"बसंती देवी (समाज सेविका)": अवतरणों में अंतर
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'''बसंती देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Basanti Devi'') [[उत्तराखंड]] की प्रसिद्ध समाज सेविका हैं। उन्हें सरकार ने [[पद्म श्री]] ([[2022]]) से नवाजा है। उत्तराखंड में पेड़ों को कटने से बचाना हो या [[कोसी नदी]] को नई जिंदगी देना हो, बसंती देवी का योगदान अतुलनीय है। 'चिपको आंदोलन' की धरती से आने वाली बसंती देवी जंगल-जंगल भटकीं और लोगों को समझाया कि पेड़ न काटें नहीं तो नदी सूख जायेगी। धीमे-धीमे ही सही, सूरत बदलनी शुरू हो गई। साल [[2016]] में बसंती देवी को महिलाओं के लिए देश के सर्वोच्च 'नारी शक्ति पुरस्कार' से नवाजा गया था। | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
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06:57, 3 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
बसंती देवी | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बसंती देवी (बहुविकल्पी) |
बसंती देवी (समाज सेविका)
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पूरा नाम | बसंती देवी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | समाज सेवा |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, 2022 नारी शक्ति पुरस्कार, 2016 |
प्रसिद्धि | सामाजिक कार्यकर्ता |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | महिलाओं और पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए बसंती देवी ने 2008 मेें काम शुरू किया। गांवों में महिला प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संपर्क रखकर उन्हेें आत्मनिर्भर बनाया। वह 242 महिला प्रतिनिधि सशक्तीकरण अभियान से जुड़ी हैं। |
अद्यतन | 12:27, 3 फ़रवरी 2022 (IST)
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बसंती देवी (अंग्रेज़ी: Basanti Devi) उत्तराखंड की प्रसिद्ध समाज सेविका हैं। उन्हें सरकार ने पद्म श्री (2022) से नवाजा है। उत्तराखंड में पेड़ों को कटने से बचाना हो या कोसी नदी को नई जिंदगी देना हो, बसंती देवी का योगदान अतुलनीय है। 'चिपको आंदोलन' की धरती से आने वाली बसंती देवी जंगल-जंगल भटकीं और लोगों को समझाया कि पेड़ न काटें नहीं तो नदी सूख जायेगी। धीमे-धीमे ही सही, सूरत बदलनी शुरू हो गई। साल 2016 में बसंती देवी को महिलाओं के लिए देश के सर्वोच्च 'नारी शक्ति पुरस्कार' से नवाजा गया था।
परिचय
मूल रूप से पिथौरागढ़ के कनालीछीना निवासी बसंती देवी सामंत शिक्षा के नाम पर मात्र साक्षर थीं। 12 साल की आयु में उनका विवाह हो गया था। कुछ ही समय के बाद पति की मृत्यु हो गई। दूसरा विवाह करने की बजाय उन्होंने पिता की प्रेरणा से मायके आकर पढ़ाई शुरू कर दी। इंटर पास करने के बाद गांधीवादी समाजसेविका राधा बहन से प्रभावित होकर सदा के लिए कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में आ गईं। आश्रम संचालिका नीमा बहन के अनुसार- 'बसंती बहन कुछ समय से पिथौरागढ़ में ही रह रही हैं।'[1]
पर्यावरण और महिला सशक्तिकरण के लिए काम
बसंती देवी को लोग बसंती बहन के नाम से ही जानते हैं। समाजसेवा की शुरुआत उन्होंने अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक मेें बालबाड़ी कार्यक्रमों के माध्यम से की। यहां उन्होंने महिलाओं के भी संगठन बनाए। 2003 में लक्ष्मी आश्रम की संचालिका राधा बहन ने उन्हें अपने पास बुलाया और कोसी घाटी के गांवों में महिलाओं को संगठित करने की सलाह दी। बसंती बहन के प्रयासों से कौसानी से लेकर लोद तक पूरी घाटी के 200 गांवों में महिलाओं के सशक्त समूह बने हैं।
महिलाओं और पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए उन्होंने 2008 मेें काम शुरू किया। गांवों में महिला प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संपर्क रखकर उन्हेें आत्मनिर्भर बनाया। वह 242 महिला प्रतिनिधि सशक्तीकरण अभियान से जुड़ी हैं। हिमालय ट्रस्ट के संचालक लक्ष्मी आश्रम से जुड़े वरिष्ठ समाजसेवी सदन मिश्रा के अनुसार- 'कोसी बचाओ अभियान सहित महिलाओं और पंचायतों के सशक्तीकरण को बसंती बहन ने अभूतपूर्व काम किए हैं।'
प्रधानमंत्री मोदी की 'मन की बात'
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में उत्तराखंड की सामाजिक कार्यकर्ता और पद्म श्री से सम्मानित बसंती बहन की सराहना करते हुए लोगों को उनसे प्रेरणा लेने की अपील की। पीएम मोदी ने कहा कि बसंती देवी का पूरा जीवन संघर्षों के बीच गुजरा। कम उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया और वो एक आश्रम में रहने लगीं। जहां रहकर उन्होंने नदी बचाने के लिए संघर्ष किया और पर्यावरण संरक्षण के लिए असाधारण योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के शसक्ति करण के लिए भी काम किया।'[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कौन हैं उत्तराखंड की पद्मश्री बसंती देवी, (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 03 फरवरी, 2022।
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