जामा मस्जिद दिल्ली
जामा मस्जिद | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जामा मस्जिद |
जामा मस्जिद दिल्ली
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विवरण | जामा मस्जिद बहुआ पत्थर और सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है। |
राज्य | दिल्ली |
निर्माता | शाहजहाँ |
निर्माण काल | 1650 ई. |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 28° 39′ 2.52″, पूर्व- 77° 14′ 0.24″ |
मार्ग स्थिति | जामा मस्जिद लाल क़िले से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। |
रेल, मैट्रो, सिटी बस, टैक्सी | |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
एस.टी.डी. कोड | 011 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र | |
अन्य जानकारी | सन् 1650 ई. में शाहजहाँ ने इस मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया था। जामा मस्जिद को बनने में 6 वर्ष का समय और 10 लाख रुपए लगे थे। |
जामा मस्जिद दिल्ली दुनिया की सबसे बड़ी और संभवतया सबसे अधिक भव्य मस्जिद है। यह लाल क़िले के समाने वाली सड़क पर है। पुरानी दिल्ली की यह विशाल मस्जिद मुग़ल शासक शाहजहां के उत्कृष्ट वास्तुकलात्मक सौंदर्य बोध का नमूना है, जिसमें एक साथ 25,000 लोग बैठ कर प्रार्थना कर सकते हैं। इस मस्जिद का माप 65 मीटर लम्बा और 35 मीटर चौड़ा है, इसके आंगन में 100 वर्ग मीटर का स्थान है। 1656 में निर्मित यह मुगल धार्मिक श्रद्धा का एक विशिष्ट पुन: स्मारक है। इसके विशाल आंगन में हजारों भक्त एक साथ आकर प्रार्थना करते हैं। जामा मस्जिद लाल क़िले से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।
मस्जिद-ए-जहानुमा
इसे मस्जिद - ए - जहानुमा भी कहते हैं, जिसका अर्थ है विश्व पर विजय दृष्टिकोण वाली मस्जिद। इसे बादशाह शाहजहां ने एक प्रधान मस्जिद के रूप में बनवाया था। एक सुंदर झरोखेनुमा दीवार इसे मुख्य सड़क से अलग करती है। पुरानी दिल्ली के प्राचीन कस्बे में स्थित यह स्मारक 5000 शिल्पकारों द्वारा बनाया गया था। यह भव्य संरचना भौ झाला पर टिकी है जो शाहजहांना बाद में मुगल राजधानी की दो पहाड़ियों में से एक है। इसके पूर्व में यह स्मारक लाल क़िले की ओर स्थित है और इसके चार प्रवेश द्वार हैं, चार स्तंभ और दो मीनारें हैं।
वास्तु विशेषताएं
- जामा मस्जिद का निर्माण लाल सेंड स्टोन और सफेद संगमरमर की समानांतर खड़ी पट्टियों पर किया गया है। सफेद संगमरमर के बने तीन गुम्बदों में काले रंग की पट्टियों के साथ शिल्पकारी की गई है।
- यह पूरी संरचना एक ऊंचे स्थान पर है ताकि इसका भव्य प्रवेश द्वार आस पास के सभी इलाक़ों से दिखाई दे सके। सीढियों की चौड़ाई उत्तर और दक्षिण में काफी अधिक है। चौड़ी सीढियां और मेहराबदार प्रवेश द्वार इस लोकप्रिय मस्जिद की विशेषताएं हैं।
- मुख्य पूर्वी प्रवेश द्वार संभवतया बादशाहों द्वारा उपयोग किया जाता था जो सप्ताह के दिनों में बंद रहता था।
- पश्चिमी दिशा में मुख्य प्रार्थना कक्ष में ऊंचे ऊंचे मेहराब सजाए गए हैं जो 260 खम्भों पर है और इनके साथ लगभग 15 संगमरमर के गुम्बद विभिन्न ऊंचाइयों पर है।
- प्रार्थना करने वाले लोग यहां अधिकांश दिनों पर आते हैं किन्तु शुक्रवार तथा अन्य पवित्र दिनों पर संख्या बढ़ जाती है।
- दक्षिण मीनारों का परिसर 1076 वर्ग फीट चौड़ा है जहां एक बार में 25,000 व्यक्ति बैठ कर नमाज़ अदा कर सकते हैं।
- यह कहा जाता है कि बादशाह शाहजहां ने जामा मस्जिद का निर्माण 10 करोड़ रु. की लागत से कराया था और इसे आगरा में स्थित मोती मस्जिद की एक अनुकृति कहा जा सकता हैं।
- इसमें वास्तुकला शैली के अंदर हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही तत्वों का समावेश है।
- जीवन का एक संपूर्ण मार्ग इस पुराने ऐतिहासिक स्मारक की छाया में, इसकी सीढियों पर, इसकी संकरी गलियों में भारत के लघु ब्रह्मान्ड का एक सारतत्व मिलता है जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहता है।
- सन् 1650 ई. में शाहजहाँ ने इस मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया था। जामा मस्जिद को बनने में 6 वर्ष का समय और 10 लाख रुपए लगे थे।
- जामा मस्जिद बहुआ पत्थर और सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है।
- जामा मस्जिद का पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इस द्वार के बारे में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे।
- जामा मस्जिद का प्रार्थना गृह बहुत ही सुंदर है। इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला मेहराब अन्य से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबदों को सफ़ेद और काले संगमरमर से सजाया गया है जो निज़ामुद्दीन दरगाह की याद दिलाते हैं।
इतिहास से
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अंग्रेज़ लाल क़िला पर फतह करने के लिए सभी तरह की नीतियां अपना रहे थे। इसके लिए अंग्रेज़ों ने किराए के सैनिकों के अलावा स्थानीय लोगों को पैसे का लालच देकर भी सूचनाएं देने के लिए मिला लिया था। जिस समय निकलसन के नेतृत्व में अंग्रेज़ फौज काबुली गेट की ओर बढ़ने का प्रयास कर रही थी उसी समय कर्नल कैंपबेल के नेतृत्व में अंग्रेज़ी फौज का एक दस्ता जामा मस्जिद की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा था। तंग गलियों में बने मकानों, खिड़कियों और चौबारों पर शाही सेना द्वारा की जा रही गोलाबारी का जवाब देते हुए अंग्रेज़ जामा मस्जिद तक जा पहुंचे। लेकिन वह ज्यादा देर तक नहीं टिक सके। जामा मस्जिद पर लगी तोपों से इतनी भारी गोलाबारी की गई कि अंग्रेज़ों को जान के लाले पड़ गए। वह जान बचाकर भागने पर मजबूर हो गए। जामा मस्जिद के पास जब अंग्रेज़ों की सेना पहुंची तो जामा मस्जिद से निकल कर लोगों ने हमला कर दिया। जामा मस्जिद से निकल कर अंग्रेज़ों की गोलियों का मुकाबला लोगों ने तलवारों से किया। जामा मस्जिद से निकल रहे सैकड़ों लोग मस्जिद की सीढि़यों पर ही गिर पड़े। इसके बाद भी शाही सैनिकों ने हार नहीं मानी। जामा मस्जिद के पास हुई जोरदार लड़ाई में दोनों तरफ की सेनाएं बुरी तरह से घायल हुईं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जामा मस्जिद भी बनी थी जंग का मैदान (हिंदी) स्टार लाइव 24। अभिगमन तिथि: 6 जुलाई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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