिभा और साहस का लोहा मानती है। 2011 में समाज कल्याण के उत्कृष्ट कार्यों के लिए वे ‘उड़ीसा लिविंग लीजेंड अवार्ड' से सम्मानित की गईं।

विनोवा भावे से प्रभावित

उड़ीसा के सेरेना गांव में बच्चे खदानों में काम किया करते थे। तुलसी मुंडा खुद भी खदानों में काम करती थीं। 1963 में तुलसी मुंडा के जीवन में ऐसा मोड़ आया कि समाज को शिक्षित करना उनके जीवन का लक्ष्य बन गया। 1963 में भूदान आंदोलन पदयात्रा के दौरान विनोबा भावे उड़ीसा भी आए। यहां वे तुलसी मुंड़ा से भी मिले। विनोवा भावे के विचारों ने मुंडा को बहुत प्रभावित किया। इन्होंने विनोवा भावे के विचारों का ताउम्र पालन करने का संकल्प लिया। इसी के पश्चात 1964 में तुलसी मुंडा ने अपने पैतृक गांव सेरेंदा में लोगों को शिक्षित करने का कार्य शुरू किया।

लोगों को शिक्षित करने का कार्य

एक आर्थिक विपन्न, स्वयं अशिक्षित महिला के लिए आर्थिक विपन्न, मजदूरी में पूरा दिन गुजारने वाले लोगों को शिक्षित कर पाना इतना आसान नहीं था। तुलसी मुंडा के पास आर्थिक समस्या के साथ सबसे बड़ी समस्या थी। गांव वालों को अपने बच्चों को खदानों में काम करने की जगह पढ़ाई के लिए स्कूल भेजने के लिए तैयार करना था। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। सबसे पहले उन्होंने गांव वालों को बच्चों को पढ़ाने के लिए तैयार किया। उन्होंने गांव वालों को आजादी के समय की क्रांति और उसके विद्वान लोगों के बारे में बताया। हालांकि सुश्री मुंडा खुद भी शिक्षित नहीं थीं और पढ़ाई की बहुत सारी खूबियों के बारे में नहीं जानती थीं। पर अपने शैक्षिक मिशन के लिए उन्होंने अपनी प्रेरणा से लोगों को इसके लिए तैयार किया। गांव वाले पहले तो तैयार नहीं हुए।

तुलसी मुंडा ने पहले रात्रि पाली के स्कूल शुरू किए। धीरे-धीरे जब गांव वाले उन पर भरोसा करने लगे और बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे, तो उन्होंने दिन में स्कूल चलाया। इसके बाद तुलसी मुंडा की सबसे बड़ी समस्या थी पैसों की। उन्होंने इसे भी चुनौतीपूर्ण तरीके से हल किया। उन्होंने पैसों की समस्या हल करने के लिए मूढ़ी और सब्जियां बेचनी शुरू की। धीरे-धीरे गांव वाले भी उनकी मदद के लिए आगे आने लगे।

स्कूल की स्थापना

तुलसी मुंडा ने स्कूल एक महुआ के पेड के नीचे शुरू किया था। पर बच्चों की संख्या बढ़ने पर उन्होंने स्कूल बनाने की योजना बनाई। इसके लिए भी एक बड़ी जरूरत पैसों की होती जो तुलसी मुंडा के पास नहीं थी। अत: उन्होंने गांव वालों को स्वयं ही पत्थर काटकर स्कूल बनाने की प्रेरणा दी। 6 महीने में स्कूल बनकर तैयार हो गया। दो-मंजिला इस स्कूल को ‘आदिवासी विकास समिति स्कूल’ का नाम दिया गया। आज 7 टीचर और 354 स्टूडेंट के साथ स्कूल में 81 बच्चों की क्षमता वाला हॉस्टल भी है। यह स्कूल सिर्फ सेरेना गांव के बच्चों को ही नहीं आसपास के कई अन्य गांवों के लिए प्राथमिक शिक्षा का केंद्र है।

तुलसी मुंडा ने इस स्कूल को बनाने और उड़ीसा के ग्रामीण आदिवासी इलाके में शिक्षा का अलख जगाने के अपने संकल्प को पूरा किया। आज वे इससे रिटायर हो चुकी हैं पर इनका साहस और संकल्प हर महिला के लिए प्रेरणा है। इन्होंने साबित कर दिया कि महिला अक्षम नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प के साथ वह हर विकट परिस्थिति से लड़कर जीतने में सक्षम है। बस जरूरत है एक दृढ़ इच्छाशक्ति, दृढ़संकल्प की

पुरस्कार व सम्मान

  • उत्कृष्ट सामाजिक कार्य के लिए वर्ष 2001 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 2008 में 'कादम्बिनी सम्मान' से सम्मानित हुईं।
  • वर्ष 2011 में उड़ीसा सरकार द्वारा समाज कल्याण के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य के कारण उन्हें 'उड़ीसा लिविंग लीजेंड अवार्ड' दिया गया।
  • सामुदायिक सेवा और सामाजिक उत्थान (नेतृत्व) के लिए वर्ष 2009 में नेशनल लीडरशिप अवॉर्ड दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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