क्रिकेट
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क्रिकेट एक बल्ले व गेंद से 11-11 खिलाड़ियों के दो दलों के बीच एक बड़े मैदान में खेला जाने वाला खेल है। यह खेल एक बड़े मैदान में खेला जाता है और इस मैदान के बीच में एक 'पिच' बनाया जाता है जो 22 गज लम्बा और 10 फुट चौड़ा होता है। इसके दोनों तरफ़ 28 इंच ऊँचे तीन 'स्टम्प' लगे रहते हैं और इन स्टम्पों के बीच में दो 'गिल्लियाँ' लगी रहती हैं। ये तीनों स्टम्प इतने पास–पास गाड़े जाते हैं कि जिसमें से गेंद न गुज़र सके। गेंद की परिधि 9 इंच की होती है। क्रिकेट का गेंद एक ख़ास ढंग का होता है। जिसका भार 5.5 औंस से कम और 5.75 औंस से अधिक नहीं होता। हर टीम का अपना एक कप्तान होता है, जो कि इन ग्यारह खिलाड़ियों में ही शामिल होता है। इसके अलावा दो अम्पायर होते हैं, जिनका फ़ैसला दोनों टीमों को मान्य होता है। दोनों टीमों में से कौन–सी टीम पहले खेलेगी इसका फ़ैसला सिक्के की उछाल से, जिसे 'टास' कहा जाता है, किया जाता है। जिस टीम का कप्तान टास जीत जाता है, वह यदि चाहे तो पहले खेल शुरू कर सकता है। दसवें खिलाड़ी के आउट होते ही सारी टीम को आउट हुआ मान लिया जाता है। और इस बीच उस टीम ने जितने भी रन बनाए होते हैं, वह उसके आगे जोड़ दिए जाते हैं और कहा जाता है कि अमुक–अमुक टीम ने अपनी पहली पारी में इतने रन बनाए हैं।
दोनों दल बारी-बारी से बल्लेबाज़ी (एक पारी) और गेंदबाज़ी करते हैं व एक पारी के समाप्त होने पर आपस में जगह बदल लेते हैं। मुक़ाबले के पूर्व-निर्धारित समय के अनुसार दलों को एक अथवा दो पारियाँ मिलती हैं, जिनमें अधिकाधिक रन बनाने का उद्देश्य होता है। बल्लेबाज़ी कर रहा दल अपने विकेट (तीन-तीन डंडों के दो समूह, जो मैदान में एक-दूसरे से 20.12 मीटर दूर ज़मीन में लगाए जाते है) बचाता है और गेंद पर प्रहार करके दूसरे छोर के विकेट तक दौड़कर अथवा गेंद पर प्रहार कर उसे सीमा रेखा की ओर या उसके पार भेजकर रन बनाने का प्रयास करता है। गेंदबाज़ बांह सीधी रखकर फेंकी गई गेंद से विकेट गिराने का प्रयास करते हैं, जिससे गिल्लियाँ (जो विकेट के ऊपर आड़ी रखी रहती है) गिर जाएँ। यह बल्लेबाज को आउट करने के कई तरीकों में से एक होता है।
क्रिकेट मुख्यतः एक बाहरी (आउटडोर) खेल है, और कुछ मुकाबले कृत्रिम प्रकाश (फ्लड लाइट्स) में भी खेले जाते हैं। उदाहरण के लिए, गरमी के मौसम में इसे संयुक्त राजशाही, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में खेला जाता है जबकि वेस्ट इंडीज, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में ज्यादातर मानसून के बाद सर्दियों में खेला जाता है। मुख्य रूप से इसका प्रशासन दुबई में स्थित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के द्वारा किया जाता है, जो इसके सदस्य राष्ट्रों के घरेलू नियंत्रित निकायों के माध्यम से विश्व भर में खेल का आयोजन करती है। आईसीसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले पुरुष और महिला क्रिकेट दोनों का नियंत्रण करती है। हालांकि पुरूष, महिला क्रिकेट नहीं खेल सकते हैं पर नियमों के अनुसार महिलाएं पुरुषों की टीम में खेल सकती हैं।
इतिहास
क्रिकेट के खेल का इतिहास 16वीं शताब्दी से आज तक अत्यन्त विस्तृत रूप में विद्यमान है। पहला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच 1844 के बाद खेला गया, यद्यपि आधिकारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट 1877 से प्रारम्भ हुए। इस समय से यह खेल मूल रूप से इंग्लैंड में विकसित हुआ जो कि अब पेशेवर रूप में अधिकांश राष्ट्र मंडल देशों में खेला जाता है। क्रिकेट दुनिया भर में खेला जाता है। विशेषकर इंग्लैंड, दक्षिण एशिया, दक्षिण अफ्रीका और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में, मैच अनौपचारिक, सप्ताहांत की दोपहरी में गांवों के हरे मैदानों में खेले जाने वाले मुकाबलों से लेकर प्रमुख व्यावसायिक खिलाड़ियों के बीच विशाल स्टेडियमों में खेले जाने वाले पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों तक होते हैं।
क्रिकेट के इतिहास में पहले–पहल की बातें
- पहला टेस्ट मैच — 15 मार्च, 1877 को। (आस्ट्रेलिया)
- पहला टेस्ट — मेलबोर्न (आस्ट्रेलिया में)।
- पहला रन — चार्ल्स बैनरमैन (आस्ट्रेलिया)।
- पहला विकेट — हिल (इंग्लैण्ड)।
- पहला विकेट किसका — टाम्सन (आस्ट्रेलिया)।
- पहली जीत — 45 रन (आस्ट्रेलिया)।
- पहला ओवर — अल्फ़्रेडशा (इंग्लैण्ड)।
- पहला टेस्ट शतक — बैनरमैन (165 रन) (आस्ट्रेलिया)।
- पहला दोहरा टेस्ट शतक — मुर्डोच (211 रन) (आस्ट्रेलिया — 1877)।
- 99 पर आउट पहला खिलाड़ी — क्लेम हिल (आस्ट्रेलिया — 1901-2)।
- सबसे कम रनों से — पहली विजय (आस्ट्रेलिया के विरुद्ध इंग्लैण्ड)।
- सबसे अधिक रनों से — पहली जीत (इंग्लैण्ड के विरुद्ध आस्ट्रेलिया) (675 रन) (1928-29)।
- पहला खिलाड़ी शुरू से अन्त तक — मुर्डोच (153 रन) (1880) (आस्ट्रेलिया के विरुद्ध इंग्लैण्ड)।
- एक वर्ष में 1000 रन बनाने वाला पहला खिलाड़ी — क्लेम हिल (आस्ट्रेलिया) (1060 रन)।
- पाँच टेस्टों में हारने व जीतने वाला पहला देश — जीत (आस्ट्रेलिया, 1920-21), हार (इंग्लैण्ड)।
- पहला शतक प्रतिद्वन्द्वी कप्तानों द्वारा — (1913-14) जे0 डगलस (109) और एच0 टेलर (119) (दक्षिण अफ़्रीका के विरुद्ध इंग्लैण्ड)।
- पहला टेस्ट कब से किस देश में — 1- आस्ट्रेलिया, 1877 2- इंग्लैण्ड, 1880, 3-वेस्टइंडीज़, 1900, 4- भारत, 1932 5- न्यज़ीलैण्ड, 1929-30, 6- पाकिस्तान, 1952।
पहला टेस्ट मैच
भारत ने टेस्ट क्रिकेट में पहला क़दम सन् 1932 में रखा था। इस वर्ष इंग्लैंड के विरुद्ध लार्डस में भारत ने पहला टेस्ट खेला था। इस टेस्ट में भारतीय टीम के कप्तान सी0 के0 नायडु थे। एक टेस्ट की श्रृंखला में भारत यह टेस्ट 158 रन से हारा। इंग्लैंड की प्रथम पारी में 259 रन तथा द्वितीय पारी में 8 विकेट पर 275 रन थे। भारत की प्रथम तथा दूसरी पारी में क्रमशः 189 वे 187 रन थे। प्रथम पारी में कप्तान सी0 के0 नायडु के 40 रन सर्वोच्च स्कोर था तथा द्वितीय पारी में तेज़ गेंदबाज़ अमर सिंह के 51 रन सर्वोच्च स्कोर था। अमर सिंह भारत के पहले खिलाड़ी थे, जिन्होंने पहला अर्ध–शतक लगाया था। इंग्लैंड के विरुद्ध भारत का पहला टेस्ट शतक लाला अमरनाथ ने 1933-34 की श्रृंखला में बम्बई टेस्ट में लगाया। यह लाला अमरनाथ का पहला टेस्ट शतक था और भारतीय भूमि पर यह पहला टेस्ट मैच था।
भारत ने इंग्लैंड के विरुद्ध पहली टेस्ट विजय 1951-52 की श्रृंखला में विजय हरारे के नेतृत्व में मद्रास टेस्ट में एक पारी तथा 4 रन से पाई। यह भारत की पहली पारी विजय थी। भारत ने अपनी एक मात्र पारी में 9 विकेट पर 457 रन बनाए, जिसमें पंकज राय ने 111 रन व पाली उमरीगर के अविजित 130 रन थे। वह अब तक का भारत का सर्वोच्च स्कोर था तथा पाली उमरीगर का पहला टेस्ट शतक। 1961-62 में श्रृंखला में भारत ने इंग्लैण्ड को एक भी टेस्ट नहीं जीतने दिया। नारी कांट्रेक्टर के नेतृत्व में भारत ने 2 मैच जीते तथा तीन मैच बराबर छूटे। भारत ने इंग्लैंड की भूमि पर पहली टेस्ट विजय 1971 की श्रृखला ओबल टेस्ट में इंग्लैंड को 4 विकेट से हरा कर पाई। इंग्लैंड ने पहली पारी में 355 रन तथा दूसरी पारी में 101 रन बनाए। भारत ने अपनी दोनों पारियों में क्रमशः 284 रन तथा 6 विकेट पर 174 रन बनाए। इस श्रृंखला का नेतृत्व अजीत वाडेकर ने किया। 3 टेस्टों की यह श्रृंखला भारत ने 1–0 से जीती। सन् 1932 से लेकर 1974 तक भारत ने इंग्लैंड के विरुद्ध 13 टेस्ट श्रृंखलाएँ खेलीं। 1974 की 13वीं श्रृंखला भारत के लिए दुर्भाग्यशाली रही। 1971 में विश्व क्रिकेट में छा जाने वाला भारत 1974 में इंग्लैंड से 3–0 से हारा। अब तक भारत इंग्लैंड के विरुद्ध 53 टेस्ट मैच खेल चुका है, जिसमें 7 मैच भारत ने जीते 25 हारे व 21 बराबर रहे।
300 से अधिक रन
टेस्ट मैचों में त्रिशतक बनाने वाले बल्लेबाज़:-
- 365 रन – गैरी सोबर्स (वेस्टइंडीज) ने 1957-58 में किंग्स्टन में पाकिस्तान के विरुद्ध खेलते हुए।
- 364 रन – एल0 हटन (इंग्लैंड) ने 1938 में ओवल (लन्दन) में आस्टेलिया के विरुद्ध खेलते हुए।
- 337 रन – हनीफ़ मोहम्मद (पाकिस्तान) ने 1957-58 में ब्रिजटाउन में वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध खेलते हुए।
- 336 रन – डब्ल्यु0 आर0 हैमण्ड (इंग्लैंड) ने 1932-33 में ओक्लैण्ड में न्यूलैंण्ड के विरुद्ध खेलते हुए।
- 334 रन – डान ब्रैडमेन (आस्टेलिया) ने 1930 में लीड्स में इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए।
- 325 रन – ए0 सन्धाम (इंग्लैंड) ने 1929-30 में किंग्स्टन में वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध खेलते हुए।
- 311 रन – आर0 बी0 सिम्पसन (आस्टेलिया) ने 1964 में मानचेस्टर में इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए।
- 310 रन – जे0 एच0 एडरिच (इंग्लैंड) ने 1965 में लीड्स में न्यूज़ीलैण्ड के विरुद्ध खेलते हुए।
- 307 रन – आर0 एम0 काउपर (आस्ट्रेलिया) ने 1965-66 में मेलबोर्न में इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए।
