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'''मुनव्वर राणा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Munawwar Rana'', जन्म- [[26 नवम्बर]], [[1952]]; मृत्यु- [[14 जनवरी]], [[2024]]) भारतीय [[उर्दू]] [[कवि]] थे। उनकी [[कविता]] 'शहदबा' के लिए उन्हें साल [[2014]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। मुनव्वर राणा ने उर्दू और अवधी में लिखा, लेकिन [[फ़ारसी]] और अरबी शब्दावली से परहेज किया जो उर्दू को [[हिंदी]] से अलग करती है। यह उनकी कविता को भारतीय दर्शकों के लिए सुलभ बनाता है और गैर-उर्दू क्षेत्रों में आयोजित कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता को बताता है। मुनव्वर राणा मां पर लिखी शायरियों को लेकर काफी मशहूर थे। माना जाता है कि मां के लिए शेर लिखने में उनको कोई मात नहीं दे सका।
'''मुनव्वर राणा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Munawwar Rana'', जन्म- [[26 नवम्बर]], [[1952]]; मृत्यु- [[14 जनवरी]], [[2024]]) भारतीय [[उर्दू]] [[कवि]] थे। उनकी [[कविता]] 'शहदबा' के लिए उन्हें साल [[2014]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। मुनव्वर राणा ने उर्दू और अवधी में लिखा, लेकिन [[फ़ारसी]] और अरबी शब्दावली से परहेज किया जो उर्दू को [[हिंदी]] से अलग करती है। यह उनकी कविता को भारतीय दर्शकों के लिए सुलभ बनाता है और गैर-उर्दू क्षेत्रों में आयोजित कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता को बताता है। मुनव्वर राणा मां पर लिखी शायरियों को लेकर काफी मशहूर थे। माना जाता है कि मां के लिए शेर लिखने में उनको कोई मात नहीं दे सका।
==परिचय==
==परिचय==
मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर, 1952 को [[उत्तर प्रदेश]] के रायबरेली जिले में हुआ था। वह भले ही उत्तर प्रदेश में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने अधिकतर जीवन [[पश्चिम बंगाल]] के [[कोलकाता]] में बिताया। वह उर्दू के शायर थे, लेकिन वे अपनी शेरों में अवधी और हिंदी शब्दों का प्रयोग प्रमुखता से करते थे, जिस कारण उन्हें भारतीय लोगों की लोकप्रियता मिली। मुनव्वर राणा एक उम्दा [[शैली]] के शायर थे। उनकी कलम के प्रेम का अधिकांश हिस्सा मां के लिए होता था।<ref>{{cite web |url=https://www.jagran.com/uttar-pradesh/lucknow-city-munawwar-rana-died-famous-poet-munawwar-rana-died-in-lucknow-pgi-breathed-his-last-at-age-of71-23629433.html |title=मशहूर शायर मुनव्वर राणा का लखनऊ पीजीआई में निधन|accessmonthday=12 फ़रवरी|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=jagran.com |language=हिंदी}}</ref>
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==पुरस्कार==
==पुरस्कार==
*[[उर्दू साहित्य]] में महारत हासिल करने पर मुनव्वर राणा को [[2012]] में शहीद शोध संस्थान द्वारा 'माटी रतन सम्मान' से नवाजा गया था।
*[[उर्दू साहित्य]] में महारत हासिल करने पर मुनव्वर राणा को [[2012]] में शहीद शोध संस्थान द्वारा 'माटी रतन सम्मान' से नवाजा गया था।
*[[2014]] में [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] मिलने के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया था और कभी भी सरकार की तरफ से कोई अवार्ड न लेने की कसम खा ली थी।
*[[2014]] में [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] मिलने के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया था और कभी भी सरकार की तरफ से कोई अवार्ड न लेने की कसम खा ली थी।
*उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये 2014 में ही '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था।
==माँ पर शायरी==
जब मां पर कोई [[कविता]] कही जाएगी तो मुनव्वर राणा की शायरी जरूर याद आएगी। वह कहते थे<ref>{{cite web |url=https://www.abplive.com/news/india/munawwar-rana-profile-famous-urdu-poet-passes-away-his-poetry-on-mother-make-everyone-emotional-to-emotional-2585800 |title=ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता|accessmonthday=12 फ़रवरी|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink=abplive.com |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>-
<poem>::::उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है, कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है,
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::::किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
::::मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई।</poem>
मुनव्वर राणा देश और विदेशों में आयोजित मुशायरों में शिरकत करते थे और अपनी बुलंद, खनकती आवाज में महफिल में जान फूंक देते थे, लेकिन मां को बयां करती उनकी पंक्तियां लोगों की आंखें नम कर देती थी। वह कहते थे-
<poem>::::ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
::::मां ने आंखें खोल दीं, घर में उजाला हो गया।
::::इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
::::मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
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::::छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको,
::::यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है।
::::किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
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==मृत्यु==
==मृत्यु==
दुनिया के बड़े मशहूर शायर मुनव्वर राणा का [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] के पीजीआई में [[14 जनवरी]], [[2024]] को निधन हुआ। उन्होंने 71 साल की उम्र में करीब 11:00 बजे  अंतिम सांस ली। काफी दिनों से उनकी तबीयत गंभीर बनी हुई थी, जिसके चलते उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया था। मुनव्वर राणा मां पर लिखी शायरियों को लेकर काफी मशहूर थे। माना जाता है कि मां के लिए शेर लिखने में उनको कोई मात नहीं दे सका। मुनव्वर राणा पीजीआई में लंबे समय से डायलिसिस पर थे। फेफड़ों में काफी इंफेक्शन था, जिसकी वजह से उनको वेंटिलेटर पर भी रखा गया था। उन्हें लंबे समय से किडनी की परेशानी थी।
दुनिया के बड़े मशहूर शायर मुनव्वर राणा का [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] के पीजीआई में [[14 जनवरी]], [[2024]] को निधन हुआ। उन्होंने 71 साल की उम्र में करीब 11:00 बजे  अंतिम सांस ली। काफी दिनों से उनकी तबीयत गंभीर बनी हुई थी, जिसके चलते उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया था। मुनव्वर राणा मां पर लिखी शायरियों को लेकर काफी मशहूर थे। माना जाता है कि मां के लिए शेर लिखने में उनको कोई मात नहीं दे सका। मुनव्वर राणा पीजीआई में लंबे समय से डायलिसिस पर थे। फेफड़ों में काफी इंफेक्शन था, जिसकी वजह से उनको वेंटिलेटर पर भी रखा गया था। उन्हें लंबे समय से किडनी की परेशानी थी।
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[https://www.jagran.com/uttar-pradesh/lucknow-city-munawwar-rana-shayari-those-poems-and-shayari-of-munawwar-rana-which-made-munawwar-famous-have-you-also-ever-read-them-23629456.html मुनव्वर राणा के वे शेर और शायरियां, जिन्होंने मुनव्वर को किया मशहूर]
*[https://www.rekhta.org/poets/munawwar-rana/all?lang=hi मुनव्वर राणा]
*[https://www.rekhta.org/poets/munawwar-rana/all?lang=hi मुनव्वर राणा]
*[https://www.prabhatkhabar.com/state/up/famous-poet-munawwar-rana-many-controversial-statement-zzz अपने बयानों की वजह से कई बार चर्चा में रहे मशहूर शायर मुनव्वर राणा]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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10:17, 12 फ़रवरी 2024 का अवतरण

