ब्रज शब्द का प्रयोग वेदों, रामायण और महाभारत के काल में गोष्ठ- 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थानों के लिये किया जाने लगा। भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार चौरासी कोस का माना जाने लगा था। आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं उसकी दिशाऐं, उत्तर में पलवल, हरियाणा, दक्षिण में ग्वालियर, मध्य प्रदेश, पश्चिम में भरतपुर, राजस्थान और पूर्व में एटाउत्तर प्रदेश को छूती हैं। ... और पढ़ें
होलीभारत का प्रमुख त्योहार है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं होता। संस्कृत शब्द होलक्का से होली शब्द का जन्म हुआ है। वैदिक युग में 'होलक्का' को ऐसा अन्न माना जाता था, जो देवों का मुख्य रूप से खाद्य-पदार्थ था। बसंत की आनन्दाभिव्यक्ति रंगीन जल एवं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है। कुछ प्रदेशों में यह रंग युक्त वातावरण 'होलिका के दिन' ही होता है, किन्तु दक्षिण भारत में यह पाँचवें दिन (रंग पंचमी) तक मनाई जाती है। ... और पढ़ें
कुम्भ मेलाहिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष में इस पर्व का आयोजन होता है। प्रयाग (इलाहाबाद) में संगम के तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है। इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है। ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है। ... और पढ़ें
मैसूर शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके प्राचीनतम शासक कदम्ब वंश के थे, जिनका उल्लेख प्रख्यात भूगोलवेत्ता टॉलमी ने किया है। कदम्बों को चेरों, पल्लवों और चालुक्यों से युद्ध करना पड़ा था। 12वीं शताब्दी में जाकर मैसूर का शासन कदम्बों के हाथों से होयसलों के हाथों में आया, जिन्होंने द्वारसमुद्र अथवा आधुनिक हलेबिड को अपनी राजधानी बनाया था। 18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों और मैसूर के शासकों के बीच चार सैन्य मुठभेड़ हुई थीं। अंग्रेज़ों और हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान के बीच समय-समय पर युद्ध हुए जो मैसूर युद्ध नाम से जाने जाते हैं। ... और पढ़ें
अमीर ख़ुसरो और ग़ालिब की रचनाओं को गुनगुनाती हुई दिल्लीनादिरशाह की लूट की चीख़ों से सहम भी जाती है। चाँदनी चौक-जामा मस्जिद की सकरी गलियों से गुज़रकर चौड़े राजपथ पर 26 जनवरी की परेड को निहारती हुई दिल्ली 30 जनवरी को उन तीन गोलियों की आवाज़ को नहीं भुला पाती जो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सीने में धँस गयी थी। दिल्ली ने दौलताबाद जाने के तुग़लकी फ़रमानों को भी सुना और लाल क़िले से प्रधानमंत्री के अभिभाषणों पर तालियाँ भी बजायी। कभी रघुराय ने दिल्ली की रायसीना पहाड़ी को अपने कैमरे में क़ैद कर लिया तो कभी हुसैन के रंगों ने दिल्ली को रंग दिया। दिल्ली कभी कुतुबमीनार की मंज़िलों को चढ़ाने में पसीना बहाती रही तो कभी हुमायूँ के मक़बरे में पत्थरों को तराशती रही। नौ बार लूटे जाने से भी दिल्ली के शृंगार में कोई कमी नहीं आयी। ... और पढ़ें
अशोक महान ने कहा है:-
हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है, वह अपने सम्प्रदाय की जड़ काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है ... ।
... इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है, अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें -सम्राट अशोक महान... और पढ़ें
श्रावस्ती न केवल बौद्ध और जैन धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं वेद विद्या का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।
बुद्ध के जीवन काल में श्रावस्ती कोशल देश की राजधानी थी। एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कोसल-नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी।