- 304 रन – डान ब्रैडमेन (आस्ट्र्रेलिया) ने 1934 में लीड्स में इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए।
- 302 रन – लारेंस रोव (वेस्टइंडीज़) ने 1973-74 में ब्रिजटाउन में इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए।
क्रिकेट के नियम
क्रिकेट भारत में सबसे ज़्यादा खेला जाने वाला और सबसे लोकप्रिय खेल है। भारतीय क्रिकेट के दीवाने है। हम सबने अपने जीवन में कोई और खेल खेला हो या न हो पर क्रिकेट जरुर खेला है। क्रिकेट के प्रति इतने समर्पित होने के बाद भी हम में से कई इसके मूलभूत नियमो और सिद्धांतो से अनभिज्ञ है। हर खेल की तरह क्रिकेट के भी अपने नियम है।
क्षेत्ररक्षण
क्रिकेट के क्षेत्र में क्षेत्ररक्षण (फील्डिंग) का भी महत्वपूर्ण स्थान है। क्षेत्ररक्षण करने वाले खिलाड़ी को सदा ही चुस्त खड़ा रहना पड़ता है। क्षेत्ररक्षण में स्लिप्स, गली या प्वांइट, सिली मिड–आफ या मिड–आन, स्क्वेयर लेग, लेग स्लिप और विकेट कीपर के स्थान बड़े ही महत्वपूर्ण हैं। गेंददाज़ द्वारा तीन लगातार गेंदों में तीन विकेट लेने पर हेट ट्रिक कहा जाता है। यदि गेंददाज़ द्वारा छह गेंद फेंकने पर बल्लेबाज़ के द्वारा कोई भी रन न बने तो वह 'मेडन ओवर' कहलाता है। जो बल्लेबाज़ पारी समाप्त होने पर भी खेलता रहता है, उसे 'नाट आउट' कहते हैं। यदि गेंद बल्लेबाज़ के बैट या उसके शरीर को छुए बिना चली जाए और अम्पायर उसे 'वाइड' या 'नो बाल' भी न समझे तो बल्लेबाज़ जितने रन बनाएगा वे सब 'बाई' रन होंगे। जो टीम पहले खेलती है और दूसरी टीम से (तीन या इससे अधिक दिनों के मैच में) 150 रन अधिक बना लेती है, तब वह दूसरी टीम को दूसरी पारी शुरू करने पर मज़बूर कर सकती है। यदि दोनों टीमों की रन संख्या बराबर रहे तो उस मैच को टाई मैच कहते हैं।
बल्लेबाज़ी
क्रिकेट के प्रशंसकों के लिए बल्लेबाज़ी क्रिकेट के सबसे रोमांचक भागों में से एक है। एक अच्छा बल्लेबाज़ वो है जो अच्छे स्कोर बना कर अपने विकेट बचा लेता है। एक उत्कृष्ट बल्लेबाज़ बनने के लिए बड़ी तेजी के साथ शॉट्स मरना ज़रुरी होता है। जो खिलाड़ी बल्ला चला कर गेंद को बल्ले से मारते है उन्हें बल्लेबाज़ कहा जाता है और इस क्रिया या कला को बल्लेबाज़ी कहा जाता है। क्रिकेट के खेल में दो प्रकार के बल्लेबाज़ होते है।
- दायें हाथ का बल्लेबाज - जब खिलाड़ी गेंद पर प्रहार करते वक्त अपने दायें हाथ का इस्तेमाल करता है तो उसे दायें हाथ का बल्लेबाज माना जाता है। दायें हाथ के कुछ महान बल्लेबाज़ हैं-डॉन ब्रेड़मैन (आस्ट्रेलिया), सचिन तेंदुलकर (भारत), सुनील गावस्कर (भारत) इत्यादि।
- बायें हाथ का बल्लेबाज - इसके विपरीत जब खिलाड़ी गेंद पर प्रहार करते वक्त अपने बायें हाथ का इस्तेमाल करता है तो उसे बायें हाथ का बल्लेबाज़ माना जाता है। बायें हाथ के कुछ महान बल्लेबाज़ हैं- सर गैरी सोबर्स (वैस्टइंडीज), ब्रायन लारा (वैस्टइंडीज), एलन बोर्डर (आस्ट्रेलिया) इत्यादि।
गेंदबाज़ी
