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'''विष्णु वामन शिरवाडकर कुसुमाग्रज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vishnu Vaman Shirwadkar Kusumagraj'', जन्म- [[27 फ़रवरी]], [[1912]]; मृत्यु- [[10 मार्च]], [[1999]]) मराठी कवि, नाटककार, उपन्यासकार और लघु कथाकार थे। उन्होंने स्वतंत्रता, न्याय और वंचितों की मुक्ति के बारे में लिखा। उन्हें मुख्यत: 'कुसुमाग्रज' नाम से जाना जाता था। विष्णु वामन शिरवाडकर ने पांच दशकों के अपने कॅरियर में कविताओं के 16 खंड, तीन [[उपन्यास]], लघु कथाओं के आठ खंड, [[निबंध]] के सात खंड, 18 [[नाटक]] और छ: [[नाटक]] लिखे।'विशाखा' जैसी उनकी रचना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक पीढ़ी को प्रेरित करती है। आज इसे भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों में से एक माना जाता है।
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==परिचय==
==परिचय==
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कुसुमाग्रज
विष्णु वामन शिरवाडकर
विष्णु वामन शिरवाडकर
पूरा नाम विष्णु वामन शिरवाडकर कुसुमाग्रज
अन्य नाम कुसुमाग्रज
जन्म 27 फ़रवरी, 1912
जन्म भूमि नासिक, महाराष्ट्र
मृत्यु 10 मार्च, 1999
मृत्यु स्थान नासिक, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र मराठी साहित्य
भाषा मराठी
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, 1991

ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1987
साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1974

प्रसिद्धि मराठी नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1933 में कुसुमाग्रज ने 'ध्रुव मंडल' की स्थापना की और 'नवमनु' नामक एक समाचार पत्र में लिखना शुरू किया। उसी वर्ष उनका पहला कविता संग्रह 'जीवन लहरी' प्रकाशित हुआ।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

विष्णु वामन शिरवाडकर कुसुमाग्रज (अंग्रेज़ी: Vishnu Vaman Shirwadkar Kusumagraj, जन्म- 27 फ़रवरी, 1912; मृत्यु- 10 मार्च, 1999) मराठी कवि, नाटककार, उपन्यासकार और लघु कथाकार थे। उन्होंने स्वतंत्रता, न्याय और वंचितों की मुक्ति के बारे में लिखा। उन्हें मुख्यत: 'कुसुमाग्रज' नाम से जाना जाता था। विष्णु वामन शिरवाडकर ने पांच दशकों के अपने कॅरियर में कविताओं के 16 खंड, तीन उपन्यास, लघु कथाओं के आठ खंड, निबंध के सात खंड, 18 नाटक और छ: नाटक लिखे।'विशाखा' जैसी उनकी रचना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक पीढ़ी को प्रेरित करती है। आज इसे भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों में से एक माना जाता है।

परिचय

  • विष्णु वामन शिरवाडकर का जन्म 27 फ़रवरी सन 1912 को आज़ादी से पूर्व धार्मिक स्थल नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था।
  • जब वह नासिक के एच.पी.टी. आर्ट्स कॉलेज में थे, तब उनकी कविताएँ रत्नाकर पत्रिका में प्रकाशित हुईं।
  • सन 1932 में 20 साल की उम्र में विष्णु वामन शिरवाडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश की अनुमति देने की मांग का समर्थन करने के लिए एक सत्याग्रह में भाग लिया।
  • सन 1933 में उन्होंने 'ध्रुव मंडल' की स्थापना की और 'नवमनु' नामक एक समाचार पत्र में लिखना शुरू किया। उसी वर्ष उनका पहला कविता संग्रह 'जीवन लहरी' प्रकाशित हुआ।
  • 1934 में विष्णु वामन शिरवाडकर ने नासिक के एच.पी.टी. कॉलेज से मराठी और अंग्रेज़ी भाषाओं में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
  • विष्णु वामन शिरवाडकर 1936 में गोदावरी सिनेटोन लिमिटेड में शामिल हुए और 'सती सुलोचना' फिल्म के लिए पटकथा लिखी। उन्होंने फिल्म में लक्ष्मण के रूप में भी काम किया। हालांकि यह फिल्म सफल नहीं हो पाई।

गहरी सामाजिक समझ

स्वभाव से विष्णु वामन शिरवाडकर एकांत से लेकर अनन्य तक थे। उनके पास एक गहरी सामाजिक समझ थी और उन्होंने जमीनी स्तर की गतिविधियों में खुद को शामिल किए बिना दलितों का समर्थन किया। 1950 में उन्होंने नासिक में 'लोकहितवादी मंडल' की स्थापना की, जो अभी भी अस्तित्व में है। उन्होंने स्कूली छात्रों के लिए कुछ अकादमिक पाठ्य पुस्तकों का संपादन भी किया। उन्होंने 1964 में मडगांव में आयोजित 'अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन' के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

कवि और लेखक

विष्णु वामन शिरवाडकर की प्रसिद्धि एक कवि और लेखक के रूप में अधिक थी। सन 1954 में उन्होंने शेक्सपियर के 'मैकबेथ' को 'राजमुकुट', 'द रॉयल क्राउन' के रूप में मराठी में रूपांतरित किया। इसमें नानासाहेब फाटक और दुर्गा खोटे ने अभिनय किया था। उन्होंने 1960 में 'ओथेलो' को भी रूपांतरित किया। मराठी सिनेमा में गीतकार के रूप में भी काम किया।

पुरस्कार व सम्मान

मराठी साहित्यकार विष्णु वामन शिरवाडकर को कई सम्मान व पुरस्कार भी मिले-

मृत्यु

विष्णु वामन शिरवाडकर जी की मृत्यु 10 मार्च, 1999 को नासिक, महाराष्ट्र में हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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