ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857- (4)

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ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1857


मथुरा

ज़िले के सिविल अफसर मैनपुरी और एटा के अफसरों तथा पुलिस बल की सहायता से और राजा अवा (अवागढ़) के अनुयायियों के साथ रामरतन नामक एक दुर्दान्त दस्यु की तलाश करने में लगे हैं जिसने इस इलाके में तहलका मचा रखा है । कुछ समय बाद वह एक कच्ची हवेली में चारों ओर से राजा अवा के आदमियों ने घेर लिया । कप्तान गोवन और सार्जेंट हार्डी ने पुलिस के साथ आकर उस जगह हमला किया परन्तु असफलता हाथ लगी । उन्होंने द्वार को बारूद से उड़ाने की सोची । बारूद ख़राब थी और विस्फोट से कुछ भी न हो सका । उनके पास प्रशिक्षित तोपची नहीं था । जिसके बिना राजा की दोनों छोटी तोपें बेकार रहीं । राजा के इस उत्साह के लिये कमिश्नर ने उसे श्रेय दिया । किन्तु कप्तान गोवन और डैनियल का कहना है कि राजा के आदमियों ने हार्दिक सहयोग नहीं दिया । तोपें रात को चली गई । यह बिना राजा के आदमियों की उपेक्षा के संभव नहीं था । कप्तान गोवन और दो अन्य व्यक्ति घायल हुए रामरतन कालपी चला गया, बताया जाता है । तीसरे सप्ताह मार्च में केवल 3 परगनों से ही राजस्व संग्रह 14 हज़ार रुपये हुआ ।

राजा तेजसिंह से एटा को संकट

अलीगढ़ से मेजर ऐल्ड का मूर को लिखा दिनांक 10 अप्रैल 1858 का पत्र-

एटा से डैनियल ने लिखा है कि मैनपुरी के राजा तेजसिंह ने 500 विद्रोहियों के साथ कुरावली के पास काली नदी को पार करके एटा को संकट पैदा कर दिया है। सहावर में 20 मील की दूरी पर जनरल पैनी है। पुलिस को नि:शस्त्र कर दिया है । साप्टे ने लिखा है कि दूसरी तरफ से रहीमअली जयपुर जाने की तैयारी में हैं।

मथुरा के विद्रोही दिल्ली को

44 वीं नेटिव इनफेंट्री और 67वीं नेटिव इनफेंट्री की एक-एक कम्पनी विद्रोही होकर दिल्ली की ओर चल दी है ।

सराय पुख्ता में मुहम्मदी झंडा फहरा


मथुरा के कोतवाल की मार्क थॉर्नहिल को आख्या-

जुलाई 1857 ई. में मथुरा में सराय पुख्ता के भटियारों और विद्रोही घुडसवारों ने मुहम्मदी झंडा फहराया ( डा. सईद अहमद सईद का मत[1]) और उनकी हर विद्रोही कार्रवाई और हरकत में उनकी हर प्रकार की सहायता की गई । सादुद्दीन जमादार हमेशा शहर का नामी शान्तिभंगकर्ता रहा है । वह भी विद्रोहियों के साथ आया है । उसे भी सराय में टिकाया गया है। भटियारों ने सादुद्दीन को भी क्रांति करने में सहायता दी है । फलत: तफशीश करने के बाद इस प्रकरण में बाकर नामक भटियारे को फाँसी लगा दी गई है ।

नाना साहब की हवेली ध्वस्त की गई।

नानाराव की मथुरा स्थित संपत्ति को ध्वस्त करने के लिये दिनांक 3 नवंबर 1857 ई. के आदेश-

आज के आदेशानुसार आपको आदेश दिया जाता है कि आप नानाराव के भवन[2] को ध्वस्त कर दें और उसके बाग़ के सभी पेड़ों को कटवा दें तथा यह मुनादी करा दें कि जो कोई भी अपनी गन्दगी और विष्टा फेंकना चाहे, वे इस काम के लिये इस बाग़ का प्रयोग करें ।

नानाराव साहब की संपत्ति को ध्वस्त करने से सम्बन्धित कोतवाल का दिनांक 9नवम्बर 1857 ई. का पत्र-

यथा आदेश नानासाहब की हवेली गिराई जा रही है। बाग़ के पेड़ भी कटवाये जा रहे हैं । जनता को वहाँ गन्दगी और विष्टा भरने को अनुमति दे दी गई है । इस काम की पूर्ति के बाद आपके निर्गत आदेश का उत्तर दिया जायगा ।

तात्याटोपे की गतिविधियां

तात्याटोपे के पराजित सैन्य बल और उसकी गतिविधियों से मथुरा में कुछ उत्तेजना फैली थी । उसने श्रीमथुरा में पुन: कुछ सैन्यबल एकत्र किया था और भरतपुर को संकटापन्न किया था । यद्यपि सभी जातियों के लगभग पनद्रह हज़ार आदमी जमा किये थे, परन्तु उनके पास आवश्यक हथियार गोला बारूद आदि का नितान्त अभाव था । सूचना के अनुसार उसके पास कई हाथी बताये गये हैं जिन पर दो छोटी तोपें भी लदी हुई हैं । किन्तु वस्तुत: वह दयनीय स्थिति में है।

आगरा विद्रोही अधिकार में

जुलाई 14, 1857 ई. का समाचार है कि आगरा विद्रोहियों के हाथों में आ गया है । जज और सिविल सर्जन रूहेला सरदार द्वारा फांसी पर लटका दिये गये हैं । किन्तु इस अफवाह की पुष्टि होनी है ।

16 जुलाई का मुक़ाबला

पूना आँब्जर्वर ने लिखा है कि नीमच की विद्रोही सेना ने आगरा छावनी को फूँक दिया । उन पर क़िले में फिरंगियों ने आक्रमण किया । विद्रोही पूरी तरह कुचल दिये गये । उनके एक हज़ार आदमी मारे गये । वे बिना गोला बारूद के ही मथुरा की ओर भाग गये ।

दिनांक 13 अगस्त 1857 ई. के हिन्दू पैट्रियट से उद्धरण

काफ़ी अन्तराल के बाद आगरा से गुप्त सूचना प्राप्त हुई हैं। यह पिछले माह की 16 तारीख तक की है । उस दिन पूरा शहर विद्रोहियों के अधिकार में रहा था । हाँ, क़िला सैन्य दस्तों और अधिकारियों के हाथों में था ।

विद्रोहियों का मंच आगरा

हिन्दू पैट्रियट का मत है कि पेशवा का धुन्धूपन्त नानाजी, बिठूर का स्वयंभू राजा और कानपुर का आततायी अब विद्रोह का नेता है । अब दिल्ली न होकर आगरा ही विद्रोहियों का मंच है, जहाँ बिखरे हुए विद्रोही एकत्र होंगे ।

आगरा और कानपुर के मध्य संसाधन तहस-नहस

ग्रांड ट्रंक रोड के आगरा और कानपुर के मध्य के हमारे सारे सम्पर्क संसाधनों में फ़र्रुख़ाबाद के नवाब के आदमियों द्वारा रूकावट खड़ी कर दी गई है । अब हमारे हरकारे इटावा होकर जा रहे हैं। ग्रीथैड का कथन है कि सभी भगोड़े सैनिक विद्रोहयों के मन में कारतूस ही उनके विद्रोही होने का मूल कारण है। ग्रीथैड का निष्कर्ष मेरे पिछले पत्र में लिखे हुए मत से मिलता है। इस बिन्दु पर मैं आपका विचार जानना चाहता हूँ। विद्रोह के सूत्रपात के समय दिल्ली में एक संभ्रान्त नागरिक पकड़ा गया था, जो अभी छूट कर गया है। उसने सिपाहियों से बातें की थीं। उसका कहना था कि सिपाहियों से इसके (कारतूस के ) अतिरिक्त कोई दूसरा कारण ज्ञात नहीं हो सका । उसका कहना था कि दिल्ली के लोग मेरठ से विद्रोहियों के आगमन के लिये बिल्कुल तैयार न थे। विद्रोही सरगनाओं के कुछ भी विचार और गढ़े गये किस्मे हों, इसमें कम ही सन्देह है कि जाति के दुश्मन कारतूस ही उद्देश्य थे, जिस कारण आम जनता भड़क उठी ।

