लक्ष्मी सहगल
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लक्ष्मी सहगल
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पूरा नाम | कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल |
अन्य नाम | शादी से पहले नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन |
जन्म | 24 अक्टूबर, 1914 |
जन्म भूमि | मद्रास |
मृत्यु | 23 जुलाई 2012 |
मृत्यु स्थान | कानपुर |
मृत्यु कारण | दिल का दौरा |
पति/पत्नी | कर्नल प्रेम कुमार सहगल |
संतान | बेटी सुभाषिनी अली |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी |
पद | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी |
शिक्षा | 1932 में विज्ञान में स्नातक, मद्रास मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस. |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी, |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण |
देश की आजादी में अहम भूमिका अदा करने वालीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाषचंद्र बोस की सहयोगी रहीं कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर, 1914 को मद्रास में हुआ था। कैप्टन लक्ष्मी सहगल का शादी से पहले नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था। उनके पिता का नाम एस. स्वामिनाथन और माता का नाम एवी अमुक्कुट्टी (अम्मू) था। पिता मद्रास उच्च न्यायालय के जाने माने वकील और उनकी माता अम्मू स्वामीनाथन एक समाजसेवी थी जिन्होंने आजादी के आंदोलनो में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। यह एक तमिल परंपरावादी परिवार था।
कैप्टन सहगल 1932 में विज्ञान में स्नातक परीक्षा पास की। कैप्टन डा सहगल शुरू से ही बीमार गरीबों को इलाज के लिये परेशान देखकर दुखी हो जाती थीं। इसी के मददेनजर उन्होंने गरीबो की सेवा के लिये चिकित्सा पेशा चुना और 1938 में मद्रास मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री हासिल की और अगले वर्ष 1939 में जच्चा-बच्चा रोग विशेषज्ञ बनीं। वह महिला रोग विशेषज्ञ थीं। वह 1940 में सिंगापुर गईं और खासकर भारतीय गरीब मजदूरों के इलाज के लिए वहा क्लिनिक खोला। वर्ष 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अंग्रेज़ों ने सिंगापुर को जापानियों को समर्पित कर दिया तब उन्होंने घायल युद्धबन्दियों के लिये काफी काम किया।
देश की आजादी की मशाल लिए नेता जी सुभाष चन्द्र बोस 2 जुलाई 1943 को सिंगापुर आए तो डॉ. लक्ष्मी भी उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं और अंतत: उन्होंने नेताजी से अपने को भी शामिल करने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने वहां आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए एक महिला रेजीमेंट बनाने की घोषणा की और रानी लक्ष्मी बाई रेजीमेंट गठित की। अक्तूबर 1943 में डॉ. लक्ष्मी ने रानी झाँसी रेजिमेंट में कैप्टेन पद पर कार्यभार संभाला। अपने साहस और अद्भुत कार्य की बदौलत बाद में उन्हें कर्नल का पद भी मिला। डॉ. लक्ष्मी अस्थाई आजाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री थीं।
दितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिकों की भी धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे सिंगापुर में पकड़ी गईं पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। डॉ. लक्ष्मी ने लाहौर में मार्च 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और उसके बाद वह कानपुर में ही रहने लगी और यहीं मेडिकल प्रैक्टिस करने लगी। उनकी पुत्री माकपा नेता सुभाषिनी अली के अनुसार वह दो बहने हैं उनकी एक और बहन अनीसा पुरी है।
बाद में कैप्टन सहगल सक्रिय राजनीति में भी आयीं और 1971 में मर्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी / माकपा (सीपीआईएम) की सदस्यता ग्रहण की और राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्यों में रहीं। 1998 में उन्हें भारत सरकार द्वारा उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पद्म विभूषण से सम्मनित किया गया। वर्ष 2002 में वाम दलों की तरफ से वह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में भी उतरी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
उनकी बेटी सुभाषिनी अली 1989 में कानपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद भी रहीं। सुभाषिनी अली ने कम्युनिस्ट नेत्री बृन्दा करात की फिल्म अमू में अभिनेत्री का किरदार भी निभाया था। डॉ सहगल के पौत्र और सुभाषिनी अली और मुज़फ्फर अली के पुत्र शाद अली फिल्म निर्माता निर्देशक हैं, जिन्होंने साथिया, बंटी और बबली इत्यादि चर्चित फ़िल्में बनाई हैं। प्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई उनकी सगी बहन हैं।
1952 से कानपुर में प्रैक्टिस कर रही कैप्टन डा लक्ष्मी सहगल का पहला प्यार उनका अपना प्रोफेशन था। आर्यनगर स्थित क्लीनिक में मरीजों का भारी जमावड़ा रहता था। इसके अलावा वह अपने नाती (सुभाषिनी के बेटे) फिल्म निर्देशक शाद अली की हर फिल्म सिनेमा हाल में जाकर देखती थी फिर वह चाहे बंटी और बबली हो या फिर चोर मचाये शोर। कुछ साल पहले एक बार फिल्म देखकर थियेटर से निकल रही डा सहगल से जब इस संवाददाता ने पूछा था कि कैसी लगी आपको शाद की फिल्म तो उन्होंने कहा कि बहुत अच्छी फिल्म बनाता है वह।
कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का निधन 98 वर्ष की आयु में 23 जुलाई 2012 को कानपुर के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से हो गया था। स्वतंत्रता सेनानी, डॉक्टर, सांसद, समाजसेवी के रूप में यह देश उन्हें सदैव याद रखेगा। पिछले कई सालों से वह कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती रही थीं। उन्होंने अपना पूरा शरीर भी एक अस्पताल को दान कर दिया था। अत: उनकी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार नहीं होगा। जीवन भर गरीबों और मजदूरों के लिए संघर्ष करती रहीं लक्ष्मी सहगल की मौत के समय उनकी पुत्री सुभाषिनी अली उनके साथ ही थीं।
कानपुर: वयोवृद्ध कैप्टन डा लक्ष्मी सहगल को गरीब मरीजों का इतना ध्यान रहता था कि दिल का दौरा पड़ने से करीब 15 घंटे पहले तक अपने शहर में स्थित आर्यनगर के क्लीनिक में बैठकर मरीजों को देख रही थीं। यह कहना है उनकी बेटी और माकपा नेता तथा पूर्व सांसद सुभाषिनी अली का। कैप्टन सहगल के साथ अंतिम समय तक उनके पास रही अली का कहना है कि उनको मरीजों की सेवा करने का एक अजब सा जुनून था वह कभी इस बात का ख्याल नही करती थीं कि उनके मरीज के पास इलाज के लिये पैसा है या नही बस वह इलाज शुरू कर देती थी तभी उन्हें एक बार दिखाने आने वाली महिला रोगी उनकी फैन हो जाती थी और हमेशा उनसे ही अपना इलाज कराने आती थीं और वह भी अपने मरीजों को देखने के लिये हमेशा तैयार रहती थीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