"भारतकोश:अभ्यास पन्ना3": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| class="bharattable-green" width="100%"
|-
| valign="top"|
{| width="100%"
|
<quiz display=simple>
{वैदिककालीन लोगों ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया?
|type="()"}
- लोहा
- कांसा
+ तांबा
- सोना
{उत्तरवैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता कौन थे?
|type="()"}
- [[रुद्र]]
- [[विष्णु]]
+ प्रजापति
- पूषन
{[[भारत]] का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' कहाँ से उद्धत है?
|type="()"}
+ [[मुण्डकोपनिषद]] से
- [[कठोपनिषद]] से
- [[छान्दोग्य उपनिषद]] से
- उपर्युक्त में से कोई नहीं
||यह उपनिषद अथर्ववेदीय शौनकीय शाखा से सम्बन्धित है। इसमें अक्षर-ब्रह्म 'ॐ: का विशद विवेचन किया गया है। इसे मन्त्रोपनिषद नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें तीन मुण्डक हैं और प्रत्येक मुण्डक के दो-दो खण्ड हैं तथा कुल चौंसठ मन्त्र हैं। 'मुण्डक' का अर्थ है- मस्तिष्क को अत्यधिक शक्ति प्रदान करने वाला और उसे अविद्या-रूपी अन्धकार से मुक्त करने वाला। इस उपनिषद में महर्षि [[अंगिरा]] ने शौनक को 'परा-अपरा' विद्या का ज्ञान कराया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मुण्डकोपनिषद]]
{उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों की रचना लगभग 1000 ई. पू.-600 ई. पू. के मध्य किन स्थानों पर की गई?
|type="()"}
- सैन्धव घाटी के मैदान में
- आर्यावर्त के मैदान में
+ गंगा के उत्तरी मैदान में
- मध्य एशिया के मैदान में
{'सभा और समिति प्रजापति की दो पुत्रियाँ थीं' का उल्लेख किस ग्रंथ में मिलता है?
|type="()"}
- [[ऋग्वेद]] में
+[[अथर्ववेद]]
- [[यजुर्वेद]] में
- [[सामवेद]] में
||[[चित्र:Atharvaveda.jpg|thumb|150px|अथर्ववेद का आवरण पृष्ठ]] अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस [[वेद]] की रचना सबसे बाद में हुई। अथर्ववेद के दो पाठों (शौनक और पैप्पलद) में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ॠग्वेदीय स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है। अथर्ववेद मे दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर [[ॠग्वेद]] के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान [[देवता|देवों]] को महिमामंडित करता है और [[सोम रस|सोम]] के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है। [[यज्ञ|यज्ञों]] व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था। इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला। इसकी भाषा ॠग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है। अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[अथर्ववेद]]
{उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों में किस आश्रम का उल्लेख नहीं मिलता?
|type="()"}
+ संन्यास
- ब्रह्मचर्य
- गृहस्थ
- वानप्रस्थ
{'गायत्री मंत्र' किस [[वेद]] से लिया गया है?
|type="()"}
+ [[ऋग्वेद]]
- [[सामवेद]]
- [[यजुर्वेद]]
- [[अथर्ववेद]]
{[[वेद|वेदों]] को 'अपौरुषेय' क्यों कहा जाता है?
|type="()"}
+ क्योंकि वेदों की रचना देवताओं द्वारा की गई है
- क्योंकि वेदों की रचना पुरुषों द्वारा की गई है
-क्योंकि वेदों की रचना ऋषियों द्वारा की गई है
- उपर्युक्त में से कोई नहीं
{राष्ट्र एवं राजा शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम कब हुआ?
|type="()"}
- सैन्धव काल में
- ऋग्वैदिक काल में
+उत्तरवैदिक काल में
-महाकाव्य में
{आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में सर्वाधिक मान्य मत कौन-सा है?
|type="()"}
-दक्षिणी रूस
+मध्य एशिया में बैक्ट्रिया
-भारत में सप्तसैन्धव प्रदेश
-मध्य एशिया का पामीर क्षेत्र
{सर्वप्रथम चारों आश्रमों के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है?
|type="()"}
+[[जाबालोपनिषद]] से
-[[छान्दोग्य उपनिषद]] से
-[[मुण्डकोपनिषद]] से
-[[कठोपनिषद]] से
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|thumb|150px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]] [[यजुर्वेद|शुक्ल यजुर्वेद]] के इस उपनिषद में कुल छह खण्ड हैं।
#प्रथम खण्ड में भगवान [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] और ऋषि [[याज्ञवल्क्य]] के संवाद द्वारा प्राण-विद्या का विवेचन किया गया है।
#द्वितीय खण्ड में [[अत्रि]] मुनि और याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा 'अविमुक्त' क्षेत्र को भृकुटियों के मध्य बताया गया है।
#तृतीय खण्ड में ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है।
#चतुर्थ खण्ड में विदेहराज [[जनक]] के द्वारा संन्यास के विषय में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर याज्ञवल्क्य देते हैं।
#पंचम खण्ड में अत्रि मुनि संन्यासी के यज्ञोपवीत, वस्त्र, भिक्षा आदि पर याज्ञवल्क्य से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और
#षष्ठ खण्ड में प्रसिद्ध संन्यासियों आदि के आचरण की समीक्षा की गयी है और दिगम्बर परमंहस का लक्षण बताया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[यजुर्वेद]]
{'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई?
|type="()"}
-ऋग्वैदिक काल में
+उत्तरवैदिक काल में
-सैन्धव काल में
-सूत्रकाल में
{[[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण ग्रंथों]] में सर्वाधिक प्राचीन कौन है?
|type="()"}
-[[ऐतरेय ब्राह्मण]]
+[[शतपथ ब्राह्मण]]
-[[पंचविंश ब्राह्मण]]
-[[गोपथ ब्राह्मण]]
||शतपथ ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद के दोनों शाखाओं काण्व व माध्यन्दिनी से सम्बद्ध है। यह सभी ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके रचियता [[याज्ञवल्क्य]] को माना जाता है। शतपथ के अन्त में उल्लेख है- 'ष्आदिन्यानीमानि शुक्लानि यजूशि बाजसनेयेन याज्ञावल्येन ख्यायन्ते।' शतपथ ब्राह्मण में 14 काण्ड हैं जिसमें विभिन्न प्रकार के [[यज्ञ|यज्ञों]] का पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन मिलता हे। 6 से 10 काण्ड तक को शाण्डिल्य काण्ड कहते हैं। इसमें [[गांधार|गंधार]], कैकय और शाल्व जनपदों की विशेष चर्चा की गई है। अन्य काण्डों में [[आर्यावर्त]] के मध्य तथा पूर्वी भाग कुरू, [[पांचाल|पंचाल]], [[कोसल]], विदेह, सृजन्य आदि जनपदों का उल्लेख हैं। शतपथ ब्राह्मण में वैदिक [[संस्कृत]] के सारस्वत मण्डल से पूर्व की ओर प्रसार होने का संकेत मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कृत्य बताया गया है। [[अश्वमेध यज्ञ]] के सन्दर्भ में अनेक प्राचीन सम्राटों का उल्लेख है, जिसमें [[जनक]], [[दुष्यन्त]] और [[जनमेजय]] का नाम महत्वपूर्ण है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[शतपथ ब्राह्मण]]
{षड्दर्शन का बीजारोपण किस काल में हुआ है?
|type="()"}
-ऋग्वैदिक काल में
+उत्तरवैदिक काल में
-सैन्धव काल में
-सूत्रकाल में
{[[जैन धर्म]] का वास्तविक संस्थापक किसे माना जाता है?
|type="()"}
-[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ]]
+[[महावीर|महावीर स्वामी]]
-[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभदेव]]
-[[नेमिनाथ तीर्थंकर|नेमिनाथ]]
||[[चित्र:Mahaveer.jpg|महावीर<br /> Mahaveer|thumb|150px]] '''वर्धमान महावीर''' या महावीर, [[जैन धर्म]] के प्रवर्तक भगवान श्री ऋषभनाथ (श्री आदिनाथ) की परम्परा में 24वें तीर्थंकर थे। इनका जीवन काल 599 ईसवी ,ईसा पूर्व से 527 ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है। जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर महावीर वर्धमान का जन्म [[वृज्जि]] गणराज्य की [[वैशाली]] नगरी के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ उस गणराज्य के राजा थे। कलिंग नरेश की कन्या यशोदा से महावीर का विवाह हुआ। किंतु 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे [[जैन]] दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[महावीर]]
{जैन परम्परा के अनुसार [[जैन धर्म]] में कुल कितने तीर्थकर हुए हैं?
|type="()"}
-(25)
-(20)
+(24)
-(23)
{'राजगृह' में [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने सर्वाधिक निवास किस ऋतु में किया?
|type="()"}
-ग्रीष्म ऋतु
+वर्षा ऋतु
-शीत ऋतु
-बसन्त ऋतु
{[[जैन धर्म]] के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे जाना जाता है?
|type="()"}
-[[महावीर|महावीर स्वामी]] को
+[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभदेव]]
-[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ|पार्श्वनाथ]] को
-अजितनाथ को
||[[चित्र:Seated-Rishabhanath-Jain-Museum-Mathura-38.jpg|thumb|150px|आसनस्थ ऋषभनाथ<br /> Seated Rishabhanatha<br /> [[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], [[मथुरा]]]]
*इनमें प्रथम तीर्थंकर ॠषभदेव हैं। [[जैन|जैन]] साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।
*युगारंभ में इन्होंने प्रजा को आजीविका के लिए कृषि (खेती), मसि (लिखना-पढ़ना, शिक्षण), असि (रक्षा , हेतु तलवार, लाठी आदि चलाना), शिल्प, वाणिज्य (विभिन्न प्रकार का व्यापार करना) और सेवा- इन षट्कर्मों (जीवनवृतियों) के करने की शिक्षा दी थी, इसलिए इन्हें 'प्रजापति', माता के गर्भ से आने पर हिरण्य (सुवर्ण रत्नों) की वर्षा होने से ‘हिरण्यगर्भ’, विमलसूरि-, दाहिने पैर के तलुए में बैल का चिह्न होने से ‘ॠषभ’, धर्म का प्रवर्तन करने से ‘वृषभ’, शरीर की अधिक ऊँचाई होने से ‘बृहद्देव’ एवं पुरुदेव, सबसे पहले होने से ‘आदिनाथ’ और सबसे पहले मोक्षमार्ग का उपदेश करने से ‘आदिब्रह्मा’ कहा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ॠषभनाथ तीर्थंकर]]
{[[महावीर|महावीर स्वामी]] 'यती' कब कहलाए?
|type="()"}
+घर त्यागने के बाद
-इन्द्रियों को जीतने के बाद
-ज्ञान प्राप्त करने के बाद
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
{'स्यादवान' किस धर्म का मूलाधार था?
|type="()"}
-[[बौद्ध धर्म]]
+[[जैन धर्म]]
-[[वैष्णव धर्म]]
-[[शैव धर्म]]
||[[चित्र:23rd-Tirthankara-Parsvanatha-Jain-Museum-Mathura-9.jpg|150px|thumb|[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ]]<br /> Tirthankara Parsvanatha<br /> [[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], [[मथुरा]] जैन धर्म [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों । 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जैन धर्म]]
{[[महावीर]] के निर्वाण के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ?
|type="()"}
-गोशल
-मल्लिनाथ
+सुधर्मन
-वज्र स्वामी
{आदि जैन ग्रंथों की भाषा क्या थी?
|type="()"}
-[[संस्कृत भाषा]]
+[[प्राकृत भाषा]]
-[[पालि भाषा]]
-अपभ्रंश भाषा
||प्राकृत भाषा भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्व कम होने लगा तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं।
#अर्धमागधी प्राकृत
#पैशाची प्राकृत 
#महाराष्ट्री प्राकृत
#शौरसेनी प्राकृत{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[प्राकृत]]
{[[जैन धर्म]] के पाँचों व्रतों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत कौन-सा है?
|type="()"}
-अमृषा(सत्य)
+अहिंसा
-अचीर्य (अस्तेय)
-अपरिग्रह
{[[जैन धर्म]] का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार किस समुदाय में हुआ?
|type="()"}
-शासक वर्ग
-किसान वर्ग
+व्यापारी वर्ग
-शिल्पी वर्ग
{[[जैन धर्म]] 'श्वेताम्बर' एवं 'दिगम्बर' सम्प्रदायों में कब विभाजित हुआ?
|type="()"}
+[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के समय में
-[[अशोक]] के समय में
-[[कनिष्क]] के समय में
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
||चंद्रगुप्त धर्म में भी रुचि रखता था। यूनानी लेखकों के अनुसार जिन चार अवसरों पर राजा महल से बाहर जाता था, उनमें एक था [[यज्ञ]] करना। कौटिल्य उसका पुरोहित तथा मुख्यमंत्री था। [[हेमचंद्र]] ने भी लिखा है कि वह ब्राह्मणों का आदर करता है। [[मेगस्थनीज़]] ने लिखा है कि चंद्रगुप्त वन में रहने वाले तपस्वियों से परामर्श करता था और उन्हें [[देवता|देवताओं]] की पूजा के लिए नियुक्त करता था। वर्ष में एक बार विद्वानों (ब्राह्मणों) की सभा बुलाई जाती थी ताकि वे जनहित के लिए उचित परामर्श दे सकें। दार्शनिकों से सम्पर्क रखना चंद्रगुप्त की जिज्ञासु प्रवृत्ति का सूचक है। [[जैन]] अनुयायियों के अनुसार जीवन के अन्तिम चरण में चंद्रगुप्त ने [[जैन धर्म]] स्वीकार कर लिया। कहा जाता है कि जब मगध में 12 वर्ष का दुर्भिक्ष पड़ा तो चंद्रगुप्त राज्य त्यागकर जैन आचार्य [[भद्रबाहु]] के साथ [[श्रवण बेल्गोला]] (मैसूर के निकट) चला गया और एक सच्चे जैन भिक्षु की भाँति उसने निराहार समाधिस्थ होकर प्राणत्याग किया (अर्थात केवल्य प्राप्त किया)। 900 ई0 के बाद के अनेक अभिलेख भद्रबाहु और चंद्रगुप्त का एक साथ उल्लेख करते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
{[[जैन धर्म]] के विषय में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
|type="()"}
-जैन धर्म में देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया गया है
+वर्ण व्यवस्था की निन्दा की गई है
-पूर्व जन्म में अर्जित पुण्य और पाप के आधार पर मनुष्य का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है
-जैन धर्म ने अपने को स्पष्टत: ब्राह्मण धर्म से अलग नहीं किया है
{[[ऋग्वेद]] में 'निष्क' शब्द का प्रयोग किसी आभूषण के लिए किया गया है, वह है?
|type="()"}
-कान का बुन्दा
-माथे का टीका
+गले का हार
-हाथ का कंग
{[[अथर्ववेद]] में किन दो संस्थाओं को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है?
|type="()"}
-पंचायत एवं ग्राम सभा
-समिति एवं विरथ
+सभा एवं समिति
-सभा एवं विश्
{विशाखादत्त के [[मुद्राराक्षस]] में वर्णित नाम चन्द्रसिरी (चन्द्र श्री) के रूप में किस राजा की पहचान की गई है?
|type="()"}
-[[अशोक|अशोक महान]]
+[[चंद्रगुप्त मौर्य|चन्द्रगुप्त]]
-[[बिन्दुसार]]
-इनमें से कोई नहीं
{[[महाभारत]] में [[माद्री]], [[देवकी]], भद्रा, [[रोहिणी]], मदिरा, आदि स्त्रियों का वर्णन किस सन्दर्भ में किया है?
|type="()"}
-धार्मिक उपासना के सन्दर्भ में
+पति के साथ [[सती]] होने के सन्दर्भ में
-गणिकाओं के रूप में
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
{पाण्ड्य राज की राजधानी थी?
|type="()"}
-रामनद
-तिन्नेबेल्ली
+मदुरा
-तिरुपति
{भद्रबाहु गुफ़ा अवस्थित है?
|type="()"}
-श्री [[महावीर]] जी में
-[[पावापुरी]] में
+श्रवण बेलगोला में
-बराबर की गुफ़ाओं में
{'इण्डिका' का लेखक था, जिसने इस पुस्तक में विदेशी व्यापार का ज़िक्र किया था?
|type="()"}
-अज्ञात
+एरियन
-स्टौबो
-प्लुटार्क
{| class="bharattable-green" width="100%"
{| class="bharattable-green" width="100%"
|-
|-
पंक्ति 637: पंक्ति 376:
-[[श्वेताश्वतरोपनिषद]]
-[[श्वेताश्वतरोपनिषद]]
+[[बृहदारण्यकोपनिषद]]
+[[बृहदारण्यकोपनिषद]]
||यह उपनिषद शुक्ल [[यजुर्वेद]] की काण्व-शाखा के अन्तर्गत आता है। 'बृहत' (बड़ा) और '[[आरण्यक]]' (वन) दो शब्दों के मेल से इसका यह '[[बृहद आरण्यक|बृहदारण्यक]]' नाम पड़ा है। इसमें छह अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में अनेक '[[ब्राह्मण]]' हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बृहदारण्यकोपनिषद]]}
||यह उपनिषद शुक्ल [[यजुर्वेद]] की काण्व-शाखा के अन्तर्गत आता है। 'बृहत' (बड़ा) और '[[आरण्यक]]' (वन) दो शब्दों के मेल से इसका यह '[[बृहद आरण्यक|बृहदारण्यक]]' नाम पड़ा है। इसमें छह अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में अनेक '[[ब्राह्मण]]' हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बृहदारण्यकोपनिषद]]}}
 