गेंदबाज़ी करते समय खिलाड़ी के किसी न किसी पैर का कुछ न कुछ अंग 'बॉलिंग क़्रीज़' के पीछे और 'रिटर्न क़्रीज़' के अन्दर होना चाहिए। यदि कोई गेंदबाज़ इन नियमों का उल्लघंन करता है तो उसे अम्पायर द्वारा 'नो बाल' का इशारा मिल जाता है और यदि वह गेंद को ऊँचाई या चौड़ाई में इतनी दूर फेंकता है कि अम्पायर की दृष्टि में वह गेंद बल्लेबाज़ की पहुँच से बाहर है तो उसे 'वाइड बाल' कहा जाता है। क्रिकेट में गेंदबाज़ी करने के भी अनेक तरीक़े हैं। जैसे–
- फास्ट बॉलिंग (तेज़ गेंदबाज़ी)
- मीडियम पेस बॉलिंग (मध्यम गति की गेंदबाज़ी)
- स्लो बॉलिंग (धीमी गेंदबाज़ी)
- स्पिन बॉलिंग (चक्करदार गेंदबाज़ी)
आउट
एक बल्लेबाज़ खेल में कई तरीक़े से आउट हो सकता है। बल्लेबाज़ के आउट होने के कुछ तरीक़े तो बहुत आसान होते है। विपरीत टीम का खिलाड़ी चिल्ला कर कहता है- 'यह आउट है', लेकिन आखिरी निर्णय अम्पायर का होता है और यदि वह विपरीत टीम के सदस्यों की अपील से सहमत होता है तो वह अपनी तर्जनी अँगुली उठा कर कहता है "आउट" नहीं तो वह अपना सिर हिलाकर "नॉट आउट" का इशारा देता है। गेंदबाज़, बल्लेबाज़ को आउट करने की कोशिश करता है और बल्लेबाज़ इस बात की कोशिश करता है कि गेंद उसकी 'स्टम्प' या 'पैड' पर न लगे। उसे इस बात का भी भय लगा रहता है कि यदि उसने अपनी गेंद को बहुत ऊँचा उछाल दिया तो विपक्षी टीम का कोई खिलाड़ी उसे कैच कर लेगा और वह आउट हो जाएगा।
आउट होने के तरीके
बोल्ड आउट | जब गेंद बल्ले से बचकर स्टम्प पर जा लगती है। |
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कैच आउट | बल्लेबाज के द्वारा शॉट मारने के बाद गेंद मैदान पर गिरने से पहले ही जब विपक्षी टीम का कोई खिलाड़ी कैच कर लेता है। |
रन आउट | जब बल्लेबाज रन बनाने के चक्कर में गेंद विकेटकीपर या गेंदबाज के पास आने से पहले तक अपनी क़्रीज़ पर नहीं पहुँच पाता है। |
एल॰ बी॰ डबल्यू॰ | (लैग बिफोर विकेट) विकेट के सामने पैर, जब कोई बल्लेबाज़ गेंद को मारने के लिए बल्ला उठाता है और बल्ला गेंद में नहीं लगता है या खिलाड़ी गेंद को पैर से रोकने की कोशिश करता है। |
स्टम्प आउट | यदि बल्लेबाज शॉट मारते समय क़्रीज़ से बाहर हो जाता है और स्टम्प के पीछे खड़ा खिलाड़ी, जिसे विकेटकीपर कहा जाता है, गेंद को स्टम्प से छुआ देता है तो उसे 'स्टम्प आउट' कहकर आउट मान लिया जाता है। |
हिट-विकेट | अगर बल्लेबाज़ गेंद को हिट करते समय अपना ही बल्ला या पैर स्टम्प को मार देता है तो वह 'हिट-विकेट' तरीक़े से आउट हो जाता है। |
हैडल्ड द बाल | यदि बल्लेबाज़ गेंद को दोबारा हिट करने की कोशिश करता है या उसे किसी ओर तरीक़े से रोकने की कोशिश करता है तो उसे 'हैडल्ड द बाल' तरीक़े से आउट मान लिया जाता है। |
यदि गेंद लगने से गिल्लियाँ गिर जाती हैं और स्टम्प नहीं गिरता तो भी बल्लेबाज़ को आउट हुआ माना जाता है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यदि गेंद स्टम्प से टकराने के बावजूद गिल्लियाँ नहीं गिरती हैं तो बल्लेबाज़ को आउट नहीं दिया जा सकता है।
रन