26 अगस्त 1857 ई.-

आगरा का बड़ा शहर विद्रोहियों के अधिकार में है और पश्चिमोत्तर प्रान्त का लेफ्टिनेंट गवर्नर अंग्रेज़ों के साथ क़िले में बन्द है ।

धौलपुर के राजा को अमानअली से धमकी

कर्नल आर. जे. एच. बिर्च, सेक्रेटरी टु द गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया द्वारा घटना का अनुपूरक विवरण –

आगरा-

31 अगस्त तक आगरा में सब कुछ शान्त था । किन्तु ग्वालियर सेना में बेचैनी छाई हुई थी । कंटिजेंट की पहली इनफेंट्री के सूबेदार अमानली ने धौलपुर के राजा को यह धमकी दी कि यदि राजा ने अंग्रेज़ों की सहायता की तो वह उस पर आक्रमण कर देगा। अमानअली इस समय आगरा चले जाने की कहकर गया है। राजा के जासूसों की भी ख़बर है कि वे सैन्य जत्थों के झाँसी की ओर कूच करने से और भी बेचैन हैं ।

अवा(गढ़) के पास मुठभेड़

शेरर के नाम आगरा से दिनांक 26 सितंबर 1857 ई. के पत्र का उद्धरण-

आज हमें काफ़ी सच्ची सूचना मिली है कि धौलपुर स्थित इन्दौर सैन्यबल बैलगाड़ियाँ जुटा रहा है और तत्काल कूच की स्थिति में है । उनका इधर ही आने का इरादा है किन्तु ऐसा सोचा जा रहा है कि वे फ़तेहपुर सीकरी होकर मथुरा की ओर विद्रोहियों के हजूम से जुड़ने और अवध को जाने को आयेंगे । महाराजा ग्वालियर ने हमें विश्वास दिलाया है कि उन्होंने चम्बल में सभी नावों को नष्ट कर दिया है । इससे इन्दौर सैन्यबल बड़ी कठिनाई की स्थिति में पड़ गया है । उसके पास इटावा या मथुरा होकर जाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं अथवा वह आक्रमण की प्रतीक्षा करें । उनके पीछे चम्बल है । कुछ लोगों को यह भी कहना है कि उनकी योजना भरतपुरक़िले में जाने की है, जहाँ सभी विद्रोही एकत्र होने को हैं । किन्तु मेरे पास इस विचार की कोई पुष्टि नहीं है । वर्तमान में मुझे जहाँ तक दिखाई देता है वह यह कि विद्रोहियों की विश्रुत इच्छा इस समय या तो बरेली में अथवा पूर्व में अवध में एकत्र होने की है । इस विषय में मैं लॉरेस के विवरण को देता हूँ- 'मैं पाँच घोड़ा तोपखाने की तोपों, पहले लांस ब्रिगेड के दो स्क्वैड्रन, महारानी के दो सौ, मैहरवाड़ा बटालियन के 250 जवानों के साथ यहाँ से (चिलियामास से) 3 - 3.5 मील दूर दीवारों से घिरे कस्बे और क़िले अवा के लिये चल पड़ा हूँ । मैंने दिनांक 14 सोमवार को बेवर छोड़ा था । पहले दिन बर्र तक कूच किया क्योंकि ख़राब मौसम के कारण रास्ता बहुत कटा-फटा और ख़राब था अत: एक सप्ताह तक बेवर में ही पडे रहना पड़ा । मंगल को हम पीपलिया पहुँचे, बुध को बुगरी, बृहस्पति को चपूटिया अवा से 6 मील दूरी पर पहुँचे । शुक्र को हमने अवा के लिये सीधे सड़क से कूच किया और कस्बे से क़रीब आधा मील रह गये । यह मार्ग घने जंगल में होकर गुजरता है । वहाँ इक्का दुक्का ही शत्रुओं के सिर दिखते थे और लाँसरों के सामने वे भाग जाते थे । लगभग 800 गज़ से हम पर गोलाबारी की गई । वे हमारी रेंज में जल्दी ही आ गये । वे कस्बे से बाहर तालाब के बन्द पर पोजीशन लिये हुए थे । उनकी गोलाबारी कुछ देर चलती रही । हमने उसका उत्तर दिया और उन्हें अपनी पोजीशन से पीछे धकेल दिया । कुछ देर को उनकी गोलीबारी ख़ामोश पड़ गई । उनके घुड़सवारों ने हमारी दाहिनी क़तार की ओर बढ़ने की कोशिश की और हमारे बारदाने को संकट पैदा किया । मैंने पोजीशन बदलकर सैन्यबल को बारदाने और शत्रु के बीच कर दिया और अन्त में हम गाँव में चले गये । यह घटना क्रम कुल तीन घन्टे चला । क्योंकि हम पैदलों में कमज़ोर थे और मैं किसी यूरोपियन को खो देना नहीं चाहता था । सेना भी थोड़ी थी इसलिये मैंने न तो पैदल सेना को ही न घुड़सवारों को ही सक्रिय किया । हमारा हाथरस सैन्यबल सुरक्षित रूप से खन्दौली में पड़ाव डाले हुए है, जो आगरा से 10 मील है ।

देश ब्रिटिश के विरूद्ध

कलकत्ता के 19 सितंबर 1857 ई. के पत्र का उद्धरण-

ब्रिटिश अधिकारियों के शहर छोड़कर क़िले में पड़ाव डालने की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए एक गोपनीय संवाददाता लिखता है-

सारी आबादी हथियार बन्द है, चारों तरफ लूटपाट,ख़ून ख़राबा,, सरकारी कार्यालयों और बंगलों को फूँकने के अलावा और कोई काम नहीं हैं । लुटपाट में अधिकांश हिन्दुस्तानी (हिन्दू) मुसलमानों के साथ मिल गये हैं । एक-एक मुसलमान और तीन चौथाई हिन्दुस्तानी(हिन्दू) ब्रिटिश गवर्नमेंट के ख़िलाफ़ है। (अलैक्जेंडर:इंडियन रिबैलियन: इट्स कॉजैज एण्ड रिजल्ट्स)

आगरा पर आक्रमण

डब्ल्लू. मूर का 8 अक्टूबर 1957 ई. के पत्र में कर्नल ग्रीथैड को सूचित किया है कि शत्रु आज 18 मील दूर गाजौड़ पर पड़ाव डाले पड़े हैं और कल खारी नदी को पार करने की तैयारी में हैं । पूरे सैन्यबल का इरादा आगरा के क़िले पर आक्रमण करने का है । ग्रीथैड प्रस्थान करे और उससे आग्रह किया गया है कि वह 500 घुडसवार, घुडसवार दस्ते और तोपख़ाना गोला और बारूद भी साथ ले जाय

9 अक्टूबर 1857 ई. के डब्ल्लू. मूर के पत्र की प्रतिलिपि कर्नल ग्रीथैड को सूचित करते हुए कि-

शत्रु खारी नदी के दूसरे किनारे पड़ाव डाले हुए है और कल नदी को पार करके परसों क़िले पर आक्रमण कर सकता है। इस समय तात्कालिक चिन्ता घुड़सवार सेना और सवार तोपख़ाने की हैं। शत्रु शिविर में कुछ सलाहकारों का मत भरतपुर या इटावा को जाने का भी है। यह अवधारणा करते हुए कि उनका भरतपुर या इटावा को बचकर चले जाना, आगरे में संकट झेलने की अपेक्षा अधिक विनाशकारी होगा, आगरा में ही उन्हें झेला जाय। इसलिये बैलगाड़ियों से पैदल सेना की सहायता की व्यवस्था की जा सकती है ।

9 अक्टूबर 1857 ई. का डब्ल्लू. मूर का पत्र-

दुश्मन आ पहुँचे हैं । काफ़ी घुड़सवारों ने खारी नदी पार करके हमारे पक्ष पर गोलाबारी की है । लगभग 300 पैदल सेना ने भी खारी पार कर ली है । घुड़सवार क्षेत्र में चारों ओर फैलने लगे हैं और सभी तरह की ज्यादतियाँ वे करेगें ।

गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के सेक्रेद्री को मूर की तार सूचना दिनांकित अक्टूबर 9, 1857 ई.-

बरेली ब्रिगेड का एक भाग हाथरस के आधे रास्ते पर नूनसेन आ गया है । शेष विद्रोही भी पीछे-पीछे आते होगे । इन्दौर वाले जत्थे जो कुछ दिन मथुरा की ओर जाने वाले थे कल तक धौलपुर से नहीं चल पाये है । मिलिट्री कमीशन दो और शाहजादों को मुकदमे के लिये लाया है ।

ग्रीथैड के शिविर पर आक्रमण

गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी को मूर की तार सूचना-

10.10.1857 को ग्रीथैड का सचल दल आज प्रात: यहाँ आ पहुँचा है । 11 बजे दुश्मन ने छावनी में शिविर पर अचानक आक्रमण कर दिया । हमारे जत्थों ने तत्काल पीछा किया । दो घंटे तोपें चलीं । शत्रु तितर बितर हो गया । बहुत से कट मरे । हलकी तोपें और हाथी छीन लिये गये । किन्तु अधिकारिक रिपार्ट अभी नहीं मिली ।

ले0 कर्नल ग्रीथैड आगरा का डिप्टी असिस्टेंट एड्जुटेंट जनरल दिल्ली को दिनांक 11.10.1857 का पत्र-

मेजर जनरल कमांडिग की सूचनार्थ आपको अवगत कराते हुए गौरव का अनुभव कर रहा हूँ कि आगरा से प्राप्त त्वरित पत्र के अनुसार 9 अक्टूबर 1857 को प्रात: 6 बजे मैं हाथरस से चल पड़ा । हाथियों और बैलगाड़ियों पर यूरोपियन पैदल सेना को लेकर बीती कल 8 बजे मैंने ब्रिगेड परेड ग्राउड पर पडाव डाला । साढ़े दस बजे के लगभग मेरे शिविर पर सामने से और सीधे हाथ की ओर अचानक आक्रमण हो गया । मैं फ्रन्ट को लपका और तोपख़ाने को सक्रिय पाया । महारानी के नवें लाँसर्स सक्रिय हो उठे । मैं महारानी के 8 वें रेजीमेंट और चौथी पंजाब पैदल सेना के साथ दाहिने मोर्चे पर जा डटा जिससे कि दुश्मन को भगाया जा सके और उसकी तोपें छीन लीं जायं जो हमारे शिविर को घेरे हुए थीं । मार्ग में मैंने पहली, दूसरी और पाँचवीं पंजाब घुड़सवार टुकड़ियों को ले लिया । उनकी सहायता से पैदल सेना को अग्रसर किया । यूरोपियन पैदलों का बैरकों के पास एक खुले स्थान में मैंने घुड़सवारों को खड़ाकर दिया, जिससे आवश्यकतानुसार उन्हें स्थितियों के अनुकूल प्रयोग किया जा सके । अब तक नौ पाउंडर आगरा की तोपें आ चुकी थीं । मैंने पैदलों की सहायतार्थ आर्टिलरी परेड ग्राउंड से धौलपुर वाली सड़क पर उन्हें बढ़ा दिया । मुठभेड़ करने वालों ने आगे बढ़कर अपने सामने के प्राँगण को साफ कर दिया । लेफ्टिनेंट वाटसन ने नेतृत्व में पंजाब घुड़सवारों ने बड़ी बहादुरी से सामना किया और दु्श्मन के सवारों को खदेड़कर चार तोपों पर अधिकार कर लिया । इसक बाद दाहिने को विद्रोहियों के पैर उखड़ गये किन्तु उन्होंने बायें को घमासान जारी रखा । दुश्मन के सवार तोपों की ओर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ा एक तोप उसके तोपची के कट जाने से बेकार हो चुकी थी और एक क्षण के लिये वह शत्रु के अधिकार में थी । वह थोड़ी देरी बाद फिर हमारे अधिकार में आ गई । नवें लाँसर्स ने शत्रु के सवारों पर हमला किया और उन्हें भगा दिया । यह लिखते हुए मुझे खेद होता है कि हमारे दो श्रेष्ठ अफसर ले0 फ्रेंच और जोन्स घायल हो गये । ले0 फ्रेंच घातक रूप में और मुझे भय है कि ले0 जोन्स भी न बच पायगा । इस बीच में मैं तोपों पर अधिकार करता हुआ धौलपुर सड़क पर आगे बढ़ता गया ।जबकि 75 वीं व दूसरी पंजाब इनफेंट्री की सहायता से नवें लाँसर्स और तोपख़ाना बायें को आगे बढ़ते गये। चार तोपों पर उन्होंने अधिकार कर लिया । अब पूरी सेना सामने बढ़ने लगी । पंजाब कैवेलरी ने दोनों पक्षों में सर्वोत्तम सेवा की । हम तीन मील दूर एक गाँव में पहुँचे । यहाँ हमने थोड़ी देर रूक कर देखा कि सारी शत्रु सेना भाग चुकी थी । हमारे साथ अब तीसरी यूरोपियन सेना और आगरा में कमांड कर रहे कर्नल कॉटन आ मिले । उन्होंने पूरी सेना का नेतृत्व सम्भाल लिया । शत्रु का पड़ाव और दो मील आगे बताया गया था ।इस पर हम चल पडे । सड़क चारों ओर सामान और बैलगाड़ियों से भर गई थी । इनफ्रेंट्री को वहीं पड़ाव पर ठहरने को कह दिया गया और कैवेलरी तथा तोपख़ाने ने आगरा से साढे़ दस मील दूर खारी नदी तक दुश्मन का पीछा किया । हमारे पहुँचने से पहले ही दुश्मन अपनी तोपों को पीछे छोड़कर नदी पार कर चुका था । उनकी एक सूची संलग्न की जा रही है । तोपख़ाने ने नदी पार कर भागते दुश्मन पर विशेष गोलाबारी प्रभावी परिणाम के साथ की । क्षेत्र में ज़्यादातर कटे हुए दुश्मनों की लाशें चारों ओर बिखरी पड़ी थी । वे सभी अब खारी नदी पार कर चुके थे । थोडा ठहरने के बाद अपने पड़ाव पर लौट आये । छीनी गई तोपें रात में आई । मैं शत्रु की संख्या नहीं कूत सका । क्योंकि नीमच, इन्दौर और नसीराबाद सैन्यबलों के अतिरिक्त वहाँ पर 16 वें ग्रेनेडियर्स , हरियाना लाइट इनफ्रेंट्री, गवालियर के कंटिजेंट और कुछ दूसरी सेनाओं के सिपाही भी मरे पड़े पाये गये थे । जहाँ तक नज़र जाती थी पूरा क्षेत्र दुश्मनों से भरा पड़ा था । मैंने ऐसा रूट पहले कभी नहीं देखा और यदि हमारी कैवेलरी और आर्टिलरी ताजातरीन होती तो कुछ ही लोग नदी पार कर पाते । किन्तु आगरा पहुँचने से पहल हमारे जवानों ने तीस घन्टे से कम समय में 41 मील की यात्रा कर ली थी।

10 अक्टूबर 1857 ई. की लड़ाई में विद्रोहियों से छीनी गयीं तोपें

सं0 आर्डनेंस ब्रास गन गन की लम्बाई बेसरिंग पर बीच का व्यास मजिल स्वैल का व्यास बोर का व्यास टिप्पणी
1. देशी 118.5 22.56 17.05 5.32 18 से 24 पाउंडर
2. देशी 66.9 18.65 13.6 4.73 12 पाउंडर से ऊपर
3. देशी 92.7 16.55 13.55 4.5 12 पाउंडर से छोटी
4. देशी 51.4 11.4 8.33 4.07 9 पाउंडर से छोटी
5. देशी 50.7 11.8 9.8 3.86 7 पाउंडर
6. देशी 54.2 10.9 8.65 3.89 7 पाउंडर
7. देशी 63.4 12.25 9.63 4.07 8 पाउंडर
8. देशी 42.95 10.12 8.15 3.49 6 पाउंडर से छोटी
9. 9 पाउंडर गवर्नमेंट मेक 69.1 10.83 8.62 4.3
10. 9 पाउंडर गवर्नमेंट मेक 69.1 11.52 8.9 4.3
11. 9 पाउंडर गवर्नमेंट मेक 69.1 11.52 8.87 4.2
12. 9 पाउंडर गवर्नमेंट मेक 69.1 11.52 8.85 4.22