 
{तमिल राष्ट्र में दुर्गा का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है, वे किस तत्व की तमिल देवी थीं?
{तमिल राष्ट्र में दुर्गा का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है, वे किस तत्व की तमिल देवी थीं?
|type="()"}
|type="()"}
पंक्ति 655: पंक्ति 392:
||युइशि लोगों के पाँच राज्यों में अन्यतम का कुएई-शुआंगा था। 25 ई. पू. के लगभग इस राज्य का स्वामी [[कुषाण]] नाम का वीर पुरुष हुआ, जिसके शासन में इस राज्य की बहुत उन्नति हुई। उसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और [[शक]] राज्यों पर भी आक्रमण किए। अनेक ऐतिहासिकों का मत है, कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम कुजुल कदफ़ियस था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी कुषाण वंशी थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण—यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुषाण]]
||युइशि लोगों के पाँच राज्यों में अन्यतम का कुएई-शुआंगा था। 25 ई. पू. के लगभग इस राज्य का स्वामी [[कुषाण]] नाम का वीर पुरुष हुआ, जिसके शासन में इस राज्य की बहुत उन्नति हुई। उसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और [[शक]] राज्यों पर भी आक्रमण किए। अनेक ऐतिहासिकों का मत है, कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम कुजुल कदफ़ियस था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी कुषाण वंशी थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण—यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुषाण]]


