"सीताराम जिंदल": अवतरणों में अंतर
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'''सीताराम जिंदल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sitaram Jindal'', जन्म- [[1932]], [[हरियाणा]]) परोपकार एवं स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम है। वर्ष [[2024]] में [[भारत सरकार]] ने उन्हें प्रतिष्ठित [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें अभूतपूर्व परोपकारी कार्यों के लिए दिया गया है, खासकर प्राकृतिक चिकित्सा (नेचरक्योर) के क्षेत्र में। दवारहित चिकित्सा में डॉ. सीताराम जिंदल का योगदान और 'जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट' (जेएनआई) की स्थापना ने उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान दिलाया है। | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
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07:04, 7 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
सीताराम जिंदल
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पूरा नाम | सीताराम जिंदल |
जन्म | 1932 |
जन्म भूमि | नालवा गांव, हरियाणा |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | स्वास्थ्य सेवा |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, 2024 |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | पद्म भूषण (2024) |
अन्य जानकारी | डॉ. जिंदल के कार्यों का प्रभाव जेएनआई की चारदीवारी से बाहर भी है। नैचुरोपैथी तथा योग पर जोर देने वाले, स्वास्थ्य को लेकर उनके व्यापक तरीके ने दुनिया भर में लाखों लोगों की जिंदगियों को बदल दिया। |
अद्यतन | 12:34, 7 फ़रवरी 2024 (IST)
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सीताराम जिंदल (अंग्रेज़ी: Sitaram Jindal, जन्म- 1932, हरियाणा) परोपकार एवं स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम है। वर्ष 2024 में भारत सरकार ने उन्हें प्रतिष्ठित पद्म भूषण से सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें अभूतपूर्व परोपकारी कार्यों के लिए दिया गया है, खासकर प्राकृतिक चिकित्सा (नेचरक्योर) के क्षेत्र में। दवारहित चिकित्सा में डॉ. सीताराम जिंदल का योगदान और 'जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट' (जेएनआई) की स्थापना ने उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान दिलाया है।
परिचय
सन 1932 में हरियाणा के नालवा गांव में जन्मे सीताराम जिंदल का प्राकृतिक चिकित्सा का कार्य विश्वविद्यालय के दिनों से ही शुरू हो गया था, जब उन्हें पेट की टीबी से जूझना पड़ा था। ऐसा लग रहा था उनकी समस्या का कोई इलाज नहीं है, फिर उन्होंने एक छोटे-से प्राकृतिक चिकित्सा क्लीनिक में शरण ली। उपवास रखने, एनीमा और दूसरे अपारंपरिक तरीकों से उन्हें आराम महसूस होने लगा। इस बदलावकारी अनुभव की वजह से प्राकृतिक चिकित्सा और योग पर उनका गहरा विश्वास हो गया।[1]
जेएनआई की नींव
एक व्यापक नैचुरोपैथी और योग अस्पताल खोलने की सोच से प्रेरित होकर डॉ. सीताराम जिंदल ने साल 1977-1979 में बेंगलुरू के बाहरी इलाके में एक बड़ी जमीन खरीदी। यहां से जेएनआई की नींव पड़ी, जो कि अनुसंधान विंग से परिपूर्ण था। इसे 'जिंदल एल्युमिनियम लिमिटेड' (जेएएल) से काफी ज्यादा आर्थिक सहायता मिलती थी। इससे डॉ. जिंदल की प्राकृतिक चिकित्सा को एक नई ऊंचाइयों तक ले जाने की प्रतिबद्धता झलकती है। उस समय प्रचलित पारंपरिक प्राकृतिक चिकित्सा से उलट डॉ. सीताराम जिंदल ने इस विज्ञान को आधुनिक तथा नया बनाने के मिशन की शुरूआत की। पुरानी रूढ़ियों में बंधे प्राकृतिक चिकित्सा के तौर-तरीकों में उत्साह तथा विकास की कमी को पहचानते हुए, वे दवारहित थैरेपीज को ऊपर उठाने और आगे बढ़ाने में जुट गए।
सीताराम जिंदल फाउंडेशन
सन 1969 में स्थापित एसजे फाउंडेशन सीताराम जिंदल के परोपकारी अभियानों के लिए एक आर्थिक स्तंभ बन गया। बिना किसी सरकारी या व्यक्तिगत सहयोग के यह पूरी तरह से जेएएल के योगदान पर निर्भर हो गया। डॉ. जिंदल के अथक प्रयासों ने दवारहित तरीके से स्वस्थ होने के क्षेत्र पर काफी गहरा प्रभाव डाला है। वे जेएनआई को अस्थमा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, आर्थराइटिस और कैंसर के कई प्रकारों सहित विभिन्न बीमारियों के उपचार में विशेषज्ञता हासिल करने वाली एक विश्व-स्तरीय फैसिलिटी के तौर पर स्थापित कर रहे हैं। 550 बिस्तरों वाला यह संस्थान उन लोगों के लिए आशा की किरण बन गया है जो कि अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए दवा-रहित विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।[1]
परोपकारी कार्य
जेएनआई के साथ-साथ डॉ. सीताराम जिंदल ने कई सारे परोपकारी कार्यों को पूरा किया है, जो कि सामाजिक उत्थान के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। इसके अंतर्गत एलोपैथी अस्पतालों, स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण, गांवों के विकास से जुड़ी पहल, स्वास्थ्यसेवा एवं शिक्षा के लिए गांवों को गोद लेना और स्वास्थ्यसेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम कर रहे विभिन्न एनजीओ को सहायता पहुंचाना शामिल है। डॉ. जिंदल के लोकोपकारी प्रयास, प्राकृतिक चिकित्सा से भी कहीं आगे है, जिसमें अपने पैतृक गांव नालवा में आठ चैरिटेबल इकाईयों का निर्माण शामिल है। इससे आस-पास के इलाकों के काफी सारे लोगों को लाभ मिल रहा है। गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के माध्यम से सहयोग देना और स्वास्थ्यसेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में सेवारत एनजीओ को आर्थिक मदद पहुंचाना, सामाजिक कार्यों के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
नवाचार
डॉ. जिंदल के कार्यों का प्रभाव जेएनआई की चारदीवारी से बाहर भी है। नैचुरोपैथी तथा योग पर जोर देने वाले, स्वास्थ्य को लेकर उनके व्यापक तरीके ने दुनिया भर में लाखों लोगों की जिंदगियों को बदल दिया। सुरक्षात्मक देखभाल और दवाओं के साइड इफेक्ट के बारे में जानकारी देने की उनकी प्रतिबद्धता, प्राकृतिक चिकित्सका पर उनकी आस्था के अनुरूप है। जिसमें उनका मानना है कि प्राकृतिक चिकित्सा एलोपैथिक अस्पतालों से बोझ को काफी कम कर सकती है। अपने इस पूरे सफर में डॉ. सीताराम जिंदल स्वास्थ्य समस्याओं के लिए काफी सारे नवाचार और थैरेपीज लेकर आए। पेट के सामान्य पैक से लेकर हर्बल टी, स्पाइनल बाथ टब और ठंडा तथा गर्म रिफ्लेक्सोलॉजी ट्रैक, जैसे उनके योगदान ने प्राकृतिक उपचार के खजाने को और भरने का काम किया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 सीताराम जिंदल पद्मभूषण से सम्मानित (हिंदी) instantkhabar.com। अभिगमन तिथि: 20 फ़रवरीaccessyear=2024, {{{accessyear}}}।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख