अवध किसान सभा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 5 जुलाई 2017 का अवतरण (Text replacement - "जमींदार " to "ज़मींदार ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

अवध किसान सभा का गठन 17 अक्टूबर, 1920 ई. को किया गया था। 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' का गठन 1917 में मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय और गौरीशंकर मिश्र आदि के प्रयासों से हुआ था। महात्मा गाँधी के 'खिलाफत आन्दोलन' के सवाल पर किसान सभा में मतभेद प्रकट होने लगे, और अवध के किसान नेताओं ने बाबा रामचन्द्र के नेतृत्व में 1920 में 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' से नाता तोड़कर 'अवध किसान सभा' का गठन कर लिया।

गठन

वर्ष 1917 में पंडित मोतीलाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय और गौरीशंकर मिश्र ने किसानों के हक में 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' का गठन किया था। 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' में अवध की सर्वाधिक भागीदारी थी। यह किसान सभा किसानों के हक में ब्रिटिश हुकूमत के सामने माँगे रखती थी और दबाव डालकर वाजिब मांगें मंगवाती थी। 1919 ई. के अन्तिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। प्रतापगढ़ ज़िले की एक जागीर में 'नाई धोबी बंद' सामाजिक बहिष्कार संगठित कारवाई की पहली घटना थी। लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नेतृत्व में किये जा रहे 'खिलाफत आंदोलन' के सवाल पर 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' में तीखे मतभेद उभर कर सामने आने लगे, जिसके फलस्वरूप बाबा रामचन्द्र के व्यक्तिगत प्रयासों से 17 अक्टूबर, 1920 ई. को प्रतापगढ़ ज़िले में 'अवध किसान सभा' का गठन किया गया। प्रतापगढ़ ज़िले का 'खरगाँव' किसान सभा की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था।

अन्य इकाइयों का विलय

अवध की तालुकेदारी में ग्राम पंचायतों के नेतृत्व में किसान बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया। अवध के किसान नेताओं में बाबा रामचन्द्र, गौरीशंकर मिश्र, माताबदल पांडेय, झिंगुरी सिंह आदि शामिल थे। 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' से नाता तोडकर 'अवध किसान सभा' का गठन हो चुका था, और एक महीने के भीतर ही अवध की 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' की सभी इकाइयों का 'अवध किसान सभा' में विलय हो गया। इन नेताओं ने प्रतापगढ की पट्टी तहसील के खरगाँव को नवगठित किसान सभा का मुख्यालय बनाया और यहीं पर एक किसान कांउसिल का भी गठन किया। 'अवध किसान सभा' के निशाने पर मूलतः ज़मींदार और ताल्लुकेदार थे। उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच एवं सीतापुर ज़िलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर अवध के किसानों ने 'एका आन्दोलन' नाम का आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में कुछ ज़मींदार भी शामिल थे। इस आन्दोलन के प्रमुख नेता 'मदारी पासी' और 'सहदेव' थे। ये दोनों निम्न जाति के किसान थे।

अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव

'अवध किसान सभा' पर अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का भी बखूबी प्रभाव वडा था। अवध में जिस समय किसान अंगडाई ले रहे थे, उसी समय रूस में 'बोल्सेविक क्रांति' हुई तथा रूस पर जापान की विजय हुई थी। इसीलिए ब्रिटिश हुकूमत आन्दोलनकारी किसानों के लिए बोल्सेविक, लुटरे और डाकू जैसे शब्दों का प्रयोग करती थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के छंटनीशुदा सैनिकों ने भी किसान आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। 'अवध किसान सभा' में देहाती बुद्धिजीवियों, जिसमें बाबा, साधु और फ़कीर आदि आते थे, ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। किसान आन्दोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी 'अवध किसान सभा' की महत्वपूर्ण विशेषता थी। आगे चलकर महिलाओं की संगठित शक्ति का प्रतिरूप 'अखिल भारतीय किसानिन सभा' के रूप में सामने आई। 'अखिल भारतीय किसानिन सभा' शायद भारत में आम महिलाओं का पहला संगठन था।[1]

  • कहा जाता है कि सर्वहारा वर्ग किसानों के संघर्ष में किसानों का स्वाभाविक सहयोगी होता है। लेकिन उस समय अवध में सर्वहारा वर्ग तलाशने पर भी नहीं मिलते। क्योंकि अवध का समाज खेतिहर मज़दूरों का था, जिन पर हमेशा बेदख़ली की तलवार लटकी रहती थी। वास्तव में अवध में किसान थे ही नहीं, जिन्हें कुछ इतिहासकार किसान कहते थे, वह तो खेतिहर मज़दूर थे। अवध का समाज यूरोप के समाज से भिन्न था। इस ओर पश्चिमी इतिहासकार ध्यान नहीं देते।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अवध किसान आन्दोलन के राजनीतिक और आर्थिक सन्दर्भ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 अगस्त, 2013।

संबंधित लेख