अशोक वृक्ष
अशोक वृक्ष
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जगत | पादप |
संघ | मैग्नोलियोफाइटा (Magnoliophyta) |
वर्ग | मैग्नोलियोप्सिडा (Magnoliopsida) |
गण | फ़ेबेल्स (Fabales) |
कुल | फ़ेबेसी (Fabaceae) |
जाति | एस. असोक (S. asoca) |
प्रजाति | सराका (Saraca) |
द्विपद नाम | सराका असोक (Saraca asoca) |
अशोक वृक्ष (अंग्रेज़ी: Saraca asoca) हिन्दू समाज में काफी लोकप्रिय एवं लाभकारी है। अशोक का शब्दिक अर्थ है, किसी प्रकार का शोक न होना। अशोक का पेड़ जिस स्थान पर होता है। वहां पर किसी प्रकार शोक व अशान्ति नहीं रहती है। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यो में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष पर प्राकृतिक शक्तियों का विशेष प्रभाव रहता है। जिस कारण यह वृक्ष जिस जगह पर लगा होता है। वहां पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते है। इसी कारण अशोक वृक्ष भारतीय समाज में काफ़ी प्रासंगिक है।
विभिन्न नाम
अशोक वृक्ष के विभिन्न भाषाओं में नाम भिन्न हैं जो निम्नवत हैं-
- संस्कृत- अशोक।
- हिन्दी- अशोक।
- मराठी- अशोपक।
- गुजराती- आसोपालव।
- बंगाली- अस्पाल, अशोक।
- तेलुगू- अशोकम्।
- तमिल- अशोघम।
- अंग्रेज़ी- Saraca asoca (सराका असोक)
- लैटिन- जोनेसिया अशोका।[1]
अशोक वृक्ष के गुण
अशोक का वृक्ष शीतल, कड़वा, ग्राही, वर्ण को उत्तम करने वाला, कसैला और वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। इसका क्वाथ गर्भाशय के रोगों का नाश करता है, विशेषकर रजोविकार को नष्ट करता है। इसकी छाल रक्त प्रदर रोग को नष्ट करने में उपयोगी होती है।[1]
नकली और असली
अशोक का वृक्ष दो प्रकार का होता है, एक तो असली अशोक वृक्ष और दूसरा उससे मिलता-जुलता नकली अशोक वृक्ष।
असली अशोक वृक्ष
असली अशोक के वृक्ष को लैटिन भाषा में 'जोनेसिया अशोका' कहते हैं। यह आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लम्बे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे रंग के होते हैं, इसीलिए इसे 'ताम्रपल्लव' भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसंत ऋतु में आते हैं जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। सुनहरी लाल रंग के फूलों वाला होने से इसे 'हेमपुष्पा' भी कहा जाता है।
नकली अशोक वृक्ष
नकली अशोक वृक्ष के पत्ते आम के पत्तों जैसे होते हैं। इसके फूल सफेद पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। यह देवदार जाति का वृक्ष होता है, यह दवाई के काम का नहीं होता।[1]
रासायनिक गुण
अशोक वृक्ष की छाल में हीमैटाक्सिलिन, टेनिन, केटोस्टेरॉल, ग्लाइकोसाइड, सैपोनिन, कार्बनिक कैल्शियम तथा लौह के यौगिक पाए गए हैं, पर अल्कलॉइड और एसेन्शियल ऑइल की मात्रा बिलकुल नहीं पाई गई। टेनिन एसिड के कारण इसकी छाल सख्त ग्राही होती है, बहुत तेज और संकोचक प्रभाव करने वाली होती है अतः रक्त प्रदर में होने वाले अत्यधिक रजस्राव पर बहुत अच्छा नियन्त्रण होता है।[1]
वास्तुशास्त्र में उपयोग
- अशोक का वृक्ष घर में उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। जिससे गृह में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण बना रहता है। घर में अशोक के वृक्ष होने से सुख, शान्ति एवं समृद्धि बनी रहती है एंव अकाल मृत्यु नहीं होती है।
- परिवार की महिलाओं को शारीरिक व मानसिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। यदि महिलायें अशोक के वृक्ष पर प्रतिदिन जल अर्पित करती रहे तो उनकी इच्छाएँ एवं वैवाहिक जीवन में सुखद वातावरण बना रहता है।
- छात्रों की स्मरण शक्ति के लिए अशोक की छाल तथा ब्रहमी समान मात्रा में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह शाम एक गिलास हल्के गर्म दूध के साथ सेवन करने से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 अशोक एवं अशोकारिष्ट (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2012।
- ↑ वास्तु के अनुसार अशोक का पेड़ प्रतीक है सकारात्मक उर्जा का (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वनइंडिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2012।
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