भारतीय रुपया

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भारतीय रुपए का प्रतीक चिह्न

भारतीय रुपए का प्रतीक चिह्न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान तथा आर्थिक संबलता को परिलक्षित कर रहा है। रुपए का चिह्न भारत के लोकाचार का भी एक रूपक है। रुपए का यह नया प्रतीक देवनागरी लिपि के 'र' और रोमन लिपि के अक्षर 'आर' को मिला कर बना है, जिसमें एक क्षैतिज रेखा भी बनी हुई है। यह रेखा हमारे राष्ट्रध्वज तथा बराबर के चिह्न को प्रतिबिंबित करती है। भारत सरकार ने 15 जुलाई, 2010 को इस चिह्न को स्वीकार कर लिया है।

यह चिह्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुम्बई के पोस्ट ग्रेजुएट डिजाइन श्री डी. उदय कुमार ने बनाया है। इस चिह्न को वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित एक खुली प्रतियोगिता में प्राप्त हज़ारों डिजायनों में से चुना गया है। इस प्रतियोगिता में भारतीय नागरिकों से रुपए के नए चिह्न के लिए डिजाइन आमंत्रित किए गए थे। इस चिह्न को डिजीटल तकनीक तथा कम्प्यूटर प्रोग्राम में स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है।

रुपए का इतिहास

भारतीय एक रुपये का सिक्का (1862)
भारतीय आधा आना का सिक्का (1945)
ऐतिहासिक भारतीय सिक्के

भारत विश्व कि उन प्रथम सभ्यताओ में से है जहाँ सिक्को का प्रचलन शुरू हुआ। लगभग 6वी सदी ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द रूपा से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है चाँदीसंस्कृत में रूप्यकम् का अर्थ है चाँदी का सिक्का।

रुपया शब्द सन् 1540 - 1545 के बीच शेरशाह सूरी के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्को के लिए उपयोग में लाया गया। मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था। यह सिक्का ब्रिटिश भारत के शासन काल में भी उपयोग में लाया जाता रहा।

बीसवीं सदी में फ़ारस की खाड़ी के देशों[1] तथा अरब मुल्कों में भारतीय रुपया मुद्रा के तौर पर प्रचलित थी। सोने की तस्करी को रोकने तथा भारतीय मुद्रा के बाहर में प्रयोग को रोकने के लिए मई 1959 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने गल्फ़ रुपी[2] का विपणन किया। साठ के दशक में कुवैत तथा बहरीन ने अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनी ख़ुद की मुद्रा प्रयोग में लानी शुरू की तथा 1966 में भारतीय रुपये में हुए अवमूल्यन से बचने के लिए क़तर ने भी अपनी मुद्रा शुरू कर दी ।[3]

चाँदी का रुपया

ऐतिहासिक तौर पर रुपया चाँदी पर आधारित मुद्रा थी। 19वी शताब्दी में इसके विपरीत परिणाम हुए, जब यूरोप और अमेरिका में भारी पैमाने में चाँदी की खोज हुई। उस समय की मज़बूत अर्थव्यवस्थाएँ सोने पर आधारित थी। चाँदी की खोज से चाँदी और सोने के सापेक्षित मूल्यो में भारी अंतर आया। अचानक ही भारत की मुद्रा विश्व बाज़ार में उतना नहीं ख़रीद सकती थी जितना पहले। इसे "'रुपए की गिरावट'" के नाम से भी जाना जाता है। शुरुआत में एक रूपए को 16 आना, 64 पैसों या 192 पाई में बाँटा गया। यानी 1 आना 16 पैसों या 12 पाई में विभाजित था।

काग़ज़ के नोटो की शुरुआत

रुपयों के काग़ज़ के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में से थे 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' (1770-1832), 'द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार' (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और 'द बंगाल बैंक' (1784-91)।

शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए काग़ज़ के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 आदि वर्गों में थे। बाद के नोट में एक बेलबूटा बना था जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था। यह नोट दोनों ओर छपे होते थे, तीन लिपिओं उर्दू, बंगाली और देवनागरी में यह छपे होते थे, जिसमें पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी। 1800 सदी के अंत तक नोटों के मूलभाव ब्रितानी हो गए और जाली बनने से रोकने के लिए उनमे अन्य कई लक्षण जोडे गए।

वीथिका


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. खाड़ी देश
  2. खाड़ी रुपया
  3. Qatar (अंग्रेज़ी)। । अभिगमन तिथि: 9 सितम्बर, 2010।

बाहरी कड़ियाँ

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