मुनव्वर राणा (अंग्रेज़ी: Munawwar Rana, जन्म- 26 नवम्बर, 1952; मृत्यु- 14 जनवरी, 2024) भारतीय उर्दू कवि थे। उनकी कविता 'शहदबा' के लिए उन्हें साल 2014 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। मुनव्वर राणा ने उर्दू और अवधी में लिखा, लेकिन फ़ारसी और अरबी शब्दावली से परहेज किया जो उर्दू को हिंदी से अलग करती है। यह उनकी कविता को भारतीय दर्शकों के लिए सुलभ बनाता है और गैर-उर्दू क्षेत्रों में आयोजित कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता को बताता है। मुनव्वर राणा मां पर लिखी शायरियों को लेकर काफी मशहूर थे। माना जाता है कि मां के लिए शेर लिखने में उनको कोई मात नहीं दे सका।

परिचय

मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर, 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था। वह भले ही उत्तर प्रदेश में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने अधिकतर जीवन पश्चिम बंगाल के कोलकाता में बिताया। वह उर्दू के शायर थे, लेकिन वे अपनी शेरों में अवधी और हिंदी शब्दों का प्रयोग प्रमुखता से करते थे, जिस कारण उन्हें भारतीय लोगों की लोकप्रियता मिली। मुनव्वर राणा एक उम्दा शैली के शायर थे। उनकी कलम के प्रेम का अधिकांश हिस्सा मां के लिए होता था।[1] मुनव्वर रानणा की मां पर लिखी शायरी हर किसी के दिल में भावनाओं का एक ज्वार ले आती है।

पुरस्कार

  • उर्दू साहित्य में महारत हासिल करने पर मुनव्वर राणा को 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा 'माटी रतन सम्मान' से नवाजा गया था।
  • 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया था और कभी भी सरकार की तरफ से कोई अवार्ड न लेने की कसम खा ली थी।
  • उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये 2014 में ही 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

माँ पर शायरी

जब मां पर कोई कविता कही जाएगी तो मुनव्वर राणा की शायरी जरूर याद आएगी। वह कहते थे[2]-

उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है, कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है,
कल अपने आपको देखा था मां की आंखों में, ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है।

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई।

मुनव्वर राणा देश और विदेशों में आयोजित मुशायरों में शिरकत करते थे और अपनी बुलंद, खनकती आवाज में महफिल में जान फूंक देते थे, लेकिन मां को बयां करती उनकी पंक्तियां लोगों की आंखें नम कर देती थी। वह कहते थे-

ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
मां ने आंखें खोल दीं, घर में उजाला हो गया।

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ

छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको,
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है।

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई।

मृत्यु

दुनिया के बड़े मशहूर शायर मुनव्वर राणा का लखनऊ, उत्तर प्रदेश के पीजीआई में 14 जनवरी, 2024 को निधन हुआ। उन्होंने 71 साल की उम्र में करीब 11:00 बजे अंतिम सांस ली। काफी दिनों से उनकी तबीयत गंभीर बनी हुई थी, जिसके चलते उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया था। मुनव्वर राणा मां पर लिखी शायरियों को लेकर काफी मशहूर थे। माना जाता है कि मां के लिए शेर लिखने में उनको कोई मात नहीं दे सका। मुनव्वर राणा पीजीआई में लंबे समय से डायलिसिस पर थे। फेफड़ों में काफी इंफेक्शन था, जिसकी वजह से उनको वेंटिलेटर पर भी रखा गया था। उन्हें लंबे समय से किडनी की परेशानी थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मशहूर शायर मुनव्वर राणा का लखनऊ पीजीआई में निधन (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2024।
  2. ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2024।

बाहरी कड़ियाँ

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