=====[[हैदराबाद]] नगर की स्थापना की थी?=====
{[[हैदराबाद]] नगर की स्थापना की थी?
{{Opt|विकल्प 1=इब्राहीम कुत्बशाह ने|विकल्प 2=मुहम्मद कुली कुत्बशाह ने|विकल्प 3=मुहम्मद कुत्बशाह|विकल्प 4=जमशिद कुत्बशा}}{{Ans|विकल्प 1=इब्राहीम कुत्बशाह ने|विकल्प 2='''मुहम्मद कुली कुत्बशाह ने'''{{Check}} |विकल्प 3=मुहम्मद कुत्बशा|विकल्प 4=जमशिद कुत्बशा|विवरण=}}
|type="()"}
=====[[बहमनी वंश|बहमनी साम्राज्य]] के प्रान्तों को क्या कहा जाता था?=====
- इब्राहीम कुत्बशाह ने
{{Opt|विकल्प 1=तराफ़ या अतराफ़|विकल्प 2=सूबा|विकल्प 3=सूबा-ए-लश्कर|विकल्प 4=महामण्डल}}{{Ans|विकल्प 1='''तराफ़ या अतराफ़'''{{Check}} |विकल्प 2=सूबा|विकल्प 3=सूबा-ए-लश्कर|विकल्प 4=महामण्डल|विवरण=}}
+ मुहम्मद कुली कुत्बशाह ने
=====[[औरंगज़ेब]] के शासनकाल में [[जाट]] विद्रोह का नेता कौन था?=====
- मुहम्मद कुत्बशा
{{Opt|विकल्प 1=तिलपत का जमींदार गोकुल सिंह|विकल्प 2=चम्पतराय|विकल्प 3=राजाराम|विकल्प 4=चूड़ामन}}{{Ans|विकल्प 1='''तिलपत का जमींदार [[गोकुल सिंह]]'''{{Check}} |विकल्प 2=चम्पतराय|विकल्प 3=[[राजाराम]]|विकल्प 4=चूड़ामन|विवरण=}}
- जमशिद कुत्बशा


{[[बहमनी वंश|बहमनी साम्राज्य]] के प्रान्तों को क्या कहा जाता था?
|type="()"}
+ तराफ़ या अतराफ़
- सूबा
- सूबा-ए-लश्कर
- महामण्डल


 
{[[औरंगज़ेब]] के शासनकाल में [[जाट]] विद्रोह का नेता कौन था?
 
|type="()"}
 
+ तिलपत का जमींदार [[गोकुल सिंह]]
 
- चम्पतराय
 
- [[राजाराम]]
 
- चूड़ामन
 
 
 
 
 
=====मुस्लिम क़ानून के चार स्रोतों में से तीन क़ुरान, हदीस एवं इज्मा हैं। निम्नलिखित में से कौनसा चौथा स्रोत है?=====
{{Opt|विकल्प 1=ख़म्स|विकल्प 2=क़यास|विकल्प 3=ख़राज|विकल्प 4=आयतें}}{{Ans|विकल्प 1=ख़म्स|विकल्प 2='''क़यास'''{{Check}} |विकल्प 3=ख़राज|विकल्प 4=आयतें|विवरण=}}
====='क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद' का निर्माण किस मुस्लिम शासक ने कराया था?=====
{{Opt|विकल्प 1=शाहजहाँ|विकल्प 2=ग़यासुद्दीन तुग़लक़|विकल्प 3=कुतुबुद्दीन ऐबक|विकल्प 4=फ़ीरोज़ शाह}}{{Ans|विकल्प 1=[[शाहजहाँ]]|विकल्प 2=[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]]|विकल्प 3='''[[कुतुबुद्दीन ऐबक]]'''{{Check}} |विकल्प 4=फ़ीरोज़ शाह|विवरण=*तराइन के युद्ध के बाद मुइज्जुद्दीन ग़ज़नी लौट गया और [[भारत]] के विजित क्षेत्रों का शासन अपने विश्वनीय ग़ुलाम 'क़ुतुबुद्दीन ऐबक' के हाथों में छोड़ दिया।
*पृथ्वीराज के पुत्र को रणथम्भौर सौंप दिया गया जो तेरहवीं शताब्दी में शक्तिशाली चौहानों की राजधानी बना। अगले दो वर्षों में ऐबक ने, ऊपरी दोआब में [[मेरठ]], बरन तथा कोइल (आधुनिक [[अलीगढ़]]) पर क़ब्ज़ा किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुतुबुद्दीन ऐबक]]}}
 
