पावर घाटी का रांई गढ़

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:52, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण (Text replace - " जिले " to " ज़िले ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

पावर घाटी का रांई गढ़ गढ़वाल की अंतिम पश्चिमी सीमा का यह गढ़ देहरादून ज़िले के त्यूणी-शिमला मार्ग पर जुब्बल हाटकोटी देवी मंदिर के पास है। इस गढ़ का गढ़पति राणा वंश का था। इस वंश के हाटकोटी के आस-पास ढाढी व आराकोट में रहते हैं। पश्चिमी तरफ से आने वाले आक्रांताओं का सबसे पहले इसी गढ़ से पाला पड़ा था। इसलिए इसी रांई गढ़ के नाम से संपूर्ण टौंस घाटी व यमुना घाटी का नाम रवांई पड़ा। इसी गढ़ से गढ़वाल में प्रवेश होते थे। पहले जुब्बल तक गढ़वाल राज्य का हिस्सा था, बाद में राजा गढ़वाल ने इसे जुब्बल नरेश को ही दे दिया था। त्यूणी से जुब्बल के बीच आराकोट स्नैल नीराकोट का नदी के दायीं तरफ का हिस्सा उत्तरकाशी जनपद की पुरोला तहसील में आता है। आराकोट से शिमला तक सीधे सड़क परिवहन की सुविधा है। हाटकोटी में अष्ट भुजा देवी की 8 फुट ऊंची भव्य मूर्ति है। मंदिर के पास अन्य कई मंदिर व होटल हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसे अच्छा विकसित पर्यटन स्थल बना दिया है। रांई गढ़ रमणीक जगह पर पावर नदी के किनारे है। अब यह हिमाचल प्रदेश के महासू ज़िले में है। एटकिशन ने आराकोट इज द गिलगिट ऑफ काश्मीर के बारे में लिखा है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख