चामुंडा देवी मंदिर, पालमपुर
चामुंडा देवी मंदिर, पालमपुर
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वर्णन | हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक 'चामुंडा देवी मंदिर' को देवी सती के शक्तिपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी के चरण गिरे थे। |
स्थान | पालमपुर, ज़िला काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश |
संबंधित लेख | शक्तिपीठ, सती, शिव |
महत्त्व | माँ चामुंडा का यह मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है, जो घने जंगलों और बानेर नदी के पास स्थित है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्त्व है, जो शक्तिपीठों में से एक है। |
मान्यता | मान्यता है कि यहाँ पर 'शतचंडी' का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है। |
अन्य जानकारी | यहाँ आने वाले भक्तों को मंदिर परिसर में ही एक छोटा-सा तालाब मिलेगा, जिसके पानी को बहुत ही शुद्ध माना जाता है। साथ ही मंदिर परिसर में ही एक खोखली जगह है, जो देखने पर शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। |
चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा ज़िला, हिमाचल प्रदेश के शानदार हिल स्टेशन पालमपुर में स्थित है। इस मंदिर को देवी के शक्तिपीठों में गिना जाता है। बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है। यहाँ पर आकर श्रद्धालु अपनी भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों मे अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। देश के कोने-कोने से भक्त यहाँ आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते है।
स्थिति
चामुंडा देवी मंदिर धर्मशाला से 15 कि.मी. कि दूरी पर स्थित है। माँ चामुंडा का यह मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है, जो घने जंगलों और बानेर नदी के पास स्थित है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्त्व है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। ये मंदिर हिन्दू देवी चामुंडा, जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है।
पौराणिक कथा
चामुंडा देवी मंदिर शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है, जिनकी उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ हैं। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलों पर सती के अंग तथा आभूषण आदि गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया, क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। यज्ञ स्थल पर पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का काफी अपमान किया गया, जिसे सती सहन न कर सकीं और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बांट दिया, जो अंग जहां पर गिरा, वह शक्तिपीठ बन गया। मान्यता है कि चामुंडा देवी मंदिर मे माता सती के चरण गिरे थे।
'दुर्गा सप्तशती' के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया। माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में 'चामुंडा' के नाम से विख्यात हो जाओगी। मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरूप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।[1]
मान्यता
माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती का चरण गिरा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गईं। चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है। भक्तों में मान्यता है कि यहां पर 'शतचंडी' का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है।
मंदिर का वातावरण
इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है, जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूती करता है। यहां पर प्रायः बहुत सारे श्रद्धालुओं को योग और समाधी में तल्लीन देखा जा सकता है। यहां घूमने आने वाले पर्यटकों को मंदिर परिसर में ही एक छोटा-सा तालाब मिलेगा, जिसके पानी को बहुत ही शुद्ध माना जाता है। साथ ही मंदिर परिसर में ही एक खोखली जगह है, जो देखने पर शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। यहां आने वाले आगंतुक मंदिर परिसर में ही कई देवी-देवताओं के चित्रों को भी देख सकते हैं।[2]
अन्य आकर्षण
चामुंडा देवी मंदिर के पीछे की ओर ही आयुर्वेदिक चिकित्सालय, पुस्तकालय और संस्कृत कॉलेज है। चिकित्सालय के कर्मचारियों द्वारा आये हुए श्रद्धालुओं को चिकित्सा संबंधि सामग्री मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित पुस्तकालय में पौराणिक पुस्तकों के अतिरिक्त ज्योतिषाचार्य, वेद, पुराण, संस्कृति से संबंधित पुस्तकें विक्रय हेतु उपलब्ध हैं। यह पुस्तकें उचित मूल्य पर क्रय की जा सकती हैं। यहां पर स्थित सांस्कृतिक कॉलेज को मंदिर की संस्था द्वारा चलाया जाता है। यहां वेद, पुराणो कि मुफ्त कक्षा चलाई जाती है।
कैसे पहुँचें
रेल मार्ग - पंजाब स्थित पठानकोट से पर्यटक हिमाचल प्रदेश के लिए चलने वाली छोटी रेलगाड़ी के द्वारा पहाड़ी सौन्दर्य और संकीर्ण रास्तों का लुफ्त उठाते हुए मराण्डा तक पहुंच सकते हैं, जो कि पालमपुर के पास स्थित है। यहां से चामुंडा देवी मंदिर कि दूरी 30 कि.मी. है।
वायु मार्ग - चामुंडा देवी मंदिर का नजदीकी हवाईअड्डा गगल में है, जो कि यहां से 28 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां तक आने के बाद में यात्री बस या कार से चामुंडा देवी मंदिर तक पहुंच सकते है। यहाँ से टैक्सी आदि की भी अच्छी सुविधा है। समय-समय पर हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग की बसें यहाँ से जाती रहती हैं।
सड़क मार्ग - सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटकों के लिए हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग की बस सेवा है, जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर उतारती हैं। चामुंडा देवी धर्मशाला से 15 कि.मी. और ज्वालामुखी से 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां से यात्री अपने निजी वाहनों या किराए के वाहनों से मंदिर तक जा सकते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शक्ति पीठ चामुंडा, बेजनाथ, ओर ज्वाला मुखी की यात्रा (हिन्दी) औदिच्य बंधु। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
- ↑ चामुंडा देवी मंदिर, पालमपुर (हिन्दी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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