=====[[टीपू सुल्तान]] ने किस क्लब की सदस्यता प्राप्त कर श्रीरंगपट्टनम् में स्वतंत्रता का वृक्ष रोपा था?=====
{{Opt|विकल्प 1=लॉयन्स क्लब|विकल्प 2=फ्रीडम फाइटर्स क्लब|विकल्प 3=जैकोबिन क्लब|विकल्प 4=ईस्ट इण्डिया क्लब}}{{Ans|विकल्प 1=लॉयन्स क्लब|विकल्प 2=फ्रीडम फाइटर्स क्लब|विकल्प 3='''जैकोबिन क्लब'''{{Check}} |विकल्प 4=ईस्ट इण्डिया क्लब|विवरण=}}
=====दादाभाई नौरोजी ने अंग्रेज़ों की किस नीति को 'अनिष्टों का अनिष्ट' कहा था?=====
{{Opt|विकल्प 1=भारतीयों के प्रति अत्याचार की नीति|विकल्प 2=भारतीयों के प्रति शोषण की नीति|विकल्प 3=शौक्षणिक परिवेश में विकृति लाने की नीति|विकल्प 4=भारत से धन निष्कासन की नीति}}{{Ans|विकल्प 1=भारतीयों के प्रति अत्याचार की नीति|विकल्प 2=भारतीयों के प्रति शोषण की नीति|विकल्प 3=शौक्षणिक परिवेश में विकृति लाने की नीति|विकल्प 4='''[[भारत]] से धन निष्कासन की नीति'''{{Check}} |विवरण=}}
=====किस इतिहासकार ने सन् [[1857]] के स्वतंत्रता संग्राम को 'धर्मान्धों का ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध' कहा था?=====
{{Opt|विकल्प 1=बेंजामिन डिजरेली|विकल्प 2=एल. ई. आर. रीज|विकल्प 3=ड्ब्लू. टेलर|विकल्प 4=टी. आर. होम्ज}}{{Ans|विकल्प 1=बेंजामिन डिजरेली|विकल्प 2='''एल. ई. आर. रीज'''{{Check}} |विकल्प 3=ड्ब्लू. टेलर|विकल्प 4=टी. आर. होम्ज|विवरण=}}
=====[[झाँसी]] की [[रानी लक्ष्मीबाई]] की मृत्यु हुई थी?=====
{{Opt|विकल्प 1=(18 जून, 1858)|विकल्प 2=(18 जुलाई, 1857)|विकल्प 3=(25 मई, 1858)|विकल्प 4=(29 अक्टूबर, 1859)}}{{Ans|विकल्प 1='''([[18 जून]], [[1858]])'''{{Check}} |विकल्प 2=([[18 जुलाई]], [[1857]])|विकल्प 3=([[25 मई]], 1858)|विकल्प 4=([[29 अक्टूबर]], [[1859]])|विवरण=}}
====='इण्डिपेन्डेन्स' नामक समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया था?=====
{{Opt|विकल्प 1=पं. जवाहर लाल नेहरु|विकल्प 2=पं. मोती लाल नेहरु|विकल्प 3=शिव प्रसाद गुप्त|विकल्प 4=मदन मोहन मालवीय}}{{Ans|विकल्प 1=[[जवाहर लाल नेहरु|पं. जवाहर लाल नेहरु]]|विकल्प 2='''[[मोतीलाल नेहरू|पं. मोती लाल नेहरु]]'''{{Check}} |विकल्प 3=शिव प्रसाद गुप्त|विकल्प 4=[[मदन मोहन मालवीय]]|विवरण=}}
 
====="[[कांग्रेस]] की स्थापना ब्रिटिश सरकार की एक पूर्व निश्चित गुप्त योजना के अनुसार की गई।" यह किस पुस्तक में लिखा गया है?=====
{{Opt|विकल्प 1=नवजीवन|विकल्प 2=इण्डिया टुडे|विकल्प 3=द पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया|विकल्प 4=गोरा}}{{Ans|विकल्प 1=नवजीवन|विकल्प 2='''इण्डिया टुडे'''{{Check}} |विकल्प 3=द पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया|विकल्प 4=गोरा|विवरण=}}
====='ब्रिटेन की हाउस ऑफ़ लार्डस' ने किस [[अंग्रेज़]] अधिकारी को' [[ब्रिटिश साम्राज्य]] का [[बाघ|शेर]] कहा था?=====
{{Opt|विकल्प 1=सर टॉमस स्मिथ को|विकल्प 2=मि. राइस जनरल को|विकल्प 3=मि. जस्टिस एस्किन को|विकल्प 4=जनरल डायर को}}{{Ans|विकल्प 1=सर टॉमस स्मिथ को|विकल्प 2=मि. राइस जनरल को|विकल्प 3=मि. जस्टिस एस्किन को|विकल्प 4='''[[जनरल डायर]] को'''{{Check}} |विवरण=}}
=====ऐसा कौन सा प्रथम सूफ़ी साधक था, जिसने अपने आपको अनलहक घोषित किया था?=====
{{Opt|विकल्प 1=मंसूर हल्लाज|विकल्प 2=जलालुद्दीन रूमी|विकल्प 3=फ़रीदुद्दीन अत्तार|विकल्प 4=इब्नुल अरबी}}{{Ans|विकल्प 1='''मंसूर हल्लाज'''{{Check}} |विकल्प 2=जलालुद्दीन रूमी|विकल्प 3=फ़रीदुद्दीन अत्तार|विकल्प 4=इब्नुल अरबी|विवरण=}}
=====प्रान्तों की सेना को [[मुग़ल काल|मुग़लकालीन]] [[भारत]] में कहा जाता था?=====
{{Opt|विकल्प 1=हशमे कल्ब|विकल्प 2=हशमे अतराफ़|विकल्प 3=हाजिब|विकल्प 4=हदीस}}{{Ans|विकल्प 1=हशमे कल्ब|विकल्प 2='''हशमे अतराफ़'''{{Check}} |विकल्प 3=हाजिब|विकल्प 4=हदीस|विवरण=}}
=====किस विदेशी ने अपने व्याख्यानों में [[मुग़ल]] सम्राटों का उल्लेख 'अभागे ज़ालिम' के लिए किया था?=====
{{Opt|विकल्प 1=लॉर्ड मैकाले|विकल्प 2=सदरलैण्ड|विकल्प 3=महारानी एलिजाबेथ|विकल्प 4=मि. चैपलैन}}{{Ans|विकल्प 1='''लॉर्ड मैकाले'''{{Check}} |विकल्प 2=सदरलैण्ड|विकल्प 3=महारानी एलिजाबेथ|विकल्प 4=मि. चैपलैन|विवरण=}}
=====[[अगस्त्य|ऋषि अगस्त्य]] के शिष्य 'तोलक्कपियर' ने 'तोलकापियम' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, उसमें वर्णीत विषय था?=====
{{Opt|विकल्प 1=तमिल व्याकरण|विकल्प 2=संस्कृत व्याकरण|विकल्प 3=श्रंगार कविताएँ|विकल्प 4=महापुरुषों का जीवन चरित्र}}{{Ans|विकल्प 1='''[[तमिल भाषा|तमिल]] व्याकरण'''{{Check}} |विकल्प 2=[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] व्याकरण|विकल्प 3=श्रंगार कविताएँ|विकल्प 4=महापुरुषों का जीवन चरित्र|विवरण=तमिल भाषा एक द्रविड़ भाषा है, जिसके विश्वभर में पाँच करोड़ से अधिक बोलने वालों में से लगभग 90% [[भारत]] में रहते हैं और [[तमिलनाडु]] राज्य में केन्द्रित 83 प्रतिशत हैं। यह [[भारत]] की पाँचवी सबसे बड़ी भाषा है, जो देश की लगभग सात प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। मूल रूप से क़रीब 34 लाख तमिल भाषा-भाषी लोग [[श्रीलंका]] में, तीन लाख [[सिंगापुर]] में और दो लाख [[मलेशिया]] में रहते हैं। औपनिवेशिक काल में प्रवास कर गए तमिलभाषी लोगों के वंशज मॉरीशस, फ़िजी और दक्षिण अमेरिका में बस गए हैं, इनकी तमिल दक्षता अलग-अलग है, साथ ही विद्यालयों में औपचारिक अध्ययन की सुविधा में भी भिन्नता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[तमिल भाषा]]}}
 