आगरा का संकट

पिछले महीने के दिनांक 14 को विद्रोहियों ने जो आक्रमण किया था, उसमें बाहरी रक्षा पंक्ति से वे हट गये थे । यह लड़ाई बहुत ही घमासान हुई थी और विजयी पक्ष का बहुत भारी नुक़सान हुआ था। 2000 जुटाये गये जवानों में से 170 यूरोपियन मरे और 562 घायल हुए । 3000 देशी जवानों में से 130 मरे और 310 घायल हुए। जो विद्रोही बचे थे वे अलीगढ़ की ओर भाग गये । उनका पीछा एक घुड़सवारों दल और तोपख़ाने ने किया । इस लड़ाई में उनकी हार हुई। उनमें से कुछ मथुरा गये हैं। और कुछ बरेली की ओर । कर्नल ग्रीथैड इसी 12 तारीख को अलीगढ़ और आगरा के बीच पहुँच गया है । मथुरा में और अलीगढ में विद्रोहियों की उपस्थिति से आगरा को ख़तरा बढ़ गया है । आगरा को एक ओर ग्वालियर सेना से और दूसरी ओर दिल्ली से अलीगढ़ को भागे विद्रोहियों से संकट बढ गया है । मथुरा में भागे हुए सैनिक विद्रोही भरे पड़े हैं और वे पश्चिमोत्तर प्रान्त की राजधानी पर किसी भी हमले में शामिल हो सकते हैं । कर्नल ग्रीथैड का गैरीजन आगरा के लिये वरदान होगा लेकिन इसकी सुरक्षार्थ एक और गैरीजन चाहिए। इस कुमक के लिये दिल्ली और मेरठ को अपना कोटा पूरा करना चाहिए । ख़ान बहादुर खाँ अब भी बरेली पर शासन कर रहा है । सितंबर के शुरू में नैनीताल पर हमला करने को उसने एक सैन्यबल भेजा था किन्तु बह खदेड़ दिया गया ।


धौलपुर विद्रोहियों ने आगरा छावनी पर हमला किया । 5 अक्टूबर 1857 को अलीगढ़ पर एक मुठभेड़ हुई । लेफ्टिनेंट कर्नल ग्रीथैड के नेतृत्व में महारानी का पहली पैदल सचल दल 23 सितंबर को दोआब में था । उसने अलीगढ़ के विद्रोहियों और कट्टरों को 5 अक्टूबर 1857 ई. को हराया । उनसे तोपें भी छींन लीं । कोल पर शान्तिपूर्वक फिर अधिकार जमा लिया गया । उसने 7 अक्टूबर को अकराबाद फ़तेह किया और आगरा पहुंच गया । यहाँ उसे कमिश्नर ने 12 अक्टूबर को बुलाया था, जहां भरतपुर के विद्रोहियों ने हमला कर दिया था । वह बड़ी हानि के साथ पराजित कर दिये गये । यह विजय सर्वाधिक पूर्ण थी । उनका पीछा खारी नदी तक किया ।उनमें से अधिक संख्यक मारे गये । उनकी सभी ग्यारह या 13 तोंपे छीन ली गई यही नहीं शिविर का तमाम तामझाम भी ले लिया गया । वे मथुरा भी नहीं रूके बल्कि भरतपुर और मथुरा से भाग गये । खारी की आगरा ओर कोई भी नहीं रूका । इंजीनियर्स का लेफ्टिनेंट होम मालागढ़ को विस्फोट से उड़ाते हुए यकायक दुर्घटना ग्रस्त होकर मर गया । नीमच ब्रिगेड को छोड़कर शेष सभी जमुना पार चले गये । वह धौलपुर में ग्वालियर बल से जा मिला । ग्रीथैड के सैन्यबल ने 14 को आगरा छोड़ा और जमुना पार करके कानपुर की ओर चला । सरजॉन आउटरम की कुमक लखनऊ के लिये आदेशित थी ।

आगरा में अराजकता

कलकत्ता, 19 अक्टूबर, 1857 ई.

आगरा 22 अक्टूबर– ब्रिगेडियर पोलव्हील के अचानक परिवर्तित निश्चय ने, जो पूर्व निश्चय से एक दम भिन्न था, रात के संयुक्त हमले से ब्रिटिश आबादी को बचा लिया । यह आक्रमण घूर्ततापूर्वक नियोजित हुआ था । इस प्रकार दिल्ली या मेरठ के से हत्याकांड से उनकी रक्षा की । ब्रिटिश अधिकार में आगरा का क़िला असंख्य सशस्त्र क्रूर विद्रोहियों ने घेर लिया था । यदि यह शत्रु के अधिकार में पड़ जाता तो ये संख्यातीत लोग दिल्ली , लखनऊ या इलाहाबाद में नंगा नाच करते । क़िले को छोड़कर शेष आगरा शहर का तो कोई अस्तित्व नहीं रहा गया था । शहर खंडहरों का ढेर था । शहर का एक बड़ा भाग गिराकर भूमि पर बिछा दिया गया था ।

विद्रोही फ़तेह पुरसीकरी में

डब्ल्यू. मूर का जे. डब्ल्लू. शेरर कानपुर को पत्र आगरा 23-10-1857 ई.

आज मुझे बहुत थोड़ा कहना है । विद्रोही अब भी फ़तेह पुरसीकरी में हैं और जो दल बहेड़ी में था, उनसे मिल रहा है । जो बयाना को चल दिये थे इसे सुनकर फ़तेह पुरसीकरी पहुँच गये । हैं । गुप्तचर इसमें शंका कर रहे हैं । मुझे आशा है कि हमारे सैन्यबल शीघ्र ही उन्हें भगाने को चल देंगे । कर्नल फ्रेजर मुजीबियों की प्रतीक्षा कर रहा है, जो मेरे विश्वास में कल आ जायेंगे । किन्तु कर्नल टेलर उनको अप्रशिक्षित गँवार रंगरूट बताता है । तथापि हम उन्हें लड़ने के लिये काफ़ी संगठित कर लेंगे । इस दशा में हमारा अभिमान कल या परसों आरम्भ हो जायगा । वलीदादा ख़ाँ ख़ानबहादुर ख़ाँ की प्रतीक्षा में बरेली में

मुझे एक विश्वस्त देशी पत्र बरेली से मिला है, जिसमें लिखा है-

वलीदाद खाँ 500 अनुयायियों के साथ बरेली पहुँच गया है और ख़ान बहादुर खाँ की प्रतीक्षा में है । ख़ान बहादुर ने उसे 4 पलटन, 1100 घुड़सवार और दो तोपें मालागढ़ को पुन: विजय करने को दी थी । सैनिकों ने बिना पाये जाने से इनकार कर दिया है और नवाब स्वयं को संकट में डालने के लिये अधिक चिन्तित नहीं दिखता । किन्तु वह अपने एक भतीजे को नेतृत्व हेतु भेजने की व्यवस्था कर रहा है। सेना का 16 तारीख को कूच आरम्भ होने को है । वह गंगा तक पहुँच पायंगे, इसमें सन्देह है। मेरे कल के पत्र से स्पष्ट है कि बुलन्दशहर और मेरठ दोनों के अधिकारी सचेष्ट हैं ।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह झंडा हरे रंग का था। इस पर सूरज की सफ़ेद आकृति चिन्हित थी जो कि डा. सईद के अनुसार राष्ट्रीय प्रतीक था न कि केवल इस्लाम का।
  2. मंडी रामदास में सेठ श्री रमनलाल कराँची वालों की कोठी के ठेक नारनौल को जाते समय चौड़ी और मोटी दीवारों वाली एक लम्बी चौड़ी पुरानी हवेली है, जो पेशवाओं की हवेली आज तक बोली जातीं है । यहीं जनानी ड्यौढ़ी भी लोक प्रसिद्ध है । मंडी की मूख्य सड़क पर पेशवाओं की कचहरी भी बताई जाती है । पेशवाओं की यही हवेली, जिसमें इस समय सामान्य वर्ग के किरायेदार रहते हैं, नानाराव धुन्धूपन्त पेशवा की हवेली है । उनके तत्कालीन बाग़ का इस समय कोई चिन्ह शेष नहीं है । यहाँ नाना साहब की स्मृति में एक पत्थर लगना चाहिए । सम्पादक * पेज27


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