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त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है। इन्हें भी देखें: व्रत और उत्सव

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टीका टिप्पणी और संदर्भ