=====हरविलास शारदा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम जिसे सामान्यतया शारदा अधिनियम कहा जाता है, क्या था?=====
{{Opt|विकल्प 1=विधवा पुनर्विवाह अधिनियम|विकल्प 2=हिन्दू महिला उत्तराधिकारी अधिनियम|विकल्प 3=बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929|विकल्प 4=हिन्दू सिविल विवाह अधिनियम}}{{Ans|विकल्प 1=विधवा पुनर्विवाह अधिनियम|विकल्प 2=हिन्दू महिला उत्तराधिकारी अधिनियम|विकल्प 3='''बाल विवाह निरोधक अधिनियम [[1929]]'''{{Check}} |विकल्प 4=हिन्दू सिविल विवाह अधिनियम|विवरण=}}
=====[[चेन्नई|मद्रास]] में जस्टिस पार्टी आन्दोलन का विलय किसके साथ हुआ?=====
{{Opt|विकल्प 1=सेल्फ रेस्पेक्ट लीग|विकल्प 2=द्रविड़ कड़गम|विकल्प 3=दलित वर्ग लीग|विकल्प 4=उपर्युक्त (1) और (2) दोनों}}{{Ans|विकल्प 1=सेल्फ रेस्पेक्ट लीग|विकल्प 2=द्रविड़ कड़गम|विकल्प 3=दलित वर्ग लीग|विकल्प 4='''उपर्युक्त (1) और (2) दोनों'''{{Check}} |विवरण=}}
=====निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ में सर्वप्रथम पुनर्जन्म के सिद्धान्त का उल्लेख मिलता है?=====
{{Opt|विकल्प 1=ऋग्वेद|विकल्प 2= ऐतरेय ब्राह्मण|विकल्प 3=वृहदारण्यक अपनिषद|विकल्प 4=श्वेताश्वतरोपनिषद}}{{Ans|विकल्प 1=[[ऋग्वेद]]|विकल्प 2=[[ऐतरेय ब्राह्मण]]|विकल्प 3='''[[बृहदारण्यकोपनिषद]]'''{{Check}} |विकल्प 4=[[श्वेताश्वतरोपनिषद]]|विवरण=यह उपनिषद शुक्ल [[यजुर्वेद]] की काण्व-शाखा के अन्तर्गत आता है। 'बृहत' (बड़ा) और '[[आरण्यक]]' (वन) दो शब्दों के मेल से इसका यह '[[बृहद आरण्यक|बृहदारण्यक]]' नाम पड़ा है। इसमें छह अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में अनेक '[[ब्राह्मण]]' हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बृहदारण्यकोपनिषद]]}}
 
=====तमिल राष्ट्र में दुर्गा का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है, वे किस तत्व की तमिल देवी थीं?=====
{{Opt|विकल्प 1=मातृत्व|विकल्प 2=प्रकृति और अर्वरकता|विकल्प 3=युद्ध और विजय|विकल्प 4=पृथ्वी}}{{Ans|विकल्प 1=मातृत्व|विकल्प 2=प्रकृति और अर्वरकता|विकल्प 3='''युद्ध और विजय'''{{Check}} |विकल्प 4=[[पृथ्वी]]|विवरण=}}
=====वह प्रथम भारतीय शासक था, जिसने रोमन मुद्रा प्रणाली के अनुरूप अपने सिक्कों का प्रसारण किया। उसका सम्बन्ध किस साम्राज्य से था?=====
{{Opt|विकल्प 1=शुंग|विकल्प 2=हिन्द-यूनानी|विकल्प 3=कुषाण|विकल्प 4=गुप्त वंशीय}}{{Ans|विकल्प 1=[[शुंग]]|विकल्प 2=हिन्द-यूनानी|विकल्प 3='''[[कुषाण]]'''{{Check}} |विकल्प 4=[[गुप्त वंश|गुप्त वंशीय]]|विवरण=युइशि लोगों के पाँच राज्यों में अन्यतम का कुएई-शुआंगा था। 25 ई. पू. के लगभग इस राज्य का स्वामी [[कुषाण]] नाम का वीर पुरुष हुआ, जिसके शासन में इस राज्य की बहुत उन्नति हुई। उसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और [[शक]] राज्यों पर भी आक्रमण किए। अनेक ऐतिहासिकों का मत है, कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम कुजुल कदफ़ियस था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी कुषाण वंशी थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण—यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुषाण]]}}
 
=====[[हैदराबाद]] नगर की स्थापना की थी?=====
{{Opt|विकल्प 1=इब्राहीम कुत्बशाह ने|विकल्प 2=मुहम्मद कुली कुत्बशाह ने|विकल्प 3=मुहम्मद कुत्बशाह|विकल्प 4=जमशिद कुत्बशा}}{{Ans|विकल्प 1=इब्राहीम कुत्बशाह ने|विकल्प 2='''मुहम्मद कुली कुत्बशाह ने'''{{Check}} |विकल्प 3=मुहम्मद कुत्बशा|विकल्प 4=जमशिद कुत्बशा|विवरण=}}
=====[[बहमनी वंश|बहमनी साम्राज्य]] के प्रान्तों को क्या कहा जाता था?=====
{{Opt|विकल्प 1=तराफ़ या अतराफ़|विकल्प 2=सूबा|विकल्प 3=सूबा-ए-लश्कर|विकल्प 4=महामण्डल}}{{Ans|विकल्प 1='''तराफ़ या अतराफ़'''{{Check}} |विकल्प 2=सूबा|विकल्प 3=सूबा-ए-लश्कर|विकल्प 4=महामण्डल|विवरण=}}
=====[[औरंगज़ेब]] के शासनकाल में [[जाट]] विद्रोह का नेता कौन था?=====
{{Opt|विकल्प 1=तिलपत का जमींदार गोकुल सिंह|विकल्प 2=चम्पतराय|विकल्प 3=राजाराम|विकल्प 4=चूड़ामन}}{{Ans|विकल्प 1='''तिलपत का जमींदार [[गोकुल सिंह]]'''{{Check}} |विकल्प 2=चम्पतराय|विकल्प 3=[[राजाराम]]|विकल्प 4=चूड़ामन|विवरण=}}

08:34, 24 दिसम्बर 2010 का अवतरण

<quiz display=simple>

{वैदिककालीन लोगों ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया?