गौतम बुद्ध के समय में भारत के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी। ... और पढ़ें
श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन जी रहे हैं।
ब्रह्म पुराण ने श्राद्ध की परिभाषा यों दी है, 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', वह श्राद्ध कहलाता है। ... और पढ़ें
वाराणसी के व्यापारी समुद्री व्यापार भी करते थे। काशी से समुद्र यात्रा के लिए नावें छूटती थीं।
इस नगर के धनी व्यापारियों का व्यापार के उद्देश्य से समुद्र पार जाने का उल्लेख है। जातकों में भी व्यापार के उद्देश्य से बाहर जाने का उल्लेख मिलता है। एक जातक में उल्लेख है कि बनारस के व्यापारी दिशाकाक लेकर समुद्र यात्रा को गए थे। ... और पढ़ें
राष्ट्रीय पशु 'बाघ' पीले रंगों और धारीदार लोमचर्म वाला एक पशु है।
बाघ की आठ प्रजातियों में से भारत में पाई जाने वाली प्रजाति को रॉयल बंगाल टाइगर के नाम से जाना जाता है।
देश के सभी अभयारण्य में लगातार इनकी संख्या कम होती जा रही है। बाघों की इस तरह गिरती संख्या पर केन्द्र सरकार ने 1973 में नौ टाइगर रिज़र्व इलाक़ों में 'बाघ बचाओ योजना' शुरू की।
वन्य जीवों के लिए काम करने वालों का मानना है कि साल 2025 तक बाघों के विलुप्त हो जाने का ख़तरा है। बाघों की कुल आबादी के 40 फ़ीसदी बाघ भारत में पाए जाते हैं। भारत के 17 प्रदेशों में बाघों के 23 संरक्षित क्षेत्र हैं। .... और पढ़ें
हिन्दी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय आर्य भाषा है।
सन 2001 ई. की जनगणना के अनुसार, 25.79 करोड़ भारतीय हिन्दी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं।
हिन्दी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रज भाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमांऊनी, मागधी और मारवाड़ी शामिल हैं।
हिन्दी की आदि जननि संस्कृत है। संस्कृत पालि, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश तक पहुँचती है।
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने लिपि के मानकीकरण पर अधिक ध्यान दिया और 'देवनागरी लिपि' तथा 'हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण' (1983 ई.) का प्रकाशन किया। .... और पढ़ें
ब्रज शब्द का प्रयोग वेदों, रामायण और महाभारत के काल में गोष्ठ- 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थानों के लिये किया जाने लगा।
भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार चौरासी कोस का माना जाने लगा था।
ब्रज के वन–उपवन, कुन्ज-निकुन्ज, श्री यमुना व गिरिराज अत्यन्त मोहक हैं। पक्षियों का मधुर स्वर एकांकी स्थली को मादक एवं मनोहर बनाता है। मोरों की बहुतायत तथा उनकी पिऊ-पिऊ की आवाज़ से वातावरण गुंजायमान रहता है।
ब्रज के प्राचीन संगीतज्ञों की प्रामाणिक जानकारी 16वीं शताब्दी के भक्तिकाल से मिलती है। इस काल में अनेकों संगीतज्ञ वैष्णव संत हुए। संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी, इनके गुरु आशुधीर जी तथा उनके शिष्य तानसेन आदि का नाम सर्वविदित है।
ब्रजभूमि पर्वों एवं त्योहारों की भूमि है। यहाँ की संस्कृति उत्सव प्रधान है। यहाँ हर ऋतु माह एवं दिनों में पर्व और त्योहार चलते हैं। होली ब्रज का विशेष त्योहार है। इसमें यज्ञ रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है। .... और पढ़ें
जॉब चारनाक ने 1690 ई. में तीन गाँवों; कोलिकाता, सुतानती तथा गोविन्दपुरी नामक जगह पर कोलकाता की नींव रखी थी।
कोलकाता शहर, पश्चिम बंगाल राज्य की राजधानी है और ब्रिटिशकालीन भारत (1772-1912) की राजधानी था।
