"जैन जातकर्म": अवतरणों में अंतर
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*पश्चात 'ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रौं ह्रूँ ह्र: नानानुजानुप्रजो भव भव अ सि आ उ सा स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर, पुत्र का मुख देखकर, घी, दूध और मिश्री मिलाकर, सोने की चमची अथवा सोने के किसी बर्तन से उसे पाँच बार पिलाएँ। | *पश्चात 'ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रौं ह्रूँ ह्र: नानानुजानुप्रजो भव भव अ सि आ उ सा स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर, पुत्र का मुख देखकर, घी, दूध और मिश्री मिलाकर, सोने की चमची अथवा सोने के किसी बर्तन से उसे पाँच बार पिलाएँ। | ||
*पश्चात नाल कटवाकर उसे किसी शुद्धभूमि में मोती, रत्न अथवा पीले चावलों के साथ प्रक्षिप्त करा देना चाहिए। | *पश्चात नाल कटवाकर उसे किसी शुद्धभूमि में मोती, रत्न अथवा पीले चावलों के साथ प्रक्षिप्त करा देना चाहिए। | ||
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08:00, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण
- यह संस्कार जैन धर्म के अंतर्गत आता है।
- पुत्र अथवा पुत्री का जन्म होते ही पिता अथवा कुटुम्ब के व्यक्तियों को उचित है कि वे श्रीजिनेन्द्र मन्दिर में तथा अपने दरवाजे पर मधुर वाद्य-बाजे बजवाएँ।
- भिक्षुक जनों को दान तथा पशु-पक्षियों को दाना आदि दें।
- बन्धु वर्गों को वस्त्र-आभूषण, श्रीफल आदि शुभ वस्तुओं को प्रदान करें।
- पश्चात 'ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रौं ह्रूँ ह्र: नानानुजानुप्रजो भव भव अ सि आ उ सा स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर, पुत्र का मुख देखकर, घी, दूध और मिश्री मिलाकर, सोने की चमची अथवा सोने के किसी बर्तन से उसे पाँच बार पिलाएँ।
- पश्चात नाल कटवाकर उसे किसी शुद्धभूमि में मोती, रत्न अथवा पीले चावलों के साथ प्रक्षिप्त करा देना चाहिए।
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