type="()"}

- लोहा - कांसा + तांबा - सोना

{उत्तरवैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता कौन थे?

type="()"}

- रुद्र - विष्णु + प्रजापति - पूषन

{भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' कहाँ से उद्धत है?

type="()"}

+ मुण्डकोपनिषद से - कठोपनिषद से - छान्दोग्य उपनिषद से - उपर्युक्त में से कोई नहीं

यह उपनिषद अथर्ववेदीय शौनकीय शाखा से सम्बन्धित है। इसमें अक्षर-ब्रह्म 'ॐ: का विशद विवेचन किया गया है। इसे मन्त्रोपनिषद नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें तीन मुण्डक हैं और प्रत्येक मुण्डक के दो-दो खण्ड हैं तथा कुल चौंसठ मन्त्र हैं। 'मुण्डक' का अर्थ है- मस्तिष्क को अत्यधिक शक्ति प्रदान करने वाला और उसे अविद्या-रूपी अन्धकार से मुक्त करने वाला। इस उपनिषद में महर्षि अंगिरा ने शौनक को 'परा-अपरा' विद्या का ज्ञान कराया है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- मुण्डकोपनिषद

{उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों की रचना लगभग 1000 ई. पू.-600 ई. पू. के मध्य किन स्थानों पर की गई?

type="()"}

- सैन्धव घाटी के मैदान में - आर्यावर्त के मैदान में + गंगा के उत्तरी मैदान में - मध्य एशिया के मैदान में

{'सभा और समिति प्रजापति की दो पुत्रियाँ थीं' का उल्लेख किस ग्रंथ में मिलता है?

type="()"}

- ऋग्वेद में +अथर्ववेद - यजुर्वेद में - सामवेद में

अथर्ववेद का आवरण पृष्ठ
अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई। अथर्ववेद के दो पाठों (शौनक और पैप्पलद) में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ॠग्वेदीय स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है। अथर्ववेद मे दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर ॠग्वेद के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान देवों को महिमामंडित करता है और सोम के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है। यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था। इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला। इसकी भाषा ॠग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है। अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- अथर्ववेद

{उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथों में किस आश्रम का उल्लेख नहीं मिलता?

type="()"}

+ संन्यास - ब्रह्मचर्य - गृहस्थ - वानप्रस्थ

{'गायत्री मंत्र' किस वेद से लिया गया है?

type="()"}

+ ऋग्वेद - सामवेद - यजुर्वेद - अथर्ववेद

{वेदों को 'अपौरुषेय' क्यों कहा जाता है?

type="()"}

+ क्योंकि वेदों की रचना देवताओं द्वारा की गई है - क्योंकि वेदों की रचना पुरुषों द्वारा की गई है -क्योंकि वेदों की रचना ऋषियों द्वारा की गई है - उपर्युक्त में से कोई नहीं

{राष्ट्र एवं राजा शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम कब हुआ?

type="()"}

- सैन्धव काल में - ऋग्वैदिक काल में +उत्तरवैदिक काल में -महाकाव्य में

{आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में सर्वाधिक मान्य मत कौन-सा है?

type="()"}

-दक्षिणी रूस +मध्य एशिया में बैक्ट्रिया -भारत में सप्तसैन्धव प्रदेश -मध्य एशिया का पामीर क्षेत्र

{सर्वप्रथम चारों आश्रमों के विषय में जानकारी कहाँ से मिलती है?

type="()"}

+जाबालोपनिषद से -छान्दोग्य उपनिषद से -मुण्डकोपनिषद से -कठोपनिषद से

यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ
शुक्ल यजुर्वेद के इस उपनिषद में कुल छह खण्ड हैं।
  1. प्रथम खण्ड में भगवान बृहस्पति और ऋषि याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा प्राण-विद्या का विवेचन किया गया है।
  2. द्वितीय खण्ड में अत्रि मुनि और याज्ञवल्क्य के संवाद द्वारा 'अविमुक्त' क्षेत्र को भृकुटियों के मध्य बताया गया है।
  3. तृतीय खण्ड में ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है।
  4. चतुर्थ खण्ड में विदेहराज जनक के द्वारा संन्यास के विषय में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर याज्ञवल्क्य देते हैं।
  5. पंचम खण्ड में अत्रि मुनि संन्यासी के यज्ञोपवीत, वस्त्र, भिक्षा आदि पर याज्ञवल्क्य से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और
  6. षष्ठ खण्ड में प्रसिद्ध संन्यासियों आदि के आचरण की समीक्षा की गयी है और दिगम्बर परमंहस का लक्षण बताया गया है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- यजुर्वेद

{'गोत्र' व्यवस्था प्रचलन में कब आई?

type="()"}

-ऋग्वैदिक काल में +उत्तरवैदिक काल में -सैन्धव काल में -सूत्रकाल में

{ब्राह्मण ग्रंथों में सर्वाधिक प्राचीन कौन है?

type="()"}

-ऐतरेय ब्राह्मण +शतपथ ब्राह्मण -पंचविंश ब्राह्मण -गोपथ ब्राह्मण

शतपथ ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद के दोनों शाखाओं काण्व व माध्यन्दिनी से सम्बद्ध है। यह सभी ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके रचियता याज्ञवल्क्य को माना जाता है। शतपथ के अन्त में उल्लेख है- 'ष्आदिन्यानीमानि शुक्लानि यजूशि बाजसनेयेन याज्ञावल्येन ख्यायन्ते।' शतपथ ब्राह्मण में 14 काण्ड हैं जिसमें विभिन्न प्रकार के यज्ञों का पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन मिलता हे। 6 से 10 काण्ड तक को शाण्डिल्य काण्ड कहते हैं। इसमें गंधार, कैकय और शाल्व जनपदों की विशेष चर्चा की गई है। अन्य काण्डों में आर्यावर्त के मध्य तथा पूर्वी भाग कुरू, पंचाल, कोसल, विदेह, सृजन्य आदि जनपदों का उल्लेख हैं। शतपथ ब्राह्मण में वैदिक संस्कृत के सारस्वत मण्डल से पूर्व की ओर प्रसार होने का संकेत मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कृत्य बताया गया है। अश्वमेध यज्ञ के सन्दर्भ में अनेक प्राचीन सम्राटों का उल्लेख है, जिसमें जनक, दुष्यन्त और जनमेजय का नाम महत्वपूर्ण है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- शतपथ ब्राह्मण

{षड्दर्शन का बीजारोपण किस काल में हुआ है?

type="()"}

-ऋग्वैदिक काल में +उत्तरवैदिक काल में -सैन्धव काल में -सूत्रकाल में


{जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक किसे माना जाता है?

type="()"}

-पार्श्वनाथ +महावीर स्वामी -ऋषभदेव -नेमिनाथ

महावीर
Mahaveer
वर्धमान महावीर या महावीर, जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री ऋषभनाथ (श्री आदिनाथ) की परम्परा में 24वें तीर्थंकर थे। इनका जीवन काल 599 ईसवी ,ईसा पूर्व से 527 ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है। जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर महावीर वर्धमान का जन्म वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ उस गणराज्य के राजा थे। कलिंग नरेश की कन्या यशोदा से महावीर का विवाह हुआ। किंतु 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- महावीर

{जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म में कुल कितने तीर्थकर हुए हैं?

type="()"}

-(25) -(20) +(24) -(23)

{'राजगृह' में महावीर स्वामी ने सर्वाधिक निवास किस ऋतु में किया?

type="()"}

-ग्रीष्म ऋतु +वर्षा ऋतु -शीत ऋतु -बसन्त ऋतु

{जैन धर्म के पहले तीर्थंकर के रूप में किसे जाना जाता है?

