ख़्वाजा
सूफ़ी संतों के कई वर्ग-उपवर्ग हैं इनमें चिश्तिया और इस्माइली भी हैं। अजमेर के प्रसिद्ध सूफ़ी ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का नाम सबसे प्रसिद्ध है। अजमेर को उनके रुतबे के चलते ही ख़्वाजा की नगरी कहा जाता है। ख़्वाजा नामधारी कई मशहूर हस्तियां हुई हैं। आमतौर पर सूफी संतों के नाम के आगे तो यह ज़रूरी विशेषण की तरह लगाया जाता है। सम्मान, आदर, रुतबा, वरिष्ठ जैसे भाव इस शब्द में अंतर्निहित हैं।
शब्दार्थ
ख़्वाजा को अरबी भाषा का समझा जाता है पर मूल रूप से यह फारसी भाषा का शब्द है जिसमें महत्व का भाव समाया है। ख़्वाजा का मतलब होता है रईस, धनवान, गुरु, ज्ञानी, शक्तिशाली, कारोबारी, स्वामी अथवा दुखहर्ता। जाहिर है कि अधिकार-प्रभुत्व सम्पन्न व्यक्ति में ही ऐसी क्षमताएं होती हैं जो इच्छापूर्ति कर सके। आध्यात्मिक पुरुष के तौर पर उस व्यक्ति के आगे हर उस संत के आगे ख़्वाजा शब्द लगाया जा सकता है जिसमें मनोकामनापूर्ति की शक्ति हो। प्रभावी व्यक्ति के तौर पर मध्यएशिया के तुर्कमेनिस्तान, कज़ाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, अजरबैजान आदि मुल्कों में ख़्वाजा की उपाधि अधिकार सम्पन्न व्यक्ति को दी जाती रही है।[1]
ख़्वाजा का अपभ्रंश
अरबी में इसका उच्चारण ख़्वाजाह होता है और ईरानी में खाजे। भारत, पाकिस्तान, ईरान में एक बड़ा व्यापारी समुदाय है जो खोजा कहलाते हैं। खोजा शब्द इसी ख़्वाजा का अपभ्रंश है। यूरोप के यहूदियों की तरह खोजा लोग महान् व्यापारी रहे हैं। पश्चिमी भारत के मुस्लिमों में खोजा कारोबारी होते हैं। ख़ासकर पंजाब के खोजा सुन्नी कहे जाते हैं जिनके पुरखों में धर्मांतरित पंजाबी खत्री भी शामिल हैं। मोहम्मद अली जिन्ना भी खोजा समुदाय से ताल्लुक रखते थे और उनके पुरखे भी पंजाब के खत्री थे। गुजरात और मुंबई के खोजा व्यवसायी शिया समुदाय के हैं और इस्माइली धर्मगुरु आग़ाखान को मानते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा... (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) शब्दों का सफर। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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