जब कोई बल्लेबाज़ गेंद को 'बाउँड्री' तक पहुँचा देता है, तो उसे बिना दौड़े एक साथ चार रन मिल जाते हैं। और अगर उसकी गेंद मैदान को बिना छुए बाउँड्री पार कर जाए तो उसे एक साथ छः रन मिल जाते हैं। नहीं तो गेंद वापस आने तक वह जितनी बार दोनों स्टम्पों के बीच का फ़ासला (22 गज) तय करता है, उतने ही रन उस बल्लेबाज़ के नाम के आगे जोड़ दिए जाते हैं। कई बार बल्लेबाज़ को बिना गेंद मारे भी रन मिल जाते हैं। यानी अगर गेंद बल्लेबाज़ के शरीर को छूकर या विकेट कीपर को चकमा देकर निकल जाएँ तो 'लेग बाई' और 'बाई' के रन मिल जाते हैं और यदि गेंदबाज़ ग़लत ढंग से गेंद फेंके और अम्पायर 'नो बाल' का या 'वायड बाल' का एलान कर दे तो भी खेलने वाली टीम को एक रन मिल जाता है। और हाँ, 'नो बाल' पर आउट हुए खिलाड़ी को आउट हुआ नहीं माना जाता है।
भारत में क्रिकेट
प्रथम स्पष्टत: दर्ज किया गया क्रिकेट मैच 16वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड में सरे के गिलफर्ड में खेला गया था। पहली नियमावली 1744 में लिखी गई थी। भारत में क्रिकेट उतना ही लोकप्रिय खेल है, जितना अमेरिका में बास्केटबाल और ब्राजील में फुटबाल। क्रिकेट के सितारे बहुत पैसा पाते हैं, इनकी बहुत चकाचौंध होती है व ये राष्ट्रीय प्रतिमान बन जाते हैं। हाल के वर्षों में सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेट खिलाड़ी कुछ प्रमुख फिल्मी सितारों जितने लोकप्रिय हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में भारत का प्रदर्शन लगातार सुधरा है, जिसका उत्कृष्ट बिंदु 1983 के विश्व कप में शानदार विजय है। समृद्ध राष्ट्रीय परिदृश्य पर रणजी ट्राफी प्रतिवर्ष खेली जाने वाली एक प्रतिष्ठापूर्ण अंतर्राज्यीय स्पर्द्धा है। उच्च क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष दिलीप ट्राफी का आयोजन किया जाता है और सत्र का अंत ईरानी ट्राफी मुकाबले से होता है। जिसमें रणजी ट्राफी के विजेताओं को शेष भारत एकादश (रेस्ट आफ इंडिया XI) के विरुद्ध खेलना होता है।
आरंभिक दौर
भारत में क्रिकेट का खेल 18वीं शताब्दी के आरंभिक ब्रिटिश प्रभाव के दिनों से मौजूद है। जब सेना ने इस खेल को लोकप्रिय बनाने में मदद की। सर्वप्रथम दर्ज किया गया मुकाबला 1721 में हुआ। 1792 में विश्व का दूसरा सबसे पुराना क्रिकेट क्लब, कलकत्ता क्रिकेट क्लब, ईडन गार्डंस क्रिकेट स्टेडियम में स्थापित हुआ। फिर पारसी समुदाय ने प्रथम देशी भारतीय क्रिकेट क्लब 'ओरिएंट' 1848 में स्थापित किया। रोचक बात यह है कि भारत में क्रिकेट टीम धार्मिक आधारों पर बनाई जाती थी और 1907 में खेली गई प्रथम प्रतियोगिता में तीन टीमें थीं, हिंदू, पारसी व मुसलमान, पारसी टीम ने 1877 में यूरोपीय लोगों को हराया और 1866 में इंग्लैंड जाने पर वह विदेशी दौरे पर जाने वाली प्रथम भारतीय टीम बनी। 