यमुना जयंती
यमुना जयंती (अंग्रेज़ी: Yamuna Jayanti) वासंतिक नवरात्र की छठ (चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी) को श्रद्धालु भक्तों द्वारा मनाई जाती है। भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार नदियों को दैवीय रूप में पूजा जाता है। यमुना नदी का उद्गम स्थान हिमालय के हिमाच्छादित श्रंग बंदरपुच्छ में स्थित कालिंद पर्वत है, जिसके नाम पर यमुना को कालिंदजा अथवा कालिंदी कहा जाता है। यमुना देवी के रूप में पूजित हैं। श्रद्धालु भक्तों द्वारा यमुनाजी का जन्मोत्सव यमुना जयंती के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यता
ऐसा पुराणों में वर्णन आता है कि देवी यमुना (अपने प्राकट्य रूप में) सूर्यदेव की पुत्री तथा मृत्यु के देवता यमराज इनके अग्रज (बड़े भाई) व शनिदेव इनके अनुज (छोटे भाई) हैं। वैष्णव मतानुसार, यमुना भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी हैं। जहां श्रीकृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते है, वहां यमुना ब्रज संस्कृति की जननी मानी जाती है। अतः यमुना जी सत्यरूप में ब्रजवासियों की माता है। अतः ब्रज क्षेत्र में इन्हें यमुना मैया कहा जाता है। ऐसा गर्ग संहिता में वर्णन है कि गोलोक में श्रीकृष्ण ने राधा से भूतल पर अवतरित होने का आग्रह किया था। जहां वृंदावन, यमुना व गोवर्धन न हो, वहां जाकर सुखानुभूति न होने की बात राधा ने कही। तब श्रीकृष्ण ने सबको ब्रज-मंडल में अवतरित कराया।
प्रकटीकरण
उत्तराखंड में यमुनोत्री से निकलकर ब्रजमंडल की नीलमणिमय मेखला (करधनी) की भांति सुशोभित होते हुए तीर्थराज प्रयाग तक प्रवाहित होने वाली यमुना ब्रज-रसिकों का प्राण है। ब्रज-मंडल में यमुना श्रीराधा-माधव युगल के रसमय केलि-विलास की दृष्टा ही नहीं, अपितु सृष्टा भी हैं। यह अपने मनोरम तट पर सघन वृक्षावलियों एवं कमनीय कुंजों द्वारा प्रिया-प्रियतम के मधुर लीला-विलास में सहायक हैं।[1]
स्वरूप वर्णन
भूलोक में कलिंद पर्वत से निकलने के कारण यमुना का नाम कालिंदी पड़ा। यमुना का जल श्यामवर्ण है। वामन पुराण में प्रसंग है कि दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिव जी की उपेक्षा एवं तिरस्कार से आहत सती के योगाग्नि द्वारा भस्मीभूत हो जाने पर व्यग्र शिवजी यमुना-जल में कूद पड़े। इससे यमुना कृष्णवर्णा (कृष्णा) हो गईं। ब्रज-रसिकों की धारणा है कि श्री राधा-माधव के जल-विहार से श्री राधा के तन में लिप्त कस्तूरी घुलकर यमुना-जल को श्यामल कर रही है। यह भी मान्यता है कि श्यामसुंदर के यमुना में अवगाहन करने से उनका श्यामवर्ण हो गया।
पुरातन स्वरूप
पौराणिक मतानुसार वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी। जबकी वर्तमान समय में वह गोवर्धन से लगभग मील दूर हो गई है। गोवर्धन के निकट क्षेत्र जमुनावती में पुराणिक किसी काल में यमुना के प्रवाहित होने उल्लेख मिलते हैं। वल्लभ सम्प्रदाय के वार्ता साहित्य से ज्ञात होता है कि सारस्वत कल्प में यमुना नदी जमुनावती ग्राम के समीप बहती थी। उस काल में यमुना नदी की दो धाराऐं थी, एक धारा नंदगांव, बरसाना, संकेत के निकट बहती हुई गोवर्धन में जमुनावती पर आती थी और दूसरी धारा पीरधाट से होती हुई गोकुल की ओर चली जाती थी। आगे दानों धाराएं एक होकर वर्तमान आगरा की ओर बढ़ जाती थी।
आध्यात्मिक स्वरूप
गर्ग संहिता में यमुना के पंचांग का वर्णन आता है पटल, पद्धति, कवय, स्तोत्र और सहस्त्र नाम। पौराणिक काल में भगवान श्रीकृष्ण ने कालिय नाग का उद्धार कर विषाक्त यमुना को विषहीन किया था। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार यह देम में यमुना जी के एक हजार नामों से उसकी पशस्ति का गायन किया गया है। यमुना के परम भक्त इसका दैनिक रूप से प्रति दिन पाठ करते हैं। ब्रह्म पुराण में देवी यमुना के आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया हुआ है- जो जगत का आधारभूत है और जिसे लक्षणों से परमब्रह्म कहा गया है, उपनिषदों ने जिसे सच्चिदानंद स्वरूप कहकर संबोधित किया है, वही परमतत्व साक्षात यमुना हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 श्री यमुना जयंती: शनिदेव की बहन का जन्मोत्सव है आज (हिन्दी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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