type="()"}

-महावीर स्वामी को +ऋषभदेव -पार्श्वनाथ को -अजितनाथ को

आसनस्थ ऋषभनाथ
Seated Rishabhanatha
राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
  • इनमें प्रथम तीर्थंकर ॠषभदेव हैं। जैन साहित्य में इन्हें प्रजापति, आदिब्रह्मा, आदिनाथ, बृहद्देव, पुरुदेव, नाभिसूनु और वृषभ नामों से भी समुल्लेखित किया गया है।
  • युगारंभ में इन्होंने प्रजा को आजीविका के लिए कृषि (खेती), मसि (लिखना-पढ़ना, शिक्षण), असि (रक्षा , हेतु तलवार, लाठी आदि चलाना), शिल्प, वाणिज्य (विभिन्न प्रकार का व्यापार करना) और सेवा- इन षट्कर्मों (जीवनवृतियों) के करने की शिक्षा दी थी, इसलिए इन्हें 'प्रजापति', माता के गर्भ से आने पर हिरण्य (सुवर्ण रत्नों) की वर्षा होने से ‘हिरण्यगर्भ’, विमलसूरि-, दाहिने पैर के तलुए में बैल का चिह्न होने से ‘ॠषभ’, धर्म का प्रवर्तन करने से ‘वृषभ’, शरीर की अधिक ऊँचाई होने से ‘बृहद्देव’ एवं पुरुदेव, सबसे पहले होने से ‘आदिनाथ’ और सबसे पहले मोक्षमार्ग का उपदेश करने से ‘आदिब्रह्मा’ कहा गया है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- ॠषभनाथ तीर्थंकर

{महावीर स्वामी 'यती' कब कहलाए?

type="()"}

+घर त्यागने के बाद -इन्द्रियों को जीतने के बाद -ज्ञान प्राप्त करने के बाद -उपर्युक्त में से कोई नहीं

{'स्यादवान' किस धर्म का मूलाधार था?

type="()"}

-बौद्ध धर्म +जैन धर्म -वैष्णव धर्म -शैव धर्म

[[चित्र:23rd-Tirthankara-Parsvanatha-Jain-Museum-Mathura-9.jpg|150px|thumb|तीर्थंकर पार्श्वनाथ
Tirthankara Parsvanatha
राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों । 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- जैन धर्म

{महावीर के निर्वाण के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ?

type="()"}

-गोशल -मल्लिनाथ +सुधर्मन -वज्र स्वामी

{आदि जैन ग्रंथों की भाषा क्या थी?

type="()"}

-संस्कृत भाषा +प्राकृत भाषा -पालि भाषा -अपभ्रंश भाषा

प्राकृत भाषा भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब संस्कृत का महत्व कम होने लगा तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं।
  1. अर्धमागधी प्राकृत
  2. पैशाची प्राकृत
  3. महाराष्ट्री प्राकृत
  4. शौरसेनी प्राकृत{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- प्राकृत

{जैन धर्म के पाँचों व्रतों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत कौन-सा है?

type="()"}

-अमृषा(सत्य) +अहिंसा -अचीर्य (अस्तेय) -अपरिग्रह

{जैन धर्म का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार किस समुदाय में हुआ?

type="()"}

-शासक वर्ग -किसान वर्ग +व्यापारी वर्ग -शिल्पी वर्ग

{जैन धर्म 'श्वेताम्बर' एवं 'दिगम्बर' सम्प्रदायों में कब विभाजित हुआ?

type="()"}

+चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में -अशोक के समय में -कनिष्क के समय में -उपर्युक्त में से कोई नहीं

चंद्रगुप्त धर्म में भी रुचि रखता था। यूनानी लेखकों के अनुसार जिन चार अवसरों पर राजा महल से बाहर जाता था, उनमें एक था यज्ञ करना। कौटिल्य उसका पुरोहित तथा मुख्यमंत्री था। हेमचंद्र ने भी लिखा है कि वह ब्राह्मणों का आदर करता है। मेगस्थनीज़ ने लिखा है कि चंद्रगुप्त वन में रहने वाले तपस्वियों से परामर्श करता था और उन्हें देवताओं की पूजा के लिए नियुक्त करता था। वर्ष में एक बार विद्वानों (ब्राह्मणों) की सभा बुलाई जाती थी ताकि वे जनहित के लिए उचित परामर्श दे सकें। दार्शनिकों से सम्पर्क रखना चंद्रगुप्त की जिज्ञासु प्रवृत्ति का सूचक है। जैन अनुयायियों के अनुसार जीवन के अन्तिम चरण में चंद्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। कहा जाता है कि जब मगध में 12 वर्ष का दुर्भिक्ष पड़ा तो चंद्रगुप्त राज्य त्यागकर जैन आचार्य भद्रबाहु के साथ श्रवण बेल्गोला (मैसूर के निकट) चला गया और एक सच्चे जैन भिक्षु की भाँति उसने निराहार समाधिस्थ होकर प्राणत्याग किया (अर्थात केवल्य प्राप्त किया)। 900 ई0 के बाद के अनेक अभिलेख भद्रबाहु और चंद्रगुप्त का एक साथ उल्लेख करते हैं।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- चन्द्रगुप्त मौर्य

{जैन धर्म के विषय में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?

type="()"}

-जैन धर्म में देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया गया है +वर्ण व्यवस्था की निन्दा की गई है -पूर्व जन्म में अर्जित पुण्य और पाप के आधार पर मनुष्य का जन्म उच्च या निम्न कुल में होता है -जैन धर्म ने अपने को स्पष्टत: ब्राह्मण धर्म से अलग नहीं किया है

{ऋग्वेद में 'निष्क' शब्द का प्रयोग किसी आभूषण के लिए किया गया है, वह है?

type="()"}

-कान का बुन्दा -माथे का टीका +गले का हार -हाथ का कंग

{अथर्ववेद में किन दो संस्थाओं को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है?

type="()"}

-पंचायत एवं ग्राम सभा -समिति एवं विरथ +सभा एवं समिति -सभा एवं विश्

{विशाखादत्त के मुद्राराक्षस में वर्णित नाम चन्द्रसिरी (चन्द्र श्री) के रूप में किस राजा की पहचान की गई है?

type="()"}

-अशोक महान +चन्द्रगुप्त -बिन्दुसार -इनमें से कोई नहीं

{महाभारत में माद्री, देवकी, भद्रा, रोहिणी, मदिरा, आदि स्त्रियों का वर्णन किस सन्दर्भ में किया है?

type="()"}

-धार्मिक उपासना के सन्दर्भ में +पति के साथ सती होने के सन्दर्भ में -गणिकाओं के रूप में -उपर्युक्त में से कोई नहीं

{पाण्ड्य राज की राजधानी थी?

type="()"}

-रामनद -तिन्नेबेल्ली +मदुरा -तिरुपति

{भद्रबाहु गुफ़ा अवस्थित है?

type="()"}

-श्री महावीर जी में -पावापुरी में +श्रवण बेलगोला में -बराबर की गुफ़ाओं में

{'इण्डिका' का लेखक था, जिसने इस पुस्तक में विदेशी व्यापार का ज़िक्र किया था?

type="()"}

-अज्ञात +एरियन -स्टौबो -प्लुटार्क

{मुस्लिम क़ानून के चार स्रोतों में से तीन क़ुरान, हदीस एवं इज्मा हैं। निम्नलिखित में से कौनसा चौथा स्रोत है?

type="()"}

-ख़म्स +क़यास -ख़राज -आयतें

{'क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद' का निर्माण किस मुस्लिम शासक ने कराया था?