1899 में एक ब्रिटिश टीम भारत आई। इसके बाद 1926 में भारत को टेस्ट दर्जा मिलने के पूर्व कुछ भारतीयों का चयन इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व करने के लिए हुआ। के0 एस0 रणजीत सिंह जी, पटौदी के नवाब और के0 एस0 दलीप सिंह जी ने इंग्लैंड के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला। रणजीत सिंह जी ने 1896 में आस्ट्रेलिया के विरुद्ध ओल्ड ट्रैफर्ड में नाबाद 154 रन बनाए और विज्डन क्रिकेटर्स अल्मानेक द्वारा सम्मानित किए जाने वाले प्रथम भारतीय क्रिकेटर बने। लाला अमरनाथ टेस्ट में शतक बनाने वाले पहले भारतीय बने। जब उन्होंने भ्रमणकारी अंग्रेज दल के विरुद्ध 1933 में बंबई (वर्तमान मुंबई) में 118 रन बनाए। 1934-35 में भारत में एक पूर्ण घरेलू स्पर्द्धा आरंभ हुई। इसे रणजीत सिंह जी के नाम पर रणजी ट्राफी कहा गया। 1951-52 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में भारत ने इंग्लैंड को एक पारी और आठ रनों से हराकर अपनी पहली टेस्ट विजय दर्ज की और इंग्लैंड के ही विरुद्ध भारत ने 1961-62 में अपनी पहली श्रृंखला जीती। इसी सत्र में दलीप सिंह जी के नाम पर एक क्षेत्रीय ट्राफी स्थापित हुई।
प्रारंभिक विजय
1952 में इंग्लैंड के विरुद्ध उसी वर्ष की जीत के पश्चात, भारत ने पाकिस्तान को पांच मुकाबलों की श्रृंखला में 2-1 से हराकर टेस्ट श्रृंखला में अपनी पहली विजय दर्ज की। इस श्रृंखला में और इसके पश्चात न्यूजीलैंड के विरुद्ध श्रृंखला की विजय में वीनू मांकड, पॉली उमरीगर और विजय हजारे निर्णायक साबित हुए। किंतु उन जैसे विशिष्ट खिलाड़ियों और अन्य जैसे, सी0के0 नायडू, विजय मर्चेंट, मुश्ताक अली व मुहम्मद निसार की मौजूदगी के बावजूद टेस्ट मुकाबलों में भारत का प्रदर्शन लंबे समय तक अप्रभावी रहा। अंतत:1970 में देश का दल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में एक प्रभावी शक्ति के रूप में उभरा। 1971 में सुनील गावस्कर और 1979 में कपिल देव के उदय के साथ ही भारत ने विश्व के प्रमुख दलों को चुनौती देना आरंभ कर दिया। विश्व कीर्तिमानों को तोड़ने वाले ये दोनों खिलाड़ी लगभग दो दशक तक भारत के भाग्य के निर्णायक रहे। सुनील गावस्कर ने वेस्ट इंडीज के विरुद्ध 1970-71 में पदार्पण किया और श्रृंखला में 700 रनों से भी अधिक के योग से जल्दी ही चर्चित हो गए। उन्होंने भारत के लिए 125 टेस्ट मैच खेले और 34 शतक बनाए। यह कीर्तिमान 18 वर्षों से अक्षुण्ण रहा है। भारतीय टीम ने अपना पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला (ओडीआई) 1974 में खेला और 1983 में विश्व कप जीता। 1983 का विश्व कप जीतने वाले दल के कप्तान, कपिल देव, ने वर्षों तक भारत की गेंदबाजी को अकेले संभाला व 434 टेस्ट विकेटों का विश्व कीर्तिमान बनाया, जिसे 2001 में कर्टनी वॉल्श ने तोड़ा। 1970 के दशक के मध्य से भारत को विश्व के क्रिकेट खेलने वाले प्रमुख देशों में माना जाता है। 20वीं शताब्दी के अंत में उसके नाम कई कीर्तिमान व उपलब्धियों दर्ज थीं। मंसूर अली खाँ पटौदी ने 1962 में केवल 21 वर्ष की आयु में वेस्ट इंडीज के विरुद्ध दल का नेतृत्व किया था। इस तरह, एक टेस्ट खेलने वाले राष्ट्र के रूप में भारत ने सबसे कम उम्र का टेस्ट कप्तान देने की प्रतिष्ठा प्राप्त की है। भारत के सितारा ओपनिंग बल्लेबाज सुनील गावस्कर, 100 रनों से अधिक की 34 पारियों के साथ 10,000 रन बनाने वाले विश्व के पहले बल्लेबाज बन गए। 