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13:07, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • 1305 ई. में इसकी रचना मेरूतुंगाचार्य ने की ।
  • यह ग्रंथ जैन साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • यह पांच खण्डों में विभाजित है।
  • इन खण्डों से क्रमशः विक्रमांक, सातवाहन मूलराज, मुंज, नृपति भोज, सिद्वराज जयसिंह, कुमार पाल, लक्ष्मण सेन, जयचन्द्र आदि के विषय में जानकारी मिलती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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