type="()"}

-शाहजहाँ +कुतुबुद्दीन ऐबक -ग़यासुद्दीन तुग़लक़ -फ़ीरोज़ शाह

तराइन के युद्ध के बाद मुइज्जुद्दीन ग़ज़नी लौट गया और भारत के विजित क्षेत्रों का शासन अपने विश्वनीय ग़ुलाम 'क़ुतुबुद्दीन ऐबक' के हाथों में छोड़ दिया।
  • पृथ्वीराज के पुत्र को रणथम्भौर सौंप दिया गया जो तेरहवीं शताब्दी में शक्तिशाली चौहानों की राजधानी बना। अगले दो वर्षों में ऐबक ने, ऊपरी दोआब में मेरठ, बरन तथा कोइल (आधुनिक अलीगढ़) पर क़ब्ज़ा किया।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- कुतुबुद्दीन ऐबक

{टीपू सुल्तान ने किस क्लब की सदस्यता प्राप्त कर श्रीरंगपट्टनम् में स्वतंत्रता का वृक्ष रोपा था?

type="()"}

-लॉयन्स क्लब +जैकोबिन क्लब -फ्रीडम फाइटर्स क्लब -ईस्ट इण्डिया क्लब

{दादाभाई नौरोजी ने अंग्रेज़ों की किस नीति को 'अनिष्टों का अनिष्ट' कहा था?

type="()"}

-भारतीयों के प्रति अत्याचार की नीति -भारतीयों के प्रति शोषण की नीति -शौक्षणिक परिवेश में विकृति लाने की नीति +भारत से धन निष्कासन की नीति

{किस इतिहासकार ने सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को 'धर्मान्धों का ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध' कहा था?

type="()"}

-बेंजामिन डिजरेली +एल. ई. आर. रीज -ड्ब्लू. टेलर -टी. आर. होम्ज

{झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई थी?

type="()"}

+(18 जून, 1858) -(18 जुलाई, 1857) -(25 मई, 1858) -(29 अक्टूबर, 1859)

{'इण्डिपेन्डेन्स' नामक समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया था?

type="()"}

-पं. जवाहर लाल नेहरु +पं. मोती लाल नेहरु -शिव प्रसाद गुप्त -मदन मोहन मालवीय


{"कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश सरकार की एक पूर्व निश्चित गुप्त योजना के अनुसार की गई।" यह किस पुस्तक में लिखा गया है?

type="()"}

-नवजीवन +इण्डिया टुडे -द पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया -गोरा

{'ब्रिटेन की हाउस ऑफ़ लार्डस' ने किस अंग्रेज़ अधिकारी को' ब्रिटिश साम्राज्य का शेर कहा था?

type="()"}

-सर टॉमस स्मिथ को -मि. राइस जनरल को -मि. जस्टिस एस्किन को +जनरल डायर को

{ऐसा कौन सा प्रथम सूफ़ी साधक था, जिसने अपने आपको अनलहक घोषित किया था?

type="()"}

+मंसूर हल्लाज -जलालुद्दीन रूमी -फ़रीदुद्दीन अत्तार -इब्नुल अरबी

{प्रान्तों की सेना को मुग़लकालीन भारत में कहा जाता था?

type="()"}

-हशमे कल्ब +हशमे अतराफ़ -हाजिब -हदीस


{किस विदेशी ने अपने व्याख्यानों में मुग़ल सम्राटों का उल्लेख 'अभागे ज़ालिम' के लिए किया था?

type="()"}

-सदरलैण्ड +लॉर्ड मैकाले -महारानी एलिजाबेथ -मि. चैपलैन

{ऋषि अगस्त्य के शिष्य 'तोलक्कपियर' ने 'तोलकापियम' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, उसमें वर्णीत विषय था?

type="()"}

+तमिल व्याकरण -संस्कृत व्याकरण -श्रंगार कविताएँ -महापुरुषों का जीवन चरित्र

तमिल भाषा एक द्रविड़ भाषा है, जिसके विश्वभर में पाँच करोड़ से अधिक बोलने वालों में से लगभग 90% भारत में रहते हैं और तमिलनाडु राज्य में केन्द्रित 83 प्रतिशत हैं। यह भारत की पाँचवी सबसे बड़ी भाषा है, जो देश की लगभग सात प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। मूल रूप से क़रीब 34 लाख तमिल भाषा-भाषी लोग श्रीलंका में, तीन लाख सिंगापुर में और दो लाख मलेशिया में रहते हैं। औपनिवेशिक काल में प्रवास कर गए तमिलभाषी लोगों के वंशज मॉरीशस, फ़िजी और दक्षिण अमेरिका में बस गए हैं, इनकी तमिल दक्षता अलग-अलग है, साथ ही विद्यालयों में औपचारिक अध्ययन की सुविधा में भी भिन्नता है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- तमिल भाषा

{हरविलास शारदा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम जिसे सामान्यतया शारदा अधिनियम कहा जाता है, क्या था?

type="()"}

-विधवा पुनर्विवाह अधिनियम -हिन्दू महिला उत्तराधिकारी अधिनियम +बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 -हिन्दू सिविल विवाह अधिनियम

{मद्रास में जस्टिस पार्टी आन्दोलन का विलय किसके साथ हुआ?

type="()"}

-सेल्फ रेस्पेक्ट लीग -द्रविड़ कड़गम -दलित वर्ग लीग +उपर्युक्त (1) और (2) दोनों


{निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ में सर्वप्रथम पुनर्जन्म के सिद्धान्त का उल्लेख मिलता है?

type="()"}

-ऋग्वेद -ऐतरेय ब्राह्मण -श्वेताश्वतरोपनिषद +बृहदारण्यकोपनिषद

यह उपनिषद शुक्ल यजुर्वेद की काण्व-शाखा के अन्तर्गत आता है। 'बृहत' (बड़ा) और 'आरण्यक' (वन) दो शब्दों के मेल से इसका यह 'बृहदारण्यक' नाम पड़ा है। इसमें छह अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में अनेक 'ब्राह्मण' हैं।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- बृहदारण्यकोपनिषद}}

{तमिल राष्ट्र में दुर्गा का तादात्म्य तमिल देवी 'कोरवई' से किया गया है, वे किस तत्व की तमिल देवी थीं?

type="()"}

-मातृत्व -प्रकृति और अर्वरकता -पृथ्वी +युद्ध और विजय

{वह प्रथम भारतीय शासक था, जिसने रोमन मुद्रा प्रणाली के अनुरूप अपने सिक्कों का प्रसारण किया। उसका सम्बन्ध किस साम्राज्य से था?

type="()"}

-शुंग -हिन्द-यूनानी -गुप्त वंशीय +कुषाण

युइशि लोगों के पाँच राज्यों में अन्यतम का कुएई-शुआंगा था। 25 ई. पू. के लगभग इस राज्य का स्वामी कुषाण नाम का वीर पुरुष हुआ, जिसके शासन में इस राज्य की बहुत उन्नति हुई। उसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और शक राज्यों पर भी आक्रमण किए। अनेक ऐतिहासिकों का मत है, कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम कुजुल कदफ़ियस था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी कुषाण वंशी थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण—यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है।{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- कुषाण

{हैदराबाद नगर की स्थापना की थी?

type="()"}

- इब्राहीम कुत्बशाह ने + मुहम्मद कुली कुत्बशाह ने - मुहम्मद कुत्बशा - जमशिद कुत्बशा

{बहमनी साम्राज्य के प्रान्तों को क्या कहा जाता था?

type="()"}

+ तराफ़ या अतराफ़ - सूबा - सूबा-ए-लश्कर - महामण्डल

{औरंगज़ेब के शासनकाल में जाट विद्रोह का नेता कौन था?

type="()"}

+ तिलपत का जमींदार गोकुल सिंह - चम्पतराय - राजाराम - चूड़ामन