21वीं सदी के उदय के समय कपिल देव निखंज ने सभी को पीछे छोड़ दिया, जब 434 विकेट लेकर वह विश्व में सबसे अधिक विकेट लेने वाले खिलाड़ी बन गए। मुहम्मद अजहरुद्दीन, अपने कीर्तिमान संख्या में खेले एक दिवसीय मुकाबलों (323) और एक दिवसीय मुकाबलों के रनों (9111) के साथ अपने पहले तीनों टेस्ट मुकाबलों में शतक बनाने वाले एकमात्र खिलाड़ी रहे। सचिन तेंदुलकर, जो विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक माने जाते हैं, के नाम एक दिवसीय मुकाबलों के सर्वाधिक शतकों (46) का कीर्तिमान हैं। विश्व कप विजय व उसके बाद 1983 भारत का गौरवपूर्ण वर्ष था। एक ऐसी स्पर्द्धा में, जिसमें वेस्ट इंडीज की टीम सबसे प्रबल दावेदार थी, कपिल देव के नेतृत्व में भारत ने विश्व कप जीतकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। विचित्र बात यह थी कि नवागत जिंबाब्वे ने भारत के सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को लीग मुकाबलों में से एक में लगभग धूमिल कर दिया था। जिंबाब्वे ने आस्ट्रेलिया को हरा दिया था और भारत को हराने के कगार पर था। पहले बल्लेबाजी करते हुए 17 रनों पर 5 विकेट के स्कोर पर लड़खड़ाती भारतीय टीम को कपिल देव ने बचाया। उन्होंने एक दिवसीय क्रिकेट की सर्वकालिक महानतम पारियों में से एक खेली और नाबाद 175 रनों का उनका योग उस स्पर्द्धा में उच्चतम योग रहा। भारत जीता, किंतु फिर भी टीम से अधिक अपेक्षाएं नहीं थीं। सेमीफाइनल में शक्तिशाली इंग्लैंड के विरुद्ध खेलते हुए भारत ने एक विश्वसनीय जीत हासिल की। निश्चित ही अंतिम मुकाबला भारत की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ विजय थी। यद्यपि टीम ने खासी खराब बल्लेबाजी की व केवल 183 रन बनाए, लेकिन भारतीयों का क्षेत्ररक्षण व गेंदबाजी बेहतरीन थी। क्लाइव लॉयड उस खतरनाक वेस्ट इंडीज टीम का नेतृत्व कर रहे थे। जिसमें विवियन रिचडर्स, गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हेंस, मैल्कम मार्शल, माइकेल होल्डिंग, जेफ्री डूजॉन, जोएल गार्नर और एंडी रॉबटर्स शामिल थे, मोहिंदर अमरनाथ, कृष्णामचारी श्रीकांत, मदनलाल और रॉजर बिन्नी के हरफनमौला योगदान से भारत ने एक ऐसी टीम को हराया, जिसे सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों की चौकड़ी व विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी क्रम का गौरव हासिल था। उस समय से भारतीय क्रिकेट टीम अधिक शक्तिशाली होती गई हैं। 1970 व 80 के दशक के आरंभ में गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप वेंगसरकर, संदीप पाटिल और 1980 व 90 के दशक में मुहम्मद अजहरुद्दीन, रवि शास्त्री, अनिल कुंबले और मनोज प्रभाकर जैसे दृढ़निश्चयी खिलाड़ियों के उत्कृष्ट प्रदर्शनों से भारत की टीम काफी संतुलित ढंग से बढ़ती रही है।