कोलकाता भारत के सबसे बड़े नगरों और प्रमुख बंदरगाहों में से एक हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिंदुओं की देवी काली के नाम से 'कोलकाता' शहर के नाम की उत्पत्ति हुई है।
19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रख्यात बांग्ला साहित्यकार बंकिमचंद्र चैटर्जी, जिनका लिखा 'आनंदमठ' का गीत 'वन्दे मातरम्' आज भारत का राष्ट्र गीत है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे नेता और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान रचनाकार से लेकर सैकड़ों स्वाधीनता के सिपाहियों का घर होने का गौरव प्राप्त है।
1814 में स्थापित कोलकाता का 'इंडियन म्यूज़ियम' भारत का सबसे पुराना और अपनी तरह का सबसे बड़ा संग्रहालय है। पुरातत्त्व और मुद्रा विषयक खण्डों का यहाँ सबसे मूल्यवान संग्रह हैं।
'भारत रत्न उच्चतम नागरिक सम्मान है, जो कला, साहित्य, विज्ञान, राजनीतिज्ञ, विचारक, वैज्ञानिक, उद्योगपति, लेखक और समाजसेवी को असाधारण सेवा के लिए तथा उच्च लोक सेवा को मान्यता देने के लिए भारत सरकार की ओर से दिया जाता है।
इस पुरस्कार के रूप में दिए जाने वाले सम्मान की मूल रूप - रेखा 35 मिलिमीटर व्यास वाला गोलाकार स्वर्ण पदक है जिस पर सूर्य और ऊपर हिन्दी भाषा में भारत रत्न और नीचे एक फूलों का गुलदस्ता बना होता है।
यह पुरस्कार 2 जनवरी 1954 को प्रारम्भ किया गया था। यह पुरस्कार भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद द्वारा घोषित किया गया था।
भारत रत्न 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है। सबसे पहला पुरस्कार प्रसिद्ध वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन को दिया गया था।
अब तक 41 लोगों को भारत रत्न से सम्मनित किया गया है। .... और पढ़ें
चीनी यात्री हुएनसांग के लेखानुसार यहाँ पर अशोक के बनवाये हुये कुछ स्तूप 7वीं शताब्दी में विद्यमान थे। परन्तु आज हमें इनके विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं है। लोक-कला की दृष्टि से देखा जाय तो मथुरा और उसके आसपास के भाग में इसके मौर्यकालीन नमूने विद्यमान हैं। लोक-कला की ये मूर्तियां यक्षों की हैं। यक्षपूजा तत्कालीन लोकधर्म का एक अभिन्न अंग थी। संस्कृत, पाली और प्राकृत साहित्य यक्षपूजा के उल्लेखों से भरा पड़ा है । पुराणों के अनुसार यक्षों का कार्य पापियों को विघ्न करना, उन्हें दुर्गति देना और साथ ही साथ अपने क्षेत्र का संरक्षण करना था।[1] मथुरा से इस प्रकार के यक्ष और यक्षणियों की छह प्रतिमाएं मिल चुकी हैं । .... और पढ़ें
छांदोग्य उपनिषद[2], जिसमें देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है और उन्हें घोर आंगिरस का शिष्य कहा है। परवर्ती साहित्य में श्रीकृष्ण को देव या विष्णु रूप में प्रदर्शित करने का भाव मिलता है।[3]महाभारत तथा हरिवंश, विष्णु, ब्रह्म, वायु, भागवत, पद्म, देवी भागवत अग्नि तथा ब्रह्मवर्तपुराणों में उन्हें प्राय: भगवान के रूप में ही दिखाया गया है। इन ग्रंथो में यद्यपि कृष्ण के आलौकिक तत्त्व की प्रधानता है तो भी उनके मानव या ऐतिहासिक रूप के भी दर्शन यत्र-तत्र मिलते हैं। पुराणों में कृष्ण-संबंधी विभिन्न वर्णनों के आधार पर कुछ पाश्चात्य विद्वानों को यह कल्पना करने का अवसर मिला कि कृष्ण ऐतिहासिक पुरुष नहीं थे। इस कल्पना की पुष्टि में अनेक दलीलें दी गई हैं, जो ठीक नहीं सिद्ध होती। यदि महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त, ब्राह्मण-ग्रंथों तथा उपनिषदों के उल्लेख देखे जायें तो कृष्ण के ऐतिहासिक तत्त्व का पता चल जायगा। बौद्ध-ग्रंथ घट जातक तथा जैन-ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र से भी श्रीकृष्ण का ऐतिहासिक होना सिद्ध है। यह मत भी भ्रामक है कि ब्रज के कृष्ण, द्वारका के कृष्ण तथा महाभारत के कृष्ण एक न होकर अलग-अलग व्यक्ति थे।[4]